उत्तराखंड में भाजपा का मास्टरस्ट्रोक

उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन के भाजपा के निर्णय से जहां पार्टी और प्रदेश की जनता खुश है वहीं विपक्ष को कुछ कहते नहीं बन पा रहा है। उसके हौसले एकदम पस्त हो गए हैं।

अंततोगत्वा 20 वर्षीय उत्तराखण्ड को 10 मार्च को 10वां मुख्यमंत्री मिल गया- टीएसआर (त्रिवेंद्र सिंह रावत के स्थान पर टीएसआर (तीरथ सिंह रावत)। प्रयोग और संयोग की विलक्षण युति। नरेंद्र मोदी-अमित शाह युग में मध्यावधि में राज्य में नेतृत्व परिवर्तन का पहला प्रयोग। सामान्यतया राज्य के मुख्यमंत्री को नेतृत्व की कसौटी पर खरा उतरने के लिए पूरे 5 वर्ष का समय देना एक व्यावहारिक एवं युक्तिसंगत विचार लगता है। परन्तु जैसे कहा जाता है कि राजनीति में सब कुछ ब्लैक एण्ड व्हाइट की तर्ज़ पर नहीं चलता। ऐसा लगता है कि उत्तराखण्ड को झारखण्ड की राह जाने से रोकने हेतु भाजपा को उत्तराखण्ड में नेतृत्व परिवर्तन करने का अप्रिय निर्णय लेना पड़ा।

इसे विडम्बना ही कहना होगा कि उत्तराखण्ड राज्य का गठन  तत्कालीन प्रधानमंत्री भाजपा नेता अटल जी के हाथों सम्पन्न होने के बावजूद 2017 से पहले तीन विधान सभा चुनावों में भाजपा एक बार भी पूर्ण बहुमत पाने में सफल न हो सकी। लेकिन 2017 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की डबल इंजन की सरकार बनाने की अपील पर विधान सभा चुनाव में उत्तराखण्ड की जनता ने 70 में से 57 सीटें भाजपा की झोली में डाल दीं। जिसका निहितार्थ था कि राज्य सरकार मोदी जी पर जनता के भरोसे को क़ायम रखे। यह उम्मीद तब और भी अधिक बढ़ गई जब भाजपा ने राज्य की कमान सतपाल महाराज जैसे क़द्दावर नेता व अनुभवी राजनीतिज्ञ होने के बावजूद भाजपा कैडर के स्तंभ त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंप दी।

त्रिवेंद्र जी की शुरूआती बैटिंग बहुत ज़ोरदार रही। ज़ीरो टॉलरेंस अगेंस्ट करप्शन, रिस्पना से ऋषिपर्णा, सौंग बांध से देहरादून शहर को 24 बाय 7 पेयजल की सप्लाई जैसी महत्वपूर्ण घोषणाओं ने जनता को मंत्रमुग्ध कर दिया। परंतु, सलाहकारों की फ़ौज बढ़ने के साथ पार्टी कार्यकर्ता, पदाधिकारी, जनप्रतिनिधियों से उनकी दूरी बढ़ती गई। नौकरशाही की मनमानी इतनी बढ़ गई कि मुख्य सचिव और स्वयं मुख्यमंत्री जी को जनप्रतिनिधियों का आदर करने का वक्तव्य जारी करना पड़ा। नीति सम्बंधी विषयों पर उचित फ़ोरम पर विस्तृत विचार-विमर्श के बाद सामूहिक निर्णय लेना भाजपा की सुस्थापित, सुविचारित एवं समयसिद्ध रीति-नीति है। चुनावी वर्ष में बजट सेशन के दौरान मुख्यमंत्री जी द्वारा यकायक गैरसैण कमिश्नरी बनाने की घोषणा ने भाजपा नेतृत्व को विकल्पहीनता की स्थिति में ला खड़ा कर दिया।

2022 में विधान सभा चुनाव से लगभग 10 माह पूर्व उत्तराखण्ड राज्य की कमान श्री तीरथ सिंह रावत को सौंप कर भाजपा नेतृत्व ने एक बार फिर सभी को चौंकाया है। चयन होने तक खुद तीरथ सिंह रावत को मालूम नहीं था कि वह उत्तराखण्ड के 10वें मुख्यमंत्री होने जा रहे हैं। 10 मार्च को देहरादून में विधायक दल की बैठक में उनके नाम की घोषणा होने में मात्र 10 मिनट ही लगे। मुझे याद नहीं कि हमारे देश में मुख्यमंत्री चयन में किसी भी राज्य में इतना कम वक़्त लगा हो। दरअसल, तीरथ जी 2013 से 2015 तक उत्तराखण्ड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके सहज, सरल, सौम्य, मृदुभाषी एवं सबको साथ लेकर चलने के स्वभाव से सभी पार्टी कार्यकर्ता, पदाधिकारी तथा विधायकगण भलीभांति परिचित हैं। चुनावी वर्ष में राज्य में नेतृत्व परिवर्तन में भाजपा नेतृत्व ने जिस सूझ-बूझ का परिचय दिया है उसकी सर्वत्र प्रशंसा हो रही है।

आजकल सोशल मीडिया पर आई एक टिप्पणी उल्लेखनीय है कि नेतृत्व परिवर्तन पर राज्य में उल्लास का वातावरण है। अब इसे भाजपा नेतृत्व का मास्टर स्ट्रोक न कहें तो क्या कहें? भाजपा के इस निर्णय से जहां पार्टी और प्रदेश की जनता खुश है वहीं विपक्ष को कुछ कहते नहीं बन पा रहा है। उसके हौसले एकदम पस्त हो गए हैं। उत्तराखण्ड के चुनाव में एक बार भाजपा तो दूसरी बार कांग्रेस के ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर कांग्रेस के मन में फूट रहा लड्डू कसैला हो गया है। वास्तव में डबल इंजन सरकार के चलते जिस तेज़ी से उत्तराखण्ड में मूलभूत संरचनाओं का विकास हो रहा है उस कारण प्रदेश की जनता भविष्य के प्रति बहुत उत्साहित है। देवभूमि उत्तराखण्ड आध्यात्मिक केंद्र होने के कारण प्रधानमंत्री मोदी जी का उत्तराखण्ड के प्रति विशिष्ट लगाव जगज़ाहिर है। जिसका प्रत्यक्ष लाभ अब भाजपा  को मिलना सुनिश्चित है।

मुख्यमंत्री श्री तीरथ सिंह रावत ने उत्तराखण्ड की जनता की नाराज़गी भांपते हुए 96 घंटे के भीतर मंत्रिमंडल की पहली बैठक में महामारी एक्ट के तहत दर्ज सैकड़ों मुकदमें वापस लेने, ज़िला विकास प्राधिकरणों के भवन मानचित्र पास करने के अधिकार को स्थगित करने, देवस्थानम् बोर्ड के गठन करने व गैरसैण कमिश्नरी पर पुनर्विचार करने का ़फैसला लेकर प्रदेश की जनता की नब्ज पर हाथ धर दिया है। इस प्रकार उत्तराखण्ड में नेतृत्व परिवर्तन की क़वायद राज्य की जनता के पक्ष में जाती दिख रही है। वैसे भी उत्तराखण्ड का जनमानस राष्ट्र भाव से ओत-प्रोत होने के कारण विघटनकारी शक्तियों का उत्तराखण्ड में पनपना संभव नहीं है।

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