हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्तान के पक्षधर पं. मदनमोहन मालवीय

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक, महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित पंडित मदन मोहन मालवीय की 160वीं जयंती पर आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। पंडित जी वह शिक्षक थे जो युवाओं में देश प्रेम की अलख जगाते जिससे समय आने पर राष्ट्र प्रेमियों की कमी ना हो। शायद उनके इस प्रयास की वजह से ही भारत देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो सका था। पंडित महामना मदनमोहन मालवीय  का जन्म 25 दिसंबर 1861 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुआ था। हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान के उत्थान के प्रति समर्पित मालवीय जी मातृभाषा में शिक्षा के प्रबल पक्षधर थे, उनका मानना था कि छात्रों की सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि शिक्षा का माध्यम हमारी मातृभाषा ना होकर एक विदेशी भाषा है जबकि संसार के किसी भी अन्य भूभाग में उस समुदाय के शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है। पंडित जी का स्पष्ट मत था कि साहित्य और देश की उन्नति अपने देश की भाषा के द्वारा ही हो सकती है। प्राचीन वैदिक काल से 19वीं सदी के मध्य तक अपने देश में गुरुकुल तथा उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा का माध्यम संस्कृत एवं भारतीय भाषाएं रही है।  

पंडित मदन मोहन मालवीय एक देश भक्त, समाज सुधारक, अग्रणी पत्रकार, सफल सांसद, राष्ट्र के महानदूत और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने राष्ट्र निर्माण में बहुत ही बड़ी भूमिका निभाई थी इसके साथ ही उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी कड़ी मेहनत की है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय उसका ही एक सफल परिणाम है। इसकी स्थापना से पूरे विश्व में शिक्षा के इतिहास में एक नये अध्याय की शुरुआत हुई। मालवीय जी का यह विचार था कि एक ऐसे विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए जहां भारत की प्राचीन और उच्च परंपराओं को पढ़ाया जाए जिससे लोग भारत को और अधिक जान सके, साथ ही कला, विज्ञान और तकनीकी की भी जानकारी ले सके।

मदनमोहन मालवीय जी की सोच थी कि हमारे शिक्षण संस्थान विश्व और ज्ञान के समृद्ध केंद्र हों जहां विद्यार्थी निरंतर पठन-पाठन एवं शोध पूर्ण जानकारी और जिज्ञासाओं के बल पर पौराणिक भारतीय सभ्यता, दर्शन, धर्म, मानवीय कला से लेकर आधुनिक कला, विज्ञान, चिकित्सा, कृषि एवं तकनीकी के विभिन्न क्षेत्रों में मार्गों को प्रशस्त करें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 वास्तव में मालवीय जी के सपनों को साकार करने की दिशा में एक ऐतिहासिक एवं क्रांतिकारी कदम है। नई शिक्षा नीति युवाओं को यह सुअवसर प्रदान करती है कि वह भारत की गौरवमई परंपराओं एवं पौराणिक मान्यताओं को आत्मसात करते हुए आधुनिक कला, विज्ञान एवं तकनीकी में भी शिक्षा हासिल कर सकते हैं।

यह मालवीय जी की शिक्षा दृष्टि ही थी कि प्राचीन भारत के गुरुकुल तथा तक्षशिला नालंदा एवं विक्रमशिला जैसे शिक्षा के आदर्श केंद्रों की परंपरा को पुनर्जीवित करते हुए भारतीय ज्ञान विज्ञान की अति समृद्ध एवं गौरवशाली दृष्टि के साथ पश्चिम के अत्याधुनिक ज्ञान विज्ञान का अद्भुत में स्थापित किया गया। छात्रों के सर्वांगीण विकास के प्रति समर्पित भारतीय सांस्कृतिक मूल्य और भारतीय दृष्टि के अनुरूप उच्च कोटि के भारतीय पारंपरिक ज्ञान, विज्ञान को आत्मसात करती शिक्षा व्यवस्था के कारण ही भारत विश्व गुरु बना। मालवीय जी के अनुसार गुरुकुल की शिक्षा व्यवस्था के अनुरूप शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान और कौशल सशक्तिकरण के अतिरिक्त ऐसे युवाओं का सृजन करना है जो सर्वांगीण अर्थात बहुत ही नैतिक सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक रूप से विकसित हो। मालवीय जी की शिक्षा दृष्टि भौतिकता को नैतिकता से जोड़ने की है ताकि शरीर के विकसित होने के साथ-साथ मन भी शुद्ध होकर विकसित हो तथा आत्मा भी विकसित हो।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में 3 वर्ष की आयु से लेकर उच्च शिक्षा के हर स्तर पर छात्र के लिए भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों, परंपराओं, लोक कलाओं, भारतीय भाषाओं एवं मानवीय मूल्यों के शिक्षण की व्यवस्था की गई है जिसके लिए उपयुक्त पाठ्य सामग्री एवं पाठ्य विधियां विकसित की जानी है। पाठ्यक्रम में जनजाति एवं स्वदेशी ज्ञान सहित भारतीय ज्ञान प्रणालियों को समाहित करने का भी प्रावधान है। यह शिक्षा नीति समृद्ध भारतीय संस्कृति एवं परंपराओं की ठोस बुनियाद पर भारत की सांस्कृतिक विरासत तथा मूल्य पर ज्ञान भंडार को समाहित करते हुए ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व वाले छात्रों के सृजन का संकल्प लेती है जिनका शारीरिक विकास हो, मन स्वस्थ हो, आदर्श उच्च कोटि के हो तथा 21वीं सदी की वैश्विक चुनौतियों का सफलता से सामना करने में सक्षम हो। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन से भारत में 185 वर्ष से चली आ रही मैकाले की दास्तां भरी शिक्षा नीति से जिसमें प्राथमिक कक्षाओं से ही विदेशी भाषा में अध्ययन, अध्यापन का खुला प्रावधान है। निश्चित रूप से मुक्ति मिलेगी इस शिक्षा नीति से छात्र 3 वर्ष की उम्र से ही कक्षा 5 तक मातृभाषा स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे। इस शिक्षा नीति में कक्षा 8 और उसके आगे उच्च शिक्षा के लिए भी छात्र की इच्छा के अनुरूप भारतीय भाषाओं में अध्ययन का प्रावधान है। देश के लिए प्रेम और शिक्षा में परिवर्तन के लिए हमेशा अग्रसर रहने वाले पंडित जी ने 12 नवंबर 1946 को बनारस (काशी) में अपने प्राण त्याग दिए।

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