कैसा था भगत सिंह के सपनों का भारत

23 मार्च 1931 को भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर ने देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे को स्वीकार कर लिया था और शायद मन में सपना लिए उस पर झूल गए कि आने वाला भारत आजाद होगा और वहां सभी सुख, चैन व भाई चारे से रहेंगे लेकिन भगत सिंह का वह सपना शायद पूरा नहीं हो पाया। देश आजाद तो हो गया लेकिन भाई चारा उस स्तर का नहीं हो सका जैसी कल्पना शहीद भगत सिंह ने की थी।

भारत जैसे ही आजाद हुआ उसका विभाजन हो गया और भारत व पाकिस्तान दो अलग अलग देश हो गए। इस विभाजन में नरसंहार भी पड़े स्तर पर हुआ जिसकी असलियत आज भी किसी को नहीं पता है कि कितने लोगों को मारा गया। भारत को अंग्रेजों ने तो आजाद कर दिया लेकिन उनकी मानसिकता यहां छोड़कर चले जिससे देश पर शासन करने वालों ने भी इसका इस्तेमाल किया और देश की गरीब जनता तक सरकार कभी नहीं पहूंच सकी और देश के कई गांव आज भी सरकार से कोई सरोकार नहीं रखते हैं। 

शहीद भगत सिंह को हम हर साल 23 मार्च को याद करते हैं और उन्हें एक राष्ट्रवादी क्रांतिकारी के रूप में देखते हैं लेकिन यह सिर्फ एक दिन के लिए होता है उसके बाद हम उन्हें फिर से एक साल के लिए भूल जाते हैं। अगर चुनाव आया और किसी नेता ने जिक्र किया तो फिर से भगत सिंह याद आ जाते हैं। हमने कभी यह नहीं सोचा कि आखिर भगत सिंह किस तरह के भारत की कल्पना करते थे और हम उसी के अनुरूप कुछ करने का प्रयास करें। हाल ही में पंजाब में नई सरकार बनी इस दौरान भगत सिंह का नाम तेजी से चर्चा में आया, नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री ने भगत सिंह ने गांव में शपथ ग्रहण का कार्यक्रम रखा और यह बताने की कोशिश की, कि वह भगत सिंह के सच्चे अनुयायी है। इस बीच यह विवाद उठा कि क्या भगत सिंह के पगड़ी का रंग पीला था या सफेद ? हालांकि पुरानी तस्वीरों में वह सफेद रंग की पगड़ी में नजर आ रहे हैं लेकिन अब पंजाब की नई सरकार के सामने यह चुनौती है कि वह भगत सिंह के विचारों को पंजाब के लोगों तक पहुंचाए।        

23 मार्च को फांसी से पहले भगत सिंह ने एक आखिरी खत लिखा और देशवासियों को यह बताना चाहा कि उन्हें मरने से डर नहीं लग रहा है। वह देश की आजादी के लिए खुशी खुशी फांसी पर लटकने के लिए तैयार हैं। भगत सिंह का वह खत बाद में देश में आजादी के खिलाफ एक तूफान खड़ा कर दिया। 

जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए और मैं इसे छुपाना नहीं चाहता हूं लेकिन अब मैं कैद होकर जिंदा नहीं होना चाहता हूं। मैं क्रांतिकारी दल का प्रतीक बन चुका हूं और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत उंचा उठा दिया है अब अगर मैं जिंदा रहता हूं तो मैं इससे ऊंचा नहीं उठ सकता। आज मेरी कमजोरियां किसी के सामने नहीं है लेकिन अगर मैं फांसी से बच गया तो वह जाहिर हो जायेंगी और क्रांति की लहर कमजोर पड़ जायेगी। अगर मैं फांसी पर चढ़ जाता हूं तो देश की माताएं अपने बच्चों को हंसते हंसते भगत सिंह का पाठ पढ़ाएंगी और देश की क्रांति को आगे बढ़ाएंगी। वह मुझे मार सकते है लेकिन मेरे विचारों को नहीं, वह मेरे शरीर को कुचल सकते हैं लेकिन मेरी आत्मा को नहीं”    

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