स्मार्ट शहरों की सोच

आज हम वहां पहुंचे हैं, जहां डिजीटल टेक्नॉलॉजी की दखल न लें और उसका इस्तेमाल न करें ऐसा हो नहीं सकता। कल के भारत के शहर इसी तकनीक पर विकसित होने वाले हैं। ये ही स्मार्ट शहर होंगे। यह तकनीक हमारे कितने काम की और जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है, इसका विचार विशषज्ञ समाज के सामने रखें।

शहर स्मार्ट होने चाहिए, केवल लोग स्मार्ट होकर फायदा नहीं       होगा। नागरिकों का ज्ञान, सोच और समझदारी का उपयोग करके, सिर्फ ‘स्मार्ट ग्रीन विकास’ नाम न देकर चारों ओर से शहर का विकास होना चाहिए। स्मार्ट शहरों का प्रारूप बनाते हुए नागरिकों की समस्याएं, उनकी इच्छाएं जान लेने की जरूरत है। समस्या सुलझाने हेतु बनाए गए प्रारूपों के द्वारा नागरी कामकाज में विश्वास और पारदर्शिता हो तो भविष्य की समस्याएं अपने आप सुलझेंगी, भावी पीढ़ी शाश्वत लाभ पाएगी। तकनीकी युग में तीव्र गति से विकसित तकनीक के मोहजाल मेंं आम आदमी को उलझाने की ताकत है। सवाल यह है कि इस राह पर चलने वाला साधक इस तंत्रज्ञान का उपयोग स्वयं के लिए, लोगों के लिए तथा समाज के लिए कैसे करें?

उपनिषद् के आचार्यों ने साधकों को ‘शुभास्ते पन्थानः सन्तुः’ जैसे आशीर्वाद दिए। स्मार्ट सिटी विकास में कार्यरत साधकों को केंद्र और राज्य सरकार ने भी ‘स्मार्ट शहर का सफर सुखदायक एवं मंगलमय हो’ जैसी शुभकामनाएं दी हैं।

मानव अपना ज्यादातर समय घर या ऑफिस दो स्थलों पर बिताता है। इन दो स्थलों को जोड़ने वाला पुल यानी मूलभूत सुविधा। मूलभूत सुविधाओं के कारण आसपास का माहौल तथा नागरिकों को दी जाने वाली सुविधाओं पर उस शहर के रहन-सहन का दर्जा पता चलता है। शहर का भौगोलिक प्रारूप, उस शहर का पूर्वेतिहास तथा विस्तार, बदलते हुए हालात वहां के नागरिक रोज अनुभव करते हैं। शहर की समस्याओं में – जैसे बदलने वाली जनसंख्या, उनकी जरूरतें और महंगाई का समावेश होता है। समस्याओं में बढ़ोत्तरी होते रहने के कारण विस्तारित व्यवस्था की जरूरत होती है। उपरोक्त सुविधाओं के लाभ के लिए शहर महानगरों में तब्दील होते हैं। कभी कभी ये शहर/महानगर रहने के लिए अयोग्य होते हैं।

विकास की राह पर आगे बढ़ता समाज, तीव्र गति से विकसित होने वाली तकनीकी क्रांति के कारण बदलता रहता है। यह इस दुनिया का नियम है, इसलिए वास्तुरचनाकारों को शहर के प्रारूप में परिवर्तन करना पड़ता है। कल का स्मार्ट शहर कैसा हो? इस संबंध में मतभिन्नता हो सकती है। स्मार्ट शहर यह विषय ‘स्थापत्यशास्त्र’ से संबंधित है। इसलिए स्थापत्यशास्त्र की जानकारी होना आवश्यक है। ऐसे शहर में रहने वाले नागरिकों को स्मार्ट शहर से क्या चाहिए? केंद्र सरकार द्वारा घोषित स्मार्ट शहरों की संकल्पना क्या है? इस संदर्भ में हम आगे चर्चा करेंगे।

स्थापत्यशास्त्र

जरा सोचिए कि आप किसी सुनसान धरती पर सफर कर रहे हैं। थोड़ी देर चलने के बाद आप आराम के लिए पेड़ की छाया ़ढ़ूंढ़ने की कोशिश करते हैं। अचानक एक इमारत नजर आती है और आप उस दिशा में चलने लगते हैं। उस वास्तु में प्रवेश करने पर आप महसूस करते हैं, वहां की चार दीवारें और उस छत के नीचे बाहय वातावरण से मिलने वाली सुरक्षा। उस सुरक्षा से आपकी शारीरिक जरूरत पूरी होती है। आपको आरामदेह लगता है। कुछ समय बाद कुर्सी ढूंढ़ते हैं। यानी सुविधा का खयाल मन में आता है। आप अपने मन में सोचने लगते हैं। तभी आप उस जगह की वस्तुओं को बारीकी से देखने लगते हैं। उस निरीक्षण में आपकी उपयोगिता और दूसरी आपकी आँखें आपको अच्छी लगने वाली चीजों की खोज करना शुरू कर देती हैं। इस प्रकार मानव स्वंय की भौतिक जरूरतें पूरी करने के पीछे लगा रहता है। सारांश आपकी शारीरिक, मानसिक, बौध्दिक जरूरतों को पूरा करने के पश्चात आपका मन उस जगह पर होने वाले सौंदर्य की खोज करना शुरू करता है। उदाहरणार्थ इस निरीक्षण में दीवार का रंग, जगह का आकार, सफाई, आस-पास के प़ेड़-पौधे इत्यादि आते हैं। आगे चलकर ऐसे ही खोजों से वास्तु-रचना के नियम बनाए गए होंगे। यहीं विचार शहरों को बनाने के संदर्भ में लागू किया जाता है।

स्मार्ट शहरों की सोच

भारत में स्मार्ट शहरों की सोच या कल्पना क्या सचमुच स्मार्ट है? कल के स्मार्ट शहर क्या भारतीय जीवनशैली के अनुसार बनाए जाएंगे? इन शहरों का कामकाज अगर तकनीकी माध्यम से चलने वाला (डिजीटल एप्स) हो तो सामान्य भारतीयों की समझ में आए इतना क्या वह आसान होगा? हम समझ सकते हैं कि हम विदेशी तंत्रज्ञान पर निर्भर हैं, पूरी तरह से विदेशी सलाहकारों के मतानुसार बनाए गए शहर विदेशी जीवनशैली पर आधारित होंगे। इससे अच्छा है कि भारतीय जीवनशैली पर आधारित शहर बनाए जाए। इस जीवनशैली के मानक कैसे होंगे, यह उस प्रांत में रहने वाले नागरिकों की जीवनशैली पर आधारित नियमों के अनुसार हों। स्मार्ट शहर क्या है? भारत सरकार ने १०० स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की थी। उसके अनंतर महाराष्ट्र, पंजाब और आंध्र प्रदेश में तीन मार्गदर्शक शहरों की निर्मिति की घोषणा की गई। ये शहर कैसे होंगे? इसका स्पष्ट रूप से विवरण नहीं था। सामान्य जन की तरह प़ढ़े-लिखे नागरिक भी इससे अनजान थे। यह अनजानापन आज भी कायम है। वैश्विक स्तर पर स्मार्ट का सुयोग्य अर्थ स्पष्ट करने वाला संतोषजनक उत्तर विदेशी तज्ञों के पास भी नहीं या उनकी स्पष्टता में एकरूपता नहीं है। सारांश रूप में ये शहर यंत्र-विज्ञान और पर्यावरण के साथ साथ संतुलन भी बनाए रखेंगे।

भविष्यकालीन भारत

भारत देश आज स्मार्ट सिटी की संकल्पना के साथ आगे जाने को तैयार है। भविष्यकालीन भारत का चेहरा कैसा होना चाहिए ये आज के बने प्रारूपों से स्पष्ट होगा। अपने देश में अलग-अलग प्रांतों की अलग-अलग वेशभूषा, खान-पान, धार्मिक विधियां, त्योहार, परंपराएं भिन्न हैं। देश एक होने पर भी देश के सारे नागरिकों का प्रतिनिधित्व करने वाली वेशभूषा कौनसी है यह हम अपनी वेशभूषा से व्यक्त नहीं कर सकते। उसी प्रकार हर एक प्रांत के रीति-रिवाज अलग-अलग हैं, शहर भी उसी के अनुसार होने चाहिए। इस स्मार्ट शहर में चिकित्सालय, मैदान, मनोरंजन केंद्र, शिक्षा से संबंधित तथा निवासी भवन और व्यापारी केंद्र होंगे। धार्मिक स्थल, त्यौहार मनाने हेतु बड़ी-बड़ी जगहों का आरक्षण यह भारतीयों की आध्यात्मिक जरूरत है, तभी तो भारतीय संस्कृति टिकेगी। उपरोक्त प्रकार से अगर शहरों का निर्माण होगा तो ही कल के समृध्द भारत का चेहरा अपनी जीवनशैली के साथ सुशोभित होगा।

देशविदेश की संस्कृति और धर्म मानव को जीने की कला सिखाते हैं। महानगरों के नागरिकों की रोजमर्रा की जरूरतें समझ कर वास्तुरचनाकारों को स्मार्ट शहरों का नियोजन करना चाहिए। नागरिकों का रहन-सहन ऊंचा रखने की कोशिश इन प्रारूपों के माध्यम से होनी चाहिए। ये सारी बातें सोच कर सरकार को आगे की कोशिश करनी चाहिए, नहीं तो नागरिक भी इसे स्वीकार करने में आनाकानी करेंगे। सरकार की कोशिशें स्थानीय प्रशासन का अमल और नागरिकों की समझ इत्यादि बातों का समन्वय हो। तभी शहर अपनी जीवनशैली से मेल खाएंगे। डिजीटल टेक्नॉलॉजी पर आधारित दुनिया का सबसे पहला स्मार्ट शहर साउथ कोरिया में सॉंगडो १५०० एकड दलदली  जमीन पर विकसित किया गया है। यह शहर २०१५ के दिसम्बर महीने में दुनिया के साथ जोड़ा जाएगा।

डिजीटल टेक्नालॉजी और स्मार्ट तकनीक के अलग-अलग माध्यमों की उपयोगिता का लेखाजोखा

विदेशी तंत्रज्ञों के अनुसार ‘इंटरनेट ऑफ थिंग’ खजढ इस तकनीक को बढ़ावा दिया जाएगा, इसे पूरी दुनिया में फैलाया जाएगा। इस तकनीक से स्मार्ट उपकरण आपस में संपर्क और बातचीत कर सकेंगे। विख्यात सिसको कंपनी के मतानुसार ई.स.२०२० में ज्यादातर ५० बिलियन यानी (५००० करोड़) स्मार्ट उपकरणों का निर्माण होगा। अर्थात् एक आदमी के पास कम से कम ७ उपकरण होंगे, वह इंटरनेट के माध्यम से संपूर्ण दुनिया से जोड़ा जाएगा। प्रमुख रूप से यातायात के साधन, विद्युत, घरेलू उपकरणों का समावेश होगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि वैश्विक स्तर पर इसका व्यापार लगभग १.७ ट्रिलियन डॉलर होगा। साउथ कोरिया ने युवा वर्ग को बुरे साइटस् से दूर रखने के लिए ‘स्मार्ट शेरीफ’ नामक एप की खोज की है। युवा वर्ग की बढ़ती निराशा, आत्महत्या, मुसीबत में फंसे बच्चों की सुनिश्चित जानकारी ‘स्मार्ट शेरीफ’ और उससे मिलते-जुलते १४ एप्स के द्वारा मिलती है। जिससे अभिभावकों को बच्चों पर नजर रखना आसान होता है। बच्चे इंटरनेट के माध्यम से कौनसी साइट देखते हैं, इसकी जानकारी अभिभावकों को मिलने पर वे अपने मोबाइल से वह साइट ब्लॉक कर सकते हैं। कंपनी के सर्वे से साबित हुआ है कि युवक लगभग ४८,००० साइट्स देखते हैं।

स्मार्ट शहरों के प्रारूप या रूपरेखा विकसित करते समय निम्नलिखित बातों पर विचार करना जरूरी हैः

जैविक विज्ञान पर आधारित स्मार्ट शहरों के प्रारूपः इस विज्ञान पर आधारित स्मार्ट शहरों के नमूने बनाने के लिए भारत सरकार को प्रधानता देनी चाहिए। उदाहरणार्थ चीटियां – ये भी मनुष्य की तरह समूह (झुंड) बनाकर रहती हैं। उनकी ‘वल्मीक’ बनाने की कार्यपध्दति से सीखने लायक बहुत कुछ है। चीटियां छोटे, बड़े आकार के ‘वल्मीक’ की निर्मिति कर हजारों, लाखों की संख्या में एकत्रित रहती हैं। अनुशासनबध्द और एकत्रित रीति से अविरत काम करती हैं। उनमें यह अपूर्व क्षमता है। प्राकृतिक प्रक्रिया में सदैव होने वाले बदलाव की स्वीकार कर वे अपने घर ‘वल्मीक’ की रचना बदलना, अन्न व संसाधन जमा करना, मुसीबत में एक दूसरे को जानकारी देकर स्वयं की सुरक्षा भी करती है। समूह में रह कर सुरक्षा का काम भी संभालती है। काम का बंटवारा, आपाद कार्य में मदद, कठिन हालात को मात देकर नया उपाय ढूंढना, घर की अंतर्बाह्य रचना, चीटियों की कार्यपध्दति इत्यादि गुणों का अध्ययन कर मनुष्य बहुत कुछ सीख सकता है। उसी प्रकार प्रकृति के प्राणी और वनस्पतियों के माध्यम से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है।

स्मार्ट सिटी विकसित करना ज्यादातर जानकारी और तकनीक पर आधारित है? अनावश्यक तकनीक के जाल में मनुष्य को फांस कर उसे उलझा कर उसका जीवन यांत्रिक बनाना योग्य या अयोग्य इसका विचार भी होना चाहिए। इन स्मार्ट शहरों के प्रारूप में मानवी संवेदना को महत्वपूर्ण स्थान देना जरूरी है। डिजीटल तकनीक पूरी तरह से समझ कर योजनाबध्द प्रारूप के द्वारा शहरों की निर्मिति करते समय प्राकृतिक संसाधनों का विनाश कम से कम हो यह देखना भी जरूरी है।

स्मार्ट सिटी अभियान के उद्देश्य

अ)     स्थानीय क्षेत्र विकास और उपयुक्त तंत्रज्ञान का उपयोग कर शहरों की प्रगति करना, मौलिक सुविधा निर्माण कर नागरिकों के रहन-सहन में  सुधार लाना, रोजगार निर्मिति कराना, गरीबों के लिए आमदनी के स्रोत बढ़ाना।

ब)     शहरों का क्षेत्र विस्तारित करना – जो क्षेत्र आज अस्तित्व में है, उसे विकसित करना अर्थात नागरिकों को रहने के लिए सुयोग्य शहर विकसित करना।

क)     शहरों की बढ़ती आबादी को ध्यान में रखकर शहरों के पासपास नए शहर विकसित करना।

ड)     तंत्रज्ञान और डेटा स्मार्ट सोल्यूशन का उपयोग कर सर्वसमावेशक और शाश्वत शहरों की निर्मिति करना।

अभियान की व्यापकताः केंद्र शाासन समर्थित

स्मार्ट सिटी अभियान देश के १०० शहरों में कारगर करने की कोशिशें होंगी। इस अभियान की अवधि ५ साल तक है। प्रस्तुत अभियान की प्रगति का अंदाजा लेकर अभियान आगे चल कर जारी रहेगा या नहीं इस निर्णय केंद्र शासन लेगा।

संस्थात्मक संरचना ः प्रमुख सचिव की अध्यक्षता में उच्चाधिकार समिति गठित हुई है।

स्मार्ट सिटी सलाहकार फोरम ः शहर के स्तर पर स्मार्ट सलाहकार फोरम स्थापन करने को मान्यता दी गई है। स्मार्ट सिटी अभियान के अंतर्गत स्मार्ट शहर चुनने की कार्यपध्दति को अभियान के दो भागों में बांटा है।

वित्तिय रूपरेखा या मसौदा ः केंद्र शासन की सूचनानुसार, शासन की ओर से प्रति वर्ष, प्रति शहर १०० करोड़ रुपये का अनुदान उपलब्ध किया जाएगा। राज्य शासन और संबंधित स्थानीय निकाय को भी केंद्र शासन जितना ही निधि अर्थात १०० करोड़ रुपये प्रति वर्ष, प्रति शहर अनुदान उपलब्ध करना जरूरी है। उसके अनुसार राज्य और संबंधित स्थानीय निकाय की ओर से जमा होने वाली निधि के संबंध में वित्तीय प्रारूप को निम्नलिखित रूप में मान्यता दी है।

उपलब्ध होनेवाला निधि।

स्मार्ट शहरों की बनावट में भारतीय जीवनमूल्यों को उंचा दर्जा मिलना चाहिए, वे शहर अपनी जीवनशैली के अनुसार होने चाहिए। स्मार्ट शहरों के प्रारूप बनाना कठिन नहीं है, पर नागरिकों की समस्याएं, उनका रूझान और रोजमर्रा की जरूरतें ध्यान में रखकर शहरों के प्रारूप कैसे बनाए जाए, यह बड़ी चुनौती है। यह समस्या जटील है तथा इसे संवेदनशीलता के साथ ही देखा जाना चाहिए। स्मार्ट शहरों के प्रारूप से सामान्य लोगों की समस्याएं कैसे सुलझाई जाती हैं, इस पर उसकी सफलता निर्भर करती है। अपने सामने चुनौती है उसे सफल बनाने की। भविष्य में होने वाले स्मार्ट शहरों के प्रारूप का लेखा परीक्षण और जांच होना जरूरी है। इसी से नागरिकों की सजगता और कुशलता पता चलेगी।

कुछ साल पहले ऐसा समय था जब अपने यहां विज्ञान को अनदेखा किया जाता था, परंतु आज हम वहां पहुंचे हैं जहां डिजीटल टेक्नॉलॉजी की दखल न लें और उसका इस्तेमाल न करें ऐसा हो नहीं सकता। कल के भारत के शहर इसी तकनीक पर विकसित होने वाले हैं। यह तकनीक हमारे कितने काम की और जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है, इसका विचार विशषज्ञ समाज के सामने रखें।

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