कोरोना महामारी में फिर मददगार बने स्वयंसेवक

कोरोना महामारी में बीमारी के साथ साथ इस बात का भी बड़ा दुख है कि जो लोग संक्रमित हो रहे है उनसे उनके अपने ही लोग दूर हो जा रहे है क्योंकि उन्हें इस बात का डर है कि कहीं वह भी संक्रमित ना हो जाएं और उनका यह डर भी जायज है। कोरोना वह बीमारी है जो एक एक दूसरे के संपर्क में आने से फैल रही है। कोई भी सामान्य व्यक्ति अगर संक्रमित रोगी के संपर्क में आता है तो उसे भी संक्रमण लगने का खतरा रहता है इसलिए सभी मास्क इस्तेमाल कर रहे है और किसी के भी संपर्क में आने से बच रहे है। लेकिन इस महामारी में जब अपने लोग भी साथ छोड़ रहे है तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब उन लोगों के साथ खड़ा हो रहा है हालांकि संघ के लिए यह कोई नई बात नही है इससे पहले भी जब देश पर इस तरफ का संकट आया है तब संघ ने कंधे से कंधा मिलाकर लोगों की मदद की है।

कोरोना के इस काल में देश का ऐसा कोई शहर या गांव नहीं बचा होगा जहां स्वयंसेवक अपनी सेवा ना दे रहे हों। महानगरों में तो स्वयंसेवक सेंटर तक खोल कर बैठे है जहां संक्रमित लोगों का निशुल्क उपचार भी किया जा रहा है और खाने पीने की भी व्यवस्था की जा रही है। सभी सेंटरों पर जरुरत के अनुसार स्वयंसेवकों को तैयार रखा गया है जहां वह निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में सरकार की मदद से कई आइसोलेशन सेंटर बनाए गये है जहां स्वयंसेवक 24 घंटे सेवा के लिए तैयार रहते है। इसके लिए विद्या भारती के स्कूलों को खाली कराया गया है। इसके साथ ही अन्य राज्यों में भी आइसोलेशन सेंटर तैयार किये जा रहे है।

संघ ने अपने सेवा कार्यों के दौरान कई स्वयंसेवकों को खोया भी है जिसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती है ऐसा ही एक उदाहरण हमें महाराष्ट्र में फिर से देखने को मिला है जहां एक 85 साल से बुजुर्ग स्वयंसेवक ने अपनी जान की परवाह किये बिना अपना बेड एक युवा को दे दिया और खुद परलोक सिधार गये। इस बुजुर्ग योद्धा ने यह कहते हुए अपना बेड उस युवा को दे दिया कि उसकी पूरी जिंदगी अभी बाकी जबकि मैं तो अपनी जिंदगी जी चुका हूं इसके तीसरे दिन नारायण जी का निधन हो गया। ऐसे महान स्वयंसेवकों के बलिदान को यह देश और देश की जनता कभी नहीं भूल सकती क्योंकि ऐसा त्याग करने के लिए हिम्मत होनी चाहिए।

अस्पताल के मिली जानकारी के मुताबिक, महाराष्ट्र के नागपुर के रहने वाले 85 वर्षीय नारायण दाभडकर कोरोना से संक्रमित थे जिसके बाद उन्हे बड़ी मुश्किल से एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल में उनका एक दिन भी पूरा नहीं हुआ कि एक महिला अपने पति को बुरी अवस्था में लेकर अस्पताल पहुंची और बेड की तलाश में लग गयी, बेड ना मिलने से वह परेशान थी क्योंकि अगर समय रहते उसके पति को भर्ती नहीं किया जाता तो उसकी मौत हो सकती थी। अस्पताल में भर्ती नारायण जी यह सब देख रहे थे जिसके बाद उन्होंने डॉक्टर को बुलाकर कहा कि उनका बेड उस महिला के पति को दे दिया जाए क्योंकि वह युवा है उसे देश और परिवार की जरूरत है। मैं तो अपनी जिंदगी जी चुका हूं अगर मुझे कुछ हो गया तो भी कोई नुकसान नहीं है लेकिन अगर उस युवक को कुछ होता है तो महिला का पति और बेटों से उसका बाप छिन जायेगा।

नारायण दाभडकर जी ने अपने बलिदान से ना सिर्फ एक युवा को बचाया बल्कि एक महिला के पति और बच्चों के सर से बाप के साये को हटने से बचा लिया। उनका यह बलिदान वर्षों वर्षों तक याद किया जायेगा और जिस परिवार को उन्होंने बचाया है वह आजीवन उनका ऋणी रहेगा। नारायण जी जैसे तमाम स्वयंसेवक है जो हर दिन अपना समाज के लिए दे रहे है और लोगों की सेवा कर रहे है।

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