बिजली, पानी, लोन सब कुछ मुफ्त लीजिए लेकिन वोट दीजिए!

शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि राजनीति का स्तर दिन पर दिन गिरता ही जा रहा है और इसके लिए सिर्फ नेता ही नहीं बल्कि जनता भी उतनी ही जिम्मेदार है क्योंकि जनता को खुद अब लुभावने वादे पसंद आने लगे हैं और मुफ्तखोरी की आदत होती जा रही है। जनता के पास खुद का कोई विकल्प नहीं बचा है और वह भी यही देखती है कि उनकी जरूरतों को कौन पूरा कर रहा है वह जरूरतें धार्मिक, आर्थिक और जातिवादी कुछ भी हो सकती है उदाहरण के तौर पर दिल्ली की सरकार है जो मुफ्त बिजली, पानी के नाम पर सत्ता में काफी समय से काबिज है और उनका यही फार्मूला अब पंजाब में भी लगाया जा रहा है। राजनीति में अगर सफलता का कोई फार्मूला बनता है तो उसे सब आजमाने लगते हैं और यही वजह है कि अब उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव में भी मुफ्तखोरी का बीज बोया जा रहा है। सपा नेता अखिलेश यादव ने भी उत्तर प्रदेश के किसानों को लुभाते हुए कहा कि अगर वह सत्ता में आते हैं तो फिर किसानों को मुफ्त बिजली, लोन, बीमा व पेंशन दी जाएगी। 

दरअसल अब चुनाव का पूरा रूप ही बदल दिया गया है। नेता अब सीधे सीधे लेन-देन की बात करते हैं कि आप हमें वोट दीजिए बदले में हम आप को बिजली, पानी, बीमा, लैपटॉप, मोबाइल और तमाम चीजें मुफ्त में देंगे। इससे पहले वोट के दौरान पैसे और शराब बांटने की खबरें आती रहती है जिसे पूरी तरह से झुठलाया नहीं जा सकता है। अब अगर जनता किसी सामान के बदले में वोट देगी तो वह नेता से किसी विकास की उम्मीद भी नहीं कर सकती है क्योंकि नेता उन्ही सरकारी पैसों से आप को सामान देगा और खुद का विकास करेगा। जनता सवाल करने लायक भी नहीं रहेगी और फिर देश या राज्य का विकास कभी नहीं हो सकेगा। सवाल तो नेताओं पर सभी लोग उठाते हैं लेकिन कहीं ना कहीं सब खुद के फायदे के लिए पहले सोचते हैं और यह ट्रेंड लगातार बढ़ता जा रहा है। नेता भी इसे पूरी तरह से समझ चुके हैं कि जनता अब समाज या देश के लिए नहीं सोचती है उसे सड़क, अस्पताल या फिर शिक्षा पर कोई बात नहीं करनी है बल्कि उसे सिर्फ जाति और खुद के विकास के लिए सोचना है इसलिए नेता उसी के अनुरूप अपनी बात रखते हैं और चुनाव जीत जाते हैं। 

 

चुनाव के समय नेताओं द्वारा अक्सर यह कहा जाता है कि हम बिजली, पानी, लैपटॉप और बहुत कुछ मुफ्त में देगें और जनता उसे मान भी लेती है लेकिन आप भी जरा सोचकर देखिए कि यह मुफ्त का सामान कहां से और कैसे आता है? क्या कोई भी नेता अपने पार्टी फंड से यह समान देता है या अपनी एक भी सैलरी वह दान करता है, ऐसा कुछ भी नहीं होता है। आम जनता के बीच से ही करोड़ो लोग सरकार को अलग अलग रूप में टैक्स देते हैं फिर सरकार उसी पैसे को देश के विकास में इस्तेमाल करती है। चुनावी वादे के मुताबिक सरकार इसी पैसों से लोगों का लोन माफ करती है, बिजली का बिल माफ करती है और युवाओं को लैपटॉप देती है यानी कि जनता का पैसा जनता के लिए ही इस्तेमाल हो जाता है फिर इसमें सरकार को श्रेय कहां से जाना चाहिए? यह बात सभी को समझनी होगी और चुनाव में वोट देने से पहले सही नेता का चुनाव करना होगा। मुफ्तखोरी एक बीमारी है जो पूरा जीवन बर्बाद कर सकती है इसलिए एक ऐसी सरकार का चुनाव करना होगा जो मुफ्त का लॉलीपॉप ना दें बल्कि राज्य या देश लिए रोजगार पैदा करे जिससे पूरे परिवार की जीविका चल सके। 

देश के तमाम अर्थशास्त्री इस बात को मान चुके हैं कि राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त के वादे देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर करते हैं और इसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ता है। राजनीतिक दल किसानों या कारोबारियों का लोन माफ कर देते हैं लेकिन इससे रिजर्व बैंक पर बहुत बड़ा बोझ आ जाता है जिससे अर्थव्यवस्था को झटका लगता है और हम कहीं ना कहीं खुद को पीछे कर देते हैं। देश के करीब सभी सरकारी विभागों की हालत खस्ता हो चुकी है और इसकी एक वजह लगातार बिजली बिल की माफी भी है। राज्यों के तमाम सरकारी विभाग अब बिकने की कगार पर आ गये हैं क्योंकि अब उनके रखरखाव के खर्चे और कर्मचारियों के वेतन का भी पैसा नहीं वसूल हो पाता है। ऐसे में सरकार को ऐसे विभाग निजी कंपनियों के हाथों में बेचना पड़ता है।  

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