पूर्वोत्तर के लिए विशेष प्रावधान

पूर्वोत्तर के राज्य आर्थिक दृष्टि से तो विशेष श्रेणी में आते ही हैं, राजनीतिक दृष्टि से भी संविधान ने उन्हें विशेष हैसियत प्रदान की है। इसकी शुरुआत अनुच्छेद ३७१(क) से की गई है, जिसमें नगालैंड को विशेष स्थिति में चिह्नित किया गया है।

भारत में विशेष राज्य शब्द का उपयोग राजनीतिक और आर्थिक, दोनों संदर्भों में किया जाता है। एकीकरण की प्रक्रिया को सुगम बनाने और स्थानीय भावनाओं को संबोधित करने हेतु कुछ विशेष राज्यों के लिए भारतीय संविधान के इक्कीसवें भाग में ‘अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान’ किए गए हैं। यह भाग अनुच्छेद ३६९ से प्रारंंभ होता है।

इसके अतिरिक्त रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण, दुर्गम भौगोलिक क्षेत्र वाले अथवा ढांचागत तथा आर्थिक दृष्टि से अत्यंत पिछड़े राज्यों को केंद्र सरकार विभिन्न रूपों में वित्तीय सहायता प्रदान करती है, ऐसे राज्यों को आर्थिक दृष्टि से ‘विशेष राज्य’ कहा जाता है। नीतीश कुमार जब बिहार को विशेष राज्य घोषित करने की मांग कर रहे होते हैं या माणिक सरकार यह कहते हैं कि पूर्वोत्तर राज्यों का विशेष दर्जा समाप्त किया किया जा रहा है तो वह आर्थिक संदर्भों में बात कर रहे होते हैं।

असल में भारत में चौथी पंचवर्षीय योजना तक राज्यों को अनुदान देने हेतु कोई निश्चित फार्मूला नहीं था। चौथी पंचवर्षीय योजना में ‘गाडगील फार्मूले’ के आधार पर राज्यों को

 

केंद्रीय वित्तीय अनुदान दिए जाने लगे। इसमें यह व्यवस्था थी कि असम, जम्मू-कश्मीर और नगालैंड को प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर रखा जाएगा और उनकी जरूरतों को यथासंभव पूरा करने के बाद अन्य राज्यों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। पांचवीं पंचवर्षीय योजना में हिमाचल प्रदेश, सिक्किम सहित पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों को इस श्रेणी में शामिल कर लिया गया। बाद में उत्तराखंड को भी इसी श्रेणी में शामिल कर लिया गया। विशेष राज्यों को ९० प्रतिशत केंद्रीय अनुदान प्राप्त होता है और बाकी १० प्रतिशत ब्याजमुक्त कर्ज के रूप में। जबकि अन्य राज्यों को ७० फीसदी अनुदान ही मिलता है और शेष ३० फीसदी कर्ज के रूप में। विशेष राज्यों को उत्पाद शुल्क में भी रियायत दी जाती है ताकि उद्योग लग सकें और रोजगार का सृजन हो सके। इसके अतिरिक्त भी अन्य कई तरह की रियायतें आर्थिक दृष्टि से विशेष राज्यों को मिलते हैं।

पूर्वोत्तर के राज्य आर्थिक दृष्टि से तो विशेष श्रेणी में आते ही हैं, राजनीतिक दृष्टि से भी संविधान ने उन्हें विशेष हैसियत प्रदान की है। इसकी शुरुआत अनुच्छेद ३७१(क) से की गई है, जिसमें नगालैंड को विशेष

 

स्थिति में चिह्नित किया गया है।

३७१ (क) नगालैंड राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान-

(१) इस संविधान में किसी बात के होते भी-

(क) निम्नलिखित के संबंध में संसद का कोई अधिनियम नगालैंड राज्य को तब तक लागू नहीं होगा, जब तक नगालैंड की विधान सभा संकल्प द्वारा ऐसा विनिश्चय नहीं करती है, अर्थात:

 (१) नगाओं की धार्मिक या सामाजिक प्रथाएं,

 (२) नागा रूढिज़न्य विधि और प्रक्रिया,

 (३) सिविल और दांडिक न्याय प्रशासन, जहां विनिश्चय नगा रूढिज़न्य विधि के अनुसार होने हैं,

 (४) भूमि और उसके संपत्ति स्रोतों का स्वामित्व और अंतरण:

(ख) नगालैंड के राज्यपाल का नगालैंड राज्य में विधि और व्यवस्था के संबंध में तब तक विशेष उत्तरदायित्व रहेगा, जब तक उस राज्य के निर्माण के ठीक पहले नगा पहाड़ी त्युएनसांग क्षेत्र में विद्यमान आतंरिक अशांति, उसकी राय में, उसमें या उसके किसी भाग में बनी रहती है और राज्यपाल, उस संबंध में अपने कृत्यों का निर्वहन करने में की जाने वाली कार्रवाई के बारे में अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग, मंत्रिमंडल परिषद से परामर्श करने के पश्चात करेगा, परंतु यदि यह प्रश्र उठता है कि कोई मामला ऐसा मामला है या नहीं, जिसके संबंध में राज्यपाल से इस उपखंड के अधीन अपेक्षा की गई है कि वह अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग करके कार्य करे तो राज्यपाल का अपने विवेक से किया गया गया विनिश्चय अंतिम होगा और राज्यपाल द्वारा की गई किसी बात की विधिमान्यता इस आधार पर प्रश्रगत नहीं की जाएगी कि उसे अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग करके कार्य करना चाहिए था या नहीं, परंतु यह और कि यदि राज्यपाल से प्रतिदिन मिलने पर या अन्यथा राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि अब यह आवश्यक नहीं है कि नगालैंड राज्य में विधि और व्यवस्था के संबंध में राज्यपाल का विशेष उत्तरदायित्व रहे तो वह, आदेश द्वारा निर्देश दे सकेगा कि राज्यपाल का ऐसा उत्तरदायित्व उस तारीख से नहीं रहेगा जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए।

(ग) अनुदान की किसी मांग के संबंध में अपनी सिफारिश करने में, नगालैंड का राज्यपाल यह सुनिश्चित करेगा कि किसी विनिर्दिष्ट सेवा या प्रयोजन के लिए भारत की संचित निधि में से भारत सरकार द्वारा दिया गया कोई धन सेवा या प्रयोजन से संबंधित अनुदान की मांग में, न कि किसी अन्य मांग में, सम्मिलित किया जाए।

(घ) उस तारीख से जिसे नगालैंड का राज्यपाल इस निमित्त लोग अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे, त्युएनसांग जिले के लिए एक प्रादेशिक परिषद स्थापित की जाएगी, जो ३५ सदस्यों से मिलकर बनेगी और राज्यपाल निम्नलिखित बातों का उपबंध करने के लिए नियम अपने विवेक से बनाएगा अर्थात:

(१) प्रादेशिक परिषद की संरचना और वह रीति जिससे प्रादेशिक परिषद के सदस्य चुने जाएंगे। परंतु त्युएनसांग जिले का उपायुक्त प्रादेशिक परिषद का पदेन अध्यक्ष होगा और प्रादेशिक परिषद का उपाध्यक्ष उसके सदस्यों द्वारा अपने में से निर्वाचित किया जाएगा।

(२) प्रादेशिक पदिषद के सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए अर्हताएं।

(३) प्रादेशिक परिषद के सदस्यों की पदावधि और उनको दिए जाने वाले वेतन और भत्ते, यदि कोई हो,

(४) प्रादेशिक परिषद की प्रक्रिया और कार्य संचालन,

(५) प्रादेशिक परिषद के अधिकारियों और कर्मचारीवृंद की नियुक्ति और उनकी सेवा की शर्तें, और

(६) कोई अन्य विषय जिसके संबंध में प्रादेशिक परिषद के गठन और उसके उचित कार्यकरण के लिए नियम बनाने आवश्यक हैं।

(२) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी नगालैंड राज्य के निर्माण की तारीख से दस वर्ष की अवधि तक या ऐसी अतिरिक्त अवधि के लिए जिसे राज्यपाल, प्रादेशिक परिषद की सिफारिश पर लोक अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।

(क) त्युएनसांग जिले का प्रशासन राज्यपाल द्वारा चलाया जाएगा।

(ख) जहां भारत सरकार द्वारा नगालैंड सरकार को संपूर्ण नगालैंड राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कोई धन दिया जाता है, वहां राज्यपाल अपने विवेक से त्युएनसांग जिला और शेष राज्य के बीच उस धन के सम्मानपूर्ण आबंटन के लिए प्रबंध करेगा।

(ग) नगालैंड विधान मंडल का कोई अधिनियम त्युएनसांग जिले को तब तक लागू नहीं होगा, जब तक राज्यपाल, प्रादेशिक परिषद की सिफारिश पर लोक अधिसूचना द्वारा इस प्रकार निर्देश नहीं देता है और ऐसे किसी अधिनियम के संबंध में ऐसा निर्देश देते हुए राज्यपाल यदि निर्दिष्ट कर सकेगा कि वह अधिनियम त्युएनसांग जिला या उसके किसी भाग को होने में ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा, जिन्हें राज्यपाल प्रादेशिक परिषद की सिफारिश पर विनिर्दिष्ट करे, परंतु इस उपखंड के अधीन दिया गया कोई निर्देश इस प्रकार दिया जा सकेगा कि उसका भूतलक्षी प्रभाव हो।

(घ) राज्यपाल त्युएनसांग जिला की शांति, उन्नति और सुशासन के लिए विनियम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए विनियम उस जिला को तत्समय लागू संसद के किसी अधिनियम या किसी अन्य विधि का यदि आवश्यक हो तो भूतलक्षी प्रभाव से निरसन या संशोधन कर सकेंगे।

(ङ) (१) नगालैंड विधान सभा में त्युएनसांग जिले का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों में से एक सदस्य को राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर त्युएनसांग कार्य मंत्री नियुक्त करेगा और मुख्यमंत्री अपनी सलाह देने में पूर्वोक्त सदस्यों की बहुसंख्या पर कार्य करेगा।

(२) त्युएनसांग कार्य मंत्री त्युएनसांग जिले से संबंधित सभी विषयों की बाबत कार्य करेगा और उनके संबंध में राज्यपाल के पास उसकी सीधी पहुंच होगी, किंतु वह उनके संबंध में मुख्यमंत्री को जानकारी देता रहेगा।

(च) इस खंड के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते भी त्युएनसांग जिला से संबंधित सभी विषयों पर अंतिम विनिश्चय राज्यपाल अपने विवेक से करेगा।

(छ) अनुच्छेद ५४ और अनुच्छेद ५५ में तथा अनुच्छेद ८० के खंड (४) में राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों के या ऐसे प्रत्येक सदस्यों के प्रति निर्देशों के अंतर्गत इस अनुच्छेद के अधीन स्थापित प्रादेशिक परिषद द्वारा निर्वाचित नगालैंड विधान सभा के सदस्यों या सदस्य के प्रति निर्देश होंगे।

(ज) अनुच्छेद १७० में

(१) खंड (१) नगालैंड विधान सभा के संबंध में इस प्रकार प्रभावी होगा मानो ‘साठ’ शब्द के स्थान पर ‘छियालीस’ शब्द रख दिया गया हो।

(२) खंड (२) और खंड (३) में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के प्रति निर्देश से कोहिमा और मोकोकचुंग जिलों में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के प्रति निर्देश अभिप्रेत होंगे।

(३) यदि इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी उपबंध को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो राष्ट्रपति, आदेश द्वारा, कोई ऐसी बात (जिसके अंतर्गत किसी अन्य अनुच्छेद का कोई अनुकूलन या उपांतरण है) कर सकेगा जो उस कठिनाई को दूर करने के प्रयोजन के लिए उसे आवश्यक प्रतीत होती है। परंतु ऐसा कोई आदेश नगालैंड राज्य के निर्माण की तारीख से तीन वर्ष की समाप्ति के पश्चात नहीं किया जाएगा।

स्पष्टीकरण- इस अनुच्छेद में, कोहिमा, मोकोकचुंग और त्युएनसांग जिलों का वहीं अर्थ है जो नगालैंड राज्य अधिनियम १९६२ में है।

३७१ (ख) असम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध-इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी राष्ट्रपति, असम राज्य के संबंध में किए गए आदेश द्वारा उस राज्य की विधान सभा की एक समिति के गठन और कृत्यों के लिए जो समिति छठी अनुसूची के पैरा २० से संलग्र सारिणी के (भाग-१) में विनिर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों से निर्वाचित उस विधान सभा के सदस्यों से और उस विधान सभा के उतने अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगी, जिने आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं तथा ऐसी समिति के गठन और उसके उचित कार्यकरण के लिए उस विधान सभा की प्रक्रिया के नियमों में किए जाने वाले उपांतरणों के लिए उपबंध कर सकेगा।

३७१ (ग) -मणिपुर राज्य के संबंध में उपबंंध

(१) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति, मणिपुर राज्य के संबंध में किए गए आदेश के द्वारा, उस राज्य की विधानसभा की एक समिति के गठन और कृत्यों के लिए,जो समिति उस राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित उस विधान सभा के सदस्यों से मिलकर बनेगी। राज्य की सरकार के कामकाज के नियमों और राज्य की विधानसभा की प्रक्रिया के नियमों में किए जाने वाले उपांतरणों के लिए ऐसी समिति का उचित कार्यकरण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से राज्यपाल के किसी विशेष उत्तरदायित्व के लिए उपबंध कर सकेगा।

(२) राज्यपाल प्रति वर्ष या जब कभी राष्ट्रपति ऐसी अपेक्षा करें, मणिपुर राज्य के पहाड़ी क्षेत्र के प्रशासन के संबंध में राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देगा और संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उक्त क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में राज्यों को निर्देश देने तक होगा।

स्पष्टीकरण-इस अनुच्छेद में ‘पहाड़ी क्षेत्रों’ से ऐसे क्षेत्र अभिप्रेत हैं, जिन्हें राष्ट्रपति, आदेश द्वारा पहाड़ी क्षेत्र घोषित करे।

३७१ (च) सिक्किम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध-

इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी –

(क)सिक्किम राज्य की विधान सभा कम से कम तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी।

(ख) संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७५ के प्रारंभ की तारीख से (जिसे इस अनुच्छेद में इसके पश्चात नियत दिन कहा गया है)-

(१) सिक्किम की विधान सभा, जो अप्रैल, १९७४ में सिक्किम में हुए निर्वाचनों के परिणामस्वरूप उक्त निर्वाचनों में निर्वाचित बत्तीस सदस्यों से (जिन्हें इसमें इसके पश्चात आसीन सदस्य कहा गया है) मिलकर बनी है, इस संविधान के अधीन सम्यक रूप से गठित सिक्किम राज्य की विधान सभा समझी जाएगी;

(२) आसीन सदस्य इस संविधान के अधीन सम्यक रूप से निर्वाचित सिक्किम राज्य की विधान सभा के सदस्य समझे जाएंगे; और

(३) सिक्किम राज्य की उक्त विधान सभा इस संविधान के अधीन राज्य की विधान सभा की शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का पालन करेगी;

(ग) खंड (ख) के अधीन सिक्किम राज्य की विधान सभा समझी गई विधान सभा की दशा में, अनुच्छेद १७२ के खंड (१) में (पांच वर्ष) की अवधि के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे (चार वर्ष) की अवधि के प्रति निर्देश हैं और (चार वर्ष) की उक्त अवधि नियत दिन से प्रारंभ हुई समझी जाएगी;

(घ) जब तक संसद विधि द्वारा अन्य उपबंध नहीं करती है, तब तक सिक्किम राज्य को लोकसभा में एक स्थान आबंटित किया जाएगा और सिक्किम राज्य एक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र होगा, जिसका नाम सिक्किम संसदीय निर्वाचन-क्षेत्र होगा;

(ङ) नियत दिन को विद्यमान लोकसभा में सिक्किम राज्य का प्रतिनिधि सिक्किम राज्य की विधान सभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाएगा;

(च) संसद, सिक्किम की जनता के विभिन्न अनुभागों के अधिकारों और हितों की रक्षा करने के प्रयोजन के लिए सिक्किम राज्य की विधान सभा में उन स्थानों की संख्या के लिए जो ऐसे अनुभागों के अभ्यर्थियों द्वारा भरे जा सकेंगे और ऐसे सभा निर्वाचन-क्षेत्रों के परिसीमन के लिए, जिनसे केवल ऐसे अनुभागों के अभ्यर्थी ही सिक्किम राज्य की विधान सभा के निर्वाचन के लिए खड़े हो सकेंगे, उपबंध कर सकेगी;

(छ) सिक्किम के राज्यपाल का, शांति के लिए और सिक्किम की जनता के विभिन्न अनुभागों की सामाजिक और आर्थिक उन्नति सुनिश्चित करने के लिए साम्यापूर्ण व्यवस्था करने के लिए विशेष उत्तरदायित्व होगा और इस खंड के अधीन अपने विशेष उत्तरदायित्व का निर्वहन करने में सिक्किम का राज्यपाल ऐसे निदेशों के अधीन रहते हुए जो राष्ट्रपति समय-समय पर देना ठीक समझे, अपने विवेक से करेगा;

(ज) सभी संपत्ति और आस्तियां ( चाहे वे सिक्किम राज्य में समाविष्ट राज्यक्षेत्रों के भीतर हों या बाहर) जो नियत दिन से ठीक पहले सिक्किम सरकार में या सिक्किम सरकार के प्रयोजनों के लिए किसी अन्य प्राधिकारी या व्यक्ति में निहित थीं, नियत दिन से सिक्किम राज्य की सरकार में निहित हो जाएंगी;

(झ) सिक्किम राज्य में समाविष्ट राज्यक्षेत्रों में नियत दिन से ठीक पहले उच्च न्यायालय के रूप में कार्यरत उच्च न्यायालय नियत दिन को और से सिक्किम का उच्च न्यायालय समझा जाएगा;

(ञ) सिक्किम राज्य के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र सिविल, दांडिक और राजस्व अधिकारिता वाले सभी न्यायालय तथा सभी न्यायिक, कार्यपालक और अनुसचिवीय प्राधिकारी और अधिकारी नियत दिन को और से अपने-अपने कृत्यों को इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, करते रहेंगे;

(ट) सिक्किम राज्य में समाविष्ट राज्य क्षेत्र में या उसके किसी भाग में नियत दिन से ठीक पहले प्रवृत्त सभी विधियां वहां तब तक प्रवृत्त बनी रहेंगी जब तक किसी सक्षम विधान मंडल या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उनका संशोधन या निरसन नहीं कर दिया जाता है;

(ठ) सिक्किम राज्य के प्रशासन के संबंध में किसी ऐसी विधि को, जो खंड (ट) में निर्दिष्ट है, लागू किए जाने को सुकर बनाने के प्रयोजन के लिए और किसी ऐसी विधि के उपबंधों को इस संविधान के उपबंधों के अनुरूप बनाने के प्रयोजन के लिए राष्ट्रपति, नियत दिन से दो वर्ष के भीतर, आदेश द्वारा, ऐसी विधि में निरसन के रूप में या संशोधन के रूप में ऐसे अनुकूलन और रूपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन हों और तब प्रत्येक ऐसी विधि इस प्रकार किए गए अनुकूलनों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और किसी ऐसे अनुकूलन या उपांतरण को किसी न्यायालय में प्रश्रगत नहीं किया जाएगा;

(ड) उच्चतम न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय को, सिक्किम के संबंध में किसी ऐसी संधि, करार, वचनबंध या वैसी ही अन्य लिखत से, जो नियत दिन से पहले की गई थी या निष्पादित की गई थी और जिसमें भारत सरकार या उसकी पूर्ववर्ती कोई सरकार पक्षकार थी, उत्पन्न किसी विवाद या अन्य किसी विषय के संबंध में अधिकारिता नहीं होगी, किंतु इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह अनुच्छेद १४३ के उपबंधों का अल्पीकरण करती है;

(ढ) राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा, किसी ऐसी अधिनियमिति का विस्तार, जो उस अधिसूचना की तारीख को भारत के किसी राज्य में प्रवृत्त है, ऐसे निर्बन्धनों या उपांतरणों सहित, जो वह ठीक समझता है, सिक्किम राज्य पर कर सकेगा;

(ण) यदि इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी उपबंध में से किसी उपबंध को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो राष्ट्रपति, आदेश द्वारा, कोई ऐसी बात (जिसके अंतर्गत किसी अन्य अनुच्छेद का कोई अनुकूलन या उपांतरण है) कर सकेगा जो उस कठिनाई को दूर करने के प्रयोजन के लिए उसे आवश्यक प्रतीत होती है :

परंतु ऐसा कोई आदेश नियत दिन से दो वर्ष की समाप्ति के पश्चात नहीं किया जाएगा;

(त)सिक्किम राज्य या उसमें समाविष्ट राज्यक्षेत्रों में या उनके संबंध में, नियत दिन को प्रारंभ होने वाली और उस तारीख से जिसको संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७५ राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त करता है, ठीक पहले समाप्त होने वाली अवधि के दौरान की गई सभी बातें और कार्रवाइयां, जहां तक वे संविधान (छत्तीसवां संशोधन)

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