पराक्रमी राष्ट्रनायकों से होता है देश सुरक्षित

 

ज़लेंसकि एक सच्चा नेता है जो पूरी बहादुरी के साथ मिलिट्री यूनिफॉर्म पहनकर राजधानी में लड़ने के लिए तत्पर खड़ा है यही सच्चे नेता की परिभाषा होती है। राष्ट्रप्रमुख हो तो ज़लेंसकि जैसा यही प्रचलित नैरेटिव मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया पर चलाया जा रहा है ना। और अधिकांश लोग इसी नरेटिव पर 100% विश्वास भी कर रहे हैं। चलिए मैं डेविल्स एडवोकेट बनकर आपके सामने एक काउंटर नैरेटिव प्रस्तुत करने का प्रयत्न करता हूं।

कुछ वर्ष पूर्व यूक्रेन में चुनाव होते हैं। वर्तमान शासन के विरुद्ध महंगाई नियंत्रित ना कर पाने। निकम्मा, अक्षम और जनता के प्रति संवेदनहीन होने जैसे आरोप लगाए जाते हैं। अचानक यूक्रेन में रुपहले परदे और टीवी पर दिखने वाला एक पॉपुलर सेलिब्रिटी नायक के रूप में उभरता है जो जनता को विश्वास दिलाता है कि वह देश का नेतृत्व करने हेतु सबसे योग्य उम्मीदवार है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि उस व्यक्ति के प्रशासनिक अनुभव, कूटनीतिक समझ, राष्ट्र की आंतरिक व् बाहरी सुरक्षा के प्रति आवश्यक दीर्घकालीन दृष्टिकोण, जियोपोलिटिक्स में यूक्रेन का महत्व उसकी कमजोरी और क्षमता पड़ोसी देशों के साथ समन्वय स्थापित करने आर्थिक समझ जैसी क्षमताओं पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा हुआ है। और चमत्कारिक रुप से वह व्यक्ति नायक के रूप में उभर यूक्रेन का राष्ट्रपति भी बन जाता है। दुनिया में उसके नाम का डंका बजता है कि कैसे सामान्य से टीवी सेलिब्रिटी ने देश के राष्ट्रपति बनने का हीरोइक सफर तय किया।

अब वह नायक नए तौर-तरीकों के साथ कार्यभार संभालता है नयापन देख जनता और अधिक प्रभावित हो जाती है। साथ ही लोकल व् ग्लोबल मीडिया को भी उसकी कार्यशैली में परंपरागत सरकारों की तुलना में एक नयापन दिखता है और वह उसे बहुत ही सकारात्मक कवरेज देना शुरु कर देती हैं। वह नायक अब तक चली आ रही पुरानी परंपरागत रूढ़िवादी डिप्लोमेटिक पॉलिसी को त्याग नया इतिहास लिखने व् अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखवाने हेतु विदेश नीति में नए डिप्लोमेटिक समीकरण इंप्लीमेंट करने में जुट जाता है। ग्लोबल मीडिया ने तो वैसे ही उसकी प्रशंसा में कसीदे पढ़ उसे पश्चिमी देशों की आंखों का तारा और अंग्रेजी में कहें तो ब्लू आईड बॉय बनाकर उसे प्रभावित और आत्मविश्वास से भर ही दिया था। अब वह राष्ट्र नायक पश्चिमी देशों संग संबंध प्रगाढ़ करने में लग जाता है। और सोवियत टेक्नोलॉजी पर आधारित आर्म्स के एक्सपोर्ट कई बड़े देशों की आपत्ति के बावजूद पाकिस्तान और चीन जैसे देशों को बड़े स्तर पर शुरू कर देता है।

पश्चिमी नाटो देश उसके उत्साह और अनुभहीनता और दूरदृष्टि के अभाव का लाभ उठाकर उसे रूस को काउंटर करने हेतु एक अस्त्र के रूप में प्रयोग करने का निर्णय लेते हैं और स्थिति यहां तक पहुंच जाती है वह राष्ट्रनायक पश्चिमी देशों के मिलिट्री संगठन नाटो का सदस्य बनने की मृग मरीचिका को प्राप्त करने के लिए लालायित हो जाता है। जिसका मुखर विरोध उसका पड़ोसी देश रूस करता है जिसका यूक्रेन कभी हिस्सा हुआ करता था। अब समझने का प्रयत्न करते हैं कि रूस जिसके पास स्वयं इतनी बड़ी जमीन है वह यूएसएसआर से अलग हो चुके देश यूक्रेन की जमीन क्यों चाहता है ? तो सर्वप्रथम हमें समझना होगा कि NATO यानी कि नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन का गठन इसलिए हुआ था कि तत्कालीन सोवियत रूस को काउंटर किया जा सके।

और जब सोवियत संघ का विघटन हो गया तो नाटो के अस्तित्व में रहने का उद्देश्य ही समाप्त हो चुका था। किंतु फिर भी नाटो बना रहा बढ़ता भी रहा। विभिन्न युद्धों में सम्मिलित हुआ। कहीं लोकतंत्र स्थापित करने के नाम पर। तो कहीं वेपंस ऑफ मास डिस्ट्रक्शन को ध्वस्त करने के नाम पर। परंतु उन युद्ध की परिणिति यह हुई की समस्याओं का समाधान होने के बदले उन देशों की स्थिति बद से बदतर होती चली गई और उनकी समस्याएं बढ़कर और भी गंभीर और विकराल हो गई। जिसके बाद नैटो ने उन समस्याओं को कई गुना अधिक बढ़ाकर उनके हाल पर जस का तस छोड़ पलायन कर लिया। अफगानिस्तान में हस्तक्षेप के बाद उतपन्न हुआ तालिबान। लीबिया इराक में हस्तक्षेप से उतपन्न हुआ आइसिस ज्वलन्त उदाहरण है खैर इसके बावजूद नाटो कद और शक्ति में बढ़ता ही गया।

और आज जब वह संगठन बढ़ता हुआ रूस के बॉर्डर से सटे देश को अपना सदस्य बनाने की ओर कदम बढ़ाता हुआ दिखा तो उसका सीधा सा अर्थ हुआ कि अब नाटो आगे बढ़ रूस के बॉर्डर पर अपने सैन्य उपकरण बैलेस्टिक और क्रूज मिसाइल और न्यूक्लियर वेपन तैनात करने की स्थिति में आ पहुंचा है। इससे रूस को दो प्रमुख खतरे होने वाले थे पहला की उसके बॉर्डर पर नाटो फोर्सेज और उनके हथियार तैनात होते जो उसकी सुरक्षा के लिए सीधा खतरा था। और दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात जिसकी कहीं चर्चा नहीं हो रही। वह यह है कि सर्दियों में रूस के  अधिकांश बड़े कमर्शियल सी पोर्ट्स जम जाते हैं किंतु यूक्रेन का कमर्शियल सी पोर्ट सर्दियों में नहीं जमता और ऑपरेशनल रहता है। यही कारण है कि जब भीषण सर्दियां में रूस के कमर्शियल सीपोर्ट जम जाते हैं तो रूस यूक्रेन के संग समझौते के अंतर्गत शुल्क देकर उसके कमर्शियल सीपोर्ट के द्वारा इंपोर्ट और एक्सपोर्ट करता है।

रूस की चिंता यह है की यदि यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जाता है और वो भविष्य में रूस को अपने सीपोर्ट से ट्रेड एक्टिविटीज करने से रोक देता है तो सर्दियों में रूस  लगभग एक लैंडलॉक्ड कंट्री बनकर रह जाएगा जिसका उसे भारी खामियाजा चुकाना पड़ सकता है। यही कारण है कि पिछले कुछ समय से रूस लगातार यूक्रेन और पश्चिमी देशों को चेताता जा रहा था और यूक्रेन व् पश्चिमी देशों से केवल यूक्रेन के नाटो में सम्मिलित ना होने का आश्वासन मांग रहा था। जो उसे नहीं मिला। परंतु रोचक परिस्थितियां बनी। अमेरिका में एक अति लिबरल लेफ्ट विचारधारा की ओर झुकाव रखने वाली सरकार आ गई और जैसे कि हम सब जानते हैं खालिस वामपंथ और अर्थव्यवस्था का 36 का नाता रहा है वही अमेरिका में भी फलीभूत होता दिखा और महंगाई दर पिछले 40 वर्षों के उच्चतम स्तर को पार कर गई। अमेरिका के नए राष्ट्रपति बाइडेन बाबू की प्रसिद्धि का ग्राफ तीव्र गति से नीचे जाने लगा। भारी बेज्जती हो रही थी तो वामपंथ के झोले में से वामपंथी युक्ति निकाली गई कि क्यों ना महंगाई से बिलबिलाती जनता का ध्यान भटका दिया जाए। और अमेरिका के परंपरागत प्रतिद्वंदी रूस के संग तनाव बढ़ाकर ये खेल खेला जाए।

इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाने की मृग मरीचिका दिखाई गई। जबकि यूक्रेन किसी भी तय स्टैंडर्ड पैरामीटर के आधार पर नैटो का सदस्य नहीं बन सकता। प्लान था जब तक महंगाई दर नीचे नहीं आती तब तक टेंशन बनाए रखी जाएगी। अमेरिका की अपेक्षा थी कि नाटो की मजबूती को देख रूस कभी भी अति आक्रामक रुख नहीं अपनाएगा। बस बॉर्डर पर तनाव होगा। सेनाऐं आमने सामने खड़ी रहेगी। आक्रमक कूटनीतिक पोशचरिंग की जाती रहेगी। बयान दिये जायेंगे जिससे मीडिया में खबरें चलती रहेगी। सुर्खियां बनती रहेंगी। टेंशन बढ़ेगा। लोग थोड़े परेशान होंगे ग्लोबल मार्केट की वैल्यूएशन सुधर जाएंगे और समय के साथ-साथ इंफ्लेशन थोड़ी कम हो जाएगी तब यह पूरा मामला एक दो बयान। आश्वाशन व् समझौता कर निपटा लिया जाएगा।

परंतु पुतिन बाबू अनप्रिडिक्टेबल निकले वह खेल समझ रहे थे और उन्होंने इसी खेल का लाभ उठाने और स्वयं को सबसे आक्रामक और सशक्त ग्लोबल लीडर के रूप में स्थापित करने और नैटो को सबक सिखाने की ओर कदम बढ़ा दिए। पश्चिमी देश और अमेरिका तो वैसे ही यूक्रेन को प्यादे के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे। और शतरंज में प्यादे को बचाने के लिए वजीर हाथी घोड़े और ऊंट को दांव पर नहीं लगाया जाता है। तो यहां भी वही हुआ। जैसे ही रूस की सेना ने यूक्रेन में कदम रखे यूक्रेन को पीछे से चढ़ाते आ रहे पश्चिमी देशों और अमेरिका ने उसे उसके हाल पर छोड़ कर पीछे खिसकने का निर्णय ले लिया।

यदि कोई परिपक्व अनुभवी और दूरदृष्टि रखने वाला राष्ट्र प्रमुख होता तो अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा उसे दिखाई जा रही मृग मरीचिका का सत्य समझ गया होता। विषय की गंभीरता को देखते हुए फिनलैंड की तरह ही नैटो और रूस में से किसी के भी साथ ना जाते हुए स्वयं को न्यूट्रल रख बिजनेस ऐज़ यूजुअल चलाता रहता। पश्चिम से आर्थिक सहयोग। तकनीक और व्यापार लाभ लेता रहता। रूस के संग अपने सम्बंध जस के तस बनाये रखता उसे नैटो सदस्य न बनने का आश्वासन देता तथा व्यापार लाभ लेता और अपने पोर्ट इस्तेमाल करने की अनुमति देकर उससे व्यापार शुल्क भी कमाता रहता।

अब अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात समझिए की सबसे कुशल। समझदार।बुद्धिमान। सर्वोत्तम राष्ट्र प्रमुख वह होता है जो अपने देश और नागरिकों के हितों को सर्वोपरि रखता है। परिस्थिति देश और काल के अनुरूप ही निर्णय लेता है और सुनिश्चित करता है कि उसके देश की अखंडता स्वतंत्रता और उसके नागरिकों के प्राणों। आजीविका और जीवन पर कभी कोई आंच ना आए। इधर बीच आप सब लोगों ने भावनात्मक वीडियो। द्रवित कर देने वाले दृश्य। पलायन करते लोग। रोते बिलखते बच्चे। बच्चों से अलग होते कल्पते उनके मां-बाप के दृश्य टीवी पर बहुत देखे होंगे। यह भी देखा होगा कि किस प्रकार यूक्रेन के राष्ट्रपति ने देश के हर नागरिक को हथियार देने कि घोषणा की है और वह स्वयं बहादुरी से सैन्य यूनिफार्म पहन यूक्रेन की राजधानी में खड़े हुए हैं।

ध्यान देने की बात यह है कि यह सब आम नागरिक हैं कोई वेल ट्रेंड प्रोफेशनल सोल्जर नहीं इनमें से अधिकांश को तो वेपंस ऑपरेट करने और किसी भी प्रकार की कॉम्बैट स्किल भी नहीं आती। फिर भी यह निर्भीकता से खड़े हुए हैं। यह सब दृश्य देखने में तो बहुत अच्छे लगते हैं इनकी बहादुरी भी बहुत अच्छी लगती है। प्रभावित भी करती है। किंतु मैं कुछ अधिक ही प्रैक्टिकल दृष्टिकोण रखता हूं और जानता हूं कि एक सिविल इंजीनियर का काम टेलर नहीं कर सकता। इन्वेस्टमेंट बैंकर का काम डिलीवरी बॉय नहीं कर सकता। सीए का काम फिजियोथैरेपिस्ट नहीं कर सकता। अकाउंटेंट का काम प्लम्बर नहीं कर सकता। वैज्ञानिक का काम कोई प्रोफेशनल मॉडल और एक्टर नहीं कर सकता और उसी प्रकार आर्म्ड कॉम्बैट का काम एक प्रोफेशनल ट्रेंड सोल्जर के अलावा और कोई नहीं कर सकता।

विचारिये कि अपने राष्ट्रपति की बात मानकर हाथों में हथियार लिए खड़े वे लोग जिनमें से कोई अकाउंटेंट है। कोई दुकान चलाता है। तो कोई छात्र है तो कोई सामान्य 9-5 जॉब करता है वह एक ट्रेंड प्रोफेशनल आर्मी के समक्ष कितनी देर टिकेंगे ? और सोचिए कि वह कैसा राष्ट्र प्रमुख होगा जो अपने देश के सिविलियंस को जिन्हें बंदूक चलानी भी नहीं आती को राइफल देकर प्रोफेशनल मिलिट्री के सामने कैनन फॉडर बनाकर भेज दे रहा है ? जबकि वह मात्र एक बयान देकर की वह अपने देश को किसी मिलिट्री अलाइंस का हिस्सा बनवाने का इछुक नहीं है। और रूस के साथ एक औपचारिक मीटिंग कर उसकी सभी आशंकाओं का समाधान कर यह सब कुछ रोक सकता था।

यूक्रेन के नागरिकों को जहां-तहां पलायन नहीं करना पड़ता। कोई हमला नहीं होता। जनता सामान्य रूप से आज अपनी दैनिक दिनचर्या में जुटी होती। लोग अपने ऑफिस जा रहे होते। अपने व्यवसाय संभाल रहे होते। छात्र स्कूल और यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे होते और छोटे बच्चे आराम से अपने गर्म घरों में खेल रहे होते किंतु हां उस परिस्थिति में पश्चिमी देशों के एजेंडे की पूर्ति नहीं होती और उस नायक राष्ट्र प्रमुख को सच्चा और बहादुर नेता होने का तमगा नहीं मिल पाता।

मैं इसीलिए सदैव कहता हूं कि ग्लोबल डिप्लोमेसी फैंटम और रैंबो बनने व् त्वरित प्रतिक्रिया देने की प्रवित्ति का नाम नहीं बल्कि दूरदृष्टि,  परिपक्वता, परिस्थितियों संग समन्वय बैठाते हुए परस्परिक हित साधने की कला मात्र है।

– रोहन शर्मा 

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