शस्त्र आवश्यकताओं की पूर्ति करने में समर्थ डीआरडीओ

                                                 जी. सतीश रेड्डी, चेयरमैन, डीआरडीओ

आजादी के अमृत महोत्सव में देश की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है। आज भारतीय सेना जिन आधुनिक शस्त्रास्त्रों से लैस है, उसका श्रेय बहुत हद तक डीआरडीओ को जाता है। बुलेट प्रूफ जैकेट से लेकर ड्रोन का अनुसंधान डीआरडीओ ने किया है और वह भी पूरी तरह भारतीय तंत्रज्ञान के आधार पर। डीआरडीओ के इसी स्वावलंबन और सुरक्षा क्षेत्र में उनके योगदान के बारे में डीआरडीओ के चेयरमैन जी. सतीश रेड्डी से हुई बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश-

कहा जा रहा है कि भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन रहा है। इस आत्मनिर्भरता का आधार क्या है?

डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) ने करीब 3 से 4 दशकों में बहुत सारे प्रयोग, रिसर्च किए जो अधिकतर सफल रहे। इसके आधार पर बहुत सारे सिस्टम को अपडेट किया गया है। टेक्नोलॉजी बात करें तो अभी हम मिसाइल, रडार, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम, टारपीडो, गन, 9 एमएम पिस्टल, एयरक्राफ्ट, लाइफ सपोर्ट सिस्टम सहित कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हो चुके हैं। डीआरडीओ के सफल प्रयोग व परीक्षण के बाद पृथ्वी सीरीज मिसाइल, अग्नि सीरीज मिसाइल, ब्रह्मोस मिसाइल, आकाश मिसाइल, नाग मिसाइल, अस्त्र मिसाइल, बैलिस्टिक डिफेंस मिसाइल सिस्टम सहित कई अन्य मिसाइल को देश की सेना में शामिल किया गया है। रडार सेक्शन में नेवल सिस्टम रडार, एयरबोन रडार, ग्राउंड रडार, ट्रैकिंग रडार, सर्विलांस रडार, बॉटम रडार सहित कई सारे रडार हैं, जिस पर अभी तक काम चल रहा है और कुछ के सफल परीक्षण के बाद उन्हें फोर्सेस को सौंप दिया गया है। रडार में लगने वाली सामग्री को भी अब देश में ही तैयार किया जा रहा है। शिप और सबमरीन में लगने वाले सोनार को देश में ही तैयार किया जा रहा है। आप ने देखा है 150 आर्टलरी गन को भी भारत देश में तैयार किया गया है। एलसी एयरक्राफ्ट को भी डीआरडीओ ने तैयार किया है। अर्जुन मार्क वन-ए को प्रधान मंत्री ने पिछले साल ही सेना को प्रदान किया है। इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम ‘शक्ति’ व नेवल सिस्टम को भी फोर्सेस को प्रदान किया गया। उपरोक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि देश तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। भारत को किसी और देश पर निर्भर नहीं रहना होगा ऐसी प्रतिज्ञा के साथ हम सभी वैज्ञानिक काम कर रहे हैं।

 इस बार के बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए विशेष प्रयोजन किया गया है। रक्षा बजट के बारे में आपके क्या विचार हैं?

देश का रक्षा बजट 2014 के बाद से निरंतर बढ़ रहा है और अब यह करीब दो गुना हो गया है। बेहतर बजट की वजह से हम लोगों का काम भी तेजी से चल रहा है। वैज्ञानिकों को रिसर्च के लिए अधिक बजट की आवश्यकता होती है जो अब पूरी की जा रही है। इस बार के बजट में डीआरडीओ, इंस्टीट्यूट और इंडस्ट्री को भी रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट के लिए बजट दिया गया है। इंडस्ट्री को और भी बेहतर बनाने के लिए स्पेशल परपज व्हीकल घोषित हुआ। सरकार के ये फैसले देश को आगे बढ़ाने में बहुत सहायक साबित होंगे।

 आज तकनीक (आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस) का विकास होने के बाद हमारे युद्ध शस्त्रों में कितना परिवर्तन हुआ है?

अब जो भी सिस्टम बन रहे हैं, उसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जरूर होगा। डीआरडीओ की जो सिस्टम लेबोरेटरी है उसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का एक ग्रुप बनाया गया है। बेंगलुरु में एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस लेबोरेटरी केयर (एआईएलसी) है, जिसमें प्रधानमंत्री के निर्देश पर सिर्फ 35 साल से कम उम्र के वैज्ञानिकों को रखा गया है। देश के हर एक सिस्टम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम अपडेट होगा, जिससे आने वाले समय में एक परिवर्तन देखने को मिलेगा।

 डीआरडीओ, इंडस्ट्री और सेना के बीच तालमेल कैसे होता है? आपकी  तकनीक शस्त्र बनकर सेना की मदद कैसे करती है?

डीआरडीओ और उसकी सहायक कंपनियां दोस्त की तरह एक दूसरे की मदद करते हुए आगे बढती हैं। पहले हम टेक्नॉलॉजी को डेवलप करके उसे कंपनी को ट्रांसफर करते थे, जिसके बाद प्रोडक्शन का काम शुरु होता था। लेकिन अब हमने नया तरीका अपनाया है, डेवलपमेंट कम प्रोडक्शन पार्टनर। इसमें डीआरडीओ और पार्टनर कंपनी एक साथ मिलकर टेक्नोलॉजी डेवलप करते हैं, जिससे टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट और ट्रांसफर दोनों साथ-साथ होता है। इस तरीके से कंपनी का ज्ञान भी बढ़ता है, ट्रायल का समय और खर्च बचता है और प्रोडक्शन अधिक होता है। कंपनी के पास ज्ञान होने की वजह से वह आगे का काम खुद से कर सकेगी, फिर उसे डीआरडीओ की मदद की जरूरत नहीं होगी।

स्पेशल परपज व्हीकल की वजह से कंपनी में सरकारी नियम कानून कम होंगे, जिससे कंपनी जल्दी से डेवलप करेगी और मार्केट पर पकड़ मजबूत करेगी। इस तरह से कई सारे कॉन्सेप्ट को तैयार किया गया है जिसके साथ कंपनी को सुविधा और फायदा मिल रहा है। इस समय में डीआरडीओ के साथ करीब 2 हजार टायर-1 व टायर-2 और करीब 10 हजार से अधिक टायर-3 कंपनियां काम कर रही हैं।

क्या अभी हमारे देश में सेना की आवश्यकता के अनुरूप शस्त्र उत्पादन हो रहा है?

सेना अपनी जरूरतों को डीआरडीओ के साथ साझा करती है और फिर डीआरडीओ उसे तैयार कर सेना को सौंपती है। सेना जब यह जांच कर लेती है कि उसे उसकी आवश्यकता के अनुरुप सिस्टम दिया जा रहा है। फिर उसे आगे के प्रोडक्शन के लिए भेजा जाता है। इन सब के बीच प्रोडक्शन का विशेष रोल होता है और भारत की इंडस्ट्री में इतनी ताकत है कि हम किसी भी हद तक प्रोडक्शन कर सकते हैं। आप को बता दें कि आकाश मिसाइल की 50 यूनिट बनाने के लिए डीआरडीओ की सहायक कंपनी तैयार हो गई थी।

 भारत ने विगत कुछ सालों में कई लड़ाकू विमान, मिसाइल, ड्रोन आदि की उन्नत तकनीकों को विकसित होते देखा है। इनकी विशेषताएं क्या हैं?

दुनिया के किसी भी देश में विकसित हुई तकनीक भारत में करीब 10 साल  देरी से आती थी और उसके लिए हमें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन अब समय बदल रहा है और हम खुद तकनीक विकसित कर रहे हैं और दुनिया के सामने भारत ‘टेक्नोलॉजी लीडर’ के रूप में खड़ा हो रहा है। अब भारत या तो बाकी देशों से पहले नए अनुसंधान कर रहा है या फिर सभी के साथ कर रहा है, लेकिन अब पीछे चलने की परंपरा खत्म हो गयी है। उदाहरण के लिए आप देख सकते है कि डीआरडीओ ने ‘एंटी ड्रोन सिस्टम’ विकसित किया जो सफल रहा, अब हमें इसके लिए किसी दूसरे देश पर निर्भर नहीं होना है। इस तरह से भारत कई नई तकनीकों के साथ तेजी से काम कर रहा है। आने वाले समय में हम पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो सकते हैं।

 अभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किन आवश्यकताओं के लिये अनुबंध हो रहे हैं?

हालांकि अब दूसरे देशों के साथ बहुत कम अनुबंध हुए हैं क्योंकि भारत में ही कई अनुसंधान किए जा रहे हैं परंतु भारत जिस भी देश के साथ तकनीक को लेकर अनुबंध कर रहा है, उसमें यह निश्चित किया जाता है कि उस प्रोजेक्ट का कुछ काम उनके द्वारा किया जाएगा, जबकि कुछ काम भारत के वैज्ञानिक करेंगे। उदाहरणार्थ, ब्रह्मोस मिसाइल को लेकर रूस के साथ ज्वाइंट वेंचर हुआ था, जिसमें यह फैसला हुआ था कि कुछ पर वह काम करेंगे जबकि बाकी पर डीआरडीओ काम करेगा। इसके बाद इजरायल के साथ भी कुछ अनुबंध हुआ था। लेकिन उसके बाद से अभी तक डीआरडीओ ने किसी अंतरराष्ट्रीय कंपनी के साथ करार नहीं किया है। हालांकि कुछ समान अभी भी भारत में उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं, ऐसे में उन्हें दूसरे देशों से आयात करना पड़ता है, लेकिन हम जल्द ही उसे भी भारत में तैयार करेंगे।

 कुछ देशों के साथ शस्त्र निर्यात के लिए भी अनुबंध हुए हैं?

अब दुनिया के तमाम देश भारत के साथ कारोबार करने के लिए तैयार हैं, हमने अभी तक फिलीपींस, बर्मा, श्रीलंका और नाइजीरिया को मिसाइल, हथियार सहित कई चीजें निर्यात की हैं, जो यह बताता है कि भारत अब अपनी जरूरत से अधिक सामान तैयार करने लगा है। आने वाले समय में निर्यात की संख्या और बढ़ने वाली है, जिसमें मिसाइल, एयरक्राफ्ट, गन, टैंक, आर्मी व्हीकल सहित कई चीजें प्रमुख होंगी।

मोदी सरकार की नई सुरक्षा नीतियों का कितना असर हुआ है?

मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद सबसे बड़ा परिवर्तन यह रहा कि भारत में ही अधिकतर चीजों का निर्माण होने लगा और मेक इन इंडिया को आगे बढ़ाया गया। सरकार की तरफ से यह साफ किया गया है कि अधिकतर सामान को देश के अंदर ही तैयार किया जाए और जो अभी के लिए संभव ना हो उसे बनाने की तैयारी आगे की जाए। इंडस्ट्री और रिसर्च को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे ‘मेक इन इंडिया’ को तेजी से बढ़ावा मिल रहा है। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘मेक फॉर इंडिया’ के कांसेप्ट के साथ देश आगे बढ़ रहा है, यह बहुत बड़ा बदलाव है।

 विश्व विगत 20 वर्षों में अत्यंत गतिशील हो गया है। विश्व जिस गति से आगे बढ़ रहा है उस गति में डीआरडीओ कहां है?

पिछले करीब 20 सालों से बदलाव का एक अलग ही रूप देखने को मिल रहा है जिसके लिए भारत भी मेहनत कर रहा है और मोदी सरकार के शासनकाल में आगे भी बढ़ा है। डीआरडीओ भी बदलाव की रेस में तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमने 10 सेंटर ऑफ एक्सीलेंस एकेडमी इंस्टीट्यूट शुरू किए हैं। हमारे कई सेंटर आईआईटी दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, जोधपुर, जम्मू-कश्मीर, गुजरात सहित कई जगहों पर बने हैं, जो एडवांस टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं।

 सुरक्षा क्षेत्र में युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए क्या किया जा रहा है?

देश में स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए देश के युवाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और साइबर सिक्योरिटी के क्षेत्र मेें उन्हें बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार की तरफ से भी कई योजनाएं लाई जा रही हैं। जिससे एमएसएमई को बढ़ावा दिया जाए। युवाओं (ग्रेजुएट) के लिए टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट फंडिग स्कीम लाई गया है, जिसके तहत 10 करोड़ तक की मदद की जाएगी। अभी तक करीब 50 से अधिक इंडस्ट्रीज को मदद की गई है। इसके साथ ही बहुत सारी योजनाएं हैं। जिससे स्टार्टअप को बढ़ाया जा रहा है। आपको बतादें कि करीब 10 साल पहले तक कोई भी युवा सुरक्षा क्षेत्र में काम करने के लिए तैयार नहीं होता था, लेकिन आज हालात बिल्कुल बदल चुके हैं। देश के कई युवा इस क्षेत्र में आने के लिए तैयार हैं। यह एक बड़ा परिवर्तन है।

 कोरोना कालखंड में कई ऐसे कार्य हुए हैं जो वास्तविक रूप से डीआरडीओ का कार्य नहीं हैं, (जैसे दवा बनाना) परंतु फिर भी आपने किए हैं। उन कार्यों की जानकारी दिजिए?

हम सभी वैज्ञानिक इसी देश के नागरिक हैं, अत: हमारा भी यह दायित्व होता है कि हम बुरे समय में देश के साथ खड़े रहें और जितना संभव हो लोगों की मदद करें। डीआरडीओ के पास टेक्नोलॉजी है, जिससे वह छोटी-बड़ी सभी प्रकार की मशीनें तैयार कर सकता है। पीएम केयर फंड से हमें कुछ धन मिला था जिससे हम लोगों ने ऑक्सीजन सेंटर खड़ा करने पर काम करना शुरु कर दिया था। आज देश में करीब एक हजार प्लांट तैयार किए गये हैं, जिसमें प्राइवेट इंडस्ट्री के साथ काम किया जा रहा है। कोरोना काल में वेंटिलेटर की कमी सामने आयी जिसके बाद हमने 3 महीने में 30 हजार वेंटिलेटर तैयार किए थे। 1.5 लाख ऑक्सीजन सिलेंडर और एक कंट्रोल यूनिट चार महीने में तैयार किया गया। कोरोना मेडिसिन को आर्म फोर्स के लिए बनाया गया था। हमने उसका टेस्ट भी किया था, जो कि सफल रहा। उसके बाद इसे फार्मा इंडस्ट्री को दे दिया गया।

 भारत के पास जो हथियार हैं उनकी जानकारी संचार माध्यमों के द्वारा दी जानी कितना सही है?

गणतंत्र दिवस पर हथियारों, टैंक, मिसाइल सहित सेना के अन्य उपकरणों का प्रदर्शन किया जाता है, इससे दुश्मन को भारत की ताकत का पता चलता है और देश का नागरिक भी यह समझ पाता है कि हमारा देश कितना शक्तिशाली है। कुछ लोगों को यह भ्रम होता है कि दुश्मन देश हमारे हथियारों को देख कर उसका गलत फायदा उठा सकते हैं तो मैं उन्हें बताना चाहूंगा कि सरकार वही सैन्य उपकरण बाहर निकालती है, जिसे दिखाया जा सकता है जो कुछ नहीं दिखाया जाना चाहिए उसे गुप्त रखा जाता है।

हम इस वर्ष आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। डीआरडीओ की इस वर्ष के लिए क्या योजना है?

आजादी के अमृत महोत्सव के लिए हम तेजी काम कर रहे हैं। हम इस वर्ष में भारत को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दे रहे हैं और उसके लिए नये-नये हथियारों को बनाना हमारा लक्ष्य है। हमने कुछ ध्येय निश्चित किए हैं। देश का युवा सुरक्षा क्षेत्र में आकर सहयोग कर रहा है। इसमें रोजगार और स्टार्टअप दोनों शामिल हैं। देश के युवाओं से यह भी अपील की जा रही है कि वे आगे आएं और देश की उन्नति में हाथ बटाएं क्योंकि सभी चाहते हैं कि भारत का झंडा विश्व में सबसे ऊपर होना चाहिए।

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