मजदूरों के मसीहा ठाकुर प्यारेलाल सिंह

देश की आजादी के लिए लाखों लोगों ने अपना बलिदान दिया है। कुछ लोगों के अलावा दुनिया किसी को नहीं जानती है जबकि ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जिन्होंने देश के लिए बड़ा योगदान दिया लेकिन उनके बलिदान का कोई प्रचार नहीं हो सका। तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने उनके बलिदान को वहीं पर दबा दिया जिससे देश में आजादी की आग और ना भड़क सके लेकिन इतिहासकारों की वजह से ऐसे तमाम वीर सपूतों का जिक्र इतिहास में मिलता है जिन्होंने देश और देशवासियों के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया था। छत्तीसगढ़ के ठाकुर प्यारेलाल सिंह भी उन्हीं वीर सपूतों में से एक थे जिन्होंने मां भारती के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया और देश की आजादी के लिए कभी ना मिटने वाला इतिहास खुद के नाम कर गये। 

ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जन्म 21 दिसंबर 1891 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के दैहान गांव में हुआ था। पिता दीनदयाल और माता नर्मदा देवी के आशीर्वाद से प्यारेलाल सिंह बचपन से ही बहुत तेज थे। पढ़ाई के साथ साथ अन्य काम में भी वह हमेशा आगे रहते और यही कारण रहा कि उन्होंने एक इतिहास चर दिया। रायपुर और जबलपुर से मिलाकर उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की और वकालत कर लिया लेकिन जब पूरे देश में आजादी के लिए असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई तब इन्होंने वकालत छोड़ आंदोलन में भाग ले लिया। ठाकुर साहब के नेतृत्व में कई किसान आंदोलन हुए जिसमें से अधिकतर सफल रहे हालांकि उन्हें इसकी कीमत अलग से चुकानी पड़ी थी। ठाकुर साहब ने छत्तीसगढ़ मजदूर आंदोलन, बीएनसी मिल मजदूर आंदोलन, 1920 प्रथम मजदूर आंदोलन, 1924 द्वितीय मजदूर आंदोलन और 1937 तृतीय मजदूर आंदोलन में भाग लिया था। 

वह 1920 का दौर था जब देश में औद्योगीकरण तेजी से हो रहा था। मालिक और मजदूर के बीच का मतभेद भी अपने चरम पर चल रहा था। उस दौरान सरकार की नीतियां भी मजदूरों के खिलाफ ही थी उनकी सुनवाई कहीं नहीं हो रही थी ऐसे में मजदूरों के पास हड़ताल करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था जिसके बाद ठाकुर प्यारेलाल ने मजदूर आंदोलन के हड़ताल की शुरुआत की और कड़ी लड़ाई के बाद मजदूरों के हक में जीत हुई। दरअसल उस समय मिल मालिक मजदूरों से 13-14 घंटे का काम लेते थे ऐसे में मजदूरों का संतोष जवाब दे गया और उन्होंने अपनी बात मनवाने के लिए हड़ताल का सहारा लिया। ठाकुर प्यारेलाल के नेतृत्व में यह हड़ताल 36 दिनों तक चला और अंत में मिल मालिक को झुकना पड़ा। 

ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने देश की आजादी में भी योगदान दिया है। 1906 में उनकी मुलाकात बंगाल के क्रांतिकारियों से हुई थी जिसके बाद यह तेजी से आगे बढ़े और छात्रों के संगठन बनाने लगे। आजादी में देश के युवाओं को शामिल करने के लिए वह विश्वविद्यालय में जाने लगे और विद्यार्थियों को इकट्ठा कर ‘वंदे मातरम’ के नारे लगवाने लगे। आजादी की लड़ाई और मजदूरों को इंसाफ दिलाने के लिए ठाकुर साहब को कई बार जेल भी जाना पड़ा था और इनके घर को प्रशासन की तरफ से कुर्क कर दिया गया था लेकिन आप अपनी इच्छा शक्ति के बल पर यह लड़ाई लड़ते रहे और अंत समय तक सच का साथ दिया। 20 अक्टूबर 1954 को ठाकुर साहब ने अपने शरीर को त्याग दिया, उनके सम्मान में छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से सहकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट सम्मान “ठाकुर प्यारेलाल सिंह” दिया जाता है। 

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