स्वस्तिक का महत्तव लाभ और इतिहास

पूजा-पाठ, शादी-विवाह और गृह प्रवेश जैसे तमाम धार्मिक कार्यों में हमने स्वस्तिक को जरूर देखा होगा लेकिन शायद कभी हमने इसके महत्तव, प्रभाव और इतिहास के बारे में जानने की कोशिश नहीं की हां यह जरुर पता था कि यह धर्म के अनुसार एक लाभदेने वाला प्रतीक है। किसी भी पूजा के शुरु होने से पहले पंडित जी उस स्थान और घर के दरवाजों पर स्वस्तिक जरुर बनाते है। तो चलिए हम आप को आज स्वस्तिक के बारे में पूरी जानकारी दे रहे है। 
 
स्वस्तिक प्राचीन काल से ही हिन्दू धर्म में एक मंगलकारी प्रतीक के तौर पर माना गया है इसलिए ही किसी भी शुभकार्य करने से पहले इसका चिन्ह बनाया जाता है। स्वस्तिक को मंगलकारी, लाभकारी और धार्मिक माना गया है यह हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म का पवित्र प्रतीक माना गया है। स्वस्तिक संस्कृत के शब्द स्वस्तिका से बना है जिसका अर्थ है शुभ या मांगलिक। 
 
 
स्वस्तिक कैसे बनाएं- 
आम तौर पर देखा गया है कि स्वस्तिक बनाने के लिए लोग पहले प्लस का निशान बना लेते है और फिर उसकी चारो भुजाओं को आगे बढा देते है लेकिन धर्मिक तौर पर ऐसे स्वस्तिक को गलत बताया गया है और इसका सही फल नहीं मिलता है। स्वस्तिक बनाने के लिए उसकी चारो भुजाओं को एक एक कर बनाया जाता है और इस दौरान यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि स्वस्तिक बनाने की शुरुआत बाई भुजा से करनी चाहिए। अगर आप पूजा के लिए स्वस्तिक बना रहे है तो रोली या कुमकुम का इस्तेमाल करें। स्वयं से कभी भी स्वस्तिक को ना हटाएं लेकिन जब यह खराब हो जाए तो रोली या कुमकुम को उठाकर तुलसी के पौधे में डाल दें। इस बात का भी ध्यान रखें कि स्वस्तिक का मुंह उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए।   
 
स्वस्तिक का महत्तव- 
स्वस्तिक को लेकर यह आम धारणा है कि यह चारो दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण को दर्शाता है जबकि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह चारों रेखाएं ब्रह्मा जी के चारो सिर को दर्शाती हैं। स्वस्तिक की चारों रेखाएं चारों वेदों ( ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्वेद और सामवेद) को दर्शाती है। स्वस्तिक की चारो भुजाएं चार पुरुषार्थ, चार आश्रम, चार लोक और चार देवों ( ब्रह्म, विष्णु, महेश और गणेश) से तुलना की गयी है। स्वस्तिक दो शब्दों से मिलकर बना है ‘सु’ जिसका अर्थ है ‘शुभ’ और ‘अस्ति’ जिसका अर्थ है ‘होना’ अर्थात स्वस्तिक का अर्थ है शुभ या मंगल होना। 
स्वस्तिक दो प्रकार का होता है पहला जिसमें चारो रेखाएं आगे की तरफ बढ़ते हुए दायी तरफ मुड़ जाती है इसे स्वस्तिक कहते है हिन्दू धर्म में इसे शुभ माना गया है जबकि दूसरे वाले में चारों रेखाएं आगे बढ़ते हुए बायी तरफ मुड़ जाती है इसे वामावर्त स्वस्तिक कहते है और इसे अशुभ माना जाता है। वामावर्त स्वस्तिक का चिन्ह जर्मनी के तानाशाह हिटलर के ध्वज में देखने को मिलता था।   

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