अशान्त पूर्वोत्तर और अनजान भारत

‘मुस्लिम आबादी बढ़ाओ’ इस अभियान को तीव्र बनाते हुए आज असम के ९ जिले मुस्लिम बहुल बने हैं। असम का धुब्री जिला जहां साढे दस हजार मुस्लिम मतदाता हैं, यहां रहनेवाला हिंदू समाज किस प्रकार असुरक्षित और अशांत वातावरण में जीवन बिताता होगा, इसकी हम कल्पना कर सकते हैं।

      ह भूमि कितनी सुंदर है, पर्वत की एक माला है

      पाती प्रथम है सूर्यकिरण, यह कहलाती पूर्वांचल॥

भारत मां का आंचल अर्थात् उत्तर पूर्व क्षेत्र भौगोलिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से एक अनोखा भू-भाग है। पूर्व हिमालय और उसकी दक्षिणी शाखाएं, दक्षिणी भीतरी और दक्षिणी पूर्व एशिया को विभाजित करती है। तीन उपात्यका में ब्रह्मपुत्र, इम्फाल और बराक नदियां शामिल हैं। जो मानव सभ्यता को अभिव्यक्त करती हैं। असम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर और मिजोरम इन सात राज्यों के कारण उत्तर पूर्वांचल को सात बहनों का राज्य भी कहा जाता है। यह पूरा क्षेत्र समतल भाग, पहाडियां, घाटियां और दुर्गम वनों से आच्छादित है। यहां तीन प्रकार के जनसमुदाय निवास करते हैं, विभिन्न जनजातियां, अजनजातीय और चाय बागान में करने वाला मजदूर वर्ग। आर्थिक  समृद्धता से देखा जाए तो अतुलित वन संपदा, चाय, गैस-तेल उत्पादन, खनिज संपदा के धनी ऐसा क्षेत्र स्वतंत्रता के बाद भी उपेक्षित ही रहा। परंतु भारत का दुर्भाग्य उत्तर पूर्वांचल के बारे में शेष भारत के लोगों को जितनी जानकारी होनी चाहिए थी उतनी नहीं है। इस क्षेत्र की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और भौगोलिक परिस्थितियां क्या हैं? तथा यह क्षेत्र किन समस्याओं के कारण अशान्त है इसकी अनुभूति सारे देश को होना आवश्यक है। शेष भारत के लोग सात राज्यों के नाम, इनकी जानकारी, भौगोलिक परिस्थिति तथा यहां की समस्याओं से अपरिचित हैं। केवल इतना ही पता है कि उत्तर पूर्वांचल देश का समस्या बहुल क्षेत्र है, यहां अलगाववाद, आतंकवाद तथा घुसपैठ जैसी समस्याएं हैं परंतु इन राष्ट्रविघातक शक्तियों के कारण भारत महासंकट के घेरे में है इससे समूचा भारत अनजान है। उत्तर पूर्वांचल के व्यक्ति जब भारत के अन्य प्रान्तों में जाता है तो उनके प्रति धारणा या देखने का दृष्टिकोण चीनी  या मंगोलियन लोगों को देखने जैसा होता है। इससे उनका मन व्यथित होता है। अनेकों की ऐसी धारणा है उत्तर पूर्वांचल अर्थात् जंगल, यहां हिंसक प्राणी हैं। भ्रमण करने यात्री जब असम में आते हैं तो उनके मन में यह भ्रम रहता है कि गम बुट के बिना यहां चल नहीं सकते हैं। इस प्रकार की गलत धारणाएं होने के कारण शेष भारत को पूर्वांचल की परिस्थिति से अवगत कराने की आवश्यकता है।

 अ-सम- असम

अंग्रेज जब भारत में आए थे तब उन्होंने असम की धरती पर भी अपने कदम रखे। तब यह क्षेत्र सात राज्यों में विभाजित नहीं था। सभी को मिलाकर असम ही कहा जाता था। ऊं चा-नीचा, असमतल होने के कारण असम कहलाता था। यह क्षेत्र शेष भारत से अत्यंत दुर्गम क्षेत्र था। यातायात के साधनों के अभाव के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य के दृष्टि से वंचित था। अंग्रेजों ने यहां विषमता और अलगाववाद का बीजारोपण किया। अंग्रेजी शासन काल में असम नाम का एक प्रान्त स्वतंत्र भारत में जनजाति, संस्कृति और भाषा आदि विभिन्न आधारों पर ७ राज्यों में विभाजित हुआ। अंग्रेजों की स्वार्थपरक साम्राज्यवादी नीति के अंतर्गत ईसाईकरण के षड्यंत्र से स्वतंत्र भारत में भी हम मुक्त नहीं हो सके। परिणामस्वरूप आज नागालैंड, मिजोरम और मेघालय ईसाई बहुल क्षेत्र बन गए है। आज अरुणाचल भी उसी मार्ग पर कुछ अंश में अग्रसर है।

 घुसपैठ से घिरा है पूर्वांचल

त्रिपुरा, बांग्लादेशियों की घुसपैठ की समस्याओं से ग्रस्त है। असम भी घुसपैठियों, आतंकवाद तथा भाषाविवाद से पीडित है। आज घुसपैठ यह केवल उत्तर पूर्वांचल का ही संकट नहीं है, यह भारत वर्ष का महासंकट है। आज बांग्लादेशी मुस्लिम मजदूरी करने के माध्यम से भारत के हर प्रान्त में लाखों की संख्या में बसे हैं। कुल मिलाकर परिस्थितियां तथा अलगवादी शक्तियां संपूर्ण उत्तर पूर्वांचल को आतंकवाद का गढ़ बनाकर हिंदू जनसंख्या को अहिंदू बनाने तथा भारतविरोधी आंदोलन को निरन्तर तेज करती जा रही है। शत्रु का शत्रु अपना मित्र होता है इस नीति का अनुकरण कर ईसाई और मुसलमानों ने आपस में समझौता कर लिया है।

 लव जिहाद और लैंड जिहाद

‘मुस्लिम आबादी बढ़ाओ’ इस अभियान को तीव्र बनाते हुए आज असम के ९ जिले मुस्लिम बहुल बने हैं। असम का धुब्री जिला जहां साढे दस हजार मुस्लिम मतदाता हैं, यहां रहनेवाला हिंदू समाज किस प्रकार असुरक्षित और अशांत वातावरण में जीवन बिताता होगा, इसकी हम कल्पना कर सकते हैं। इस जिले के निकटवर्ती मेघालय का गारो पहाड़ जिला भी आज इसका शिकार बन गया है। ग्वालपाडा, नगाव तथा दक्षिण असम के कचार, हाईलाकांदी, और करीमगंज जिलों में आज परिस्थिति अस्थिर और अशांत बनती जा रही है। लव जिहाद और लैंड जिहाद के आधार पर मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है। वे अब नगा मिजो खासी लडकियों से विवाह करके घर-जमाई बनकर स्थायी रूप में जम रहे हैं। कुल मिलाकर ईसाई और मुस्लिम दोनों मिलकर भारत के विरुद्ध आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। तीसरी शक्ति के रूप में कम्युनिस्ट चीन इन आतंकवादियों को शस्त्र एवं सैन्य प्रशिक्षण दे रहा है। इस प्रकार ईसाई, मुसलमान और कम्युनिस्ट विश्व में अन्यत्र परस्पर विरोधी होने के बावजूद भारत के उत्तरपूर्व क्षेत्र में परस्पर सामंजस्य एवं समन्वय स्थापित कर षडयंत्र के रूप में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। असम में उल्फा – युनायटेड लिबरेशन ङ्ग्रं ट ऑङ्ग  असम, एन.डी.एङ्ग. बी. जैसे संगठनों ने स्वतंत्र  बोडोलैंड की मांग को लेकर आंदोलन खड़े किए हैं। हत्याएं अपहरण, बंद  की स्थिति से असम अशांत रहा। १९९० में संघ के तीन प्रचारकों की हत्या भी हुई। परंतु आज असम की परिस्थिति बदल रही है। नागालैंड में एन.एस.सी.एन. नेशनल सोशलिस्ट काऊंसिल ऑङ्ग  नगालैंड आज इनके दो गुट है। शुरू में यह गुट चीन के माओवाद से प्रभावित हुआ और उनसे सहायता भी प्राप्त की, बाद में दो गुटों में बंट गया। एक गुट नेता खाफलांग बना जो मूलतः म्यांमार निवासी है और दूसरे गुट का नेता मूदवा नेता जो मणिपुर के तांकुल समुदाय का है। हेग (हालण्ड), जिनेवा, न्यूयार्क में इन विद्रोहियों के कार्यालय हैंै। इसके अलावा बैंकाक(थायलंड), मलेशिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूतान में इस गिरोह के कार्यालय है इनका एक ही नारा है -नगालैंड ङ्ग ॉर क्राइस्ट। नगाप्रदेश न कहते हुए नगालैंड नाम देना यह ऐतिहासिक भूल कही जा सकती है क्योंकि हमारे किसी प्रदेश के पीछे लैंड शब्द नहीं है, यह शब्द भी मिशनरीयों के मस्तिष्क की उपज है। ग्रेटर नगालैंड की मांग लेकर असम, मणिपुर तथा अरुणाचल प्रदेश के कुछ जिलों को ग्रेटर नगालैंड के साथ जोडना चाहते हैं। पर तीनों राज्यों ने साङ्ग  शब्दों में एक इंच भी भूमि को देने से इन्कार कर दिया है। इन सब परिस्थितियों के कारण आज मणिपुर भी अशांत है। क्षेत्रफल के हिसाब से मणिपुर तीन चौथाई पहाड़ी और एक चौथाई समतल है। पहाड़ी क्षेत्र तथा समतल क्षेत्र वैष्णव पंथ से प्रभावित है। ईसाईकरण के कारण दोनों में संघर्ष खड़ा है। विगत अनेक वर्षों से प्रतिदिन अलग अलग मांग लेकर आंदोलन चलते हैं। भावनिक आधार पर विद्यार्थियों तथा महिलाओं को अपना हथियार बनाकर यह आंदोलन कई दिनों तक चलते रहते है। परिणामस्वरूप तीन चार महीने तक भी शिक्षा संस्थाएं बंद रहती है, इकोनामी ब्लॉकेज चलता रहता है। मणिपुर यातायात के दृष्टि से शेष भारत से कटा हुआ रहता है। उस समय एक गैस सिलेंडर का मूल्य दो हजार रूपये तक पहुंच जाता है, यह भी आंदोलन का एक अस्त्र है। परंतु इससे अर्थव्यवस्था पर भयंकर परिणाम होता है।

चीन से सहायता- पी.एल.ए. पीपुल लिबरेशन आर्मी मणिपुर में सक्रिय आतंकवादी संगठन है जिनकी सक्रिय गतिविधियों के कारण वहां की स्थिति अशांत और अस्थिर है। इसके अलावा मुस्लिम घुसपैठियों की समस्या भी मणिपुर के लिए एक चुनौती है। मिजोरम में मिजो नेशनल ङ्ग्रंट,त्रिपुरा में एन.एल.एफ.टी. जैसे आतंकवादी संगठन सक्रिय थे, जिन्होंने वहां की परिस्थिति को एक समय अशांत बनाया था।  समय समय पर पूरे उत्तर पूर्व क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर जातीय संघर्ष खड़े करने का षड़यंत्र इन राष्ट्रघाती शक्तियों तथा अलगाववादियों के माध्यम से चल रहा है। हमार-डिमासा, नागा- डिमासा, कारबी-नगा, कारबी-डिमासा, बोडो आदिवासी आज भी कोकराझाड में आदिवासी समाज और रियांग समाज त्रिपुरा में निर्वासित शिबिरों में रह रहा है। ईसाईकरण के कारण मिजो समाज में इतनी अधिक असहिष्णुता है कि वे अन्य पंथ के लोगों को सहन नहीं करते हैं। इसका जीता जागता उदाहरण है किसदियों से मिजोरम में रहे रियांग हिंदू समाज को राज्य से बलपूर्वक निष्कासित कर दिया है। वे विगत १२ वर्षों से त्रिपुरा में शरणार्थी बनकर रह रहे हैं। जिससे उन्हें मत देने का अधिकार नहीं है। शिक्षा तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा यह समाज स्वतंत्र भारत में अशांत और अस्थिर जीवन जी रहा है।

 चीन की वक्रदृष्टि

जहां सूर्य की प्रथम किरणें निकलती हैं ऐसा अरुणाचल, जो १९७२ तक नेफा के नाम से जाना जाता था। १९८७ में अरुणाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा मिला। उत्तर पूर्वांचल के अन्य राज्यों के तुलना से यह क्षेत्र शांत रहा। यहां के राजनैतिक परिवर्तन भी शांतिपूर्वक संपन्न हुए हैं। यहां जाने के लिए इनर लाइन परमिट चाहिए। जिसके कारण राष्ट्र विघातक तत्वों  का यहां प्रवेश करना इतना आसान नहीं है। पर आज चीन राष्ट्र सीमावर्ती राज्य होने के कारण वहां ची की वक्रदिृष्ट छायी हुई है।

धोखा देश की अखंडता को

कुल मिलाकर कुछ वर्षों से अराष्ट्रीय तत्त्व जो अलगाववाद, अराजकता आतंक के आधार पर उत्तर पूर्वांचल को  देश की मुख्यधारा से अलग करते हुए देश की अखंडता को धोखा निर्माण करने का प्रयत्न कर रहे हैं। सभी आतंकवादी संगठन, दुकानदारों, व्यापारिओं, ठेकेदारें से तथा सरकारी कर्मचारियों से लाखों रुपये वार्षिक अनिवार्य टॅक्स के रुप में वसूल करते है। विरोध होन पर अपहरण, हत्याएं तक कर लेते है। उदाहरण के लिए १९९३ में सितम्बर में डिमापुर जैसे भीडभाड वाले व्यस्त नगर में आयकर कमिश्नर की गोली मार कर हत्या हुई थी। साधारण पान दुकान वाले को भी सालाना टॅक्स चुकाना पडता है। इससे यहां का हर परिवार अंदर ही अंदर घुट रहा है। भय के कारण पुलिस रिपोर्ट करने का साहस भी वे कर नहीं पाते। जिससे व्यापार ठप होता है। अवैध रूप से जंगल से लकडी काट कर बेचते हैं। लष्करी, नशीले पदार्थ जैसे हेराईन, ब्राऊन शुगर, गांजा आदि का खुले आम व्यापार करके करोड़ो रुपये कमाते हैं। सामान्य व्यक्ति से लेकर मंत्री विधायकों से लाखों रुपये लूट रहे हैं। इसको कोई रोक नहीं सकते।

   घाव हाथ में तो दवा पेट में क्यों?

भौगोलिक दृष्टि से संवेदनशील सीमा पर स्थित जंगलों में, पहाडों में बसे ग्रामीण लोग स्वतंत्रता के ६७ वर्षों के बाद भी स्वतंत्रता का अर्थ नहीं समझते है, वे आदिमानव का जीवन जीने में विवश है। सड़क और शिक्षा का कोई नामोनिशान नहीं है। चिकित्सा क्षेत्र में प्रथमोपचार की व्यवस्था के लिए भी दस मील चलकर आते है। दवा न मिलने के कारण मृत्यु भी होती है। ऐसे अनेक पहाडी वनक्षेत्र हैं, जहां समाज ने डॉक्टरों को भी देखा नहींहै। विविध दुर्गम क्षेत्रों में चिकित्सा शिविरों का आयोजन किया जाता है तब स्वास्थ्य विषयक अज्ञान का पता चलता है। अरुणाचल प्रदेश के एक मेडिकल कैम्प में एक पेशंट के हाथ में घाव होने के कारण सड गया था। बैण्डेज करते हुएं डॉक्टर ने उसे एण्टिबॉयटिक्स की गोलियां दी थीं। इस व्यक्ति ने घर जाने के बाद विचार किया डॉक्टर की कुछ गलती है, घाव तो हाथ को हुआ है पेट को नहीं। इसलिए उसने वहां गोलियां मुंह से न खाते हुए कूटकर उसका चूर्ण बनाकर घाव में लगाया था, इस कारण वह सड़ गया था। अज्ञान की यह परिसीमा है।

असम में कोकराझार जिले में कचुगाव में २००४ में जब कैम्प हुआ ८०% लोगों ने पहली बार डॉक्टर देखा। नगालैंड के शिविर में लगभग ६० पेशंट के आंखों में मोतियाबिंदु है, ऐसा ध्यान में आया जिनके शस्त्रक्रिया की आवश्यकता थी। पर यह मानसिकता बनाने के लिये काफी समझाना पड़ा। कुछ लोगों के ऑपरेशन हुए कि उनके आंखों से स्पष्ट दिखने लगा तब अन्य लोगों को अज्ञान दूर हुआ।

 कोई धर्म तो कोई जमीन हड़पता है

इस स्थिति को अनुभव करने के बाद ध्यान में आया यह अज्ञान कोन दूर करेगा? ईसाई मिशनरी इनका धर्म हड़पता है, तो मुसलमान जमीन हड़पता है, आतंकवादी अलगाववाद खड़ा करते है। भारत का यह महत्वपूर्ण क्षेत्र आज दयनीय अवस्था में है। कश्मीर घाटी को केवल पाकीस्तान से सामना करना है किंतु चीन, म्यांमार, बांग्लादेश से घिरे पूर्वांचल की वेदना यह संपूर्ण भारत की वेदना है। शेष भारत को इस परिस्थिति को समझना होगा यह भारत का अविभाज्य अंग ही रहेगा। हमें पूर्वांचल की ओर चलना पडेगा। अनेक प्रयत्नों के बाद यात्री पर्यटन के लिए यहां आ रहे है। यह प्रमाण बढ रहा है। भारत मेरा घर- इस योजना के अंतर्गत पूर्वांचल से भारत दर्शन के माध्यम से भारतभक्ति की भावना जग रही है। आज शिक्षण के उद्देश्य से लाखों विद्यार्थी भारत के विभिन्न प्रांतों में जाने का प्रमाण बढ गया है यह एक शुभ संकेत है। परस्परों के प्रति एकात्मता का भाव जगाते हुए पूर्वांचल की परिस्थिति को सही अर्थ में समझने की आवश्यकता है।

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