प्रभु श्रीराम का अनुशीलन सभी समस्याओं का हल है

‘राम’ भारत की कालजयी, मृत्युंजयी संस्कृति के उच्चतम प्रतिमान और वैदिक हिंदू धर्म, संस्कृति के प्राण है। वेदों में ब्रह्मा के जिस नाम, रूप, गुणधर्म और अवस्थाओं का जो प्रतिपादन है, राम स्वयं उसकी साकार सत्ता है। श्री राम परात्पर ब्रह्म है।
आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने जिस भव्य राम मंदिर की आधारशिला रखी है उसमें मुझे भारत के स्वर्णिम भविष्य की दिव्य आभा के दर्शन हो रहे हैं। भगवान प्रभु श्री राम के पावन चरित्र में समस्त उच्चताएं, दिव्यताएं और श्रेष्ठताएं समाहित हैं। राम भारत की सनातन संस्कृति के दिव्य आलोक हैं। 
जहां उच्चतम मूल्य, पर्व परंपराएं और सिद्धांत नित्य प्रकाशित है।
 
अयोध्या में प्रभु श्री राम का भव्य मंदिर बने ऐसा अनेक संत महापुरुषों का संकल्प था किंतु रामत्व की सकारता भौतिकी उत्कर्ष में नहीं अपितु राम के दिव्य गुणों के अनुशीलन में है। हम राम को अपने अंतःकरण में उतार कर देखें। राम जैसा पुत्र, पिता, भाई और पति बन कर देखें। जिस प्रकार का दिव्य जीवन में राम ने जिया है उसका अवगाहन करके देखें तभी रामत्व की सार्थकता पता चलेगी।
 
आज विश्व के समक्ष विकृति पर्यावरण की जो चुनौती है उसे भी राम की भांति प्रकृति केंद्रित जीवन जीकर ठीक किया जा सकता है। देश में सामाजिक असमानता एक गंभीर समस्या है और सामाजिक समरसता का राम से बड़ा कोई अन्य उदाहरण हमारे समक्ष नहीं है। पिता की आज्ञा पर राम अयोध्या के राजमहल से वन की ओर निकल गये, उन्होंने पूरे मार्ग में किसी महापुरुष से सहायता नहीं ली सिर्फ निषाद की सहायता से उन्होंने नदी पार किया, इतना ही नहीं राम जब तक चित्रकूट नहीं पहुंच गये तब तक निषादराज उनके साथ रहे। जिस कुटिया में राम रहे उसका भी निर्माण निषादराज ने ही किया था। 
 
 
भगवान राम राजसी सुख छोड़कर लंबे समय तक दलितों, वंचितों और वनवासियों के साथ रहे, उन्हें न्याय दिलाया और अपने रामत्व को सार्थक किया। वर्तमान समय में महिला सशक्तिकरण एक बड़ा विषय है। श्रीराम ने अहिल्या जैसी उपेक्षित नारी जो पति के श्राप के कारण पाषाणवत जीवन व्यतीत कर रही थी उसे ना सिर्फ प्राणवंत किया बल्कि मानवोचित सम्मान भी दिया। 
 
भगवान राम स्वयं चलकर शबरी जैसी उपेक्षित और दलित महिला के घर गए और उनके जूठे बेर खाए। रावण से युद्ध उन्होंने सीता को छुड़ाने भर के लिए नहीं किया अपितु अधर्म और सामाजिक असमानता को समाप्त करने के लिए राम ने रावण जैसे राक्षस का वध कर उसका उद्धार किया। रावण से हुए धर्म और अधर्म की लड़ाई में राम चाहते तो अपनी अयोध्या, अपने ननिहाल अथवा अन्य किसी राजा का सहयोग ले सकते थे किंतु उन्होंने उपेक्षित जीवन यापन करने वाले वानरों को अपना सहयोगी बनाया, उन्हें प्रशिक्षित किया और मानवीय प्रयत्न से सागर में सेतु बनाने जैसा विचित्र और अद्भुत पुरुषार्थ सिद्ध किया। सुग्रीव, अंगद, हनुमान और जामवंत जैसे वानरों को साथ लेकर उन्होंने धर्म की स्थापना की और उपेक्षित वर्ग को भी गौरव प्रदान किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने राम की सार्वभौमिक और सर्व स्वीकार्यता की बात करते हुए कहा कि मंदिर गिरा दिए गए धार्मिक प्रतीक नष्ट कर दिए गए किंतु भगवान श्री राम लोगों के हृदय में चिरकाल से चैतन्य रहे। जीवन का ऐसा कोई आयाम नहीं है जहां हमारे राम प्रेरणा ना देते हो। भारत की ऐसी कोई भावना नहीं है जिसमें प्रभु राम ना झलकते हो। 
प्रभु श्री राम का चरित्र इतना प्रेरक है कि उन्हें आश्रय बनाकर भारत अपना नैतिक और चारित्रिक उत्थान कर सकता है। सामाजिक असमानता की खाई को समाप्त कर सकता है। परिवार और संरक्षक संस्कारों की रक्षा कर सकता है और विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित हो सकता है। एतदर्थ समाज देश सरकार का एक उत्तर दायित्व है कि राम मंदिर के साथ-साथ उनके जीवन के प्रत्येक पहलू पर शोध करके उन्हें राष्ट्र के आदर्श के रूप में पुनः स्थापित करें और प्रत्येक व्यक्ति, परिवार, समाज का यह कर्तव्य है कि राम के चरित्र का अनुगमन और अनुशीलन करें। भगवान श्री राम परम आदर्श हैं उनके जीवन का अनुशीलन अनेक समस्याओं का एक मेव समाधान और अनेक रोगों की एकमेव औषधि है। रामचरित्र का अनुशीलन, अनुगमन और अनुपालन सर्वथा हितकर और श्रेयस्कर है।

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