धरा का लाल भूपेन हाजरिका

स्वेदनशील गीतकार, कर्णप्रिय संगीतकार, दबंग पत्रकार, महान लेखक, अद्भुत राजनीतिक, फिल्मकार भूपेन हाजरिका अपनी हर भूमिका में एकदम फिट बैठते थे। जो भी करते थे दिल से…, अपने लिए…, अपनों के लिए…। और अचानक ५ नवम्बर २०११ को ब्रह्मपुत्र का यह बेटा ब्रह्मपुत्र में समा गया।

८ सितंबर १९२६ की सुबह असम के लिए     एक सुखद, दिपदिपाते सूर्य के साथ उदित हुई। सभी अपनी दैनंदिनी में व्यस्त- मस्त थे लेकिन कुछ तो अलग था, उस दिन की हवाओं में कुछ तो अलग बात थी। रौनक, मादकता, मस्ती का आलम, दीवानगी …., सभी कुछ तो था उस दिन असम की हवाओं में। क्यों…?

….क्योंकि एक रूहानी आत्मा..एक मासूम की किलकारी असम के तिनसुकिया जिले के छोटे से कस्बे ‘सदिया’ में गूंजी। उस रूहानी आत्मा के जन्म लेते ही सदिया की रूत मस्तानी हो गई…, चहुंओर सरस्वती का नाद सुनाई देने लगा। दो चमकीली आंखों और बड़े से सिर वाले बालक का जन्म एक कच्चे- छोटे से दो कमरों के मकान में हुआ और उसका नामकरण किया गया ‘भूपेन’…भू-पृथ्वी…पेन…कलम…।

भूपेन तो वाकई में धरती को कागज़ और दिल की हर धडकन को कलमबद्ध कर, हर धड़कन के साथ नए- नए गीत…नई गज़लें, कविताएं रचते गए…, रचते गए…, ना तो उनकी कलम रूकती थी…, ना थकती थी और ना ही कांपती थी, बस नई- नई धुनों को वातावरण में महकती गुलाबों की सुगंध सा हलके- हलके मौसम को शबाबी बनाती चली जाती और हजारों- लाखों ज़वां दिलों को धड़कने के लिए और उनके कदमों को थिरकने के लिए मज़बूर कर देती थी।

बचपन के कुछ साल भूपेन ने गुवाहाटी में गुजारे थे। गुवाहटी के भरलुमुख इलाके में उनके नाना का घर था, जहां विभिन्न जातियों के लोग निवास करते थे। वहीं कुछ बंगाली परिवार रहा करते थे। उनके घर में जब कीर्तन होता तो भूपेन वहां जरूर जाते और सभी के साथ मिलकर कीर्तन गाते। वहां के थाने में कुछ बिहारी सिपाही थे जो भोजपुरी में गाते थे। उनके गीतों को भी भूपेन अक्सर सुनते और फिर उनके सुर में सुर मिलाकर गाने लगते।

१९३६ में नीलकांत हजारिका का तबादला जब तेजपुर में हुआ तो नन्हें भूपेन की किस्मत ने करवट ली। उन्हें वहां अपनी प्रतिभा को उभारने का भरपूर मौका मिला।

तेजपुर में उस समय असमिया साहित्य- संस्कृति के दो युग पुरूष ज्योति प्रसाद जी और विष्णु प्रभाजी सांस्कृतिक वातावरण बनाने के लिए प्रयासरत थे। वहीं पद्यधर चालिहा और पार्वती प्रसाद बरूवा जैसे ख्यात गीतकारों का सानिध्य भूपेन को मिलने लगा, जिसकी वजह से उनकी कला पल्लवित- पुष्पित होती चली गई।

तेजपुर के वाण रंगमंच पर आए दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता था। वहां ज्योतिप्रसाद जी पियानो बजाते, भूपेन अपनी मां के साथ प्रोग्राम देखने जाते, उनकी इच्छा होती कि किसी तरह वे एक बार ज्योतिप्रसाद जी से मिलें।

एक सुनहरी संध्या को भूपेन के दरवाजे पर मां सरस्वती के आशीष से ज्योतिप्रसाद अग्रवाल और विष्णुप्रभा जी पधारे और भूपेन के पिता से मिलकर उन्हें अपने हृदय के भावों से अवगत कराते हुए कहा कि भूपेन को अपने साथ कोलकाता ले जाना चाहते हैं और उनकी सुरीली आवाज़ में एक गाना रिकार्ड करवाना चाहते हैंं। कोलकाता में भूपेन ने ‘जयमती’ और ‘शोणित कुंवारी’ फिल्म की नायिका के लिए गीत रिकार्ड किए।

भूपेन को ‘यंगेस्ट आर्टिस्ट ऑफ हिज़ मास्टर्स वॉइस ऑफ इण्डिया रिकार्ड संगीत’ का सम्मान मिला।

तेजपुर गवर्नमेण्ट हाईस्कूल की हस्तलिखित पत्रिका के लिए भूपेन ने ‘अग्न्नियुगर फिरिंगति’ गीत रचा।

भूपेन का रूझान शुरू से ही संगीत में था। वे हमेशा संगीत विषयक पुस्तकें ढू़ंढ- ढूंढ़ कर पढ़ा करते थे। भातखण्डे की पुस्तकों का बांग्ला अनुवाद भी उन्होंने पढ़ा। इसके अलावा लक्षमी राय बरूवा लिखित ६संगीत कोष८ का भी उन्होंने अध्ययन किया था।

आगे की पढ़ाई के लिए जब भूपेन बनारस आए तो यहां पर उनका हिन्दी और उर्दू साहित्य से परिचय हुआ। मुंशी प्रेमचन्द, फिराक गोरखपुरी आदि की रचनाएं वे अक्सर पढ़ते। शास्त्रीय संगीत के नए रूप से भूपेन का साक्षात्कार हुआ और भूपेन गज़लें गुनगुनाने लगे।

एक तरफ भूपेन के सिर संगीत चढ़ कर बोल रहा था तो दूसरी तरफ घर की जिम्मेदारियां मुंह बाएं खड़ी थीं।

देश आजादी की जंग कर रहा था। भूपेन पर कार्ल माकर्स, महात्मा गांधी का प्रभाव पड़ रहा था। अपने देश को सुखद और धरा को खूबसूरत बनाने के दिवास्वप्न उनके दिमाग में भुचाल मचाते रहते। कला को समाज परिवर्तन का हथियार बनाने का उनका संकल्प और…और दृढ़ होता जा रहा था। उसी दौरान आगरा में ताजमहल को देखकर भूपेन ने लिखा था कि ‘‘कांपि उठे किव ताजमहल…’’।

गुवाहाटी लौट कर परिवार की तंगहाली को देखकर सन् १९४७ में भूपेन गुवाहाटी के बी.बरूवा कॉलेज में अध्यापक की नौकरी करने लगे। उसके बाद आकाशवाणी में नौकरी की। डेढ़ साल तक आकाशवाणी में नौकरी करने के बाद भूपेन को अमेरिका में मास कम्युनिकेशन विषय में शोध करने के लिए छात्रवृति मिल गई और वे अमेरिका चले गए।

भूपेन भारत के पूर्वोतर राज्य असम से एक बहुमुखी प्रतिभा के गीतकार, संगीतकार और गायक बनकर उभरे। इसके अलावा उन्होंने असमी भाषा के कवि, फिल्म निर्माता, लेखक के रूप में और असम की संस्कृति और संगीत के क्षेत्र में भी उत्तरोत्तर तरक्की की।

वे भारत के ऐसे विलक्षण कलाकार थे जो अपने गीत खुद लिखते थे, संगीतबद्व करते थे और गाते भी थे।

भूपेन हजारिका के गीतों ने लाखों दिलों को छुआ। उनकी दमदार आवाज में जिस किसी ने उनके गीत ‘दिल झूम- झूम करे’ और ‘ओ गंगा तू बहती है क्यों’ को सुना, उसने अपने दिल पर हाथ रखकर आह ना भरी हो ऐसा संभव नहीं है। भूपेन जी ने अपनी मूल भाषा के अलावा हिंदी, बंगला समेत कई अन्य भारतीय भाषाओं में गानें गाए। फिल्म ‘गांधी टू हिटलर’ में ‘वैष्णव जन’ गाया था।

भूपेन जी को १९७५ में सर्वोत्कृष्ट क्षेत्रीय फिल्म के लिए राष्ट्ीय पुरस्कार, १९९२ में सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के सम्मान से सम्मानित किया गया। २००९ में असोम रत्न, संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, २०११ में पद्म भूषण जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

भूपेन के कुछ प्रसिद्व गीत- सोम अमार रूपाहि, आटो रिक्शा चलाओ, गंगा….,

भूपेन की कुछ प्रसिद्व फिल्में- इन्दुमालती- १९३९, सिराज़- १९४८, पिओली -१९५५, फुकान- १९५६, एरा बातोर सुन- १९५८, माहुत बन्धुरे-१९७९, देवदास, एक पल, रूदाली, दो राहें, गजगामिनी…,

भूपेन हजारिका किसी भी परिचय के मोहताज नहीं हैं। मां कामाख्मा और ब्रह्मपुत्र के इस विलक्षण कलाप्रेमी ने विश्व पटल पर अपने देश के नाम को चमकाया है।

भूपेन हजारिका जी के बारे में कुछ भी कहना सूरज को दीपक दिखाने जैसा है, जो व्यक्ति अपने जीवनकाल में तीन प्रेसिडेंट्स नेशनल अवार्डस विजेता रहा हो…जी हां..,शकुंतला-१९६०, प्रतिघ्वनि-१९६४ और लोटी-डोटी- १९६७में …।

आप १९९३ में साहित्य सभा के अध्यक्ष मनोनीत किए गए। आप बहुत ही प्रसिद्व पत्रकार और संपादक के रूप में भी जाने जाते थे। जिसके लिए १९७७ में आपको पद्मश्री से नवाजा गया।

स्वेदनशील गीतकार, कर्णप्रिय संगीतकार, दबंग पत्रकार, महान लेखक, अद्भुत राजनीतिक, फिल्मकार भूपेन हजारिका अपनी हर भूमिका में एकदम फिट बैठते थे। जो भी करते थे दिल से…, अपने लिए…, अपनों के लिए…।

और अचानक ५ नवम्बर २०११ को सैकड़ों लोगों की आंंखों में ये गंगा गीत झूम झूम कर गाने वाला गंगा- यमुना और दिलों में अपने लिए प्यार और बहुत सारा मधुर संगीत छोड़ कर भूपेन जी ने इस दुनिया से विदा ली और सैंकड़ों लोगों की बहती अश्रुधाराओं के साथ ब्रह्मपुत्र का यह बेटा ब्रह्मपुत्र में समा गया।

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