रक्षा व्यापार होगा 5 अरब डॉलर पार

अब भारत जहां रक्षा के क्षेत्र में स्वयं को सिद्ध करने की ओर अग्रसर हो रहा है, वहीं अपने मित्र राष्ट्रों की सर्वांगीण सुरक्षा को भी उतनी ही मजबूत करता दिखाई दे रहा है। किसी समय विश्व में सर्वाधिक अस्त्र-शस्त्र आयात करने वाले देश के रूप में पहचाना जाने वाला भारत, अब उनके निर्यात के क्षेत्र में भी ऊंची उड़ान भर रहा है।

देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि भारत द्वारा रक्षा क्षेत्र से संबंधित निर्यात में पिछले 5 वर्षों में 334% की वृद्धि हुई है और फिलहाल देश 75 से भी अधिक देशों को रक्षा सामग्री निर्यात कर रहा है। रक्षा क्षेत्र में भारत का यह कार्य, रक्षा उत्पादों की गुणवत्ता को अधोरेखित करता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2020 को देश की आर्थिक नीतियों एवं बुनियादी सुविधाओं के विकास में सुधार कर ’मेक इन इंडिया’ एवं ’मेक फॉर वर्ल्ड’ (विश्व के लिए उत्पादन)- नामक दो अभियानों की घोषणाएं की ताकि विश्वभर में भारतीय वस्तुओं की आपूर्ति की जा सके। इस उत्पादन की श्रृंखला के प्रमुख केंद्र के रूप में देश को प्रस्तुत करने का संकल्प किया गया। मोदी ने देश को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में 130 करोड़ लोगों के दम पर ’मेक फॉर वर्ल्ड’ की ओर उन्नति करने की क्षमता है। भारत ने सीधे विदेशी निवेश को आकर्षित करने का कीर्तिमान स्थापित किया है। पिछले वर्ष भर में देश की एफडीआई में 18% की वृद्धि हुई है। कई बड़ी कंपनियों ने कोरोना काल में भी भारत का रुख किया है।” विश्व भारत की ओर यूं ही आकर्षित नहीं हुआ, भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को आत्मविश्वास से लबरेज कर लिया है। विश्व कल्याण की दृष्टि से भी ’आत्मनिर्भर भारत’ आवश्यक है।

  फिलीपींस की ’ब्रह्मोस’ सुरक्षा

दक्षिणी चीन समुद्र में चीन की बढ़ती दादागिरी को रोकने के लिए फिलीपींस ने ’ब्रह्मोस’ सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। साथ ही इसके लिए फिलीपींस सरकार ने 5.85 अरब डॉलर का बड़ा बजट भी निश्चित किया है।  भारत के विदेशी संबंध, भारतीय प्रक्षेपास्त्रों की गुणवत्ता, युद्ध के समय में इसका उपयुक्त साबित होना एवं अन्य देशों की तुलना में किफायती दरों के कारण भारतीय अस्त्र-शस्त्र, फिलीपींस की पहली पसंद बन गए।

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले दिसंबर में लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में ’ब्रह्मोस’ प्रक्षेपास्त्र निर्माण केंद्र की आधारशिला रखी। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के तत्वाधान में स्थापित हो रहे इस निर्माण केंद्र में प्रतिवर्ष, 80 से 100 प्रक्षेपास्त्रों का उत्पादन होगा। इससे ’मेक इन इंडिया’ एवं ’आत्मनिर्भर भारत’ अभियान में तेजी आने के साथ ही निर्यात का लक्ष्य भी पूर्ण किया जा सकेगा। फिलीपींस के बाद अब इंडोनेशिया, थाईलैंड एवं मलेशिया जैसे देश भी भारत से ’ब्रह्मोस’ खरीदने के लिए उत्सुक हैं। जमीन से हवा में मार करने वाले ’आकाश’ नामक प्रक्षेपास्त्र के, मित्र राष्ट्रों को निर्यात करने के लिए सरकार ने हरी झंडी दिखा दी है। विश्व में स्थित छोटे-छोटे देश, अपनी सुरक्षा को लेकर पहले कभी इतने चिंतित नहीं थे जितने कि अब हो रहे हैं। अब उनके लिए देश की सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण एवं बड़ा विषय बन गई है। ऐसे गरीब एवं छोटे देशों का अपनी सुरक्षा संबंधी आवश्यकता के लिए भारत की ओर रुख करना स्वाभाविक ही है। इसका कारण यह है कि हमारे पास कम कीमत में रक्षा सामग्रियों के उत्पादन की क्षमता है। हम बढ़िया गुणवत्ता का उत्पादन तो कर ही सकते हैं, अब केवल आगे कदम बढ़ाने की जरूरत है। इन देशों की सहायता करके भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। अब भारत जहां रक्षा के क्षेत्र में स्वयं को सिद्ध करने की ओर अग्रसर हो रहा है वहीं अपने मित्र राष्ट्रों की सर्वांगीण सुरक्षा को भी उतनी ही मजबूत करता दिखाई दे रहा है।

किसी समय विश्व में सर्वाधिक अस्त्र-शस्त्र आयात करने वाले देश के रूप में पहचाना जाने वाला भारत, अब उनके निर्यात के क्षेत्र में भी ऊंची उड़ान भर रहा है।

2014-15 में भारत का रक्षा सामग्री संबंधी जो निर्यात 1940 करोड़ के लगभग था, 2020-21 में वह 8,434 करोड़ तक पहुंच गया। भारत ने, मोदी सरकार के नेतृत्व में अस्त्र-शस्त्रों एवं रक्षा उपकरणों के देश में उत्पादन के साथ ही, उनके निर्यात का एक बड़ा चरण भी पार किया है।

इसी तरह मोदी सरकार ने रक्षा क्षेत्र में सीधे विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देने तथा पब्लिक सेक्टर यूनिट्स की व्यवस्था के अंतर्गत निर्यात योग्य उत्पादन मुश्किल होने के कारण ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड का रूपांतरण सात विभिन्न रक्षा कंपनियों में करने जैसे कार्य किए। ये वे नीतियां थीं जो कभी असंभव मानी जाती थीं, लेकिन सरकार की प्रबल इच्छा शक्ति के चलते प्रत्यक्ष साकार हो सकीं।

भारत की रक्षा सामग्री का 65-70%, आयातित सामग्री होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आते ही एवं भू.पू. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने पद संभालते ही, देश के भीतर ही रक्षा सामग्री के निर्माण पर जोर दिया। इसके लिए समय-समय पर ’मेक इन इंडिया’ से लेकर ’आत्मनिर्भर भारत’ के अंतर्गत, नई-नई योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया। इसके फलस्वरूप अब देश की रक्षा सामग्री का 65% देश में ही निर्मित होता है। इतना ही नहीं, भारत 70 देशों को रक्षा सामग्री का निर्यात भी करने लगा है। भारत ने 2025 तक, 5 अरब  डॉलर की रक्षा सामग्री के निर्यात का लक्ष्य रखा है।

और क्या किया जाना चाहिए?

भारत अस्त्र-शस्त्रों के निर्यात के क्षेत्र में, ऐसे समय में कदम रख रहा है जब बाजार पर अमेरिका, चीन, रूस और इजराइल द्वारा बनाए गए पारंपरिक अस्त्र-शस्त्रों का एकाधिकार व्याप्त है। अतः बाजार में अपनी पैठ बनाने के लिए भारत को इन देशों की प्रतिष्ठा, रक्षा क्षमता एवं अनुभव को टक्कर देनी पड़ेगी। ”हालांकि यह बात ध्यान देने योग्य है कि अब, जब युद्ध का तरीका तेजी से बदल रहा है; ऐसे में भारत के लिए यह जानना आवश्यक है कि उसके लिए कौन सा कदम सर्वोत्तम साबित होगा।”

हमें अत्यंत विवेक एवं परिपक्वता के साथ सोचना होगा कि भारत के लिए किस तरह की वस्तुओं के उत्पादन के क्षेत्र में बड़े अवसर मौजूद हैं. उदाहरणार्थ भारत बढ़िया कंट्रोल सिस्टम बनाने में सक्षम है। अब हमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं 5जी जैसे क्षेत्रों में विकास करना चाहिए। भारत में आईआईटी स्थानों से बड़े-बड़े इंजीनियर निकलते हैं जो विदेशी कंपनियों में जाकर डिजाइनें बनाते हैं इसलिए भारत को उनकी प्रतिभा का कोई लाभ नहीं मिलता। इससे भी बड़ा विरोधाभास यह है कि इन बड़ी कंपनियों की आर एंड डी लैबें भी भारत में ही मौजूद हैं। कुछ बेंगलुरु में हैं तो कुछ हैदराबाद में, अतः हमें भी अपने लिए इसी प्रकार के इको सिस्टम की स्थापना करनी चाहिए।

उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले हमारे इन संस्थानों, विश्वविद्यालयों एवं शिक्षा जगत में- रक्षा कौशल से संबंधित पाठ्यक्रमों में भी कौशल विकास, श्रम-शक्ति विकास आदि की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। यह समय की मांग है कि इन पाठ्यक्रमों की संरचना, भारत की आवश्यकता को ध्यान में रखकर तैयार की जाए। इसके लिए आवश्यक है कि जिस तरह पारंपरिक रक्षा क्षेत्र में गणवेशधारी सैनिक होते हैं, उसी तरह शिक्षा जगत में भी शोध करने वाले, रक्षा विशेषज्ञ हों। इस तरह समय सीमा निर्धारित कर कार्यों का नियोजन एवं अचूक मार्गदर्शक कार्यक्रम की योजना बनाई जानी चाहिए. सरकार एवं निजी क्षेत्रों की भागीदारी द्वारा इस योजना का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।

हमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्र का प्रणेता होने का लाभ मिल सकता है। हमें ड्रोन विकसित करने के लिए, उसके विघटनकारी तकनिक (डिसरप्शन) से संबंधित कार्य करने चाहिए। इसका कारण यह है कि हर तकनीक को पीछे छोड़ने वाली नई तकनीक विकसित होती रहती है। इस कारण यदि हम आज शुरुआत करें तो अगले 8-10 वर्षों में निर्यात में सक्षम हो सकते हैं।” हालांकि भारत को, रक्षा सामग्री क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए आवश्यक सामरिक दृढ़ता प्रदर्शित करनी होगी।” विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धा में, पूर्ण क्षमता के साथ प्रवेश करने के लिए रक्षा एवं विकास में निवेश करना आवश्यक है। बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा एवं निर्यात के लिए सशक्त नीतियों का नियोजन, दीर्घकालीन फायदे के लिए उपयुक्त साबित होगा।”

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