ठादाम और याचुमी

 दोनों पक्ष के आरोप-प्रत्यारोप का जल्द ही युध्द में परिवर्तन हो गया। उभय पक्ष के कई लोग मौत के आगोश में समा गए। एक ईंट के लिए गांव वालों ने महल गिरा दिया।

इस युध्द के बारे में ठादाम और याचुमी को कुछ भी पता नहीं चला। सिर्फ जंगल दर जंगल भटकते हुए दोनों फल कंदमूल खाते हुए जा रहे थे। कितने नदी पर्वत पहाड़ पार कर गए उन्हें पता नहीं था। कहां पहुंचे, वह भी पता नहीं। बस जा रहे थे।

अरुणाचल राज्य में कलोंग नाम का एक गांव       था। वहां ठादाम नाम का एक युवक रहता था। उसका अपना कोई नहीं था। बाल्यावस्था में ही माता-पिता गुजर गए थे। उसके पास आश्रय के लिए घर भी नहीं था। इसके-उसके घर में रहते हुए ठादाम का बचपन गुजरा।

गृह निर्माण कार्य में निपुण न सही पर भी ठादाम शिकार में निपुण था। एक बार नजरों के उसके सामने आया हुआ शिकार बच कर नहीं निकल पाता था। वह कभी शिकार से निराश होकर नहीं लौटता था।

एक दिन उसने एक बड़ा सूअर देखा। देखते ही साथ ठादाम ने एक विषैला तीर सूअर की ओर छोड़ दिया। तीर सूअर को भेद गया। सूअर बडा शक्तिशाली था। वह तीर लगने पर भी उस जगह नहीं रुका और चीखते-चिल्लाते दौड़ने लगा। सूअर के पीछे पीछे ठादाम भी दौड़ने लगा। कुछ दूरी तक सूअर की आवाज सुनते हुए उसका पीछा किया और जब चींखना-चिल्लाना सुनाई नहीं दिया तब ठादाम सूखे पत्तों पर गिरे हुए खून के लाल धब्बों को देखते हुए आगे बढ़ने लगा।

इस तरह ठादाम कितना दूर चला गया उसे पता ही नहीं चला। सूरज ढलने लगा। उसने रात गुजारने के लिए एक पहाडी पर एक अनुकूल जगह ढूंढ ली। वहीं रात गुजारी। अगले दिन फिर से सूअर को ढूंढने निकल पड़ा।

सूअर जाकर बकार नामक एक गांव के पास गिरा हुआ था। सुबह उस गांव की लड़की याचुमी तीर कमान लेकर झूम खेती (पहाड में विशेष तरीके से की जानेवाली खेती) रखवाली के लिए जा रही थी, कि अचानक उसने सूअर को देखा। देखते ही तीर छोड़ दिया। तीर भेदने पर धीमी आवाज करके सूअर मर गया। जहां गिरा हुआ था वहां से थोड़ा भी नहीं हिला।

उसी समय ठादाम वहां आ पहुंचा और बोला इस सूअर को मैंने मारा था, पर उस जगह यह नहीं मरा। उसी का पीछा करते हुए मैं यहां तक आ पहुंचा हूं। ‘‘इसे सुनते ही याचुमी गुस्से से आंखें फाड़कर देखते हुए बोलने लगी ‘‘इस सूअर को मैंने मारा है। तुमने जिस सूअर को मारा था वह यह नहीं है। वह दूसरी तरफ गया होगा।’’

दोनों के बीच सूअर को ले कर तर्क-वितर्क होने लगा। धीरे धीरे राहगीर इकट्टे होने लगे। सूअर को सामने रख कर सभी विचार विमर्श करने लगे पर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए, इसके अगले दिन कलोंग गांव के लोग आ पहुंचे। बकार गांव के साथ केवाड (विचार) बैठाया गया पर फिर भी कुछ नतीजा नहीं निकला। अन्त में बकार गांव के युवको ने सूअर को बलपूर्वक रख लिया। इस बात से कलोड गांव के लोग बडे आहत हुए और बकार गांव से बदला लेने का अवसर ढूंढने लगे।

तब से ठादाम ने सूअर वाली बात भूलाकर याचुमी के साथ सद्-भावना रखने की चेष्टा करते हुए याचुमी के घर के पास ही एक परिवार के साथ रहना शुरू कर दिया। वह झूम खेती में सहायता करता था। ठादाम को मालिक के पास बैठकर खाना खाने या भर पेट खाना खाने नहीं मिलता था। दुखी मन से ठादाम कभी इस या कभी उस पेड के नीचे बैठ कर सोचता था कि याचुमी ने क्यों सूअर को मारने का झूठा दावा किया? याचुमी से क्या वह शादी कर सकेगा?फिर भी उसने उम्मीद नहीं छाड़ी।

दूसरी तरफ उम्र बढने के साथ-साथ याचुमी अपनी शादी को लेकर परेशान रहने लगी। ठादाम उससे मिलने के अवसर ढूंढ रहा था। यह बात याचूमी की सखियां याकेन, यादवा, तादेन और याचि अच्छी तरह जानती थीं। इसी कारण ठादाम को लेकर याचुमी से मजाक करने का एक भी मौका वे नहीं छोड़ती थीं। एक दिन सहेलियों के आग्रह पर ठादाम और याचुमी एकान्त में मिले। कुछ दिन इस तरह से मिलने के बाद दोनों में आत्मीयता बढ गई।

एक दिन याचुमी और उसकी सौतेली मां में कुछ कहासुनी हो गई। इसी बात को दिल से लगा कर थोड़ा सा चावल लेकर याचुमी टडी घर (खेत में पेड़ के ऊपर बनाया हुआ घर, मचान) में जा कर बैठ गई। आंसू बहाती हुई वह ठादाम के बारे में ही सोच रही थी कि ठादाम भी वहां आ पहुंचा। ठादाम ने दुख भरी आवाज में कहा ‘‘पता है याचुमी तुमसे मिलने की बात पता चलते ही गांव के लडके मुझे मारने के लिए ढूंढ रहे हैं। इसलिए मैं इस गांव को छोड़ कर किसी दूसरी जगह जाने की सोच रहा हूं। यहां बहुत दिनों से भर पेट खाने को भी नहीं मिला। जहां भर पेट खाने मिलेगा वहीं जा कर रहूंगा।’’

याचुमी ठादाम की आंखों में आंख डालकर बोली, ‘‘ठादाम तुम मुझे छोड़ कर जाना चाहते हो?’’

ठादाम ने कहा, ‘‘यहां मैं जिन्दा नहीं रहूंगा। मैं चलता हूं।’’ इतना कह कर ठादाम चलने लगा। उसी समय आवेग में याचुमी ने पीछे से ठादाम का हाथ खींचा और चिल्लाते हुए बोली, ‘‘तुम मुझे छोड़ कर नहीं जा सकते हो। दनिपल (ईश्वर) हमारी सहायता करेंगे। इसी टडी में खाना पका कर खा लेते है। उसके बाद कहीं दूर चले जाएंगे। याचुमी की बात मानते हुए ठादाम रुक गया। याचुमी ने खाना पकाया। दोनों ने पेट भरकर खाना खाया और निकल पड़े एक ही दिशा में। वे कई दिनों तक चलते रहे ताकि बकार गांव के लोग उन तक पहुंच न सकें।

गांव में लोग याचूमी को ढूंढने लगे। कहीं कुछ पता न लगने पर गांववालों ने यह मान लिया कि ठादाम ही याचुमी को भगाकर ले गया है। उन्होंने ठादाम के गांव कलोंग जाकर आने का कारण बताया। वे याचुमी को वापस अपने गांव बकार ले कर जाना चाहते थे। कलोडवासी यह सुनते ही आगबबूला हो गए। उन्होंने बदले की आग में घी डाल दिया। कलोड गांव के लोगों ने बकार गांव के लोगों पर आरोप लगाया कि ठादाम गांव वापस नहीं आया है। उन लोगों ने ही उसकी हत्या की है।

दोनों पक्ष के आरोप-प्रत्यारोप का जल्द ही युध्द में परिवर्तन हो गया। उभय पक्ष के कई लोग मौत के आगोश में समा गए। एक ईंट के लिए गांव वालों ने महल गिरा दिया।

इस युध्द के बारे में ठादाम और याचुमी को कुछ भी पता नहीं चला। सिर्फ जंगल दर जंगल भटकते हुए दोनों फल कंदमूल खाते हुए जा रहे थे। कितने नदी पर्वत पहाड़ पार कर गए उन्हें पता नहीं था। कहां पहुंचे, वह भी पता नहीं। बस जा रहे थे।

एक दिन अचानक एक शिकारी से भेंट हुई उनका नाम थाजोक। थाजोक ने पूछा, ‘‘कहां से आये हो?’’

याचुमी ने जवाब दिया, ‘‘हम पहाड के बहुत अन्दर गांव से आये है। क्या आप हमारी मदद करेंगे?’’

थाजोक ने पूछा, ‘‘किस तरह की मदद? मेरा घर पहाड के मैदानी इलाके में है। वहां आलू अरबी का अभाव नहीं है। शिकार भी मिल जाता है। आश्रय चाहते हो तो रह सकते हो।‘‘ ठादाम ने हाथ जोडकर कृतज्ञता के स्वर में कहा ’’हम अकेले आए हैं। हमें आश्रय देने की बात कह कर आपने हमें धन्य कर दिया।’’

थाजोक ने कहा, ‘‘तुम लोग मेरे साथ रहोगे तो मुझे भी खुशी होगी। अन्तत: जंगली जानवरों के आक्रमण से बचने में मुझे मदद मिलेगी। धर्म में रहो। दनिपल (ईश्वर) तुम्हारी सहायता करेगा।’’

वे थाजोक के आश्रम में रहते हुए जीवन व्यतीत करने लगे और गांव वापस जाने की बात कभी सोची भी नहीं।

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