मरहबा मोदी

प्रधान मंत्री मोदी की अगस्त की यूएई (संयुक्त अरब अमीरात)
यात्रा से अरब जगत इतना मोहित हो गया कि ‘अल-खलीज़’ के प्रधान सम्पादक हबीब अल सायेग ने भावावेश में लिखा कि, इस यात्रा ने भूत, वर्तमान और भविष्य का ऐसा स्वर्णिम पृष्ठ लिख दिया कि सालेम अल अली ओवैस और सुलतान अल अली आवैस जैसे श्रेष्ठ अमीराती शायर आज जीवित होते तो वे यूएई की भारत के प्रति मुहब्बत पर एक प्यारभरा नगमा जरूर लिखते।(१) भाषा अलंकारिक है, लेकिन भाव अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है। मीडिया के अन्य दोस्तों ने भी मोदी के अबू धाबी आगमन और दूसरे दिन दुबई की आमसभा का जो आंखों देखा हाल लिखा है, वह चमत्कृत कर देने वाला है। ‘खलीज़ टाइम्स’ ने दुबई की सभा का विवरण प्रथम पृष्ठ पर पहली खबर के रूप में छापा और बैनर दिया ‘मोदी रॉक्स दुबई’ (मोदी से दुबई मोहित)। ‘गल्फ न्यूज’ ने इसे ‘पल्पेबल एक्साइटमेंट’ (भावावेग) कहा तो, अरबी अखबारों ने कहा, ‘अहल्ला बिका!’ (सुस्वागतम्)।
१६ अगस्त को जैसे ही मोदी अबू धाबी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे, उनका भावभीना स्वागत किया गया। उनके स्वागत के लिए अबू धाबी के युवराज (उीेुप झीळपलश) शेख मोहम्मद बिन ज़ायद अल नाहयन अपने पांच भाइयों के साथ मौजूद थे। राज परिवार के इतने श्रेष्ठ लोग इस तरह कभी एकसाथ स्वागत के लिए नहीं आते। ऐसा सम्मान हाल में किसी भी राजनेता को नहीं मिला है।

अबू धाबी की एक और घटना हमेशा याद रखी जाएगी। और, वह है देश की सब से बड़ी शेख ज़ायद मस्जिद में मोदी का पहुंचना। शेख ज़ायद प्रथम, अबू धाबी अमीरात (रियासत) के संस्थापक हैं, जो नाहयन वंश के हैं। यही वंश अठारहवीं सदी के अंत से सत्ता में हैं। इसलिए यहां राजा और राजपुत्रों के नाम के अंत में नाहयन शब्द जोड़ा जाता है। लिहाजा, यह इतिहास का विषय है।

गुजरात में मुस्लिम टोपी पहनने से इनकार की घटना की कभी अरब दुनिया में बहुत चर्चा हुई थी, विपरीत प्रतिक्रियाएं भी हुई थीं। इस कारण उनका मस्जिद में जाना और इस्लाम की मूल संयमित शिक्षा का जिक्र करना अरबों के लिए नई बात थी। किसी ‘हिंदुत्ववादी राष्ट्रीय पार्टी’ के नेता और देश के प्रधान मंत्री की सहिष्णुता से न केवल भारत से खाड़ी देशों में कार्यरत ७२ लाख लोग खुश हुए, परंतु मध्य पूर्व के मूल मुस्लिमों ने भी प्रकाश की नई किरण देखी। डोहा (कतर) स्थित एशिया मिडल-ईस्ट रिलेशन्स की फेलो कादिरा पेटियागोडा ने कहा,‘‘मोदी का मस्जिद दौरा अपनी ‘साम्प्रदायिक छवि’ को दूर करने तथा भारत की विविधता में एकता की छवि को पुनर्स्थापित करने की कोशिश है।’’(२) दूसरे शब्दों में कहें तो, ‘सब का साथ, सब का विकास’ नारे पर विदेश में भी अमल हो रहा है और मुस्लिमों को अब उनसे संकोच नहीं है, यह संदेश मुस्लिम जगत में पहुंचा है। यह एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक उपलब्धि है।

तीसरी घटना और अनपेक्षित है। राजधानी में हिंदू मंदिर के लिए जगह देने की अधिकृत घोषणा। भारत में हिंदुओं की भावना है कि इस्लामिक देशों में मंदिरों की स्थापना नहीं हो सकती; क्योंकि मूर्ति-पूजा (बुतपरस्ती) इस्लाम में मान्य नहीं है। भारत में मुस्लिम शासन के दौरान हुई मंदिरों एवं मूर्तियों की तोड़फोड़ और अन्य धर्मावलम्बियों के प्रति असहिष्णुता के कारण यह भावना बनी है। तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में बुद्ध मूर्तियों का तोड़ देना और हाल में इसिस द्वारा सीरिया के पलमायरा का प्राचीन मंदिर व मूर्तियां बम लगा कर उड़ा देना या पाकिस्तान के लाहौर जैसे शहर में दुर्गा मंदिर को कचरा घर बना आदि असहिष्णु घटनाओं के बीच यूएई जैसे किसी इस्लामी देश द्वारा हिंदू मंदिर के लिए भूमि देना अनोखी बात है। इसे लेकर इस्लामिक सोशल मीडिया में सरकार की आलोचना हुई और सरकार को उसका स्पष्टीकरण भी देना पड़ा। यूएई के विदेश मंत्री डॉ. अन्वर मोहम्मद गार्गेश ने कहा, ‘ऐसी आलोचना अदूरदर्शिता है। ऐसे लोग तथ्यों की अनदेखी करते हैं और वही देखना चाहते हैं जो उनकी इच्छा है।’’(३) यह स्पष्ट रूप से चरमपंथियों और आतंकवादियों के लिए इशारा है।

यह सही है कि तुर्की में खलीफा (धर्मगुरु) के राज्य में भी मंदिर था। यहां तक कि दुबई में भी १९०२ में पुराने अर्थात बुर दुबई इलाके में कृष्ण मंदिर स्थापित किया गया, जिसे हवेली कहते हैं और जो आज भी मौजूद है। दूसरा मंदिर १९५८ में स्थापित किया गया, जो गुरु मंदिर कहलाता है। इसमें ग्वादर (पाकिस्तान) से विशेष रूप से लाया गया गुरु ग्रंथ साहब एवं अन्य मूर्तियां स्थापित की गई हैं। यूएई की सहिष्णुता की परम्परा यह है कि कृष्ण मंदिर व मस्जिद के बीच केवल एक छोटी सी सड़क है; लेकिन दोनों समुदायों में से किसी को कभी कोई कष्ट नहीं हुआ। मस्जिद में आने वाले मुस्लिम हिंदुओं के त्योहारों में शरीक होते हैं और मंदिर में आने वाले भक्त मस्जिद का सम्मान करते हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह शांति से चल रहा है। (भारत के मुसलमान कृपया ध्यान दें!) यहां तक कि दुबई के शासक शेख राशिद अल मखतौम ने तो दीवाली को सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया था और वे स्वयं पुरानी दुबई में व्यापारियों की पेढ़ियों पर जाकर ‘सलाम आलैकुम दिवाली’ कह कर शुभकामनाएं देते थे।(४) उनके वंशज शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मखतौम अब दुबई के शासक और यूएई के प्रधान मंत्री हैं।

दुबई में पहले से ही दो मंदिर हैंे, अब राजधानी अबू धाबी में पहली बार मंदिर बनने वाला है। इस तरह यूएई की दो अमीरातों में मंदिर हो जाएंगे। शेष पांच अमीरातों- शारजाह, रास अल खैमाह, अजमन, फुजैराह एवं उम्म अल कुवैन में भी हिंदू मंदिरों का मार्ग प्रशस्त होगा। सहिष्णुता की यह बयार यूएई से निकल कर आगे निकटवर्ती बहरीन, कतर और कुवैत में पहले और वहां से सऊदी अरब, इराक, मिस्र तक सुदूर इस्लामिक देशों में देर-सबेर अवश्य फैलेगी। भारत की पूर्व सरकारों ने अपने बहुसंख्यक हिंदुओं के लिए कभी कुछ नहीं किया, जो इस यात्रा ने कर दिखाया।

इसी तरह १७ अगस्त को दुबई क्रिकेट स्टेडियम में हुई जनसभा-‘मरहबा नमो’- (मरहबा का अर्थ है -स्वागतम् और नमो याने नरेंद्र मोदी) ने एक इतिहास रचा। किसी विदेशी राजनेता की इतनी विशाल सभा यहां कभी नहीं हुई। पूरे अरब जगत में भी नहीं। सभा के लिए पंजीयन हफ्तेभर पहले से ही चल रहा था। केवल ५० हजार लोगों का पंजीयन किया गया। जिनका पंजीयन न हो सका, ऐसे सैकड़ों लोग स्टेडियम के बाहर लगे विशाल स्क्रीन पर और शेष हजारों अपने घरों में टीवी पर सीधा प्रसारण देख रहे थे। गणेशोत्सव के लिए कोंकण में जाने वालों के लिए जिस तरह विशेष ट्रेनें, बसें छोड़ी जाती हैं, वैसे ही पूरी दुबई और बाहरगांव से भी आने के लिए बसों आदि की विशेष व्यवस्था प्रशासन ने की थी।

अबू धाबी यूएई की राजनीतिक राजधानी है, लेकिन दुबई उसकी आर्थिक राजधानी है। अपने यहां दिल्ली और मुंबई की जो स्थिति है, वही यहां अबू धाबी व दुबई की है। एक मुस्लिम आर्थिक राजधानी में भारत की ‘हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी’ के नेता और देश के प्रधान मंत्री की इस तरह ऐतिहासिक सभा होना अरब विश्व के लिए नई बात है।

मोदी की यात्रा की फलश्रुति यहां का बुद्धिजीवी वर्ग ढढज मानता है, जबकि मैं इसमें ऊ और जोड़ना चाहता हूं। इस टीटीओ का मतलब है- ट्रेड, टेरिरिज्म और यहां कार्यरत भारतीयों तक पहुंच बनाना। मैंने इसमें जो ऊ जोड़ा है, वह है डिप्लोमेसी याने कूटनीति- अंतरराष्ट्रीय कूटनीति। पहले ऊ की याने कूटनीति की बात करते हैं।

इस्लामिक जगत में पाकिस्तान से हमारी हमेश स्पर्धा होती है, संघर्ष होते हैं। यह विषय बहुत बड़ा है, अतः फिलहाल इसे मोदी की यात्रा तक ही सीमित रखते हैं। पाकिस्तानी अखबार ‘डॉन’ ने कहा है कि यूएई और भारत के संयुक्त बयान में आतंकवाद पर पाकिस्तान की ओर स्पष्ट इशारा किया है। अखबार पाकिस्तान को जाग जाने के लिए आगाह करते हुए लिखता है, “The game is no loger about pushing a single-agenda item, but meticulous placement of pieces on an increasingly complex and interconected chessboard. For Pakistan, remaining wedded to an old foreign plolicy templet developed in the early cold war years- which saw friends and masters in its search for a big brother who would help solve problems in return for geopolitical alliance is- no longer a viable option.”‘(५) पत्र ने संकेतों में स्पष्ट कह दिया है कि केवल ‘कश्मीर-कश्मीर’ का हौवा खड़ा करने का एकमात्र मुद्दा लेकर चलने की पुरानी घिसी-पीटी विदेश नीति से पाकिस्तान को बाहर निकलना चाहिए। भारत ने मर्म पर हाथ धरा और लाभ उठा लिया।

इन संकेतों का संदर्भ यमन युद्ध से है। सऊदी अरब के नेतृत्व में अरब देश यमन के बगावती समूह हूतियों से लड़ाई लड़ रहे हैं। हूति शिया हैं और ईरान भी शिया होने से उनकी सहायता करता है। सऊदी नेतृत्व वाले अरब देश सुन्नी हैं। ये देश नहीं चाहते कि यमन में हूति याने शिया सत्ता काबिज कर लें। सऊदी गठबंधन चाहता था कि पाकिस्तान भी इस युद्ध में शामिल हो। लेकिन, पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। तब से अरब देश पाकिस्तान से खफा हैं। यूएई भी नाराज है। यूएई भी पाकिस्तान को सबक देना चाहता था और इसलिए उसने भारत की ओर अधिक झुकना पसंद किया। भारत-यूएई के संयुक्त बयान में आतंकवाद पर जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया, वह कड़े और पाकिस्तान के लिए ही है, यह सब जानते हैं। इसी बिंदु पर मोदी यात्रा की अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक सफलता है। दूसरा कारण यह भी है कि इस वर्ष के अंत में या अगले वर्ष के आरंभ में मोदी की इस्राईल यात्रा प्रस्तावित है। पूर्व तैयारी के रूप में इसी माह याने अक्टूबर में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी वहां जाने वाले हैं। मोदी की ईरान यात्रा की भी तैयारी चल रही है। इससे अरब जगत में बेचैनी थी। इस बेचैनी को दूर कर उन्हें आश्वस्त करना भी जरूरी था। मसलन, अरब देश याने यूएई और भारत दोनों अपनी-अपनी जरूरतों के कारण और करीब आए। दोनों जीते, कोई नहीं हारा; भारत कुछ ज्यादा जीता!

अब बात ढढज की। पहला ढ ट्रेड याने व्यापार के लिए है। यूएई और भारत के बीच कोई ६० मिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार होता है, और इस तरह चीन व अमेरिका के बाद तीसरे नम्बर पर है। इस व्यापार को अगले पांच वर्षों में १०० मिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया गया है। यूएई ने ७५ बिलियन अमेरिकी डॉलर याने कोई ५ लाख करोड़ रु. के भारत में निवेश के लिए कोष की स्थापना की है। यह निवेश रेल्वे, सड़कों, हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण जैसी ढांचागत सुविधाओं पर होगा। अक्षय ऊर्जा, टिकाऊ विकास, कृषि, रेगिस्तानी मौसम, शहरी विकास और स्वास्थ्य सेवाओं में सहभागिता पर भी निर्णय हुआ है। मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट शहरों पर भी निवेश किया जाएगा। पेट्रोलियम के क्षेत्र में किसी तीसरे देश में यूएई के संयुक्त उद्यम में भारतीय कम्पनियां भी शामिल हो सकेंगी। सब से उल्लेखनीय बात यह कि इस घोषणा के महज पंद्रह दिन के भीतर ही यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन ज़ायद अल नाहयन ९५ सदस्यों के प्रतिनिधि मंडल के साथ भारत आए और अगली कार्रवाई आरंभ कर दी। किसी भी राजनेता की विदेश यात्रा को इतनी तत्परता से तवज्जो दी गई हो, यह हाल के इतिहास में ज्ञात नहीं है।

ढढज दूसरा ढ टेरिरिज्म याने आतंकवाद के अर्थ में है। इस्लामिक देशों में धर्म के नाम पर आतंकवाद तेजी से बढ़ा है। ऐसे में यूएई जैसे इस्लामिक देश द्वारा भारत जैसे गैर-इस्लामिक देश के साथ मिल कर आतंकवाद के प्रति कड़ा रुख अपनाना और धर्म से उसे जुदा करना मायने रखता है। दोनों देशों के संयुक्त बयान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ‘किसी दूसरे देश के खिलाफ आतंकवादी कार्रवाइयों को प्रायोजित करने, समर्थन देने और उचित ठहराने के लिए धर्म के उपयोग की दोनों देश भर्त्सना करते हैं और आतंकवादी गुटों द्वारा युवकों को बरगलाने से रोकने व ऐसे गुटों को नियंत्रित करने के लिए दोनों देश कार्य करेंगे।’ यूएई को अपराधियों का नंदनवन बनाने से रोकने की भी कोशिश की जाएगी। एक दूसरे देशों में छिपे अपराधियों को खोज कर उन्हें सम्बंधित देश के हवाले किया जाएगा। पाकिस्तान से दाऊद का यहां आने-जाने पर अब अधिक अंकुश होगा। ये भी सूचनाएं हैं कि दाऊद के खाड़ी देशों में कारोबार को रोका जाएगा और उसकी सम्पत्ति का पता लगा कर उसे कुर्क कर दिया जाएगा। खबर यह भी है कि दाऊद की यूएई में खरबों डॉलर की कुल ५० बेनामी सम्पतियां हैं। कहते हैं कि यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन ज़ायद अल नाहयन ने अपनी ३ सितम्बर की दिल्ली यात्रा में दाऊद की सभी सम्पत्तियों की सूची भारत सरकार को सौंप दी है और आश्वस्त किया है कि इन सम्पत्तियों को जब्त करने के नोटिस जारी किए गए हैं। हवाला कारोबार, मादक द्रव्यों की तस्करी के नियंत्रण पर दोनों देश काम करेंगे। लिहाजा, दाऊद पर और नकेल कसने और पाकिस्तान से दाऊद को शह की बात दुनिया के सामने उजागर करने में सफलता मिलेगी। भारत की पिछली सरकारों ने दाऊद के खिलाफ इतनी कठोरता बरती हो, ऐसा दिखाई नहीं देता।

ढढज का अंतिम अक्षर ज आउटरिच याने पहुंच के संदर्भ में है। मोदी अरब देशों के अनिवासी भारतीयों तक अपनी पहुंच बनाना चाहते हैं। विदेशों में कार्यरत भारतीयों की संख्या लगभग ३ करोड़ है। इनमें से करीब एक चौथाई याने ७२ लाख लोग बहरीन, कुवैत, ओमन, कतर, सऊदी अरबी एवं यूएई जैसे खाड़ी देशों में कार्य करते हैं। खाड़ी देशों में कार्यरत भारतीयों का एक तिहाई हिस्सा याने लगभग २६ लाख लोग अकेले यूएई में काम करते हैं। वे हर वर्ष कोई १२ बिलियन अमेरिकी डॉलर भारत भेजते हैं। विदेशियों में सब से बड़ी संख्या भारतीयों की ही हैं। मूल अमीराती जनसंख्या केवल १७ लाख के करीब है। इसका अर्थ यह कि मूल अमीराती जनसंख्या के डेढ़ गुना भारतीय वहां है। मसलन, यहां ‘मिनी इंडिया’ बसता है। इसमें भी केरल, विशेष रूप से मलाबार इलाके के लोगों की संख्या अधिक है। इसलिए मोदी ने दुबई की रैली में मलयाली शब्द ‘नमस्कारम्’ से अपना संबोधन आरंभ किया।

हो सकता है, इस आलेख में सब कुछ ‘मोदी नमोनमः’ दिखाई दें या हो सकता है यह लगे कि किसी मोदी-प्रेमी ने यह लिखा है और महज वाहवाही की है। आलोचना का खतरा है, फिर भी सच्चाई से मुंह फेरना भी संभव नहीं है। लेकिन कुल मिलाकर यूएई की यात्रा ने अरब व इस्लामिक जगत पर अच्छी छाप छोड़ी है। पूरब के देशों के साथ रिश्तों को सुधारने के पहले चरण के बाद पश्चिम के देशों से सम्बंध सुधारने के इस दूसरे चरण से भारत का अंतरराष्ट्रीय जगत में और सरकार का भारत में अस्तित्व महसूस होने लगा है। यह एक शुभ संकेत है। नमस्कारम्!

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