भारत में बसंतोत्सव – पुराणों में होली

दशहरा, दीपावली और होली भारत के तीन महत्वपूर्ण लोक उत्सव हैं। दशहरा शक्ति और शौर्य का उत्सव है, असत्य पर सत्य की विजय का उत्सव है। दीपावली अज्ञानता पर ज्ञान और अंधकार पर प्रकाश का उत्सव है, जो सुख-समृद्धि के प्रतीक है। होली अन्याय पर न्याय और ऋतुराज बसंत के उल्लास का उत्सव है। होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसे मनाए जाने के कई आधार  हैं।

वैदिक काल मे उल्लेख मिलता है कि किसान नवोन्नेष्ठी यज्ञ किया करते थे। बसंत ऋतु में जब गेहूं जौ, चना आदि की फसल पकने को तैयार हो जाती थी तब फागुन मास की पूर्णिमा के दिन किसान अपनी फसल में से कुछ  गुच्छे काटकर हवन सामग्री के रूप में सबसे पहले अनाज कोअग्नि को समर्पित करते थे। इस अन्न को होला कहते थे। उसमें से बचे भाग को प्रसाद के रूप में एक दूसरे को बांट थे। यह होलका ही आगे चलकर होलिका कहा जाने लगा।

मीमांसा दर्शन के आचार्य जैमिनी ऋषि ने अपने ग्रंथ होलिकाधिकरण में होलिका मनाए जाने का उल्लेख किया है।

कामसूत्र के प्रणेता आचार्य वात्सायन ने कामसूत्र में होलाक उत्सव का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा उस समय ढाक के फूलों में केसर और चंदन मिलाकर होलिका का रंग तैयार किया जाता था।

नारद पुराण में और विष्णुपुराण में दैत्यराज हिरण्यकश्यप की कथा में आता है कि उसकी बहिन होलिका को वरदान था कि वह अकेली स्थिति में अग्नि से जल नही सकती। हिरण्यकश्यप हरिद्रोही था। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद विष्णुभक्त था। हिरण्यकश्यप अपने अलावा किसी अन्य को पूजना पसंद नही करता था। उसे ब्रह्मा जी से वरदान था कि उसे कोई देवता, दानव, मानव, आदि कोई न मार सके, न दिन, रात, दोपहर,जल, थल, नभ में न मार सके। उसे स्वयं पर अहंकार हो गया था। उसने भक्त प्रह्लाद को मारने के कई हथकंडे अपनाए लेकिन सफलता नही मिली। अंत मे अपनी बहन होलिका की मदद ली कि तुम प्रह्लाद को अपनी गोद मे लेकर प्रचंड अग्नि में बैठ जाओ ताकि प्रह्लाद जलकर भस्म जाए। ऐसा ही किया गया। होलिका भस्म हो गई प्रह्लाद का बाल भी बांका न हुआ। होलिका को जो वरदान था वह अकेली के लिए था दो के लिए नही। होलिका जल गई प्रह्लाद बच गया। कहा जाता है तब से भारत मे होली जलाने की परंपरा शुरू हुई।

भगवान शंकर एक बार लंबे समय तक तपस्या में बैठे रहे। सभी देवता भी परेशान हो गए। तब पार्वती जी ने कामदेव का सहयोग लिया। कामदेव ने अपने बाणों से भगवान शंकर की तपस्या भंग कर दी। भगवान शंकर ने सपना तीसरा नेत्र खोल दिया कामदेव उस ज्वाला से भस्म हो गए। उसके बाद पार्वती जी ने शंकर भगवान को शांत किया। यह भी एक प्रसंग है कि तब से काम को भस्म करने के लिए होलिका उत्सव मनाया जाने लगा। होली देवताओं का भी प्रिय उत्सव है।

राजा रघु के राज्य में ढुंढी नामक एक राक्षसी रहती थी। उस राक्षसी ने शिवजी से तंत्र विद्या सीखी। शिवजी उसकी लगन व परिश्रम से प्रसन्न हुए। उन्होंने ढुंढी से वर मांगने को कहा। ढुंढी राक्षसी ने शिवजी से वर मांगा कि मुझे ऐसा वर दो कि मैं छोटे बच्चों को अदृश्य रूप में डरा सकूं। शिवजी ने कहा एवमस्तु। ऐसा होगा। लेकिन जहां बच्चे समूह में होंगे किलकारियां या शोर मचा रहे हों वहां यह वर निष्प्रभावी होगा। जब बच्चों को यह तथ्य पता चला तो वे समूह रूप में रहने लगे। जोर जोर से बोलना, किलकारी मारना उनके स्वभाव का हिस्सा बन गया। तब से बच्चे लोग समूह में रहकर जोर जोर से गाकर, चिल्लाकर होली खेलने लगे।

–  पार्थसारथि थपलियाल

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