अष्टलक्ष्मी

पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में प्रकृति ने दिल खोल कर अपनी दौलत बिखेरी है। पूर्वोत्तर में पहले असम, अरुणाचल, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नगालैण्ड, त्रिपुरा ये सात राज्य थे, इसलिए उन्हें ‘सप्त-भगिनी’ कहा जाता था; लेकिन अब उसमें आठवां राज्य सिक्किम भी जुड़ गया है। अतः इस इलाके को अब ‘सप्त-भगिनी’ के बजाय ‘अष्टलक्ष्मी’ कहना चाहिए। 

भारत की सस्य श्यामला, सुजलाम्,    सुफलाम्     धरती के वास्तविक सौंदर्य के दर्शन करने हों तो हमें भारत के उत्तर-पूर्व के राज्यों की यात्रा करनी चाहिए जहां प्रकृति ने अपने दोनों हाथों से इन राज्यों को अपना नैसर्गिक सौंदर्य प्रदान किया है।

आठ राज्यों से मिलकर बना भारत का उत्तर-पूर्व क्षेत्र देश का सिरमौर है। यहां प्रतिदिन सूरज सबसे पहले अपनी अरूणिमा बिखेरता है। तभी तो इस क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्यता से मुग्ध होकर सुप्रसिद्ध समाजवादी विचारक एवं प्रखर नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने इसे अरुणांचल का नाम दिया था। पूरा क्षेत्र असम प्रदेश के नाम से ही जाना जाता था। किन्तु कालांतर में इस क्षेत्र को आठ राज्यों तथा अरूणांचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, त्रिपुरा, असम में विभाजित कर दिया गया। इसके साथ संलग्न सिक्किम पहले अलग स्वतंत्र देश था, किन्तु बाद में उसका विलय भारत संघ राज्य में हुआ और आज वह भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य है। उत्तर पूर्व के क्षेत्र चारों तरफ से तिब्बत, भूटान, बांग्लादेश तथा म्यांमार से घिरा हुआ है। भारत के साथ एक बहुत ही छोटे और संकरे रास्ते के साथ जुड़ा हुआ है। प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध और रमणीय इन आठ राज्यों का भौगोलिक क्षेत्रफल भारत के पूरे क्षेत्रफल का ८ प्रतिशत है तथा यहां की जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या ३.७७ प्रतिशत है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन आठों राज्यों का ६५ प्रतिशत वन क्षेत्र है, जो भारत के कुल वन क्षेत्र का ८ प्रतिशत बैठता है। उत्तर-पूर्व के ये आठों राज्य भारत के सकल राष्ट्रीय उत्पाद में २.५ प्रतिशत का योगदान करते हैं। यहां की ७० प्रतिशत जनसंख्या की आजीविका कृषि पर आधारित है। इसके बाद सेवा क्षेत्र का क्रमांक है। उद्योग तथा निर्माण की दृष्टि से अत्यंत प्रारंभिक अवस्था में है।

उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में भौगोलिक दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य अरुणाचल प्रदेश है। यह भारत का २४वां राज्य है, इससे पहले यह उत्तर पूर्वी सीमांत एजेंसी (नेफा) के रूप में जाना जाता था। वर्ष १९६२ में भारत पर चीनी आक्रमण के बाद भारत सरकार ने इस एजेंसी को समाप्त करके इसे राज्य का दर्जा दे दिया। अरुणाचल प्रदेश का इतिहास बहुत पुराना है जिसका उल्लेख रामायण, महाभारत तथा कलिका पुराण में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत तथा अठारह पुराणों के रचयिता महर्षि वेद व्यास ने इस क्षेत्र में आकर तपस्या की थी। यहां पर अभी भी रोइंग नामक पहाड़ियों के दोगांवों के आसपास श्रीकृष्ण की पटरानी रुक्मिणी के भवन के भग्नावेष देखे जा सकते हैं। इसी राज्य की धरती पर बौद्ध धर्म के छठें दलाई लामा का जन्म हुआ था।

अरूणाचल प्रदेश : अरूणाचल प्रदेश की जनसंख्या को उनके सामाजिक-सांस्कृतिक आधार पर तीन वर्गों में बांटा जा सकता है। यहां की विभिन्न जन-जातियां हिन्दू, बौद्ध तथा जो हिन्दू धर्म से मिलते जुलते दोनाई पोलो पंथ के अनुयायी हैं। यहां के कामेंग तथा तवांग जिले के लोग, जिन्हें मोनपा तथा शेर्डकूपेन कहा जाता है, वे मूलतः बौद्ध धर्म के अनुयायी, लामा सम्प्रदाय से जुड़े हुए हैं, लोहित जिले के खाम्टी लोग बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय से संबद्ध हैं। तिरप जिले में रहने वाले नोक्ट तथा वाचू असमी लोगों के संपर्क के कारण हिन्दू धर्म के अनुयायी हैं। एक तीसरा वर्ग भी अदी, अकास, अष्टानिस तथा निशिंग के नाम से है जिनका प्रतिशत अरुणाचल प्रदेश में सबसे अधिक है। वे प्राचीन काल से सूर्य-चंद्र की पूजा करते आ रहे हैं जिसे दोनाइ-पोलो कहा जाता है।

अरुणाचल प्रदेश की जनजातियां बहुत ही उत्सव प्रेमी हैं। यहां के उत्सव, त्यौहार मुख्य रूप से कृषि से संबंधित होते हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य ईश्वर से भरपूर कृषि उपज की प्रार्थना करना और फसल आने पर भगवान को धन्यवाद देना होता है। विभिन्न जन-जातियों के अलग-अलग उत्सव होते हैं, जिनमें मोपिन, सोलुंगा लास्सार, बूटूवूट, सी-दोनाई, नयोकुम, रेह, श्यात सोवाई लोंगते यूलो आदि त्यौहार प्रमुख हैं। इस सभी अवसरों पर नृत्य, गीत द्वारा अपनी देवता की प्रार्थना करना तथा उन्हें नैवेद्य चढ़ाना शामिल हैं।

असमः उत्तर पूर्व राज्यों का प्रवेश द्वार असम प्रदेश ही है। नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर यह प्रदेश विश्व की सबसे बड़ी नदियों में से एक ब्रह्मपुत्र नदी (२९०० कि.मी.) द्वारा सिंचित और पोषित है। प्राचीन काल में यह सम्पूर्ण क्षेत्र प्रागज्योतिष तथा कामरूप प्रदेश के नाम से जाना जाता था। आज भी प्रागज्योतिष की राजधानी प्रागज्योतिषपुर के भग्नावशेष, गुवाहाटी के निकट देखे जा सकते हैं।

इस प्रदेश के ‘असम’ नाम का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। १२२८ ई. में जब अहोम जनजाति के लोगों ने प्रदेश को विजित किया, तथा अपने साम्राज्य की स्थापना की, तब इस क्षेत्र का नाम असम रख दिया, जिसका अर्थ होता है, समतल नहीं है या असमान। चूंकि यहां का संपूर्ण प्रदेश पहाड़ियों, घाटियों, नदियों के कारण काफी ऊंचा-नीचा है, इसलिए इसे असम कहा गया। विगत ३० वर्षों में आज का असम अपने मूल स्वरूप का केवल एक तिहाई ही है, शेष क्षेत्र मेघालय, मिजोरम, नगालैंड राज्यों में विभाजित हो गया।

असम राज्य की यह भी विशेषता है कि इस राज्य में ४१ प्रकार के ऐसे लुप्तप्राय वन्य जीव हैं, जो विश्व के किसी भी भाग में देखने को नहीं मिलते जिनमें सुनहरा लंगूर, पिग्मा हॉग, सफेद पंख वाली बत्तख, चीता तथा जंगली बिल्ली एवं अनेक प्रकार के दुर्लभ पक्षी शामिल हैं।

असम मूलतः पहाड़ियों और घाटियों का प्रदेश है, जो पांच नदियों और घाटियों में विभाजित हैं। ये नदियां हैं केनांग, सुबानसिरी, सियांग, लोहित तथा तिरप। ये सभी नदियां हिमालय की बर्फ से सदैव सदानीरा बनी रहती है।

सांस्कृतिक तथा सामाजिक दृष्टि से यहां की जनता मूलतः हिन्दू बहुल है जिसमें चार प्रकार के सम्प्रदाय हैं। यहां तंत्र-मंत्र को मानने वाले शाक्त सम्प्रदाय के अनुयायी हैं। कामाख्या देवी का प्राचीन और सिध्द मंदिर इसका मुख्य पीठ है। इसके अतिरिक्त श्रीमंत शंकरदेव के आविर्भाव के कारण यहां वैष्णव पंथ के भी बड़ी संख्या में अनुयायी है, जो कृष्ण भक्ति से सदा प्रेरित रहते हैं। तथापि, शाक्त और वैष्णव सम्प्रदाय के लोगों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं हैं। वैष्णव भी दुर्गा, काली, सरस्वती का पूजन करते हैं और उसी प्रकार शक्ति पूजा को मानने वाले भगवान श्रीकृष्ण के प्रति श्रध्दा रखते हैं। तेरहवीं शताब्दी से मुगलों के आगमन से यहां मुस्लिमों की संख्या बढ़ने लगी और बाद में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के साथ ही यहां ईसाईयत का भी प्रचार-प्रसार बढ़ा। असम जो स्वतंत्रता से पहले हिन्दू बहुल प्रदेश था, आज धीरे धीरे यहां हिन्दू अल्प संख्या में होते जा रहे हैं। उसका मुख्य कारण है बांग्लादेश से बड़ी संख्या में शरणार्थी के रूप में मुस्लिम जनसंख्या का आना जिससे असम में जनसंख्या का असंतुलन पैदा हो रहा है।

तथापि, असम सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत ही समृध्द राज्य है। असम चाय के उत्पादन को भारत का अग्रणी राज्य है। यहां का मुख्य उत्सव बीहू है जो मकर संक्राति के साथ-साथ मनाया जाता है। यहां बीहू-मोगली जनवरी में, रोंगली या बोहाग बीहू अप्रैल में और कटिबीहू मई में बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है।

मणिपुर ः मणिपुर का अर्थ है, ऐसा प्रदेश जो मणियों से भरपूर है। उत्तर पूर्व के इस प्रदेश के भू-भाग को सुवर्णभूमि कहा जाता है। यह पूरा का पूरा प्रदेश सुंदर पहाड़ियों, घाटियों से तथा सदानीरा झीलों से घिरा हुआ है। इस प्रदेश के बारे में बड़ी ही सुंदर कथा है। एक बार श्रीकृष्ण ने शंकर से प्रार्थना की कि वह गोपियों तथा राधा के साथ महारास करना चाहते हैं। अतएव उस स्थान का संरक्षण करें। पृथ्वी पर उनके महारास में कोई विघ्न न आए। पार्वती ने जब यह देखा कि शंकर पृथ्वी के एक विशिष्ट स्थान का रक्षण कर रहे हैं, तो पार्वती ने उस स्थान को देखना चाहा और जब उन्होंने उस स्थान पर कृष्ण का महारास होते देखा तो वह ऐसी मुग्ध हो गई कि उनकी भी शंकर के साथ रास करने की इच्छा जागृत हो गई। शंकर ने पार्वती की इच्छापूर्ति के लिए पृथ्वी पर रास के लिए जिस स्थान का चयन किया वह सुंदर पहाड़ियों तथा घाटियों और झीलों से युक्त वनस्पति हरीतिमा से परिपूर्ण स्थान था, आज मणिपुर के नाम से विख्यात है।

मणिपुर का कुल क्षेत्रफल २२,३५६ वर्ग कि.मी. है। इसका ६७% क्षेत्रफल प्राकृतिक संपदा से भरपूर है। यहां लगभग ५०० प्रकार की दुर्लभ वनस्पतियां एवं फलदार पौधों की प्रजातियां उत्पन्न होती हैं। जिनमें से ४७२ प्रकार की जड़ी-बूटियों की पहचान कर ली गई है।

मणिपुर के मुख्य निवासी मैती (मैतेई) के नाम से जाने जाते हैं। ये अपने आपको परखंबा के वंशज मानते हैं, जिन्होंने मणिपुर पर शासन किया था। यह एक किवंदती है कि परखंबा जाति के लोग स्वयं को नाग या सांप में बदल लेते थे। मणिपुर की पहाड़ियों में रहने वाली जनजातियों को नागा तथा कुकी कहा जाता है।

सांस्कृतिक तथा सामाजिक दृष्टि से मणिपुर के लोग बड़े ही सरल, सहृदय तथा हंसमुख होते हैं। उनका मणिपुरी नृत्य तथा हस्तशिल्प संसार भर में प्रसिध्द है। यहां का हथकरघा उद्योग बहुत ही विकसित हैं। यहां प्रत्येक घर में कपड़ा बुनने का काम होता है। इसलिए हर घर में हथकरघा मिल जाता है। यहां के नृत्य, संगीत का विशेष स्थान है।

हिन्दू धर्म का यहां की जनजातीय जीवन पध्दति पर विशेष प्रभाव है। होली यहां का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार हैं। बंगाल के चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन वसंत पूर्णिमा के दिन यहां होली खेली जाती है। होली के दिन सभी लोग आबाल, वृध्द, नर-नारी अपने अपने घरों से बाहर निकल कर एक दूसरे पर खूब रंग फेंकते हैं।

मणिपुर का गोविंद मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है। वैष्णव सम्प्रदाय का यह भव्य मंदिर मणिपुर के राजभवन के पास ही स्थित है। रासलीला मणिपुरी नृत्य की सबसे भव्य और मनोरम प्रस्तुति है। जिसमें राधा और कृष्ण के दिव्य एवं आत्मिक प्रेम की सुंदर भाव व्यंजना को प्रदर्शित किया जाता है। मणिपुर में उत्तर पूर्व की सबसे बड़ी झील स्थित है जो लोकतक झील के नाम से प्रसिद्ध है। लोकतक के पश्चिमी छोर पर फूबला झील है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि इसी लोकतक झील पर विश्व का एकमात्र तैरता हुआ (तरण) राष्ट्रीय उद्यान केबुल लेमजो राष्ट्रीय उद्यान स्थित है।

नगालैण्डः यह प्रदेश पूर्व में नागभूमि के नाम से जाना जाता था। इसका उल्लेख हमें संस्कृत साहित्य में बड़े विस्तार से मिलता है। यह मूलतः पहाड़ियों से घिरा प्रदेश हैं। यहां के मूल निवासियों में कूकी, कछारी, गारो, मिकरी तथा बंगाली-असमी मुख्य हैं। किवंदती यह भी है कि चूंकि यहां की जनजातीय जीवन में पद्धति में नग्न रहने की प्रथा हैं। अतः यहां के लोगों को नागा कहा गया। एक दूसरा मत यह है कि यहां पर पूर्व में नागराज का राज्य था, नागराज की कन्या उलूपी थी जिसका निवास नगालैण्ड के दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र में था, उन्हीं के वंशजों को नागा कहा गया।

नगालैण्ड मुख्य रूप से वनों और वनस्पति के विशाल भंडार से परिपूर्ण है। चूंकि पूरा प्रदेश पहाड़ियों से घिरा है, अतः यहां नदियां बहुत कम हैं और लंबाई चौड़ाई में भी बहुत छोटी हैं। यहां के खासी जनजाति का-पेम्ब्लांग नांग्रेम, जयंतिया जनजाति के बेहदिनख्लाम तथा गारो जनजाति के बांग्ला उत्सव प्रसिद्ध उत्सव हैं। जिनमें इनके नृत्य, संगीत के दर्शन होते हैं।

मिजोरमः सप्तभगिनी की एक अन्य बहुत आकर्षक तथा नयनाभिराम दृश्यों वाली बहन मिजोरम है। यह प्रदेश पूर्व में म्यांमार, पश्चिम में त्रिपुरा, उत्तर में असम तथा मणिपुर तथा दक्षिण में बांग्लादेश से घिरा हुआ है। इसकी म्यांमार तथा बांग्लादेश के साथ ११०० कि.मी. लम्बी अन्तरराष्ट्रीय सीमा है। यह वर्ष १९७२ तक असम का एक जिला था। वर्ष १९८७ में यह भारत संघ गणराज्य का २३वां राज्य बना। मिजोरम का शाब्दिक अर्थ होता है, ऊंचे और सपाट पहाड़ियों वाला क्षेत्र। यहां के पहाड़-पहाड़िया काफी सपाट और ऊंचे ऊंचे हैं। वनाच्छादित यह सभी पहाड़ बहुत ही दुर्लभ प्रकार की वनस्पतियों के आगार हैं।

इतिहासकारों का मानना है कि मिजोरम के निवासी मूल रूप से मंगोल प्रजाति के हैं, जो शताब्दियों पहले भारत के पूर्वी तथा दक्षिणी क्षेत्रों में आकर बस गए थे। मिजो का शाब्दिक अर्थ होता है ऐसे लोग जो पहाड़ों में निवास करते हैं। इनकी पांच मुख्य प्रजातियां हैं – लुशे, राल्टे, हम्र, पैहटे, और पोई। मिजो की यह सभी प्रजातियां त्लांगांहिन पंथ का पालन करते हैं, जिसका अर्थ है प्रत्येक को सबके प्रति दयावान, निस्वार्थ तथा सभी के प्रति सहयोग का भाव रखने वाला होना चाहिए।

मिजोरम प्रदेश भी ईसाई मिशनरियों के धर्मप्रचार का शिकार बना था। स्वतंत्रता से पहले और बाद में भी यहां ईसाई पादरी बड़ी संख्या में धर्म-परिवर्तन करते रहे और आज यहां अधिकांश जनसंख्या ईसाई धर्म का पालन करती है। ईसाइयों के प्रभुत्व के कारण अब यहां के लोग अपनी प्राचीन परम्पराओं और लोक संस्कृति को छोड़ कर आधुनिक जीवन अपना रहे हैं। संगीत के प्रति मिजो लोगो में बहुत ही प्रेम होता है। इनका सबसे प्रसिध्द नृत्य ‘चेरा’ होता है जिसे पैरों में लंबे लंबे बांस बांध कर किया जाता है। अवश्य ‘बैम्बू डांस’ अर्थात ‘बांस-नृत्य’ कहा जाने लगा है। यहां झरने, झील, नदियां आदि बहुत ही कम अथवा न के बराबर हैं।

नगालैण्ड बहुजनजातीय प्रदेश है, किन्तु ईसाई धर्म का यहां विशेष प्रभाव है। स्वतंत्रता से पहले भी और बाद के काल में ईसाई पादरियों ने यहां के भोले भाले जनजाति लोगों को ईसाई बनाया था। तथापि यहां की संस्कृति, संस्कार में अभी भी नगा संस्कृति का प्रभाव देखा जा सकता है। ईसाई बहुल होने के बावजूद यहां के लोग उत्सव प्रेमी और नृत्य, गायन तथा कला में निष्णात हैं। उत्सव का आधार कृषि ही है। जनवरी माह में चखेसंग सक्रूने उत्सव से वर्ष प्रारंभ होता है तथा दिसम्बर माह में ज्लिंग नगा-गाई उत्सव से वर्ष समाप्त होता है।

मेघालयः उत्तर पूर्व क्षेत्र का एक और आकर्षक और रम्य प्रदेश मेघालय है, जिसका अर्थ है ‘‘बादलों का घर’’। यह प्रदेश २ अप्रैल १९७० को अस्तित्व में आया था और २ जनवरी १९७२ को इसको पूर्ण राज्य का दर्जा मिला।

मेघालय नैसर्गिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध प्रदेश है। यह गारो, जयंतिया तथा खासी पहाड़ी प्रदेशों से बना हुआ है। विश्व के १७००० वनस्पति तथा फूलदार पौधों में से ३००० प्रकार की वनस्पतियां यहां प्राप्त होती हैं। यहां वे सभी कीट तथा जंतुभक्षी पेड़-पौधे बहुतायत में देखे जा सकते हैं। यहां विभिन्न प्रजातियों के पशु, पक्षी, जंगली जानवर, सांप, रेंगने वाले सृप आदि बहुतायत में मिलते हैं।

यहां का समाज सांस्कृतिक दृष्टि से विकसित और समृद्ध राज्य है। तथापि यहां पर भी ईसाई मिशनरियों का बोलबाला है, जिन्होंने यहां की समृद्ध विरासत को छिन्न-भिन्न करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। तथापि, यहां की आभूषण कला, काष्ठकला, हस्तशिल्प कला, हथकरघा उद्योग, कालीन उद्योग, बांस तथा लकड़ी के घरेलू उद्योग पूरे विश्व में विख्यात हैं।

मिजो लोगों के तीन उत्सव – भिम् कुट, चापाचर-कुट तथा पॉल होते हैं। कुट का मतलब उत्सव या त्यौहार होता है। ये सभी उत्सव कृषि की गतिविधियों और कार्यकलापों से संबंधित हैं। भिम्-कुट अगस्त-सितम्बर में फसल आने के बाद बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है।

त्रिपुराः त्रिपुरा बोडो जनजाति का पुराना घर है। बांग्लादेश की सीमा से लगा हुआ प्रदेश त्रिपुरा ४११७ वर्ग मील अर्थात १०,४९१ वर्ग कि.मी. में म्यांमार और बांग्लादेश के बीच नदी की घाटियों के मध्य स्थित है। उत्तर-पूर्व दिशा में त्रिपुरा, असम तथा मिजोरम से जुड़ा हुआ है। साल, गरजन, बॉस तथा अन्य प्रकार की लकड़ियों के जंगल यहां बहुतायत में हैं।A

त्रिपुरा का इतिजहास काफी पुराना है। यहां का अद्वितीय लोकजीवन तथा जनजातीय सांस्कृतिक परम्परा बहुत ही संपन्न तथा समृद्ध रही है। बहुत से विद्वानों का मत है, यह त्रिपुरा ही पूर्व में किरात देश के नाम से जाना जाता था। महाभारत तथा पुराणों में भी इसका उल्लेख मिलता है। ऐसा माना जाता है कि महाराजा युधिष्ठिर के समकालीन राजा द्रूय तथा भब्रु के वंशजों द्वारा शासित इस प्रदेश का नाम त्रिपुरा पड़ा था। एक और तर्क दिया जाता है कि राधाकृष्णपुर में स्थिर भगवती त्रिपूर सुन्दरी, जिनके प्रति उस राज्य के लोगों की बड़ी ही श्रद्धा है, के नाम पर ‘त्रिपुरा’ राज्य का नाम पड़ा है।

तथापि, त्रिपुरा भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य है, जिसकी अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। धान यहां की मुख्य फसल है। लघु तथा कुटीर उद्योग धंधों जिसमें हथकरघा तथा हस्तशिल्प सम्मिलित है, के अलावा काष्ठशिल्प, मिट्टी के बर्तन तथा कुटीर उद्योग है।

सिक्किम : सिक्किम राज्य वर्ष १९७५ में भारत संघ गणराज्य का हिस्सा बना। पहले यह स्वतंत्र देश था और यहां पर राजतंत्र था। १९७५ में यह उत्तर-पूर्व क्षेत्र सात बहनों के साथ जुड़कर अष्टलक्ष्मी के रुप में भारत की समृध्दि में अपना अनन्य योगदान दे रहा है। सिक्किम भारत के गोवा के बाद सबसे छोटा राज्य है। पिछले दिनों किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार सिक्किम के लोग सबसे अधिक संतुष्ट तथा खुश रहने वाले लोग हैं। बौद्ध धर्म के अनुयायी तथा सामान्य जीवन बिताने वाले लोग हैं। सिक्किम प्रदेश भी चारों तरफ से पहाड़ियों और वन्य प्रदेश से घिरा भू-क्षेत्र हैं। इसी से लगी चीन तथा नेपाल की सीमा है।

भारत की यह ‘अष्टलक्ष्मी’ अत्यंत वैभवपूर्ण तथा हर मायनों में सम्पन्न है तथा शेष भारत की तरह ही भविष्य में इस ओर से भी विकास की अपार सम्भावनाएं हैं।

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