कुंवर उदय सिंह के लिए पन्नाधाय का बलिदान

महाराणा प्रताप की वीरगाथा तो सभी को पता है उनकी कविताएं और कहानियां भी बहुत मशहूर है जिन्हे सुन आज भी रक्त में ज्वार उठने लगता है। महाराणा उदय सिंह उसी वीर सपूत के पिता थे। महाराणा उदय सिंह का जन्म 4 अगस्त 1522 को राजस्थान के चित्तौड़गढ़ दुर्ग में हुआ था। इनके पिता राणा संग्राम सिंह (सांगा) और इनकी माता कर्णावती देवी थी। जिस दौर में इनका जन्म हुआ वह मुगल शासन की शुरुआत थी जब पूरे देश में मुगल सुल्तान भारत को जीतने के लिए निकले थे। हिन्दू राजाओं पर सबसे पहले हमला किया जाता था क्योंकि उनके पास बाकी सभी से बड़ा साम्राज्य था। 
 
 
हमने किताबों में कर्णावती और हुमायूं की राखी वाली कहानी भी जरुर पढ़ी होगी वह भी इन्ही के समय की बात थी जब चित्तौड़ पर बहादुर शाह ने हमला किया तो उदय सिंह की माता कर्णावती ने हुमायूं को पत्र लिख भाई कहा और मदद मांगी थी। राणा सांगा की मौत के बाद मेवाड़ के उत्तराधिकारी कुंवर उदय सिंह की जान पर भी खतरा मंडराने लगा था जिसके बाद उनकी रक्षा के लिए पन्नाधाय को उनकी सुरक्षा का काम दिया गया जिसे पन्नाधाय ने बखूबी निभाया और आज इतिहास में पन्नाधाय का नाम पूरी इज्जत से लिया जाता है। बनवीर जब कुंवर उदय सिंह को जान से मारने के लिए पन्नाधाय के कमरे मे पहुंचा तो पन्नाधाय ने अपने बेटे चंदन को सोता हुआ दिखा दिया और कहा कि यही कुंवर उदय सिंह है। बनवीर ने पन्नाधाय के सामने ही उनके बेटे की हत्या कर दी और वहां से निकल गया। पन्नाधाय मेवाड़ के राजा को बचाने में सफल रही और वहां से कई सालों के लिए उदय सिंह को लेकर छुप गयी।  
 
 
सन 1537 में उदय सिंह को मेवाड़ का महाराजा बनाया गया लेकिन अकबर की नजर बहुत समय से चित्तौड़ पर थी और उसका आक्रमण लगातार जारी था आखिर में जब उदय सिंह को यह समझ गया कि अब वह अकबर को नहीं हरा सकेंगे तो उन्होने चित्तौड़ को छोड़ दिया और परिवार के साथ अरावली के पर्वतों पर चले गए जहां उन्होंने उदयसागर सरोवर का निर्माण किया और बाद में उसे उदयपुर नाम दिया गया जो आज राजस्थान का एक प्रसिद्ध शहर है। राणा उदय सिंह का 1572 में निधन हो गया।  
 
 
राजा उदय सिंह की कुल 7 रानियां थी और उनसे 24 पुत्र थे। उदय सिंह को अपने सबसे छोटे पुत्र जगमल से बहुत प्यार था और वह उसे ही अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना चाहते थे लेकिन राज्य की जनता से उसे अपना राजा मानने से इंकार कर दिया। अपनी वीरता और प्रेम के बल पर प्रताप सिंह को राजा बनाया गया जो बाद में महाराणा प्रताप के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुए। 

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