मन की वैक्सीन

कोरोना, लॉकडाउन, पहली लहर, दूसरी लहर, तीसरी लहर… पिछले लगभग एक साल से बस यही शब्द सुनाई दे रहे हैं। कोरोना न हुआ मानो रक्तबीज राक्षस हो गया जिसका हर स्ट्रेन पहले से अधिक खतरनाक और संदिग्ध है। अब तो कोरोना के बाद होने वाले ब्लैक फंगस तथा व्हाइट फंगस ने सभी की नींद उडा रखी है। ब्लैक फंगस शरीर के सबसे कमजोर हिस्से पर वार करता है और उसे इतना प्रभावित कर देता है कि वह अंग ही शरीर से अलग करना पडता है। जबकि व्हाइट फंगस सीधे दिमाग, फेफडे, पचनक्रिया तंत्र पर प्रभाव डालता है। हालांकि अभी तक भारत में इसके मरीज अधिक नहीं हैं परंतु जिन्हें यह बीमारियां हुई हैं, उनकी हालत बहुत चिंताजनक है।

चिकित्सा क्षेत्र में कार्य करने वाले दुनिया भर के वैज्ञानिक इसी बात से परेशान हैं कि कैसे कोरोना से मुक्ति मिलेगी या फिर क्या इसके साथ ही जीने के लिए तैयार होना होगा। अभी तक सभी को वैक्सीन का इंतजार था। अब वैक्सीन भी आ गई है परंतु लोग इतने भयभीत हैं कि वैक्सीन लगने के बाद भी मन में यह संदेह है कि क्या सचमुच वे सुरक्षित हैं। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि संदेह वैक्सीन को लेकर नहीं वरन कोरोना के हर दिन बदलते रुप के कारण है। कुछ दिनों पूर्व तक रेमिडिसिविर दवाई कोरोना के मरीजों के लिए प्राथमिक और संजीवनी बूटी की तरह महत्वपूर्ण मानी जा रही थी परंतु अब चिकित्सा क्षेत्र से ऐसे बयान आ रहे हैं कि रेमिडिसिविर अधिक उपयोगी नहीं है। लोग ये सोच रहे हैं कि कहीं वैक्सीन के बारे में भी ऐसा ही न हो। हो सकता है ये बयान भ्रामक हों परंतु समाज का मानस बिगाडने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। दूसरी ओर डब्ल्यूएचओ ने संकेत दिये हैं कि अगर भारत की स्थिति ऐसी ही रही तो मृतकों का आंकडा दस लाख तक पहुंचने में देर नहीं लगेगी। इससे भी समाज में भय का वातावरण है।

यह भय क्या कम था कि कालाबाजारियों ने अपना धंधा खोल दिया है। संकट की इस घडी को अवसर के रूप में देखने से भी लोग बाज नहीं आ रहे हैं। नकली दवाइयों, ऑक्सीजन सिलेंडरों और टीकों को सरे आम बेचा जा रहा है। कई दुकानों पर तो रेमिडिसिविर को दुगुने-चौगुने दामों पर बेचा जा रहा है। अस्पतालों में बिस्तरों के बाबत जो गोरखधंधे हो रहे हैं, उनकी खबरें भी आए दिन अखबारों में आती रहती हैं। समाचार चैनलों और अखबारों में अब इन गोरखधंधों की खबरें भी कोरोना की ही बराबरी कर रही हैं। खबरों को सुनें लगभग पूरा वातावरण नकारात्मक ही दिखाई देता है।

नकारात्मक खबरों का सिलसिला केवल यहीं तक नहीं रुका है। बंगाल के चुनावों के बाद की हिंसा, तूफान-चक्रवात के कारण हुई जन-धन की हानि और कोरोना के कारण अपने सगे-संबंधियों के दुखद निधन की खबरें मन को मैला करती ही रहती हैं।

इन सभी के बीच जब किसी वयोवृद्ध व्यक्ति की कोरोना को हराने की खबर आती है तो मन को शांति मिलती है। जब कोई व्यक्ति अपने से अधिक दूसरे की आवश्यकता को जानकर स्वयं को मिलने वाली चिकित्सा सुविधा को किसी और के छोड देता है तो संज्ञान होता है कि मानवता अभी भी जीवित है। जब अस्पताल में नवजात शिशु की मां को कोरोना हो जाता है और असपताल की नर्सें उस नवजात शिशु का ध्यान अपने बच्चे केी तरह रखती हैं तो विश्वास हो जाता है कि क्यों डॉक्टरों और नर्सों को भगवान का दर्जा दिया जाता है।

अगर गौर किया जाए तो इस परिस्थिति में शारीरिक अस्वस्थता के साथ-साथ मानसिक अस्वस्थता भी अधिक होती है, जिसकी ओर ध्यान दिया जाना अधिक आवश्यक है। शरीर पर रोगों के दुष्प्रभाव दिखाई दे जाता है। परंतु मन पर होने वाला दुष्प्रबाव तुरंत दिखाई नहीं देता। सरकार और चिकित्साकर्मियों का उद्देश्य कोरोना पीडितों तथा आम लोगों को कोरोना से बचाना है। वे सभी लोग हर संभव प्रयास कर भी रहे हैं। परंतु लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की जिम्मेदारी उठाना न उनका काम है और न ही उनके बस में है। इसके व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं।

परिवार के सभी लोगों के द्वारा एक साथ एक नियत समय पर कुछ समय के लिए एकत्रित होना, आसन या प्राणायाम करना, किसी पुस्तक के अंशों का वाचन करना जिससे सभी में सकारात्मकता बनी रहे, ऐसे विभिन्न प्रयासों में से कुछ प्रयास हो सकते हैं। तकनीक ने आज हमें जोडने में अहम भूमिका निभाई है। टेक्नोसेवी लोग परिवार के साथ किए जा सकने वाले उपरोक्त सभी कामों को दूर बैठे अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ भी कर सकते हैं। आजकल सभी बच्चे भी लगभग घर पर ही रहते हैं उनके साथ खेलना या अकेले अपनी रुचि के काम करना भी कई बार मन को सुकून देकर नई ऊर्जा निर्माण करने वाला होता है।

कुलमिलाकर कहने का अर्थ यह है कि हमें किसी भी परिस्थिति में अपने मन:स्वास्थ्य को डिगने नहीं देना है। कोरोना को हराने में जितना शारीरिक बल आवश्यक है, उतना ही मानसिक बल भी आवश्यक है। अनुसंधानकर्ताओं ने कोरोना के लिए तो वैक्सीन ढूंढ़ ली है परंतु अपने अपने मन पर लगाने वाली सकारात्मकता की वैक्सीन हमें ही ढूंढ़नी होगी।

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