दृष्टिकोण बदलना होगा

एक बार अमेरिका में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें भारत के साथ ही विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों हिस्सा लिया। चूंकि अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन था; अत: मुद्दे भी गंभीर थे। माहौल को कुछ हलका बनाने के लिए इन प्रतिनिधियों को एक खेल खिलाया जाता है। सभी देशों से मंगाए गए चूहों को बिना किसी लेबल के अलग-अलग पिंजरों में बंद किया जाता है और प्रतिनिधियों से आग्रह किया जाता है कि वे अपने देश के चूहों को पहचाने। सभी प्रतिनिधि अपनी-अपनी बारी के अनुसार उठ कर चूहों का निरीक्षण करते हैं परंतु कोई भी अपने देश के चूहों को पहचान नहीं पाता। अंत में भारतीय प्रतिनिधि सभी चूहों का निरीक्षण करता है और पिंजरे में बंद अपने देश के चूहों को पहचान लेता है। सभी आश्चर्यचकित हो जाते हैं और भारतीय प्रतिनिधि ने अपने देश के चूहों को किस तरह पहचाना इस बात का खुलासा करने का आग्रह करते हैं। वह प्रतिनिधि मंच पर आकर कहता है कि हमारे देश के चूहों की पहचान करना बहुत आसान था। पिंजरे में बंद जब कोई एक चूहा ऊपर उठने की कोशिश कर रहा था तो बाकी चूहे उसकी टांग खींच कर उसे गिराने का प्रयत्न कर रहे थे। प्रतिनिधि की बात सुनकर सारा हॉल ठहाकों और तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा और माहौल अपने आप हलका हो गया।

यह वाकया भले ही काल्पनिक और मजेदार हो परंतु इसमें छिपा संदेश बहुत गंभीर है और पूरी तरह से आज की भारतीय राजनीति की ओर इशारा करता है। आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार देश के विकास के लिए प्रयास कर रही है, नई योजनाएं, नए बिल लाने का प्रयास कर रही है, परंतु जहां से ये योजनाएं मूर्त रूप लेती हैं, ये बिल पास होते हैं, उस संसद को ही विपक्ष चलने नहीं दे रहा है। अर्थात प्रधानमंत्री आगे बढने की कोशिश कर रहे हैं और विपक्ष उनको पीछे खींच रहा है।

१५ अगस्त को लाल किले की प्राचीर से दिए गए अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनता के सामने अपने पिछले एक साल का रिपोर्ट कार्ड रखा। जनता को कुछ नए विचारों, नई योजनाओं तथा नए विकास कार्यों के खाके की उम्मीद थी, परंतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नया कुछ नहीं कहा। हालांकि पिछले एक साल का जो ब्यौरा उन्होंने दिया वह भी संतोषप्रद था। लोगों में कम से कम यह भावना तो जागृत हुई कि धीरे-धीरे ही सही परंतु विकास हो रहा है। पिछले साल के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिए गए अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता अभियान, हर व्यक्ति का बैंक में खाता, भ्रष्टाचार मिटाने, काले धन को वापस लाने इत्यादि बातों की घोषणा की थी। इस वर्ष १५ अगस्त को उन्होंने इन सारे मुद्दों पर एक साल में सरकार ने जो कार्य किया उसका आंकड़ों सहित विवरण प्रस्तुत किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि स्वच्छता अभियान के असली ब्रांड एम्बेसडर परिवार के बच्चे हैं। उन्हें अब मालूम चल गया है कि यहां-वहां कचरा फेंकने, थूंकने आदि से बीमारियां फैलती हैं। अब वे घर के बड़े लोगों को इस तरह की हरकत करने से रोकते हैं। देश की आनेवाली पीढ़ी स्वच्छता के प्रति जागरुक हो रही है यह अच्छे संकेत हैं। सन २०१९ में म.गांधी जी की १५०वीं जयंती पर हम उन्हें स्वच्छ भारत दे सकते हैं। इस अभियान के तहत हर स्कूल में छात्र छात्राओं के लिये अलग-अलग शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया था। आज देश कई स्कूलों में शौचालय बन गए हैं।

एक साल पहले तक जहां ४० फीसदी लोग बैंक खाते से वंचित थे वहीं एक साल में जनधन योजना के तहत १७ करोड़ बैंक खाते खुले और लगभग २० हजार करोड़ रुपये जमा हुए। इन्हीं बैंक खातों में गैस की सब्सिडी जमा होने लगी। पैसा सीधे बैंक खातों में जमा होने के कारण भ्रष्टाचार कम हो गया।

पिछले एक साल में सरकार पर किसी तरह के भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा। काले धन को वापस लाने की दिशा में भी प्रयास जारी हैं। अब कोई भी काला धन देश के बाहर भेजने की हिम्मत नहीं करता। लगभग ६५०० करोड़ रुपये की अघोषित आय की जानकारी सामने आई है।

इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीमा, जिन गावों तक अभी भी बिजली नहीं पहुंची है वहां बिजली देने, भारत के पूर्वी भाग का विकास करने, वन रैंक वन पेंशन आदि विषयों की भी चर्चा की।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रस्तुत इस रिपोर्ट कार्ड के माध्यम से देश की विकास की दिशा में उठाए गए कदम साफ दिखाई देते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार देश के विकास के लिए कटिबद्ध दिखाई देती है। परंतु संसद में विपक्ष में बैठे लोगों ने शायद इन सब को नजरअंदाज करके अपनी बात पर अड़े रहने की ठान रखी है। संसद के इस मानसून सत्र पर नजर डालें तो देश के नुकसान के अलावा कुछ नजर नहीं आएगा। जितने भी लोगों ने सत्र की चर्चाएं सुनी होंगी उन लोगों को दिन के अंत में शोरशराबे के अलावा कुछ हुआ ऐसा याद नहीं होगा। मानसून सत्र में जीएसटी जैसे कई बिल प्रस्तावित थे, परंतु वे सभी विपक्ष के गतिरोध की बलि चढ़ गए।
पिछले कुछ सालों से सरकार के द्वारा संसद में कोई प्रस्ताव लाना और विपक्ष के द्वारा संसद को न चलने देने का फैशन सा बन गया है। जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार केन्द्र में थी तब भाजपा विपक्ष में थी और उन्होंने भी कई बार संसद के सत्र नहीं चलने दिए थे। आज जब भाजपा का शासन है तो कांग्रेस ने संसद के सत्र नहीं चलने दिए। भाजपा के द्वारा संसद न चलने देने के पीछे यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार जैसे कुछ वाजिब मुद्दे थे। परंतु इस बार के मानसून सत्र में कांग्रेस जिन मुद्दों को लेकर हंगामा मचा रही थी और संसद सत्र को बाधित कर रही थी उनमें कोई दम नजर नहीं आता।

ललित मोदी के साथ संबंधों को लेकर कांग्रेस ने वसुंधरा राजे सिंधिया और सुषमा स्वराज पर कई आरोप लगाए और जब सुषमा स्वराज इस बातों का खंडन करने और अपनी सफाई देने के लिए खड़ी हुईं तो उन्हें अपनी बात भी कहने नहीं दी गई। इस मुद्दे पर कांग्रेस के युवराज के तेवर तो कुछ ऐसे थे जिन्हें देखकर लग रहा था कि उन्होंने संसदीय अनुशासन को ही नहीं बल्कि व्यक्ति के रूप में अपने से बड़ों का आदर करने के संस्कारों को भी ताक पर रख दिया हो। सुषमा स्वराज पर लगाए गए आरोपों की सच्चाई को साबित करने वाले साक्ष्य सामने लाने की बजाय ऐसा लग रहा था मानो राहुल गांधी अपनी कोई व्यक्तिगत भडास निकाल रहे हों। कांग्रेस के नेतृत्व वाली विपक्ष की करतूत केवल यहीं तक सीमित नहीं है। मानसून सत्र में विपक्ष के सांसदों द्वारा स्पीकर के सामने नारे लगाने, उनके बार-बार चेतावनी देने पर भी सदन की कार्यवाही बाधित करने आदि के कारण २५ सांसदों को सस्पेंड कर दिया गया था। सुमित्रा महाजन के इस कड़े कदम के विरोध में विपक्षी सांसद धरने पर बैठ गए। सत्र के अंतिम दिनों में तो कांग्रेस के सांसद भी ऐसे दिखाई दे रहे थे मानो वे अकेले पड़ गए हों। कांग्रेस के युवराज को ‘प्रमोट’ करने के चक्कर में कांग्रेस ने पूरा मानसून सत्र गंवा दिया। परिवारपरस्ती की धुन में कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ और समझदार नेता भी इस तरह की हरकतें कर रहे हैं यह देखकर दुख होता है।

जीएसटी (गुड्स एण्ड सर्विस टैक्स) बिल अगर इस सत्र में पास हो जाता तो इससे भारत के उद्योग में अत्यधिक लाभ होता। इस प्रकार के कराधान के कारण भारत का निर्यात बढ़ जाता और लोगों को रोजगार के नए अवसर प्राप्त होते। अनुमान था कि भारत को सालाना १५ अरब डालर लाभ प्राप्त होता। परंतु इस मानसून सत्र में यह बिल विपक्ष, मुख्यत: कांग्रेस के बेवजह के हंगामे के कारण पास नहीं हो सका। इससे एक संदेह यह भी उत्पन्न होता है कि कहीं यह बिल पास न हो इसी उद्देश्य से तो हंगामा नहीं किया गया था। विश्व पटल पर भारत का औद्योगिक क्षेत्र में उदय ऐसे कई लोगों की आंखों में खटक सकता है जो देश का नहीं बल्कि केवल अपना विकास चाहते हैं।

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने जब संसद को पहली बार सम्बोधित किया था तब उन्होंने साफ दिल से इस बात को स्वीकार किया था कि पिछले ६५ सालों में देश का अपेक्षित विकास नहीं हुआ है परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि पिछली सरकारों ने कोई काम ही नहीं किया है। उन्होंने राजीव गांधी तथा अन्य नेताओं की प्रशंसा की थी जिन्होंने भारत में कम्प्यूटर और अन्य तकनीकों के आने के रास्ते खोले थे। अपने इसी भाषण में उन्होंने विपक्ष से अनुरोध किया था कि वे अच्छे और देश का विकास करने वाले निर्णयों में सरकार का साथ दें। परंतु शायद इसका विपक्ष पर कोई परिणाम नहीं हुआ, क्योंकि पिछले एक साल में प्रधान मंत्री की हर बात का विरोध करने के अलावा विपक्ष ने कुछ नहीं किया और अभी भी संसद सत्रों को रोक कर वह अपनी करतूतों पर कायम है। नरेन्द्र मोदी के चुनावी नारे ‘सबका साथ, सबका विकास’ को सार्थक करने के लिए सभी को चूहों की तरह नहीं इंसानों की तरह सोचना होगा। हमारे सामने जापान और मलेशिया के रुप में उत्तम उदाहरण हैं, जिन्होंने टीम भावना का उत्तम उदाहरण देते हुए सबकुछ नष्ट हो जाने के बाद भी अपने देश को फिर से विकसित देशों के बराबर ला खड़ा किया।

भारत के लोग भी अगर थोड़ा सा प्रयत्न करें, पहले देश के विकास का विचार करें तो हम भी विकसित देशों की श्रेणी में खड़े हो सकते हैं। आवश्यकता है तो बस दृष्टिकोण बदलने की।

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