गुवाहाटी पूर्वांचल का प्रवेशद्वार

असमिया समाज  स्नेही  व आतिथ्यशील स्वभाव  का  है। पान  व  विशेष  प्रक्रिया  से  बनाई  गई सुपारी  देकर मेहमान  का स्वागत  किया जाता  है।  यदि यह  पान  सुपारी  मेहमान अस्वीकार  कर  दें  तो,  वे इसे  अपना अपमान  मानते  हैं।

ऐतिहासिक काल से लेकर अब       तक अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाए रखने वाला गुवाहाटी, पूर्वांचल के सभी राज्यों का प्रवेश द्वार है। नरकासुर की राजधानी, खगोल शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र व तंत्रविद्या का अध्ययन केन्द्र, मुगलों को पूर्वांचल में घुसने से रोकने में सफल रहा राज्य, आज का व्यापारिक केन्द्र, चाय की सबसे बड़ी मण्डी, यह गुवाहाटी की पहचान है। कई लोग इसके नाम का उच्चारण  गौहाटी करते हैं, लेकिन वह ठीक नहीं है। वह गुवा (सुपारी)+ हाट (बाजार) से गुवाहाटी है, याने सुपारी की मंडी।

असमिया समाज स्नेही व आतिथ्यशील स्वभाव का है। एक पान व विशेष प्रक्रिया से बनाई गई सुपारी देकर मेहमान का स्वागत किया जाता है। यदि यह पान सुपारी मेहमान अस्वीकार कर दें तो, वे इसे अपना अपमान मानते हैं। इस सुपारी को खाने की जिनकी आदत नहीं होती उन्हें इसका नशा हो सकता है, इसलिए केवल उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए सुपारी का एक छोटा सा टुकड़ा ले कर औपचारिकता पूरी करनी चाहिए।

 चिलाराय और लाचित बड़फूकन

गुवाहाटी जाते समय ब्रह्मपुत्र पर बने सराइघाट पुल के उत्तरी छोर पर अहोम को परास्त करने वाले कोच वीर चिलाराय के भव्य पुतले का दर्शन होता है। पुल पार करने पर मुस्लिम आक्रमणकारियों को हमेशा के लिए परास्त कर देने वाले लाचित बड़फूकन का स्याह काले पत्थर से बना भव्य पुतला और उसको घेरा हुआ सुन्दर बगीचा किसी का भी अनायास ही ध्यान आकर्षित कर लेता है। शिवाजी महाराज के समकालीन बड़फूकन ने अश्वक्लांता-इटाकुली-सराइघाट के त्रिकोटा में हुए युध्द में शाहीस्ताखान तथा रामसिंग की संयुक्त सेना को न केवल जमीनी युध्द में वरन् जल युध्द में भी बुरी तरह हराया। इसी लड़ाई के दौरान सगे मामा के द्वारा गम्भीर चूक किए जाने के कारण उसने मामा का सिर कलम कर दिया। ‘‘देसोत कोई मोमाई डांगोर नोहोई’’ मेरे देश से मेरा मामा बड़ा नहीं, यह उसका प्रसिध्द वाक्य है। जिस स्थान पर इस युध्द का मोर्चा बनाया गया था उसे ‘‘मोमाई काटा गढ़’’ कहा जाता है। गुवाहाटी विश्वविद्यालय से लगा हुआ यह स्थान आज भी देखा जा सकता है।

 श्रीमान शंकरदेव कलाक्षेत्र

रेल्वे स्टेशन से बस के रास्ते १२ किलोमीटर दूर स्थित है वसिष्ठ आश्रम, इसी आश्रम में वसिष्ठ तप कर के शिव में विलीन हो गए थे। मंदिर के तल घर में बारह सीढ़ी उतरने पर ४.५ कि.मी. के दूरी पर वसिष्ठ की पत्नी अरुंधति का खूबसूरत तपोवन है। श्रीमान शंकर देव कलाक्षेत्र में पूर्वांचल के सभी समाज जाति के संस्कृति से जुड़ी हुई वस्तुएं हैं। उसी प्रकार प्रति दिन उपयोग में आने वाली वस्तुएं भी यहां देखने को मिल जाएंगी। बाल खेल विभाग, बाहुलीघर, स्कायट्रेन राइड, रात को दिखाया जाने वाला ध्वनि-प्रकाश का कार्यक्रम, लोक महोत्सवों के लिए खुला सभागृह आदि अन्य सुविधाएं भी यहां उपलब्ध हैं।

शास्त्रीय संगीत, पारम्परिक नृत्य एवं नाटकों के कार्यक्रम का आयोजन प्रत्येक रविवार को होता है। पर्यटकों को आर्टिस्ट विलेज में असम के ग्रामों की झलक देखने मिलती है। वहां आप खरीददारी भी कर सकते हैं। साहित्य भवन में दुर्लभ ग्रंथों के साथ हस्तलिखित ग्रंथों का वृहद् संग्रहालय है। कला तथा शिल्पकला की प्रदर्शनी ललित कला भवन में लगाई जाती है। यहां पर एक हेरिटेज पार्क भी बनाया गया है।

पान बाजार, इस व्यापारिक क्षेत्र में शुक्रेखर टेकरी पर १.८३ मीटर ऊंचाई का स्वयंभू शुकेश्वर लिंग है, जो देश के भव्य शिवलिंगों मे से एक है। इस क्षेत्र के लोग इसे छठा ज्योतिर्लिंग मानते हैं। दैत्यगुरु शुक्राचार्य यहीं पर साधना करते थे। शुक्रेश्वर मंदिर के प्रांगण में ही जनार्दन का प्राचीन मंदिर भी है।

 असम में कब जाएं?

यहां का तापमान गर्मी में १८ से ३५ अंश और ठंड में ७ से २६ अंश सेंट्रीग्रेड के बीच रहता है। जून और सितम्बर मास में यहां भारी वर्षा होती है, ब्रह्मपुत्र अपनी धारा को छोड़कर दिशहीन होकर दौड़ती है। इसके कारण यहां का जनजीवन अस्तव्यस्त हो जाता है। भारी बरसात के कारण जून से सितम्बर के बीच की जाने वाली यात्रा अधिक असुविधाजनक होती है। मच्छरों की बहुतायत होने के कारण जहां भी रुकना हो वहां मच्छरदानी की व्यवस्था हो, यह सुनिश्चित अवश्य कर लें।

यहां टूरिस्ट कार का किराया बहुत अधिक है।  ऊपर से डीजल या पेट्रोल का व्यय भी यात्री को ही उठाना पड़ता है। इसके अलावा ड्राइवर के भोजन तथा आवास की व्यवस्था भी करनी पड़ती है। यहां सरकारी बस सेवा से निजी बस सेवाएं अधिक हैं। लम्बी यात्रा के लिए रात्रिकालीन बस सेवा तथा दिन में ४०-४५ कि.मी. की यात्रा के लिए ऑल असम टूरिस्ट की अठारह सीटर गाड़ियों की सुविधा उपलब्ध है।

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