ऐ मेरे वतन के लोगों..

रामचंद्र नारायण द्विवेदी को जानते हैं आप? क्या? नहीं जानते?      अच्छा; आपने वह गाना सुना है; ऐ मेरे वतन के लोगों? हां ! यह गाना तो आपका फेवरिट गाना होगा। किसने लिखा था, याद है? बिल्कुल ठीक! प्रदीप! यही हैं हमारे रामचंद्र नारायण द्विवेदी! जिनका तखल्लुस था ‘प्रदीप’। फिल्मी दुनिया में वे इसी नाम से जाने जाते थे। प्रदीप एक महान कवि थे। देशभक्ति के जज्बे से ओतप्रोत उनकी कविताएं और फिल्मी गानों को लोगों ने सर आखों पर बिठाया। पुरानी फिल्म किस्मत (अशोक कुमार, देविका रानी) में उन्होंने पहली बार गाने लिखे; और सारे के सारे मशहूर हुए। उस जमाने में दूसरा कोई माध्यम नहीं था; तो लोगों ने गाने सुनने के लिए यह फिल्म दस दस बार देखी थी। उसमें से एक गाना था;

 आज हिमालय की चोटी ने फिर हम को ललकारा है

 दूर हटो, दूर हटो, ऐ दुनियावालों, हिंदुस्तान हमारा है….

          बच्चा बच्चा यह गाना गाता था।

बाद में फिल्म आयी थी ‘बंधन’। उसमें गाना था ‘चल चल रे नौजवान ऽ‘। इस गाने ने भी धूम मचाई थी। इंदिरा गांधी भी उनके टीन एज में यह गाना गाती थीं। जब नेहरू जी से प्रदीपजी की मुलाकात एक कवि समारोह में हुई तो पं. नेहरू ने आदर व्यक्त करते हुए कहा था ‘अरे, ये गाना आपने लिखा है? बहुत खूब!’

 ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी

 जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी…‘

हमारे शहीद जवानों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने वाली उत्कट भावना से भरपूर इस गाने को लता मंगेशकर की आवाज में पंडित नेहरू जी ने सुना तो उनकी आंखों में भी पानी भर आया था। ऐसे गाने लिखने वाले प्रदीप देशभक्ति, सामाजिक न्याय, पीड़ितों का उत्थान जैसी बातों को बड़ी अहमियत देते थे। खुद उनके विचार, उनका मन समानता की भावों से भरा था। और यही भावना उनके कलम से कागज पर उतरी।

 आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की

 इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की… वंदे मातरम्

बच्चों के हाथ में देश को सौंपते वक्त जो सीख उन्हें देनी चाहिए, वह सीख प्रदीप इस गाने में लिखते हैं,

 हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के

 इस देश को रखना मेरे बच्चों, संभाल के…

आज की किशोर और युवा पीढ़ी ऐसे गाने, शब्दों को गौर से पढ़ेगी और सुनेगी, थोड़ा बहुत इतिहास समझ लेगी, तो देश का भाग्य जागेगा।

प्रदीप जी का लिखा ‘पैगाम’ फिल्म का गान मैंने चुना है जिससे सबको अवगत कराना चाहूंगी,

 दिल के अंदर दुख छुपाकर, हाए बरसों से हम रो रहे

 क्या बताएं, क्या सुनाएं, हम पे कया क्या सितम हो रहें

 हम तो जीते हैं दाता, तेरे देश में आज तलवार की धार पर….

गरीबों पर सितम हो रहे हैं, यह बात सच है; बरसों से हो रहे हैं। इस बात पर गौर किया जाए। कहने को तो सरकार ने बहुत सी योजनाओं का प्रबंध किया था। लेकिन उन का लाभ शायद ‘बर्फ’ था। गरीबों तक पहुंचते पहुंचते उस बर्फ का पानी हो जाता था। वे तो वंचित ही रहते जिनको सही मायनों में जरूरत थी।

 किस अदालत में हम न्याय मांगे, आज तो  बंद सब द्वार हैं

 तू भी हुआ आज उनका, जो यहां पर गुनाहगार हैं

 बोल दुनिया के भगवान हम क्या करें, इस अंधेरे में जाएं किधर….     

कल तक तो यही वास्तविकता थी। गरीबों को न्याय मिलना दूर की बात थी! गुनाहगार पैसों की मदद से सजा से भाग सकते थे। और देश में अंधेरा राज करता था। मुझे लगता है युवा पीढ़ी और आने वाली नस्लें अगर प्रदीप जी के गानें सुनती रहेंगी, तो उनमें मातृभक्ति जरूर पैदा होगी और परिवर्तन जल्दी आएगा।

आज हम जिनकी याद कर रहे हैं, वे रामचंद्र नारायण द्विवेदी, ‘प्रदीप’ ६ फरवरी १९१५ में बडनगर, मालवा में पैदा हुए थे। याने उनका जन्मशताब्दि वर्ष भी इस साल खत्म हुआ। ११ दिसंबर १९९८ में, तिरासी साल की उम्र में उनका देहांत हुआ।

          देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इन्सान…(नास्तिक)

          इन्सान का इन्सान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा ….(पैगाम)

          मैं तो आरती उतारूं रे, संतोषी माता की…( संतोषी मॉं)

          ऐ मेरे वतन के लोगों…(संगीत सी. रामचंद्र )

क्या ऐसे गानों को और उन्हें लिखने वाले कवि को हम भूल सकेंगे? हम ने उन्हें दादासाहब फालके अवॉर्ड से सम्मानित किया; लेकिन उन्होंने भी अपने गानों की रॉयल्टी ‘वॉर विडोज् फंड’ में लगा दी थी। ऐसे देशभक्त को प्रणाम!!!

 

Leave a Reply