व्यर्थ न हो पुरखों का बलिदान

आईएसआई के इशारे पर काम करने वाले समूह सिख्स फॉर जस्टिस के द्वारा झूठ की बुनियाद पर रेफरेंडम 2020 यानि जनमत संग्रह करने का प्रयास किया गया। जनमत संग्रह को सिख समाज ने खारिज कर दिया। इसी प्रकार नवंबर 2021 के प्रथम सप्ताह में लंदन में भी खालिस्तानी समर्थकों के द्वारा जनमत संग्रह करवाया गया, जिसमें लगभग तीन करोड़ पंजाबी जनता के मत लगभग 200 लोग तय करते देखे गए।

गुरू नानक देव, गुरू अंगद देव, गुरू तेग बहादुर, गुरू गोबिंद सिंह या अन्य सभी सिख पंथ के धर्म गुरूओं के बलिदान, संघर्ष तथा उपदेश को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समझना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि देश और धर्म की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान करने का साहस इसी समाज की महिलाओं और पुरूषों ने किया था। खालसा पंथ के सृजनहार गुरू गोबिंद सिंह, जिन्होंने अनेक संतानों की रक्षा के लिए अपनी संतान को, अपने वंश का बलिदान दे दिया। राष्ट्र की रक्षा के लिए, धर्म की रक्षा के लिए, त्याग और बलिदान का इससे बड़ा उदाहरण कोई हो नहीं सकता है। भारत के भीतर मुग़ल शासन के दौरान सिख पंथ के संघर्ष को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। 1675 ई. में गुरू तेग बहादुर को प्राणदंड दिये जाने के बाद औरंगज़ेब के ख़िलाफ़ सिखों का प्रत्यक्ष विद्रोह हुआ। मुगलों के दमन और अत्याचारों का दृढ़तापूर्वक सामना करने के लिए सिख संप्रदाय ने भलीभांति सैनिक की भूमिका निभाई थी। मुगलों के काले इतिहास में झांक कर देखेंगे तो पता चलेगा कि सिखों पर यातनाओं का अंबार लगाया हुआ था, क्योंकि मुगलों का भारत में मुख्य लक्ष्य सनातन धर्म को मानने वाले लोगों का मतान्तरण कराना अन्यथा घोर यातनाएं देना व जान से मार देना ही था।

मध्यकालीन भारत में इस्लाम अपनाओ या मरो की शर्त रखने वाले इस्लामिक आतताई अपने मक़सद में पूर्णतः सफल नहीं हो पाए थे। इसी असफल मंशा को पूर्ण करने के लिए भारत की स्वाधीनता के बाद पाकिस्तान के भीतर बैठ कर मोहम्मद ज़िया-उल-हक़ ने पंजाब और कश्मीर के माध्यम से भारत को लहूलुहान करने के लिए ’के2’ योजना बनाई थी।

सिख समाज में अलगाव की भावना

सिख समाज वास्तव में समानता, सत्यता, दया और सहभाजन के लिए कार्य करते हुए पाया जाता है। गुरु नानक देव का मानना था कि दुनिया में दु:ख की मूल वजह जाति और पंथ के कारण उत्पन्न भेदभाव है। इस प्रकार, उन्होंने अपने अनुयायियों में संगत और पंगत की अवधारणा के माध्यम से सभी में भेदभाव की भावना मिटाने का प्रयास किया था। पिछले कुछ दशकों पर नजर डालें तो राजनीति से प्रेरित चंद व्यक्तियों के द्वारा भटकाव और विनाशकारी विचारों का एक साथ संगम करवाया जा रहा है जिसके नतीजतन अलगाव की भावना को बढ़ावा मिल रहा है। अलगाव की दशा यह है कि सिख समाज को सबसे बड़ा खतरा हिंदूओं से बताया जा रहा है। नौंवे गुरू तेगबहादुर को हिंद-की-चादर नाम से जाना जाता था तो वहीं मुगलों के साथ संघर्ष के दौरान हिंदू माताओं ने अपने बच्चों को सिख बनने के लिए भेजा (संघर्ष के लिए भेजा)। दुर्भाग्यवश आज बरगलाने वाले अपनी कुटिल भावना को फैलाने में सफल होते नज़र आ रहे हैं और हिंदू एवं सिख अपने गुरुओं के दिखाए गए मार्ग से विचलित हो रहे हैं।

खालिस्तान आंदोलन

दबे मुंह अलग देश की बात भारत की स्वाधीनता के बाद से ही सुनने को मिल जाती थी लेकिन सिख समाज के लोग भारत में अपनी आस्था रखते थे और भारत को ही अपना देश मानते थे। खालिस्तान आंदोलन विदेशी सहायता की ताक़त पर आज भी सिख समाज में अलगाव फैलाने का प्रयास करता है, लेकिन सिख समाज का बहुसंख्यक हिस्सा आज भी भारत को अपनी मातृभूमि मानता है। यही कारण है कि अलगाववादी नेता अपनी कुत्सित मानसिकता में सफल नहीं हो पा रहें हैं। अलगाव चाहे सांस्कृतिक हो, जातीय हो, धार्मिक हो, नस्लीय हो, सरकारी हो या लैंगिक हो अंततोगत्वा वह विघटन की ओर ही ले जाएगा। खालिस्तान आंदोलन को कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका में बैठे चंद अलगाववादी नेताओं के साथ-साथ पाकिस्तान से बड़ी मात्रा में समर्थन मिलता है। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तान को मिली करारी शिकस्त के बाद बौख़लाए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने खालिस्तान बनाने में मदद का प्रस्ताव रखा था। हर बार शिकस्त से तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक को भी काफ़ी गहरा घाव लगा था। जब सीधे युद्ध के माध्यम से कश्मीर पर फ़तह नहीं मिल रही थी तो भारत के ख़िलाफ़ साज़िशों का जाल बुना गया। कश्मीर के साथ पंजाब में खालिस्तान के नाम पर धार्मिक कट्टरपंथ, आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा देने की योजना बनी। इसके तहत अलगाववादियों को पाकिस्तान में प्रशिक्षण, पैसा और हथियार दिए जाने की व्यवस्था हुई। ब्लीड इंडिया के मंसूबों में पाकिस्तान, खालिस्तान के माध्यम से सफल हो सकता है, लेकिन वैश्विक अल्पसंख्यक सिख समाज के बहुसंख्यक लोग खालिस्तान का समर्थन आज भी नहीं करते हैं।

अलगाव का अंतरराष्ट्रीय जाल

कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका में रहने वाले कुछ सिख इंटर-सर्विसेज़ इंटेलिजेंस और पाकिस्तान के षड्यंत्र का शिकार हो रहें हैं। आईएसआई के इशारे पर काम करने वाले समूह सिख्स फॉर जस्टिस के द्वारा झूठ की बुनियाद पर रेफरेंडम 2020 यानि जनमत संग्रह करने का प्रयास किया गया। जनमत संग्रह को पहले सिख समाज ने खारिज किया तो बाद में यह समूह कश्मीरियों पर डोरे डालने लगे लेकिन सब तरफ से मुंह की खानी पड़ी। इसी प्रकार नवंबर 2021 के प्रथम सप्ताह में लंदन में भी खालिस्तानी समर्थकों के द्वारा जनमत संग्रह करवाया गया, जिसमें लगभग तीन करोड़ पंजाबी जनता के मत लगभग 200 लोग तय करते देखे गए। हास्यास्पद बात यह है कि पंजाब में रहने वाले गैर सिखों को इसमें मतदान का अधिकार नहीं था। इन षडयंत्रों के माध्यम से खलिस्तानी अलगाववादियों के द्वारा सिख समाज को हिंदू धर्म से अलग दिखाने की होड़ में ‘हम हिंदू नहीं हैं और सिख मुसलमानों के अधिक निकट हैं, क्योंकि दोनों एक ईश्वर को मानते हैं,’ जैसी बयानबाजी करते हुए पाए जा सकते हैं। 1980 के दशक में इसी अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र की वजह से भारत के पंजाब प्रांत में जरनैल सिंह भिंडरावाला के नेतृत्व में उग्रवादी हिंसक गतिविधियों में तेजी से इज़ाफ़ा हुआ था। पाकिस्तान द्वारा समर्थित अलगाववादी खालिस्तानी समूह अमेरिका में तेजी से अपनी पकड़ मजबूत कर रहें हैं। पाकिस्तानी इस्लामी आतंकवादी संगठनों की तरह खालिस्तानी संगठन भी नए नामों के साथ सामने आ सकते हैं। खालिस्तानी अलगाववादी समूहों के भारत में उग्रवादी और आतंकवादी समूहों के साथ संबंध स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं।

खालिस्तान के ठेकेदारों ने पाकिस्तान के रास्ते को अपनाया है। उसी भारत के भीतर हिंसा, आतंक और अलगाव फैलाने का काम कर रहें है जिसके लिए कभी गुरु तेग बहादुर और गुरु गोबिंद सिंह ने संघर्ष किया और अपना बलिदान दिया था। वर्तमान में कुछ धार्मिक अलगाववादी नेता सिख और हिंदूओं के बीच फूट डालने का प्रयास कर रहें हैं। उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि मूल सनातन है, क्योंकि गुरू गोबिंद सिंह के द्वारा रचित दशम ग्रंथ के चण्डी चरित्तर में चण्डी की स्तुति करते हुए वरदान मांगते है कि: –

देह सिवा बरु मोहि इहै सुभ करमन ते कबहूं न टरों।

न डरों अरि सो जब जाइ लरों निसचै करि अपुनी जीत करों ॥

अरु सिख हों आपने ही मन कौ इह लालच हउ गुन तउ उचरों।

जब आव की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझ मरों ॥

 

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