नियमन के दायरे में होना चाहिए मोबाइल टैरिफ

प्रमुख टेलीकॉम कंपनियां अपना मजबूत कार्टेल बनाकर उपभोक्ताओं को तिल-तिल करके मार रहीं हैं क्योंकि कोरोना के बाद वैसे भी देश में आम आदमी मंहगाई की मार से त्रस्त है, ऐसे समय में टैरिफ में बढ़ोतरी को वापस लिया जाना चाहिए। कुल मिलाकर मोबाइल टैरिफ सरकारी नियमन के दायरे में होना चाहिए अन्यथा ये टेलीकॉम कंपनियां कभी भी मनमानी कर सकतीं हैं जो आम आदमी के जेब पर भारी पड़ेगी।

हाल में ही देश के प्रमुख मोबाइल नेटवर्क प्रोवाइडर्स भारती एयरटेल, वोडाफ़ोन-आइडिया और रिलायंस जिओ ने अपने मोबाइल टैरिफ में 21 से 25 प्रतिशत बढ़ोतरी कर दी है। एक मशहूर कहावत है कि दुनियां में कुछ भी फ्री नहीं मिलता (देयर इज नो फ्री लंच इन दिस वर्ल्ड), ये बात भारतीय टेलीकॉम इंडस्ट्री पर पूरी तरह से लागू होती है।

कुछ साल पहले जब रिलायंस जिओ ने भारतीय टेलीकॉम इंडस्ट्री में कदम रखा था तो उसने ग्राहकों को जोड़ने के लिए मोबाइल और इंटरनेट के टैरिफ बहुत सस्ते या लगभग फ्री कर दिए थे। उसके बाद जिओ टेलीकॉम इंडस्ट्री तेजी से बड़ा कस्टमर बेस तैयार करते हुए सबसे बड़ा प्लेयर बन गई। मोबाइल और इंटरनेट के सस्ते टैरिफ की वजह से ग्राहक लगातार जिओ से जुड़ते रहे और जिओ से प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए एयरटेल, वोडाफ़ोन-आइडिया को भी अपने टैरिफ कम करने पड़े।

जिओ जब मार्केट में अपनी पैठ ज़माने के लिए मोबाइल-इंटरनेट प्लान लगभग फ्री में दे रही थी तभी ये बात निश्चित हो गई थी आगे आने वाले समय में देर सबेर मोबाइल दरों में बढ़ोतरी जरुर होगी। अब वो समय आ गया गया है जब देश की तीनों बड़ी टेलीकॉम कंपनियों ने एक साथ अपने मोबाइल टैरिफ में बड़ी वृद्धि कर दी है। कोरोना के बाद जब देश का मध्यम और गरीब वर्ग पहले से ही महंगाई की मार झेल रहा है ऐसे में मोबाइल टैरिफ में इतनी बड़ी बढ़ोतरी ठीक नहीं है।

भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया के अनुसार उन्होंने अपने वित्तीय सुधार के लिए अपने प्रीपेड प्लान टैरिफ में 25 फीसदी तक की बढ़ोतरी की है। इसके तुरंत बाद देश के सबसे बड़े मोबाइल ऑपरेटर रिलायंस जिओ ने 1 दिसंबर से अपने प्रीपेड टैरिफ में 21 फीसदी के इज़ाफे का ऐलान किया। मोबाइल टैरिफ में इस प्रकार की बढ़ोत्तरी आगे भी जारी रहने की उम्मीद है। भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया का कहना है कि कारोबार को बनाए रखने के लिए हर यूजर्स से 200 रुपये से 300 रुपये हर महीने लिए जाने चाहिए लेकिन कॉम्पिटिटिव प्रेशर के कारण वे टैरिफ में इज़ाफा करने में नाकाम रहे।

असल में ये सब टेलीकॉम इंडस्ट्री में एकाधिकार की जंग के चलते हुआ। कई छोटी, बड़ी, मझोली टेलीकॉम कंपनियां भारी घाटे के चलते मार्केट से बाहर हो गई, ऐसे में अब मुख्यतः जिओ, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ही प्रतिस्पर्धा में बची हुई हैं और इन तीनों ने आम सहमति से एक साथ टैरिफ में भारी बढ़ोत्तरी कर दी। इनका ये कदम भविष्य के लिए भी अच्छा नहीं है क्योंकि जब बाजार में एकाधिकार स्थापित होने लगता है तो वो कंपनी अपने मनमाना व्यव्हार करने लगती है इसीलिए बाजार में ज्यादा कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा होना जरुरी है।

टेलिकॉम सेक्टर में जियो के आने से बदलाव

साल 2016 में जिओ के आने के बाद भारतीय टेलिकॉम सेक्टर में बड़े बदलाव भी देखने को मिलें। जिओ का आना भारतीय सूचना क्षेत्र में एक क्रांति की तरह था। इसके पहले अन्य टेलिकॉम कंपनियों का सेवा शुल्क काफ़ी अधिक था इसलिए सामान्य लोगों के लिए इंटरनेट एक खर्चीली और महंगी सेवा थी लेकिन जिओ के आने के बाद ऑनलाइन शिक्षा का दायरा अधिक विस्तृत हुआ।

जिओ के आने के बाद ओटीटी प्लेटफार्म, ऑनलाइन स्ट्रीमिंग जैसे नेटफ्लिक्स, एमेजान और हॉटस्टार जैसे विडीओें स्ट्रीमिंग कंपनियों के पास उपभोक्ताओं की बाढ़ आ गई। टेलिकॉम कंपनियों में सस्ता और तेज़ इंटरनेट गति प्रदान करने की प्रतिस्पर्धा शुरू हुई है और इसका लाभ ग्राहकों को मिला। उपभोक्ताओं को अपनी तरफ़ आकर्षित करने के लिए वर्तमान समय में ये सभी कंपनियां लगभग हर महीने अपनी स्पीड का आंकड़ा जारी करने लगी।

इस ऑनलाइन क्रांति से ई कामर्स प्लेटफार्म जैसे फ्लिपकार्ट, एमेजान, मिन्त्रा आदि के व्यापार में विशाल बढ़ोत्तरी देखने को मिली। नए स्टार्ट अप जैसे स्वीगी, जोमेटो, पेटीएम आदि इंटरनेट क्रांति से ही सफल हुए। टेलीकॉम सेक्टर में जिओ का आना देश के आम लोगों, व्यापारियों, एंटरप्रिनियर, अध्यापकों तथा विद्यार्थियों के लिए बहुत सहायक रहा पर हर सिक्के के दो पहलू की तरह कुछ ऐसी समस्याएं भी खड़ी हुई, जिनको नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। धीरे-धीरे टेलिकॉम सेक्टर में जिओ का एकाधिकार स्थापित हो गया जिसका नतीजा अब सबके सामने है। अपनी सेवाए फ्री से शुरू करने के बाद अब जिओ ने अपना टैरिफ काफी बढ़ा दिया।

बीएसएनएल और एमटीएनएल को नुकसान

एक समय में सरकारी बीएसएनएल और एमटीएनएल भारतीय टेलीकॉम सेक्टर की रीढ़ थे लेकिन ये सरकारी उपक्रम निजी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा में काफी पीछे रह गए। सरकार ने भी समय रहते इनको उबारने में मदत नहीं की जबकि सच्चाई यह है कि शुरूआती दौर से निजी टेलिकॉम कंपनियों ने बीएसएनएल के ही संसाधन प्रयोग किए। परिणाम यह हुआ कि इन उपक्रमों के कर्मचारियों को वेतन दो-दो महीने देरी से मिलने लगा और अंततः जनवरी 2020 में बीएसएनएल के लगभग 79,000 से अधिक कर्मचारियों व अधिकारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दे दी गई। शुरुवाती दौर में जब कोई प्राइवेट कंपनी नहीं थी, तो दूरसंचार व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी बीएसएनएल की थी। सारे सरकारी विभागों में टेलीफोन, इंटरनेट कनेक्शन और मोबाइल फोन बीएसएनएल के द्वारा ही लगाए गए, लेकिन इन विभागों का बकाया बिल बीएसएनएल को नहीं मिल पाता है। बीएसएनएल का इन्वेस्टमेंट बहुत ज्यादा हो गया लेकिन रिटर्न समय पर नहीं मिल पाया जबकि निजी कंपनियों ने अपना टारगेट निर्धारित करके बिज़नेस किया और आगे बढ़ गए। इससे बीएसएनएल को भारी नुकसान हुआ। कुल मिलाकर बीएसएनएल और एमटीएनएल सरकारी उपेक्षा की शिकार हो गई।

भविष्य में भी बढ़ेगा मोबाइल टैरिफ

भारती एयरटेल ने एक बयान में कहा कि एवरेज रेवेन्यू पर यूजर (अठझण) 200 रुपये होना चाहिए और फिर इसे बढ़ाकर 300 रुपये पहुंचना चाहिए। ताकि कंपनियों का निवेश की गई पूंजी पर वाजिब रिटर्न मिल सके। कंपनी का तर्क है कि हेल्दी बिजनस मॉडल के लिए यह जरूरी है। कंपनी ने साथ ही कहा कि एआरपीयू के इस स्तर पर आने से नेटवर्क और स्पेक्ट्रम के लिए जरूरी निवेश मिलेगा। साथ ही इससे कंपनी को देश में 5जी सर्विस शुरू करने के लिए संसाधन मिल सकेंगे। इसलिए कंपनी ने अभी टैरिफ बढ़ाने का फैसला किया है। लेकिन भारती एयरटेल की यह दलील गले नहीं उतरती क्योंकि भारती एयरटेल और जिओ लगातार मुनाफें में चल रहीं हैं, ऐसे में मोबाइल टैरिफ बढ़ाना उपभोक्ताओं के साथ अन्याय है।

कुल मिलाकर प्रमुख टेलीकॉम कंपनियां अपना मजबूत

कार्टेल बनाकर उपभोक्ताओं को तिल-तिल करके मार रहीं हैं क्योंकि कोरोना के बाद वैसे भी देश में आम आदमी मंहगाई की मार से त्रस्त है, ऐसे समय में टैरिफ में बढ़ोतरी को वापस लिया जाना चाहिए। कुल मिलाकर मोबाइल टैरिफ सरकारी नियमन के दायरे में होना चाहिए अन्यथा ये टेलीकॉम कंपनियां कभी भी मनमानी कर सकतीं हैं जो आम आदमी के जेब पर भारी पड़ेगी।

 

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