मुख्तार की रफ्तार पर योगी का ब्रेक

मुलायम, मायावती और शिवपाल से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पार्टी तक ने मुख्तार को अपना मोहरा बनाना चाहा लेकिन, सत्ता के शीर्ष पर जब कहीं कोई ‘योगी’ बैठा हो तो बड़े-बड़े कैप्टन और चाचा की राजनीति भी धरी रह जाती है। मुख्तार को बांदा जेल की कोठरी में लौटना ही पड़ा है।

ये हिंदी और साउथ फिल्मों की स्क्रिप्ट जैसी है। उस पर 30 एफआईआर हैं और 14 मामलों में ट्रायल चल रहा है। अचानक 2019 में पंजाब में एक एफआईआर दर्ज कर ली। पंजाब में उनका रहना असंवैधानिक है, क्योंकि वो एमपी/एमएलए कोर्ट की हिरासत में थे और पंजाब पुलिस बांदा जेल पहुंची और जेल अफ़सरों ने उसे पंजाब पुलिस को सौंप दिया, जबकि ये आदेश अदालत को देना था। ये देश के सर्वोच्च न्यायालय में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की उस दलील का हिस्सा है, जो रोपड़ जेल में बंद मऊ के स्वयंभू रॉबिनहुड और बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को वापस उप्र लौटाने के सिलसिले में दी गई थी। राजनीति में बाहुबलियों के प्रवेश और राजनीति द्वारा कानून की ही आड़ लेकर उनके संरक्षण का नंगा खेल किस स्तर तक खेला जा सकता है, यह सब अब कोई ढकी-छिपी बात नहीं। मुलायम, मायावती और शिवपाल से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पार्टी तक ने मुख्तार को अपना मोहरा बनाना चाहा लेकिन, सत्ता के शीर्ष पर जब कहीं कोई ‘योगी’ बैठा हो तो बड़े-बड़े कैप्टन और चाचा की राजनीति भी धरी रह जाती है। मुख्तार को बांदा जेल की कोठरी में लौटना ही पड़ा है।

मुख़्तार की शुरुआत भी गैंग्स ऑफ़ वासेपुर टाईप ही थी। प्रॉपर्टी और कोयला, रेलवे, शराब का ठेका, गुंडा टैक्स। एक वक्त था जब पूर्वांचल की गलियों से लेकर सत्ता के गलियारों तक मुख्तार अंसारी की धमक थी। मऊ, उप्र के मोहम्दाबाद थाने में हिस्ट्रीशीट नंबर-16बी में मुख्तार के गुनाहों की दास्तां दर्ज है। मुख्तार अंसारी की हनक का आलम ये था कि जब उसका काफिला सड़क से गुजरता था तो किसी की मज़ाल जो उस कारवां के बीच आ जाए। एक लाईन से 786 नंबर की 20 से 30 एसयूवी गुजरती थीं। मुख्तादर अंसारी जब चलता था तो बॉडीगार्ड और अपने गैंग के बीच सबसे लंबा दिखाई देता था। मुख्तार अंसारी का नाम 1988 में पहली बार एक हत्या के मामले में आया। गाज़ीपुर जिले में एक ज़मीन के सिलसिले में सच्चिदानंद राय की हत्या कर दी गई। इस हत्या में आरोप मुख्तार अंसारी पर लगाए गए। यह पहली बार था जब मुख्तार अंसारी का नाम किसी संगीन अपराध के साथ जुड़ा था। हालांकि, पुलिस इस मामले में कोई सबूत न जुटा सकी और मुख्तार अंसारी पर दोष सिद्ध नहीं हो सका।

9 जुलाई, 2019 को मुन्ना बजरंगी की बागपत जेल में गोली मारकर हत्या कर दी गई। उसकी हत्या के बाद मुख्तार की जान को खतरा बताया गया और सुरक्षा की मांग की गई। चर्चा हैं कि बजरंगी की हत्या के बाद ही मुख्तार को पंजाब जेल में शिफ्ट करने का प्लान बनाया गया। बांदा जेल के सीनियर सुपरिंटेंडेंट ने 22 जनवरी, 2019 को कथित तौर पर मुख्तार को पंजाब पुलिस को सौंप दिया। नियमों के मुताबिक ये गैर कानूनी प्रक्रिया थी। नियमानुसार धारा 276 (2) के अंतर्गत ही मुख्तार को उप्र से पंजाब भेजा जा सकता था। धारा के मुताबिक अगर सेकेंड क्लास के किसी मैजिस्ट्रेट की तरफ से कोई आदेश जारी होता है, तभी जेल अधिकारी आगे की कार्रवाई करेगा। आदेश की कॉपी पर चीफ ज्यूडीशियल मैजिस्ट्रेट की मुहर भी अनिवार्य होती है, लेकिन मुख्तार को पंजाब पुलिस को सौंपे जाते वक्त इन नियमों का पालन नहीं किया गया। और इस तरह योगी सरकार और पंजाब की कैप्टन अंमरिंदर सिंह सरकार के बीच कानूनी रस्साकसी की शुरुआत हुई।

मुख्तार अंसारी से सीएम योगी आदित्यनाथ का कुछ पुराना भी है हिसाब
वर्ष 2005 में जब मऊ जिले में दंगे हुए थे, उस समय मुख्तार खुली गाड़ी में दंगे वाले इलाकों में घूम रहा था। उस पर दंगे भड़काने का आरोप भी लगा था। उस समय योगी गोरखुपर से सांसद थे। तब योगी ने मुख्तार को चुनौती दी थी और कहा था कि वो मऊ दंगे के पीड़ितों को इंसाफ दिला के रहेंगे। वे मऊ के लिए निकल भी पड़े थे, लेकिन तब उप्र में भाजपा की सरकार नहीं थी तो योगी आदित्यमनाथ को दोहरीघाट में ही रोक दिया गया था। वर्ष 2008 में योगी ने मुख्तांर को फिर ललकारा। योगी आदित्यतनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी के नेतृत्व में ऐलान किया था कि वे आजमगढ़ में आतंकवाद के खिलाफ रैली निकालेंगे। और सात सितंबर, 2008 को डीएवी डिग्री कॉलेज के मैदान में रैली का आयोजन किया गया था। रैली की सुबह, योगी के साथ गोरखनाथ मंदिर से करीब 40 वाहनों का काफिला निकला। सैकड़ों गाड़ियां पीछे थीं। कई सौ मोटरसाइकिलें भी योगी-योगी के नारे लगा रहे थे। योगी काफिले में सातवें नंबर की लाल एसयूवी में बैठे थे। काफिला निकल ही रहा था कि तभी एक पत्थर उनकी गाड़ी पर आकर लगा। हमला सुनियोजित था। उस वक्त योगी ने सकेंत दिए थे कि हमला मुख्ताकर अंसारी ने करवाया है। योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि काफिले पर लगातार एक पक्ष से गोलियां चल रही थी, गाड़ियों को तोड़ा जा रहा था पुलिस मौन बनी रही। योगी ने उसी समय कहा था कि हम इस लड़ाई को आगे बढ़ाएंगे, जिसने भी गोली मारी है अगर पुलिस कार्रवाई नहीं करेगी तो गोली मारने वालों को उसी भाषा में जवाब दिया जाएगा।

उप्र सरकार ने मुख्तार को वापस लाने के लिए कम से कम 40 बार कोशिश की लेकिन पंजाब सरकार की सरपरस्ती में पंजाब पुलिस ने मुख्तार को मेडिकली अनफिट बताकर उप्र नहीं भेजा। कभी शुगर तो कभी बीपी, तो कभी डिप्रेशन का शिकार बताया गया। 27 महीने में मुख्तार को पेशी के लिए 54 तारीखें मिलीं लेकिन कोई न कोई बहाना बनाकर वह एक भी बार पेश नहीं हुआ। इस बीच उप्र पुलिस दो साल में आठ बार मुख्तार को लाने पंजाब गई। लेकिन हर बार पंजाब पुलिस की अड़चनों की वजह से उसे खाली हाथ लौटा दिया गया। हालात ये हो गए कि उप्र सरकार को सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

जब मुख्तार पर पोटा लगाने वाले दिलेर डीएसपी को ही नौकरी से हाथ धोना पड़ा
मुख्तार की हिस्ट्रीशीट 16-बी को खंगालें तो उसके खिलाफ 32 साल के आपराधिक जीवन में कुल 53 मुकद्दमे हैं, जिनमें हत्या के 18 केस दर्ज हैं। वहीं हत्या के प्रयास के 10 मुकद्दमे दर्ज हैं। इसके अलावा टाडा, गैंगस्टर एक्ट, एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) और आर्म्स एक्ट के अलावा मकोका एक्ट के अंतर्गत भी उसके खिलाफ केस दर्ज हैं। साल 2004 में सपा सरकार के दौरान बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के पास से सेना की चोरी हुई एलएमजी बरामद हुई थी। बताते हैं कि भारतीय सेना के ही एक भगोड़े जवान ने सेना से लाईट मशीनगन चुराई थी और मुख्तार को बेच दी थी। जब यह मामला सामने आया, तो णझ स्पेशल टास्क फोर्स के तत्कालीन डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह ने बाहुबली विधायक मुख्तार के खिलाफ पोटा (ढहश झीर्शींशपींळेप ेष ढशीीेीळीा अलीं, 2002) के तहत कार्रवाई की थी। लेकिन, तत्कालीन सपा सरकार ने शैलेंद्र सिंह पर दबाव बनाना शुरू किया। इस बात से क्षुब्ध शैलेंद्र सिंह ने डिप्टी एसपी के पद से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद सपा सरकार ने शैलेंद्र पर कई केस लगा दिए। 2017 में जब योगी सरकार आई तो शैलेंद्र सिंह पर लगे सभी केस हटाने का निर्णय लिया गया। इस फैसले को कोर्ट की तरफ से भी मंजूरी मिल गई।

26 मार्च को शीर्ष अदालत ने मुख्तार को उप्र भेजने का आदेश दिया। जिसके बाद 6 अप्रैल को अभेद्य सुरक्षा घेरे में मुख्तार रोपड़ से निकला। 7 अप्रैल की सुबह बांदा पहुंच गया। लेकिन सवाल वही है कि क्या बांदा जेल पहुंच जाने भर से मुख्तार अंसारी को उसके कथित गुनाहों की सजा मिल जाएगी? बीते कुछ महीनों में दूसरे माफियाओं की तरह ही मुख्तार अंसारी के भी गैरकानूनी साम्राज्य पर भी उप्र पुलिस कहर बनकर टूटी है। मऊ, गाज़ीपुर के साथ ही लखनऊ में भी मुख़्तार की सैकड़ों करोड़ की प्रॉपर्टी पर बुलडोजर चले हैं। उसके दर्जनों गुर्गों को सख्त कानून के तहत जेल में ठूंसा गया है। मुख्तार के बेटों समेत परिवार के दूसरे लोगों पर भी गम्भीर धाराओं में मुकदमे दर्ज हुए हैं।

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