
यह युद्ध पाकिस्तान द्वारा हम पर थोपा गया था और यह पाकिस्तान की सोची समझी साजिश थी, जब एक तरफ प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बस डिप्लोमसी में व्यस्त थे तब जनरल मुशर्रफ अपने युद्ध के नक्शे पर काम कर रहा था। भारत दोस्ती की राह तैयार कर रहा था जबकि पाकिस्तान बारुद की सड़क बनाने में लगा था। पाकिस्तान ने लगभग 3000 मुजाहिदों को सेना की चौकियों में भेजा था।
उस समय भारत के पास कोई उपग्रह मौजूद नहीं था इसलिए भी हम खुफिया जानकारी से वंचित रह गये थे। भारत की खूफिया एजेंसियों ने भी कोई रिपोर्ट नहीं दी जिसकी वजह से सेना को उसकी कीमत चुकानी पड़ी। इस युद्ध में भारतीय सेना ने घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए लगभग पांच इंफेंट्री डिवीजन, पांच स्वतंत्र ब्रिगेड, 44 अर्ध सैनिक बलों की बटालियन और अन्य यूनिटों ने अपने दमखम तथा वायु सेना की मदद से हिम-आच्छादित कारगिल की विभिन्न चोटियों से पाकिस्तान के मंसूबों को ध्वस्त कर दिया था। भारत ने इस थोपी हुई जंग की कीमत जरूर चुकाई, लेकिन समय रहते सभी चौकियों को वापस अपने कब्ज़े में करने में भारतीय सेना को सफलता मिली। 14 जुलाई को तत्कालीन प्रधानमंत्री ने ऑपरेशन विजय की सफलता की घोषणा की और 26 जुलाई को भारतीय सेना मुख्यालय ने 1042 पाकिस्तानी सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि की और ऑपरेशन विजय की समाप्ति हुई।
भारत पाकिस्तान के बीच लड़ा गया यह युद्ध सबसे ऊंची पर्वत मालाओं में हुआ था। इससे पहले इतनी ऊंचाई पर कोई भी युद्ध नहीं हुआ था। इस युद्ध में पाकिस्तान के 4500 से अधिक सैनिक मारे गए जबकि भारत की तरफ से शहीद होने वाले सेना के अधिकारी एवं जवानों की कुल संख्या 543 थी और करीब 1300 से अधिक सैनिक घायल हुए थे।
आज देश की सुरक्षा स्थिति और भी बिगड़ चुकी है इसके लिए बड़े पैमाने पर सेना के साथ साथ नागरिकों की भी भारत को आवश्यकता है। 26 जुलाई “कारगिल विजय दिवस” के निमित्त देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले सशस्त्र दलों के वीर अधिकारी और सैनिकों को देशवासियों की ओर से विनम्र श्रद्धांजली।