गोरे व्यक्ति का बोझ और आतंकवादी, सरीखे ही

तालिबानियों को समाप्त करने का लक्ष्य लेकर अमेरिका 20 वर्ष पूर्व अफगानिस्तान में दाखिल हुआ। परंतु 20 वर्ष बाद उन्ही तालिबानियों के हाथों अफगानिस्तान को सौंपकर अमेरिकी सेना स्वदेश वापस लौट गई है। इससे अमेरिका की विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा पर अनेक प्रश्न चिन्ह लग गए हैं। उनकी चर्चा हो रही है। परंतु अमेरिका की प्रतिष्ठा एवं विश्वसनीयता से बढ़कर जो प्रश्न सबसे बड़ा है कि अलग-अलग देशों में घुसकर उत्पात मचाने का अपना कार्यक्रम अमेरिका कब छोड़ेगा?

पहले विश्वयुद्ध के बाद से विश्व शांति की चर्चा पूरे विश्व में गंभीरता से हो रही है। मानव जाति ने स्वयं को युद्ध से परे रखना चाहिए। युद्ध में बहुत विध्वंस होता है, बड़े पैमाने पर प्राण हानि होती है, संपत्ति का नाश होता है, अनेक देश  अस्थिर होते हैं, कई जगह अकाल पड़ता है, बड़े पैमाने पर रोग फैलते हैं, और उसमें करोड़ों व्यक्ति मरते हैं। यह सब रुकना चाहिए। विश्वशांति का एक सपना संजो कर उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने यूरोपियन देशों के सामने एक 14 सूत्रीय कार्यक्रम पेश किया था। वह 4 तत्वों पर आधारित था। उसमें लीग ऑफ नेशन याने राष्ट्र संघ की स्थापना का सूत्र भी शामिल था। परंतु वुड्रो विल्सन का सपना साकार नहीं हुआ। अमेरिकन सीनेट ने उसे मंजूरी नहीं दी। लीग ऑफ नेशन का निर्माण हुआ परंतु उसमें अमेरिका नहीं था। सन 1919 में व्हसाई में समझौता हुआ उसमें जर्मनी पर अनेक अपमानजनक शर्तें थोपी गई। उसी में से हिटलर का जन्म हुआ और युद्ध समाप्त होने की बजाए उससे भी भीषण द्वितीय महायुद्ध हुआ।दूसरे महायुद्ध ने अमेरिका और रशिया को महाशक्ति बना दिया। इन दो महाशक्तियों में वर्चस्व की तीव्र स्पर्धा प्रारंभ हो गई और छोटे-छोटे देशों में युद्ध शुरू हो गए।

अमेरिका और रूस दोनों जगह शस्त्र निर्माण का बहुत बड़ा व्यवसाय है। युद्ध शुरू रहेंगे तो अस्त्र शस्त्रों की मांग बनी रहती है। युद्ध समाप्त होने के बाद शस्त्रों के कारखाने बंद करने पड़ेंगे। शस्त्र कारखाने अमेरिकी अर्थ व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। अमेरिका इसे टूटने नहीं देगा। अमेरिकन विदेश नीति का मुख्य सूत्र साधन संपन्न देशों से कच्चा माल सस्ते दाम पर खरीदना और उसके बदले उन्हें शस्त्रास्त्र बेचना। खाड़ी के सभी देश तेल के कारण समृद्ध हैं। यह तेल धन अमेरिका के लिए आवश्यक है। अधिकतर देशों के तेल शोधन कारखानों में अमेरिकन कंपनियां शामिल हैं। तेल की बिक्री से अतोनात पैसा खाड़ी देशों को प्राप्त होता है। इन पैसों का बड़ा भाग अमेरिका से शस्त्रास्त्र खरीदने में ये देश खर्च करते हैं। ईरान, इराक, सऊदी अरेबिया, कुवैत, लीबिया, इत्यादि देशों का तेल अमेरिका कई दशकों से लूट रहा है।आज ईरान और अमेरिका की नहीं बनती परंतु खुमैनी के शासन के पूर्व ईरान अमेरिका के गले का ताबीज था। तेल के बदले बड़ी मात्रा में शास्त्रास्त्र अमेरिका ने ईरान को दिए।

वुड्रो विल्सन जब विश्वशांति का मसौदा रख रहे थे उस समय अरब देशों का बंटवारा छोटे बड़े देशों में कैसे करना इसका गुप्त समझौता करने में ब्रिटेन एवं फ्रांस लगे थे।इस समझौते का नाम है ‘साइकस- पिको समझौता’ ये दोनों राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने अरबों की भूमि पर आड़ी तिरछी रेखाएं खींचकर इराक,जार्डन, सऊदी अरब, कुवैत, सीरिया इत्यादि देश निर्माण किए और उसके बाद उन्हें आपस में लडाया। आप लढिये,हम आपको शास्त्रास्त्र देते हैं आप हमें तेल दीजिए।

बलशाली होने के बाद जिन राष्ट्रों ने अमेरिका का वर्चस्व स्वीकार नहीं किया वे अमेरिका के लिए शत्रु बन गए। पहले ईरान शत्रु बना फिर इराक। इसी क्रम में लीबिया और सीरिया शत्रु बने।इरान छोड़कर इराक, लीबिया, और सीरिया पर अमेरिका ने हमला किया। इराक और लीबिया की सत्ता को उखाड़ फेंका। सद्दाम हुसैन और कर्नल गद्दाफी को मार डाला। सीरिया में लोग आपस में ही लड़ रहे हैं। सत्ताओं  को अस्थिर करने में अमेरिकी गुप्तचर संस्था सी.आई.ए सतत सक्रिय रहती है। अरबों डालर का उसका बजट होता है। सत्ताओं को अस्थिर करने का तंत्र उन्होंने विकसित किया है। स्थापित सत्ता के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए धन का उपयोग, महत्वाकांक्षा निर्माण करना, जन आंदोलन खड़ा करने के लिए धन की आपूर्ति, आवश्यक हो तो भाड़े की सैनिक भेजना, विद्रोह करने वालों को शस्त्र की आपूर्ति, यह सब काम भी सी.आई.ए करती रहती है। अरब देशों में भी अमेरिका यही करता रहता है।
” द व्हाइट मैन बर्डन” अर्थात गोरे व्यक्ति का बोझ यह एक वाक्प्रचार है। वह सभी गोरी जमातों पर लागू होता है। इसका अर्थ यह होता है कि संसार को संस्कारित करने की जवाबदारी प्रकृति ने गोरे व्यक्तियों के कंधों पर डाली है। संस्कार शील बनाने के उनके कुछ सूत्र हैं। 1) सभी देशों में लोकतांत्रिक प्रणाली हो और वह भी अमेरिका या ब्रिटेन की तर्ज पर हो।
2)सभी देशों ने पश्चिमी पोशाक पहननी चाहिए और उनके जैसा खानपान रखना चाहिए।
3) व्यक्ति स्वातंत्र्य अमर्यादित होना चाहिए।
4) पाश्चात्य संगीत और शिष्टाचार का अवलंबन अलग-अलग समुदायों द्वारा करना चाहिए।
यदि ऐसा होता है तो विश्व एक सरीखा होगा और मानव सुसंस्कृत बनेगा। गोरे व्यक्ति का बोझ का यह अर्थ है। यह भार ढोने का नेतृत्व अमेरिका करता रहता है।
अफगानिस्तान में अमेरिका जब घुसा तब उसका उद्देश्य ओसामा बिन लादेन और उसके आतंकवादी संगठन को जो तालिबानियों का समर्थक था उसे समाप्त करना था। पहले 2 वर्षों में तालिबानियों की सत्ता चली गई। ओसामा बिन लादेन भाग गया। युद्ध के चालू रहते अमेरिका उसे नहीं पकड़ पाया। क्यों नहीं पकड़ पाया उसकी मनोरंजक कथाएं हैं। बाद में एबटाबाद में उसके घर पर अमेरिकन कमांडो ने हमला कियाऔर उसे मार डाला। अमेरिका पर आतंकवादी हमला करने वाला मारा गया, अमेरिका का उद्देश्य समाप्त हो गया, परंतु ऐसा हुआ नहीं। गोरे व्यक्ति के बोझ का भूत वैसा ही था। अमेरिका ने अफगानिस्तान का पुनर्निर्माण शुरू किया। पश्चिमी पद्धति का लोकतंत्र लाने का प्रयत्न किया। स्त्रियों को मुक्त स्वातंत्र्य दिया। अफगानी लोगों को क्या चाहिए इसका विचार करने के गरज अमेरिका ने महसूस नहीं की। जो नहीं चाहिए वह लादने का प्रयत्न किया और उसी में अमेरिका फंस गया।

अफगानिस्तान में आतंकवादी सत्ता है, मानवीय मूल्यों को रौंदने वाली है, इराक में भी यही तर्कशास्त्र बताया गया। यदि थोड़ा पीछे जाकर देखें तो 1945 से 53 का रशिया मानवतावादी था क्या? स्टालिन ने तो अपने ही देश के दो करोड़ लोगों को मार डाला। तब विश्व को सुसंस्कृत बनाने का गोरे व्यक्ति का बोझ कोका कोला पी रहा था क्या? रशिया ने 1950 के साल में पश्चिमी जर्मनी को घेरकर अनाज, पानी, बिजली,काटकर लोगों को मारने का प्रयत्न किया। तब रशिया पर बम वर्षा क्यों की गई? वह गोरा और ईसाई होने के कारण वहां अमेरिका का न्याय अलग था। जापान पीला है, वह शरण नहीं आ रहा है इसलिए उस पर दो परमाणु बमों का प्रयोग किया गया। रशिया अमानवीय काम करता है फिर उसे सुधारने के लिए परमाणु बम का उपयोग क्यों नहीं किया गया? ऐसे अनेक प्रश्न निर्माण होते हैं।
इराक पर हमले से इसिस का जन्म हुआ। इसिस  यह आतंकवादी संगठन के रूप में सामने आया। दो-तीन वर्षों पूर्व तक इसिस के हत्याकांड के बहुत से वीडियो वायरल होते थे। उसके नेता बगदादी की अमेरिका ने हत्या कर दी। अफगानिस्तान पर हमला कर तालिबानी समाप्त नहीं किये जा सके। मरे हुए तालिबानियों के रक्त बीज से नए तालिबानी जन्म लेने लगे। हमारी पुराण कथाओं में रक्तबीज से असुर निर्माण होने की बहुत सी कथाएं हैं, वह प्रत्यक्ष में होती दिखाई दी।ये सब तालिबानी इसिस के जिहादी, इस्लामिक ब्रदरहुड के जिहादी, दिखने में तो उनकी पैदाइश इस्लामी तत्वज्ञान से हुई लगती है परंतु इन्हें वास्तविक जन्म अमेरिका ने दिया है। किसी भी देश को स्थिर नहीं होने देना, उसे हमेशा  अस्थिर रखना, सीमा के बाहर उसे आर्थिक रूप से संपन्न या शस्त्र संपन्न नहीं होने देना यह अमेरिका का लक्ष्य है। यदि वैसे हो गया तो अपने (अमेरिका) के प्रभाव क्षेत्र के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता है इसलिए अमेरिका किसी ना किसी प्रकार खुराफातें निकालकर विश्व को युद्ध ग्रस्त रखता है।
विश्व शांति का विचार करते समय जितना खतरा आतंकवादियों से लगता है उतना ही खतरा इस गोरे व्यक्ति के बोझ से भी है। ये दोनों ही प्रवृत्तियां असहिष्णु ही हैं। दूसरे पर लादने वाली हैं। अपने विचारों के विरोधियों के जीवित रहने के अधिकारों को नकारने वाली हैं और उनका संघर्ष सतत चालू है।
इसमें से भारत को मार्ग निकालना होगा। हमने कभी भी विश्व को सुधारने का बोझ अपने कंधों पर नहीं लिया। विश्व में विविधता रहेगी और प्रत्येक मानव समूह अपनी अपनी विशिष्टता से जीवनयापन करेगा। किसी को राजशाही पसंद होगी, किसी को तानाशाही पसंद होगी, किसी को अन्य किसी प्रकार के लोकतंत्र में सुरक्षा प्रतीत होगी, प्रत्येक मानव समूहों को अपनी-अपनी पद्धति से जीवन जीने का अधिकार होना चाहिए। सभी कहते हैं कि इस सृष्टि का निर्माण ईश्वर ने किया है।उसने यदि इच्छा  की होती तो वह एक सरीखी संस्कृति के मानव समूह विश्व में निर्माण करता। परंतु उसकी इच्छा विविधता में है। ईश्वर की इसी विविधता पर भारतीय संस्कृति आधारित है। इसलिए हमारा दायित्व भविष्य में हमारी संस्कृति के आधार पर विश्व के मानव समूहों में भातृ भाव निर्माण करने का है।

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