परिपूर्ण सहजीवन

दिनांक २ सितम्बर २०१५ को लखनऊ के राजभवन में हिंदी विवेक प्रकाशित गंगा विशेषांक का लोकार्पण समारोह सम्पन्न हुआ। समारोह के निमित्त २ दिन तक राजभवन में रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ। सुअवसर इसलिए कहूंगी क्योंकि राजभवन में अतिथि के रूप में रहने का अवसर मिलना सामान्य बात नहीं है। राजभवन की विशालता, वहां के प्रोटोकॉल, गवर्नर तथा लेडी गवर्नर को उपलब्ध सुख-सुविधाएं इत्यादि सभी आकर्षित करने वाला था। परंतु इन सभी के बीच एक महत्वपूर्ण बात और थी जो दिल को छू गई; और वह बात थी राज्यपाल राम नाईक जी तथा उनकी पत्नी श्रीमती कुंदा नाईक जी की सादगी।

सादगीपूर्ण सहजीवनयह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस दम्पति को आज की तारीख में सारी राजसी सुविधाएं मिल रहीं हैं; परंतु फिर भी उनका रहन-सहन बिलकुल सामान्य सा है। किसी मध्यमवर्गीय दम्पति की तरह ही वे भी उस राजभवन में अपनी दिनचर्या पूर्ण करते हैं। कमल के पत्ते पर पड़ी पानी की एक बूंद जिस तरह उस पत्ते के साथ भी होती है और उससे अलग भी, उसी तरह ये दोनों राजभवन की सुविधाओं का उपभोग तो कर रहे हैं परंतु उसमें लिप्त नहीं हैं। इसका कारण है उन दोनों के स्वभाव में व्याप्त संतुष्टि का गुण। नाईक दम्पति की छोटी बेटी विशाखा इस बात का विशेष उल्लेख करती हैं कि वे दोनों अपने सहजीवन के शुरुआती दिनों में मुंबई की चाल के अपने छोटे से मकान में जितने सुखी थे, उतने ही आज राजभवन में भी सुखी हैं।

प्रेमपूर्ण व्यंग्यबाण

अक्सर देखा जाता है कि एक लंबा अरसा साथ बिताने के बाद पति-पत्नी के बीच छोटी-छोटी बातों पर कहासुनी हो जाती है। कई बार तो विवाद इतना बढ़ जाता है कि बोलचाल भी बंद हो जाती है। परंतु नाईक दंपति विवाहित जीवन के पांच दशक साथ बिताने के बाद भी एक दूसरे की आदतों और स्वभाव को लेकर एक दूसरे पर प्रेम भरे व्यंग्यबाण चलाते नजर आते हैं। और यह इतना सहज होता है कि साथ बैठा कोई व्यक्ति अगर यह सब देखसुन रहा हो तो उसे भी स्वाभाविक हंसी आ जाए। इसका जीवंत उदाहरण तब देखने को मिला जब दोपहर के भोजन के लिए हमें उनके घर (अर्थात राजभवन का पहला तल) जाना था। हम राजभवन की तल मंजिल पर राम नाईक जी के साथ गंगा विशेषांक पर चर्चा कर रहे थे। अत: जिस नियत समय पर राम नाईक जी रोज भोजन के लिए ऊपर जाते हैं उससे कुछ अधिक देर हो गई। भोजन की टेबल पर पहुंचते ही किसी सामान्य पत्नी की तरह ही श्रीमती कुंदाताई जी ने पूछा ‘आज देर क्यों हो

गई?’ राम नाईक जी ने भी उतनी ही स्वाभाविकता से उत्तर दिया, ‘नीचे गंगा विशेषांक पर चर्चा हो रही थी, अत: देर हो गई।’ अप्रत्याशित रूप से कुंदाताई ने कहा, ‘मुझे तो लगा आप शायद गंगा स्नान करने चले गए। इसलिए देर हो गई।’ कुंदाताई की इस अचानक आई प्रतिक्रिया पर कोई भी बिना हंसे नहीं रह सका। इस तरह की हंसी ठिठोली इस दंपति के सामान्य जीवन का एक अहम हिस्सा बन गई है। और यह सब इतनी सहजता से होता है कि दोनों में से किसी को भी एक दूसरे की बात का बुरा नहीं लगता।

कभी विवाद नहीं हुआ

नाईक दम्पति की हंसी ठिठोली कभी बड़े विवाद का कारण नहीं बनी और न ही कभी उनके बीच अन्य किसी भी बात को लेकर कोई विवाद हुआ। सुनने में शायद अतिशयोक्तिपूर्ण लगे परंतु यह सत्य है कि पांच दशकों के वैवाहिक जीवन में ये पती पत्नी कभी विवाद की स्थिति तक नहीं पहुंचे। इसका श्रेय किसी एक को देना उचित नहीं होगा क्योंकि यह दोनों के आपसी सामंजस्यपूर्ण व्यवहार और तालमेल से ही संभव है। हां, राम नाईक जी मजाक में जरूर कह देते हैं कि ‘‘मेरा उससे कभी विवाद नहीं होता; क्योंकि वह जो कहती है मैं मान लेता हूं।’’ अक्सर कहा जाता है कि आदर्श दम्पति की पहचान यही है कि उनमें आपस में कभी झगड़ा या वाद-विवाद न हो। इस मायने में नाईक दम्पति को आदर्श दम्पति ही कहना होगा। केवल एक ही बात ऐसी है जिसके कारण राम नाईक जी को कुंदाताई से जलन होती है। और वह बात है वीर सावरकर जी का कुंदाताई को प्राप्त सान्निध्य। दरअसल कुंदाताई के पिताजी हिंदू महासभा के सक्रिय कार्यकर्ता और अपने समय के ख्याति प्राप्त वकील थे। आयु अधिक होने कारण उन्हें चलने फिरने में तकलीफ होती थी। अत: अपने एक केस के सिलसिले में वीर सावरकर जी स्वयं उनसे मिलने उनके घर आए थे। उस समय उनके आदरातिथ्य की सारी जिम्मेदारी कुंदाताई पर थीं। अत: वीर सावरकर जी का सान्निध्य उन्हें प्राप्त हुआ था।

लॉटरी लग गई

हर सफल इंसान के पीछे किसी न किसी महिला का हाथ होता है। राम नाईक जी के पीछे वह हाथ रहा कुंदाताई का। वे कई बार नाईक जी को हंसी ठिठोली में यह कहती भी है कि ‘आपकी इतनी प्रगति मेरी वजह से ही हुई है। मेरे आने के बाद ही आपके घर में लक्ष्मी आई है।‘ कुंदाताई भले ही यह बात हंसी में कह जाएं और राम नाईक जी भी उसे हंसी में उड़ा दें; परंतु इस बात में दम तो है कि कुंदाताई के आने के बाद राम नाईकजी ने जीवन में निरंतर प्रगति की है।

जब कुंदाताई का विवाह राम नाईक जी से तय हुआ तब कई लोगों ने कहा कि ‘राम नाईक जी की तो लॉटरी लग गई।’ क्योंकि उस समय राम नाईक जी एक सामान्य से दिखने वाले नौजवान थे। परंतु कुंदाताई अत्यधिक सुंदर थीं। घर की आर्थिक स्थिति, पारिवारिक सम्पन्नता इत्यादि हर बात में कुंदाताई उनसे एक कदम आगे थीं। परंतु फिर भी अपने लिए योग्य वर के जो मापदंड कुंदाताई ने तय किए थे, उन सभी पर राम नाईक जी फिट बैठते थे। उच्च शिक्षित, निर्व्यसनी तथा अपने कार्य में निरंतर प्रगति करने वाला; ये तीन गुण कुंदाताई को अपने भावी पति में अपेक्षित थे तथा तीनों ही गुण राम नाईक जी में मौजूद थे। कुंदाताई कहती हैं कि ‘मुझे राम नाईक जी के इन गुणों के बारे में पता चला तो मैंने विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करने का मन बनाया। परंतु इन सभी के साथ एक बाात और मुझे पता चली थी कि लड़का संघवाला है।…..फिर भी मैंने सोचा चलो बाकी तीन सकारात्मक बातें तो हैं। इनसे काम चल जाएगा। मेरे पिताजी हिंदू महासभा के सक्रिय कार्यकर्ता थे। अत: मेरे मन में संघ वालों के प्रति नकारात्मक भाव तो नहीं था, परंतु आशंका जरूर थी।’ उस समय अकाउटेंट जनरल के कार्यालय में लिपिक के रूप में कार्यरत राम नाईक जी का विवाह कुंदा ताई के साथ हो गया। कालांतर में इन्हें दो कन्या रत्नों- निशिगंधा और विशाखा की प्राप्ति हुई।

अब तो कुछ बनो

सन १९८९ के लोकसभा चुनावों के समय राम नाईक जी घर कार्यकर्ताओं का जमावडा था, अनौपचारिक बातें चल रहीं थीं। उम्मीदवार के रूप में कई लोगों के नामों पर चर्चा हो रही थी, परंतु निर्णय नहीं हो पा रहा था। अचानक इन सब के बीच एक महिला का कोमल किंतु दृढ़ स्वर सुनाई दिया ‘इन सब से तो अच्छा है कि अब तो आप ही कुछ बनो।’ यह वाक्य सभी कार्यकर्ताओं के साथ बैठे राम नाईक जी के लिए कहा गया था और कहने वाली थीं, कुंदाताई। इसमें कोई शंका नहीं है कि राम नाईक जी जैसे व्यक्ति को ‘आप तो कुछ बनो’ कह सकने वाली केवल कुंदाताई ही हो सकती थीं। और आज राम नाईक जी जो कुछ भी बन सके उसके पीछे सबसे बड़ी ताकत कुंदाताई ही हैं। उस समय तक राम नाईक जी भी ने भी काफी ख्याति अर्जित कर ली थी। वे तीन बार विधायक रह चुके थे तथा

पार्टी में भी कई अहम पदों की जिम्मेदारियां निभा चुके थे। परंतु फिर भी कुंदाताई का यह कहना कि ‘अब तो कुछ बनो’ साफ जाहिर करता है कि कुंदाताई सदैव ही राम नाईक जी को प्रगति पथ पर बढ़ते देखना चाहती थीं फिर क्षेत्र चाहे नौकरी हो या राजनीति। कुंदाताई जब राम नाईक जी से कहती हैं कि ‘अब तो कुछ बनो’ तो राम नाईक जी कहते तो कुछ नहीं परंतु उनकी आंखों के भाव कुछ ऐसे होते हैं मानो कह रहे हों ‘इस उम्र में इस पद तक पहुंचने के बाद अब और क्या बनूं।’ नाईक परिवार और उनके घनिष्ठ मित्रों में भले इसे कहावत के तौर पर या मजाकिया अंदाज में कहा जाए परंतु इसे भी हर कोई मानता है कि कुंदाताई के ‘अब तो कुछ बनो’ कहने के कारण ही राम नाईक जी कुछ बन सके।

शिक्षिका के रूप में कुंदाताई

सन १९६९ में भारतीय जनसंघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करने के लिए जब राम नाईक जी ने अपनी नौकरी छोड़ दी। राम नाईक जी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनने के इस निर्णय के लिए सहमति देने से पूर्व कुंदाताई ने यह शर्त रखी कि वे नौकरी करेंगी। उनका तब भी यह विश्वास था और आज भी है कि संघ या पार्टी का पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करना परिवार की आर्थिक स्थिरता के लिए उपयोगी नहीं है, और आय का कोई निश्चित स्रोत होना आवश्यक है। अत: विवाह के पूर्व बीए की उपाधि प्राप्त कुंदाताई ने एक साल में बीएड पूर्ण किया और विद्यालय में शिक्षिका की नौकरी शुरू की।
उनके विद्यालय में नौकरी करने के पीछे सबसे मुख्य वजह थी उनकी दोनों बेटियां। राम नाईक जी को पार्टी के कार्य के कारण अक्सर बाहर रहना पड़ता था। ऐसे में अगर कुंदाताई भी किसी दफ्तर में पूरे दिन की नौकरी करतीं तो उनकी दोनों बेटियों का पालन पोषण ठीक से नहीं हो पाता। अत: उन्होंने शिक्षिका बनना निश्चित किया। अपने इस पेशे के साथ भी उन्होंने पूर्ण न्याय किया। उनकी स्वयं की बीमारी, राम नाईक जी का विधायक, सांसद बनना या उनका कैंसर से ग्रसित होना, कोई भी कारण कुंदाताई की नौकरी के आड़े नहीं आया।

कुंदाताई की बेटी विशाखा बताती हैं कि उनके जन्म के बाद से ही कुंदाताई को अस्थमा की शिकायत शुरू हो गई थी। इस डर से कि लेटने के कारण अस्थमा का अटैक आएगा, कुंदाताई रातभर आराम कुर्सी पर बैठे-बैठे ही सोती थीं। परंतु सुबह समय पर उठकर घर के सारे निबटाकर वे फिर विद्यालय के लिए निकल जाती थीं।

उनकी सारी छुट्टियां केवल राम नाईक जी के चुनाव अभियान के दिनों में ही खर्च होती थीं। वह भी इसलिए कि उन दिनों में राम नाईक जी के पास अपने कार्यों के लिए भी समय नहीं होता था और उनके साथ कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं की भी काफी सारी व्यवस्थाएं नाईक जी के घर पर ही करनी पड़ती थीं। इसके अलावा कुंदाताई ने कभी भी अपनी नौकरी को दोयम स्थान नहीं दिया।

कार्यक्षम गृहिणी

आजकल सोशल मीडिया पर एक ऐसी महिला की तस्वीर अक्सर दिखाई देती है, जो अपने आठ हाथों से घर के विभिन्न कार्य, लैपटॉप चलाना, बच्चे को संभालना आदि करती दिखाई देती है। कुंदाताई इस फोटो का जीताजागता उदाहरण है। राम नाईक जी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनने के बाद कुंदाताई ने घर की सारी जिम्मेदारी संभाली। परिवार को आर्थिक स्थिरता प्रदान करने के लिए नौकरी शुरू की। अपनी दोनों बेटियों को संभाला। घर का पूरा ध्यान रखा। राम नाईक जी के संपर्क में आने वाले सभी लोग यह जानते हैं कि वे समय के पाबंद हैं, उनकी हर छोटी से छोटी बात परफेक्ट होती है। परंतु इसके पीछे भी कुंदाताई का ही स्वभाव है क्योंकि वे इस मामले में राम नाईक जी से दस कदम आगे हैं। उनकी बेटी विशाखा बताती हैं कि ‘जब से मुझे याद है तब से आज तक राम नाईक जी ने अपना टूथब्रश भी कभी खुद नहीं खरीदा। उनकी आवश्यकता की हर वस्तु हमेशा मां ने ही खरीदी। यहां तक की उनकी चप्पल भी, जिसके लिए कम से कम उस इंसान का होना आवश्यक है जिसके लिए चप्पल ली जा रही है।’ घर की हर छोटी से छोटी बात की ओर उनका ध्यान रहता है। यहां तक कि राम नाईक जी की एक सूटकेस भी हमेशा इतनी तैयार रहती थी कि अगर उन्हें १० मिनिट में कहीं निकलना हो तो वे उसे लेकर जा सकें। कुंदाताई का यह स्वभाव आज भी कायम है। आज राजभवन में राम नाईक जी के सभी कामों का ध्यान रखने के लिए इतने कर्मचारी हैं, परंतु फिर भी कुंदाताई का ध्यान सदैव उनकी ओर रहता है।

राजभवन में उन दोनों के साथ भोजन करते समय हमें भी यह बात महसूस हुई। किस समय के भोजन के बाद राम नाईक जी को क्या दवाई दी जा रही है, कुंदाताई को हमेशा ध्यान रहता था। एक रात को भोजन के बाद हम सभी को आईसक्रीम परोसी गई। राम नाईक जी के सामने रखी प्लेट खाली देखकर हम सभी संकोच कर रहे थे। तभी कुंदाताई ने कहा ‘आप लोग लीजिए, उन्हें यह फ्लेवर पसंद नहीं। उनके लिए दूसरा फ्लेवर लाया जाएगा।‘

ममतामयी मां

कुंदाताई ने केवल अपनी बेटियों का पालनपोषण ठीक से हो सके, उन्हें आवश्यक समय दिया जा सके इस उद्देश्य से शिक्षिका के रूप में नौकरी की। अन्यथा उस समय बीए तक शिक्षित लोगों को दफ्तरों में भी आसानी से नौकरियां प्राप्त हो जाती थीं। अपनी बेटियों के लिए हर सामान्य मां की तरह ही उन्होंने हर कष्ट उठाए। उनके स्कूल कालेजों का एडमिशन हो या उनकी बीमारी। कुंदाताई ने हमेशा अपनी बेटियों के साथ रहीं। उनकी बड़ी बेटी निशिगंधा को बचपन में पीलिया हो गया था, और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत आ गई थी। कुंदाताई स्वयं उन्हें अस्पताल ले गईं, सारी फार्मेलिटीज पूरी होने के बाद उन्होंने राम नाईक जी को सूचना दी।

उनकी छोटी बेटी विशाखा भी पहले बहुत बीमार रहा करती थीं। सातवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान एक बार स्कूल में विशाखा गिर गईं और लगभग डेढ़ महीने तक उन्हें घर में रहना पड़ा। जब विशाखा स्कूल से घर आई थी तो उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने के लिए उस परिसर में रिक्शा भी नहीं थी। उस समय अपने पड़ौसी की पत्नी को साथ लेकर कुंदाताई ने अपनी विशाखा को गोद में उठाकर डॉक्टर के क्लीनिक तक पहुंचाया।

अपनी बेटियों की इस तरह कई बार अकेले ही देखभाल करने के बाद भी कुंदाताई मजाक में कहती हैं कि हमारे घर में ही दो पर्टियां हैं- एक ओर मेरे पति और दो बेटियां और दूसरी तरफ मैं अकेली। परंतु जब बेटियों पर अगर कोई मुसीबत आए या उन्हें अपने पिता की वजह से अधिक काम करना पड़े तो उस समय वे केवल कुंदाताई की ही बेटियां होती हैं। इसका एक रोचक किस्सा हमें विशाखा ने बताया। वे कहती हैं, ‘एक बार पिताजी ने मुझे स्कूल के लिए बोरीवली लोकल की जगह बांद्रा लोकल में बिठा दिया। जब बांद्रा के बाद लोकल वापस जाने लगी तो उम्र में बहुत छोटी होने के कारण मुझे कुछ सूझा नहीं और मैंने लोकल से छलांग लगा दी। प्लेटफार्म पर गिरने के कारण मेरे घुटने छिल गए थे। उसी अवस्था में मैं घर आई। तब पहली बार मैंने मां को नाराज होकर पिताजी से यह कहते सुना कि आपके कारण मेरी बेटी का ये हाल हुआ। आज भी मां हंसी-मजाक में इस किस्से दोहराते हुए कहती है कि जाने क्या सोचकर अटल जी ने राम नाईक जी को रेल मंत्री बना दिया।’

मां के रूप में एक और किस्सा वे सुनाती हैं जब उनकी बड़ी बेटी निशिगंधा का दसवीं का परीक्षा परिणाम आया था। उनका नाम पूरे देश में मेरिट में आनेवाले लोगों में शामिल था परंतु उस समय आपातकाल घोषित होने के कारण राम नाईक जी घर पर नहीं थे। अचानक हमारे घर पर रेड पड़ी और उसका समाचार देने के लिए निशिगंधा को मेरे स्कूल आना पड़ा। उसे बहुत डरा हुआ देखकर लोगों ने सोचा इसका रिजल्ट खराब हो गया। घर पर आने के बाद, पुलिस के द्वारा छानबीन कर लिए जाने के बाद हम निशिगंधा के स्कूल पहुंचे और उसका परीक्षा परिणाम लिया। उसकी प्रगति देखकर मन बहुत उल्हासित था। क्षणभर के लिए उस समय जरूर लगा था कि आज काश उसके पिताजी भी उस वक्त साथ होते।

कर्तव्य और विश्वास

दाम्पत्य जीवन को सुखमय तरीके से व्यतीत करने के लिये जिन दो गुणों का होना आवश्यक हैं वे हैं अपने-अपने कर्तव्यों का संज्ञान और एक दूसरे पर विश्वास। ये दोनों गुण नाईक दम्पति ने संजोकर रखे हैं। कुंदाताई को बातचीत के दौरान जब पूछा कि आपने अपने जीवन में कई सारे काम अकेले ही किए हैं, क्या आपको कभी यह नहीं लगा कि मैं ही क्यों करूं? तो उनका बहुत सीधा सा जवाब था कि ‘अगर गृहस्थी मेरी है तो काम भी मुझे ही करना है। और मुझे विश्वास था कि मुझे जब भी जरूरत महसूस होगी तब राम नाईक जी मेरे साथ ही होंगे।’ इसी विश्वास के कारण कुंदाताई ने कभी भी राम नाईक जी को छोटी-छोटी समस्याओं के लिए नहीं पुकारा। एक अत्यधिक सामर्थ्यवान पत्नी की भांति उन्होंने सारा घर संभाल लिया।

उनके कर्तव्यों की पराकाष्ठा लोगों ने तब देखी जब राम नाईक जी को कैंसर ने जकड़ लिया। डॉक्टरों द्वारा उनके रोग की सूचना मिलते ही कुंदाताई के मन पर बड़ा आघात हुआ। वे बताती हैं कि ‘मेरे मन में सबसे पहला प्रश्न यही आया कि पान सुपारी की लत भी जिस आदमी को नहीं है उसे कैंसर जैसा रोग क्यों हुआ? मेरी आंखों से आंसू की एक बूदं गिरी और अगले ही क्षण मैंने निश्चित किया कि मुझे कमजोर नहीं पड़ना है। आज अगर मैं कमजोर पड गई तो पूरे घर की व्यवस्था बिगड़ जाएगी।’ फिर क्या था, कुंदाताई ने अपनी सारी हिम्मत एक साथ जोड़ ली। अस्पताल में आने वाले लोगों से मिलना, राम नाईक जी का खानपान, उनके कमरे की स्वच्छता आदि अनेक क्षेत्रों में कुंदाताई किसी मशीन भांति दिनरात काम करती रहीं। उनकी दिनरात सेवा और राम नाईक जी की प्रबल इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि उन्होंने कैंसर जैसे रोग को भी मात कर दिया। कुंदाताई उस समय साथ देने वाले लोगों और खासतौर पर अपनी छोटी बेटी विशाखा का धन्यवाद देती हैं, जिनके कारण वे अपनी जिंदगी के उस कठिन दौर का मुकाबला कर सकीं।
राम नाईक जी जैसे प्रबल इच्छा शक्तिवाले तथा धैर्यवान व्यक्ति भी अगर कभी चिंतित हो उठते हैं तो केवल कुंदाताई की बीमारी के कारण। कुंदाताई अस्थमा रोग से ग्रसित हैं। कुछ समय पहले उनकी तबीयत अचानक अधिक खराब हो गई। राजभवन के डॉक्टरों ने मुंबई से डॉक्टरों को बुलाने का आग्रह किया। डॉक्टरों को बुलाने के लिए लगने वाले खर्च को देखते हुए कुंदाताई ने राम नाईक जी से कहा, इतना सब करने की क्या आवश्यकता है? उस समय राम नाईक जी ने एक कर्तव्यपरायण पति की भांति परंतु किंचित कठोर शब्दों में कहा, ‘इस बार मैं यह सब विचार नहीं करूंगा।’ एक दूसरे के लिए दोनों का उत्कट प्रेम और चिंता इससे साफ परिलक्षित होती है।

सादगी

कुंदाताई ने अपने जीवन में जो भी किया या उन्हें जो कुछ मिला उसका जरा सा भी गर्व उनके चेहरे या उनकी जीवन शैली में दिखाई नहीं देता। उनको देखने पर पहली नजर में यही दिखाई देता है कि वे किसी मध्यमवर्गीय परिवार की गृहिणी हैं। समाज में कई ऐसे उदाहरण हैं लोगों को जहां अपने पति या पत्नी के उच्च पद होने का घमंड होता है। चाय से ज्यादा केतली गर्म वाली कहावत चरितार्थ होती है; परंतु कुंदाताई में इस दुर्गुण का अंश मात्र भी नहीं है। वे कभी भी राम नाईक जी की रैलियों में नहीं गईं, न ही उनके साथ बड़ी पार्टियों में गईं। उनका सीधा सा जवाब यही होता था कि मैं इंसान हूं मशीन नहीं। स्कूल, घर और बेटियों की जिम्मेदारी के बाद मेरे पास इन सब के लिए न समय है न ही मुझमें इतनी ताकत है।

राम नाईक जी जब दिल्ली में रहते थे तब भी कुंदाताई बहुत कम दिनों के लिए उनके पास जा पाती थीं। वहां जाकर भी वे केवल उन्हीं लोगों से मिलतीं, जिनसे उनकी पहले से जान पहचान थीं। अन्यथा वे जल्द ही मुंबई वापस लौट आतीं।
आज वे लखनऊ में लेडी गवर्नर के रूप में रहती हैं। प्रदेश की प्रथम महिला होने का गौरव उन्हें प्राप्त है; परंतु इसका अंश मात्र भी उन्हें गर्व नहीं है। हिंदी विवेक के गंगा विशेषांक के लोकार्पण समारोह के लिए जब हम उन्हें आमंत्रित करने गए और जब हमने कहा कि आपको भी राम नाईक जी के साथ मंच पर विराजमान होना है तो उनकी पहली प्रतिक्रिया थी मेरी वहां क्या आवश्यकता है? मुझे तो कार्यक्रम दर्शक के रूप में सामने से देखना पसंद है। उन्हें इस बात के लिए मनाने हेतु हमें आग्रह करना पड़ा, परंतु उनकी सादगी दिल को छू गई।

राम नाईक जी और कुंदाताई ने अपने वैवाहिक जीवन के पांच दशक पूर्ण कर लिए हैं। मुंबई की चाल से लेकर राजभवन की यात्रा तक के लंबे सफर में सुखदुख के कई क्षण देखे। परंतु इन सभी के बीच अगर कुछ नहीं बदला तो वह है उन दोनों आपसी खट्टामीठा व्यवहार। कुंदाताई का अत्यंत मासूमियत से राम नाईक जी पर व्यंग्य करना और एक सर्वसामान्य पति की भांति राम नाईक जी का उसे मुस्कुराकर टाल जाना हृदयस्पर्शी लगता है। यह स्वभाव ही शायद इस दंपति के सुखद वैवाहिक जीवन का आधार है। हमें विश्वास है कि अगले कई सालों तक भी यह सब ऐसे ही बरकरार रहेगा।
मो. : ९५९४९६१८४९

This Post Has 5 Comments

  1. Anonymous

    अनुकरणीय प्रेरणापूर्ण जीवन वृतांत…बधाई 💐🙏

  2. योगेश सैनी

    सदा की भांति मन को छू जाने वाले प्रसंगों से भरपूर हिंदी विवेक का लेख। पढ़कर यह स्पष्ट हो आया कि वर्तमान में जहां स्त्री पुरुष समानता का ढोल छद्म स्वच्छन्दता के साथ पीटा जाता है वहां कुंदा ताई व राम नाईक जी का यह गृहस्थ जीवन समानता का आदर्श प्रतीक है।

  3. डॉ कृष्णा नन्द पाण्डेय

    आदरणीय राम नाइक जी और माननीया कुंदाताई के दांपत्य जीवन का वृत्तान्त हम सभी के लिए अनुकरणीय है। आगामी 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर प्रतिष्ठित हिन्दी विवेक में प्रकाशित इस रोचक एवं प्रासंगिक लेख के लिए बधाइयां। 🌄🌻

  4. डॉ कृष्णा नन्द पाण्डेय

    आदरणीय राम नाइक जी और मननीया कुंदाताई के दमाप्त्य जीवन का वृत्तांत हम सभी के लिए अनुकरणीय है। बेहद खूबसूरत लेख के लिए बधाइयां।

  5. अन्नपूर्णा बाजपेयी

    अत्यधिक प्रेरणादायक जीवन वृत्त!

Leave a Reply