कोरोना से भी खतरनाक हो सकता है कचरा!

आज कोरोना से पूरा विश्व लड़ रहा है लेकिन किसी के पास इसका इलाज नहीं है। विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है फिर भी कोरोना के टीके को बनाने में करीब एक साल का समय लग गया लेकिन इन सब के बीच नोटिस करने वाली बात यह है कि कोरोना की महामारी प्राकृतिक नहीं है बल्कि यह हम लोगों के बीच से पैदा हुई है इसको लेकर भी कई देशों के बीच मतभेद है। हम सिर्फ इस बात पर आप का ध्यान दिलाना चाहते है कि इस तरह की अभी और भी बीमारियां पैदा हो सकती है इसके लिए हमें पहले से सचेत होने की जरूरत है। अगर हम लोग छोटी छोटी बातों का ध्यान नहीं रखेंगे तो आने वाले समय में ऐसी तमाम परेशानियों से रुबरु होना पड़ेगा।

शहरों और महानगरों से हर दिन कई ट्रक कचरा निकलता है जिसे एक निश्चित जगह पर नगरपालिका डंप कर देती है लेकिन यह उसका सही समाधान नहीं है। हमारे देश में अभी भी कचरे को अलग करने को लेकर जागरूकता कम है घर के सभी कचरे को एक साथ फेंक दिया जाता है जिसमें हरी सब्जी, बचा हुआ खाना, प्लास्टिक, कांच और इलेक्ट्रॉनिक के सामान भी होते है। यह सभी जब एक जगह पर डंप किये जाते है तो सब्जी और खानों में जल्दी सड़न होती है जिससे दुर्गंध निकलना और दूषित गैस निकलने शुरु हो जाता है। यह दूषित गैस पूरे शहर को अपने कब्जे में ले लेती है। कचरे के घेर से निकले वाली दुर्गंध और दूषित गैस अभी कम मात्रा में है इसलिए इस पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है लेकिन जिस दिन यह अपनी पूरी मात्रा में फैल जायेगी उस दिन पूरा शहर मुसीबत में आ जायेगा।

हर क्षेत्र में टेक्नॉलिजी तेजी से बढ़ रही है फिर इस क्षेत्र को विकसित क्यों नहीं किया जा रहा है? तमाम कंपनियां इस क्षेत्र में काम कर रही है और उन्होने सरकार से भी इस पर बात की है लेकिन उन्हे अभी इस पर सकारात्मक परिणाम नहीं मिल रहे है। कुछ अत्याधुनिक मशीनों द्वारा कचरे को छान कर अलग अलग किया जा सकता है जिससे सूखा और गीला कचरा अलग होगा। इस प्रक्रिया से दुर्गंध से छुटकारा मिल जायेगा और कचरे से पानी निकलने के बाद वह जल्दी सूख जायेगा जिससे उसे दूसरे काम में भी लाया जा सकेगा। कचरे के ढेर से प्लास्टिक और कांच को अलग कर उसे पुनः उपयोग में लाया जा सकता है। इस तरह की प्रक्रिया से कचरे का ढेर कम होगा और कुछ कचरों को फिर से इस्तेमाल में लाया जा सकेगा। कई देशों ने कचरे के पुनर्उपयोग को लेकर काम भी शुरु कर दिया है और कचरे को तेजी से कम कर रहे है। भारत के भी कुछ राज्यों ने कचरे से सड़क बनाने की तरकीब शुरु की है जिसमें उत्तर प्रदेश भी शामिल है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पायलट प्रोजेक्ट के तहत कुछ सड़क का निर्माण कचरे से किया गया है अगर यह सफल होता है तो इसे आगे भी बढ़ाया जायेगा। इस तरह से कदम पर्यावरण के अनुकूल है जिससे कचरा भी कम होगा और पर्यावरण की रक्षा भी हो सकेगी।

शहरों में अधिकतम जमीनों पर इमारत बन चुकी है और जो बाकी बचे है उन पर बिल्डिंग का प्लान चलता ही होगा। बिल्डर या सरकार तालाब और पार्क बनाने पर बहुत ही कम ध्यान देती है जिससे पर्यावरण का संतुलन भी बिगड़ता जा रहा है। कुछ सालों पहले तक पार्क या तालाब को लेकर कोई कठोर नियम नहीं थे लेकिन पिछले कुछ सालों से महानगरों में सरकार इस पर सचेत हुई है और बिल्डिंग के साथ साथ पार्क और तालाब बनाने पर जोर दे रही है लेकिन इन सब के बीच कचरे की समस्या पर किसी का भी ध्यान ही जा रहा है। सभी शहरों में कूड़ा-कचरा उठाने का काम नगर पालिका कर रही है लेकिन इनके काम करने के तरीकों में सुधार बहुत कम देखने को मिलता है। कूड़ा उठाने वाली गाड़ी, उसका डब्बा और डंप करना सब कुछ पहले जैसा ही चल रहा है। कई शहरों में तो अभी तक सूखा और गीला कचरा भी अलग अलग नहीं किया जाता है। सफाई का काम करने वाले लोगों को भी कोई सेफ्टी ड्रेस या दास्ताना नहीं मिलता है इसलिए इससे जुड़े लोगों को बीमारी जल्दी पकड़ लेती है और लोग इस तरह का काम करने से बचते है।

हमें कचरे को लेकर जागरुक होने की जरुरत है। हमें घर का कचरा भी अलग अलग रखना चाहिए। हरी सब्जी का कटा हुआ भाग और बचा हुआ खाना आस-पास किसी जानवर को खिला देना चाहिए इससे कचरा भी तुरंत खत्म हो जायेगा और किसी का पेट भी भर जायेगा। इसके साथ ही प्लास्टिक, शीशा, कागज, लकड़ी और इलेक्ट्रिक सामान को अलग करना चाहिए आप इसमें से कई सामानों को तुरंत बेच कर कुछ पैसे कमा सकते है और कुछ को फिर से इस्तेमाल में ला सकते है। इन छोटी छोटी बातों पर ध्यान देने से ना सिर्फ हमारा कचरा कम होगा बल्कि हम कुछ पैसे भी कमा लेंगे और किसी का पेट भी भर सकेंगे।

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