सुरक्षा परिषद में भारत के समक्ष चुनौतियां

भारत अब दो वर्षों के लिए राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद के तात्कालिक सदस्य के रूप में कार्य करेगा। इस दौरान उसे चीन की आक्रामकता और पाकिस्तान की कारगुजारियों की चुनौतियों का सामना करना होगा। चीन का हिमालय में भारत ने जिस तरह से मुकाबला किया है उसे देखते हुए ड्रैगन को रोकने में भारत की महत्ता को विश्व जान चुका है और इसलिए भारत की ओर सबकी नजरें हैं।

सन 2021 की शुरूआत भारत के लिए अत्यंत खास रही। 1 जनवरी से भारत फिर एक बार राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद का तात्कालिक सदस्य बन गया है। यह विश्व की सबसे बड़ी तथा सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है। 1 जनवरी, 2021 से भारत की सदस्यता दो वर्षों के लिए होगी। भारत अब राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद के तात्कालिक सदस्य के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

भारत पहली बार 1950-51 में इस परिषद का तात्कालिक सदस्य बना था। उसके बाद 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92 तथा 2011-12 में भारत को तात्कालिक सदस्य के रूप में चुना गया। अपने सभी कार्यकाल में विकासशील देशों के हितों के लिए तथा विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में शांति स्थापित करने के लिए भारत ने विशेष रूप से काम किया है। वर्तमान में राष्ट्रसंघ में भारत के प्रतिनिधि पी आर यू एन त्रिमूर्ति हैं।

अंतरराष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा की देखभाल करने की प्रारंभिक जिम्मेदारी सुरक्षा परिषद की है। इसमें 15 सदस्य हैं और हर सदस्य के पास एक वोट है। राष्ट्रसंघ के सभी सदस्य सुरक्षा परिषद के निर्णयों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। विश्व में युध्द, हिंसा पर रोक लगाकर शांति प्रस्थापित करने में सुरक्षा परिषद की अग्रणी भूमिका रही है। वे शांति के मार्ग से समाधान करने के लिए सभी पक्षों को बाध्य करते हैं या शांति करार के लिए मसौदे की सिफारिश भी करते हैं। सुरक्षा परिषद अंतरराष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा बनाए रखने के लिए आर्थिक प्रतिबंध लगाने अथवा बल का उपयोग करने का निर्णय ले सकती है।

अगस्त में भारत अध्यक्ष

राष्ट्रसंघ का मुख्यालय न्यूयार्क में है। इस संस्था की स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 को हुई थी। सुरक्षा परिषद राष्ट्रसंघ की एक मुख्य अंग है। सुरक्षा परिषद में कुल 15सदस्य राष्ट्र होते हैं। अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैंड, रूस तथा चीन ये पांच राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं। चीन को छोड़कर शेष चार स्थायी सदस्यों ने भारत के साथ सकारात्मक काम करने की इच्छा व्यक्त की है। पांच स्थायी सदस्यों में से अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस ने इससे पहले ही भारत के चयन का स्वागत किया है और भारत के साथ मिलकर काम करने की तैयारी भी दर्शाई है।

इस परिषद में भारत तथा पांच स्थायी सदस्य चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन, अमेरिका के साथ नार्वे, कीनिया, आयरलैंड तथा मेक्सिको और तात्कालिक सदस्य एस्टोनिया, नाइजर, सेंट व्हिन्सेंट, ट्यूनिशिया तथा वियतनाम भी होंगे। अगस्त, 2021 में भारत 15 देशों की इस शक्तिशाली परिषद की अध्यक्षता की जिम्मेदारी स्वीकार करेगा। हर सदस्य देश एक महीने के लिए परिषद का अध्यक्ष रह चुका है।

सुरक्षा परिषद का कार्य

सुरक्षा परिषद राष्ट्रसंघ की 6 प्रमुख संस्थाओं में से एक है। विश्व में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करना ही उसका मुख्य कार्य है। इसके अलावा वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे अलग-अलग विषयों पर अंतरराष्ट्रीय कानून तैयार करना, मानवाधिकार के संबंध के अलावा कुछ अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर काम करना सुरक्षा परिषद के काम का एक हिस्सा है। यह परिषद हिंसा फैलाने वाले देशों को शांति संदेश भेजती है और अगर विश्व के किसी भी क्षेत्र में सैनिक कार्रवाई जरूरी हो तो सुरक्षा परिषद प्रस्ताव के माध्यम से उस पर अमल करता है।

सन 2020 में जिस तरह से भारत ने हिमालय में चीन की चुनौती का सामना किया है, उस पर विश्व की नजर भारत पर केंद्रित है। अपनी आक्रामकता के कारण कई देशों को परेशान करने वाले चीन ने सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान को समर्थन देकर कश्मीर का मुद्दा उपस्थित करने का प्रयत्न किया था। ऐसी स्थिति में दो वर्ष की सदस्यता के दौरान भारत को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

वर्तमान स्थिति

चीन ने राष्ट्रसंघ में पिछले कुछ वर्षों में अपना स्थान ज्यादा मजबूत किया है। उसका योगदान केवल बजट में ही नहीं बढ़ा, बल्कि उसके अनेक अधिकारी कई संगठनों में उच्च पदों पर पहुंचे हैं, जिसका चीन भरपूर फायदा उठा रहा है। चीन भारत के खिलाफ कश्मीर का मुद्दा उठाकर पाकिस्तान को मदद करने का प्रयत्न कर रहा है।

पाकिस्तानी आतंकवादियों को बचाने के लिए चीन फिर पाकिस्तान की मदद कर रहा है। ऐसी स्थिति में भारत को सुरक्षा परिषद की सदस्यता पाना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। वर्तमान दौर में पाकिस्तान समेत चीन के एक बड़े खतरे का सामना करने के लिए इस अवसर का भारत को बहुत विचारपूर्वक उपयोग करना होगा। राष्ट्रीय स्तर पर चीन के विरोध में कठोर निर्णय लेने वाले भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसी तरह की मनोवृत्ति दिखानी होगी।

राजनीतिक हित

भारत ने तात्कालिक सदस्यता पाने से पहले अपनी भूमिका के बारे में बहुत विचारमंथन किया है। जिनकी आवाज वैश्विक मंच पर प्रभावी तौर पर नहीं पहुंचती, ऐसे देशों से उठने वाली आवाजों पर बोलना भारत की मंशा है। वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका लगातार बढ़ रही है। आतंकवाद के साथ-साथ कई वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए उठाई गई भारत की आवाज पूरे विश्व ने सुननी शुरू कर दी है। वर्तमान कार्यकाल में सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे भारत का प्रभाव आने वाले समय में और ज्यादा बढ़ेगा।

भारत को अपने नीतिगत और राजनीतिक हितों की चिंता करनी होगी। हांगकांग और ताइवान के विरोध में चीन के तानाशाह जैसे बढ़ते कदमों को रोकने में भारत मदद कर सकता है। महत्वपूर्ण मुदों पर भारत को अपना मत स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना चाहिए।

भारत के लिए सीमावर्ती आतंकवाद, वित्तीय स्रोत, हेराफेरी के जरिए पहुंचने वाले धन, कश्मीर जैसे मुद्दों पर तात्कालिक सदस्यता के कारण भारत की स्थिति और मजबूत होगी।आतंकवाद के विरोध में वैश्विक लड़ाई के मोर्चे को मजबूत करना भी भारत की प्राथमिकता होगी, लेकिन वर्तमान स्थिति में कोरोना के खिलाफ वैश्विक स्तर पर सहयोग देने में भारत अधिक सकारात्मक भूमिका अदा करेगा। अब जबकि भारत की ओर कोरोना वैक्सीन उत्पादक के रूप में पूरा विश्व देख रहा है, ऐसे में भारत की जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ जाती है।

राष्ट्रसंघ में सुधार का लक्ष्य

बीते कुछ माह में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय मंच पर सुरक्षा परिषद के ढांचे में सुधार का मुद्दा उपस्थित किया है। सितंबर 2020 में राष्ट्रसंघ के अधिवेशन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन सुधारों का प्रबल समर्थन किया था। परिषद के पांच सदस्यों में से केवल चीन ही भारत को स्थायी सदस्य बनाने के बारे में अपना समर्थन नहीं देता। चीन के अलावा अन्य सभी सदस्य इसके लिए अपना समर्थन देने के लिए तैयार हैं। भारत राष्ट्रसंघ में सुधारों के अपूर्ण एजेंडे को पूरा करने के लिए भी इस अवसर का उपयोग करेगा।

परिषद में भारत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से प्रस्तुत पांच मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेगा, जो हैं सम्मान (Respect), संवाद (Dialogue), सहयोग (Cooperation), शांति (Peace) और पूरे विश्व के लिए समृद्धि (Prosperity)।

स्थायी सदस्य बनना सबसे बड़ा लक्ष्य

वर्ष 2020 में दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं। एक तो कोरोना महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था की कमर टूट गई और दूसरी चीन की दादागिरी के कारण पूरा विश्व त्रस्त हुआ, लेकिन चीन के खिलाफ कार्रवाई करने की सैनिक क्षमता भारत को छोड़कर किसी अन्य देश ने बहुत ज्यादा नहीं दिखाई। अब तुरंत ही भारत को लीबिया, तालिबान और आतंकवाद विरोधी समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है।

अफगानिस्तान में अगर शांति स्थापित करनी होगी तो वहां जारी हिंसा पर रोक लगानी ही होगी। इस विषय पर भारत लगातार ध्यान रखे हुए है। अब उस पर अधिक ध्यान दिया जा सकेगा और अफगानिस्तान में शांति स्थापित की जा सकेगी। भारत आतंकवाद के खिलाफ पूरे विश्व को एकत्र करने की कोशिश पिछले अनेक वर्षों से करता आ रहा है। हम सभी आशा करें कि यह समिति अच्छा काम करके विश्व और भारत में आंतकवादी गतिविधियों को कम करने में सफल होगी।

भारत के राष्ट्रीय जीवन में राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद का महत्व बहुत ज्यादा है, क्योंकि विश्व के अलग-अलग देश यहां एकसाथ आते हैं और विश्व के सामने जो- जो समस्याएं, चुनौतियां हैं तथा उनका निवारण कैसे किया जा सकता है, इस पर विचार-विमर्श करते हैं। दुर्भाग्य से भारत ने इस महत्वपूर्ण संगठन में अपना प्रभाव बढ़ाने का कभी भी प्रयास नहीं किया, वहीं दूसरी तरफ चीन ने उसकी आर्थिक शक्ति का उपयोग करके राष्ट्रसंघ से जुड़ी अलग-अलग संस्थाओं में घुसपैठ करके अपना प्रभाव विश्व स्तर पर बढ़ाया है और अपनी पूरी शक्ति का उपयोग उसने भारत के खिलाफ किया है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि अब मिले अवसर का उपयोग करके भारत उचित पद्धति अपनाकर इस संस्था से जुड़े अलग-अलग संगठनों में प्रवेश करके चीन तथा पाकिस्तान के संबंध में अपनी राष्ट्रीय पहचान को बनाए रखे। इसके अलावा अन्य देशों के सामने आई समस्याओं को भी विश्व पटल पर लाकर उसका निराकरण कैसे किया जाए, उसके उपायों पर विचार- मंथन करके, पूरे विश्व की प्रगति बढ़ाने में अपना योगदान दें। ऐसा करने से विश्व भारत को एक जिम्मेदार राष्ट्र मानकर इस संस्था में स्थायी सदस्य बनाने में मदद करेंगे। यही हम सभी का आने वाले समय में महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए।

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