देश में बढ़ती धार्मिक कट्टरता!

देश में पिछले कुछ समय से धार्मिक कट्टरता लगातार बढ़ती जा रही है और इसके पीछे की वजह राजनीति है। चुनाव के नजदीक आते ही तमाम राजनीतिक दलों के नेता अपना वोट बैंक बनाने के लिए धार्मिक कट्टरता का रास्ता अपनाते हैं और जनता आसानी से उसमें फंस जाती है।

नेता यह चाहते हैं कि जनता विकास और रोजगार पर ध्यान ना सके अन्यथा उनके लिए राजनीति का रास्ता कठिन हो जाएगा। जाति, धर्म और पूजा पद्धति के आधार पर आराम से जनता को बहलाया जा सकता है और यही वजह है कि दशकों से नेता चुनाव के समय ही नजर आते हैं और फिर जीत के बाद गायब हो जाते है। इस तरह से यह एक चिंता का विषय है और इस पर सभी को विचार करना चाहिए और आने वाले समय में राजनीति का यह स्वरूप भी बदलना चाहिए।   

हिंदू एक जाति है लेकिन चुनाव के समय उसके भी दर्जनों टुकड़े कर दिए जाते हैं और सभी को अलग अलग पार्टी का वोटर बता दिया जाता है, चाहे न चाहे वह खुद को उसी पार्टी का मानने भी लगते हैं और फिर इस तरह से पूरे हिन्दू समाज का विभाजन कर दिया जाता है जबकि मुस्लिमों में यह विभाजन नहीं देखने को मिलता है क्योंकि उनकी संख्या कम है ऐसे में उन्हें सिर्फ मुस्लिम नाम से ही संबोधित किया जाता है। किसी भी चुनावी रैली में कोई नेता हिन्दू शब्द का इस्तेमाल नहीं करता है क्योंकि वह पहले ही हिन्दू को बांट चुका होता है। 

चुनाव के दौरान पैदा की गयी धार्मिक कट्टरता काफी समय तक जिंदा रहती है और कभी कभी यह मारपीट या फिर हत्या का भी रूप ले लेती है। चुनाव के समय किसी भी पार्टी का नेता रोजगार पर बात नहीं करता है और ना ही विकास को लेकर चर्चा करता है। दरअसल इसके लिए जनता भी कुछ हद तक जिम्मेदार है, अगर नेता सिर्फ विकास और रोजगार की बात करेगा तो जनता ही उसे नकार देगी क्योंकि वह उसे समझ नहीं आता है। देश की जनता की नजर भी इस बात पर होती है कि सरकार की तरफ से मुफ्त क्या मिलने वाला है या फिर हमारी जाति को कौन समर्थन दे रहा है उसे ही वोट किया जाएगा। 

कर्नाटक में हुआ हिजाब विवाद भी इसी कट्टरता का एक उदाहरण है जबकि यह सभी को पता है कि शिक्षण संस्थान में किसी भी धार्मिक पहनावे को स्वीकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि भारत विविध समुदायों से भरा हुआ है अगर सभी को धार्मिक आधार पर छूट मिलेगी तो विद्यालय का महत्व ही खत्म हो जाएगा। धार्मिक पहनावे के बाद विद्यालय में जातिवाद बहुत ही तेजी से फैलने लगेगा और शिक्षक से लेकर छात्रों तक के मन में अपने जाति-समुदाय के प्रति प्रेम बढ़ जाएगा और बिना वजह भी विवाद पैदा होने लगेंगे।

कर्नाटक का हिजाब विवाद उतना बड़ा नहीं था जितना उसे बड़ा किया गया। कर्नाटक में राजनीतिक लाभ के लिए इसे और भी बढ़ाया गया और इसके माध्यम से केंद्र की मोदी सरकार पर हमला करने की कोशिश की गयी। इस तरह से धार्मिक कट्टरता का बढ़ता स्वरुप देश के लिए ठीक नहीं है।  एक विशेष समुदाय की कट्टरता के चलते केरल और कर्नाटक में कई हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गयी। धार्मिक कार्यक्रमों, रैलियों, प्रदर्शनों, रीति रिवाज और धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर सड़कों और खुले स्थानों पर उपद्रव किया जा रहा है।

यह सब भविष्य के लिए एक चिंता का विषय है और इस पर रोक लगाई जानी चाहिए। कई सरकारों की तरफ से उन्हें खुली छूट भी मिली है और अधिक संख्या बल के आधार पर उनकी मांगों को भी पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। 

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