बिहार के खेल रत्न

        श्रेयसी सिंह

अब खिलाड़यों के भीअच्छे दिन आ गये हैं और खिलाड़ियों ने भी देश को अच्छे दिन दिखाए हैं। उसकी बानगी स्कॉटलैंड में संपन्न हुए ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में दिखाई दी। देश के हर एक खिलाड़ी ने भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। इस सत्र में भारत ने राष्ट्रमंडल में कुल ६४ पदक जीते। दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल २०१० से (१०५ पदक) यह कामयाबी भले ही कम हो, फिर भी परदेस में खिला़डियों नें जो प्रदर्शन किया वह तारीफ के काबिल था।

राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने कुल १५ स्वर्ण, ३० रजत और १९ कांस्य पदक हासिल किये। देश के हर राज्य के खिलाड़ी ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। उसमें उत्तर भारत के युवा खिला़डियों की संख्या उल्लेखनीय थी। भारोत्तोलन, मुक्केबाजी, हॉकी, निशानेबाजी, भालाफेंक, कुश्ती आदि खेलों में वहां केयुवा खिलाड़ियों ने पदक हासिल किये। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड आदि राज्य के खिलाड़ियों ने भी कई उपलब्धियां हासिल की हैंे।

बिहार की एक बेटी ने राष्ट्रमंडल खेलों में सबका ध्यान अपनी ओेर खींचा। निशानेबाज श्रेयसी सिंह ने पिस्तौल के डबल ट्रेप में रजत पदक जीतकर बिहार का नाम रोशन कर दिया। पदक जीतनेवाली वह राज्य की एकमात्र खिलाड़ी साबित हुई है।
किसी भी खेल में सिर्फ जीतना ही लक्ष्य नहीं होता, जिस खेल में आपको महारत हासिल करनी है, उसे दिल से खेलना भी जरूरी होता है। यही कार्य बिहार का हर युवा खिलाड़ी करता नजर आता है।

बिहार के खेल जगत के इतिहास में थोड़ा झांकें तो, देश का नाम रोशन करनेवाले बहुत सारे खिलाड़ियों का परिचय होगा। अच्छे खिलाड़ी निर्माण करने के लिए जिस प्रकार कोचिंग जरुरी होती है, उसी तरह हर खिलाड़ी को खुद को सिद्ध करने के लिए शारीरिक क्षमता, खेल की तकनीक को समझना, हर तरह से खुद को फिट रखकर खेल की मानसिकता बनाना इत्यादि विषयों पर ध्यान लगाकर प्रशिक्षण लेना होता है। ये सभी बातें बिहार के खिलाडियों में दिखाई देती हैं।

               सबा करीम 

स्वतंत्रता के बाद बिहार के खिलाड़ियों पर नजर डाली जाये तो कई नाम सामने आएंगे। इन्होंने न सिर्फ देश का नाम रोशन किया, बल्कि देश के युवाओं में खेल के प्रति करिअर बनाने हेतु उत्साह भी निर्माण किया है।
भारत केअन्य क्षेत्रों की तरह यहां भी क्रिकेट सर्वाधिक लोकप्रिय है। फिलहाल बदलते समय के साथ राष्ट्रीय खेल हॉकी और उसके बाद कुश्ती, फुटबॉल, टेनिस, गोल्फ, शतरंज, बॉक्सिंग, निशानेबाजी, कैरम आदि खेलों में युवाओं की संख्या बढ़ी है। सबसे महत्वपूर्ण यह कि बिहार का अधिकांश हिस्सा ग्रामीण होने के कारण पारंपारिक भारतीय खेल जैसे कबड्डी, खो-खो यहां बहुत लोकप्रिय हैं। प्रसिद्ध प्रो कबड्डी लीग में बिहार के खिलाड़ियों ने हर राज्य की टीम में जगह बनाई है और हर टीम में उनका योगदान महत्वपूर्ण है। इस लीग में बिहार की भी एक स्वतंत्र टीम है जिसका नाम हैै पटना पॅराइट्स। शुरुआत से ही इस टीम ने लीग में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है।

दूसरी ओर बिहार एक ऐसा राज्य है जहां लोगों में खेल के प्रति उत्सुकता दिखाई देती है। क्रिकेट से लेकर भारतीय खेल हॉकी तक कई प्रसिद्ध खिलाड़ी इस धरती ने दिए हैं। इनमें सबा करीम (क्रिकेट), जफर इकबाल (हॉकी), शिवनाथ सिंह (धावक) से लेकर कैरम प्रजेता रश्मी कुमारी का नाम लिया जा सकता है। २१वीं सदी में एकलव्य की तरह कोई भी बिना गुरू के मार्गदर्शन के किसी भी क्षेत्र में मंजिल हासिल नहीं कर सकता। यही सोच कर राज्य में असंख्य खेल संस्थाएं गठित हुई हैं। जिन्होंनेे युवाओं में खेल भावना निर्माण करने हेतु विविधतापूर्ण योजनाएं बनाई हैं। इससे युवा खिलाड़ियों को लाभ भी हुआ है। विद्यालयीन स्तर से ही युवकों में खेल भावना जागृत हो इसलिये अंतरविद्यालयीन चैम्पियनशिप स्पर्धाएं खेली जातीे हैं। बिहार के कुछ प्रायवेट एसोसिएशन (स्पोर्ट्स क्लब, अकादमी इत्यादि) भी युवाओं को अच्छी खेल कोचिंग प्रदान करने के लिए प्रयत्नशील हैं।

बिहार से विभक्त होने के पहले, मतलब झारखंड राज्य की निर्मिति से पहले यहां के कई खिलाड़ी देश के लिए महत्वपूर्ण योगदान दे चुके है। क्रिकेट केबारे में कहें तो सबा करीम से लेकर युवा क्रिकेटर तेजस्वी यादव तक कई का नाम लिया जा सकते हैं। भारत के क्रिकेट कप्तान महेंद्रसिंह धोनी भी बिहार से ही हैं। गौरतलब है कि, जब धोनी क्रिकेट खेलने लगे तब झारखंड राज्य की निर्मिति नहीं हुई थी। अब वे भले ही झारखंड के नागरिक हैं, लेकिन क्रिकेट में पदार्पण करते समय वह बिहार केही एक उभरते क्रिकेटर थे।

सबा करीम आज भी क्रिकेट विश्लेषक के रूप में सक्रिय कार्य कर रहे हैं। दायेंहाथ के बल्लेबाज और उत्कृष्ट विकेट कीपर सबा करीम के द्वारा क्रिकेट जगत में बढ़ रही नई पीढ़ी को अनमोल मार्गदर्शन मिल रहा है। १९६७ में पटना में जन्मे सबा करीम ने विकेटकीपर के तौर पर भारतीय टीम में जगह बनाई। पटना के सेंट झेवियर्स स्कूल से शिक्षा लेने के बाद उन्होंने क्रिकेट में अपना भाग्य आजमाना चाहा। जिसमें वे सफल भी रहे। १९९०-९१ के दौरान रणजी में उन्होंने २३४ रन बनाकर अपने करिअर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। १९९६ में साउथ अफ्रीका के खिलाफ खेले गई सीरीज में सबा करीम ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया। २०१२ में बीसीसीआय ने भारत के पूर्व भाग केलिये राष्ट्रीय चयन समितिी का प्रमुख पद उन्हें सौंपा। वे एक अच्छे क्रिकेट विश्लेषक भी हैं।

सिर्फ क्रिकेट ही नहीं, बिहार के खिलाड़ियों ने हर खेल में अपना कदम बढाया है। कैरम हो या बैडमिंटन हर खेल में वे आगे हैं।

इस बार राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को रजक पदक दिलाने वाली २२ वर्षीय श्रेयसी सिंह की बात ही कुछ और है। वह श्रेष्ठ निशानेबाज हैं। निशानेबाजी के डबल ट्रेप में बिहार के लिए रजत जीतनेवाली इस वर्ष की वह एकमेव निशानेबाज सिद्ध हुई हैं। इसलिये सारे बिहार राज्य में उसकी कामयाबी पर बधाई दी जा रही है। श्रेयसी की पढ़ाई दिल्ली में हुई है। उनके पिता दिग्विजय बिहार के जमुई स्थित गिद्धौर के निवासी हैं। वे नेशनल रायफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के पदाधिकारी भी रह चुके हैं। उनसे ही श्रेयसी को निशानेबाजी में करिअर बनाने की प्रेरणा मिली। राष्ट्रमंडल के पहले उसने गिद्धौर में निशानेबाजी की प्रैक्टिस भी की थी। राष्ट्रमंडल में कामयाबी मिलने के बाद अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में वह १८वें स्थान पर रहीे है।

इतिहास के पन्ने में जब सर्वश्रेष्ठ लंबी दूर के धावक को ढूंढने पर शिवनाथ सिंह का नाम अपने-आप सामने आएगा। बक्सर केमंजोरिया गांव में जन्मे शिवनाथ ने एशियाई खेल और दोन बार ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भाग लिया था। १९७६ में पुरुष ओलंपिक मैेरेथान में वह ११वें स्थान पर रहे। २.१२ मिनट का उनका रेकॉर्ड है। २००३ में उनका देहांत हुआ। शिवनाथ का सफर याद कर, बिहार के असंख्य युवाओं में धावक होने की आकांक्षाएं जाग उठती हैं।

कैरम की बात करें तो बिहार के युवाओं में एक ही नाम पर चर्चा होती है, और वह नाम है रश्मी कुमारी। रश्मी कैरम चैम्पियन है। सन१९९२ से कैरम में बहुत सारे रेकॉर्ड उनके नाम पर दर्ज है। उनकी प्रेरणा से असंख्य युवाओं ने कैरम में अपना नसीब आजमाना चाहा और उसमें वे सफल भी रहे। रश्मी ने अब तक राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी भारत का नाम रोशन किया है। श्रीलंका में खेली गई छठी वर्ल्ड कैरम चैम्पियनशिप की वह विजेता रही। इतना ही नहीं उसके बाद रश्मी ने यह चैम्पियनशिप तीन बार अपने नाम की। पहिली मलेशिया ओपन, आयसीएफ कप कैरम चैम्पियनशिप और लुटौन में संपन्न हुआ कैरम का पहिला विश्वकप उसने जीता था। इसलिये कैरम में उनका योगदान महत्वपूर्ण है।

      रश्मी कुमारी 

हॉकी में बिहार का नाम रोशन करनेवाले जफर इकबाल को कैसे भूला जा सकता है। २० जून १९५६ में जन्मे इकबाल हॉकी केश्रेष्ठ खिलाड़ी रहे। १९७८ में उन्होंने भारतीय हॉकी टीम में अपनी जगह बनाई। वे कुछ समय के लिए टीम के कप्तान भी थे। १९८० में ओलंपिक में भारत ने स्वर्ण पदक हासिल किया था। उस टीम में इकबाल का कार्य महत्वपूर्ण था। १९८२ के एशियाई खेल और १९८३ की चैम्पियन ट्राफी में उन्होंने भारत का कप्तान पद संभाला। हॉकी मैच में उनकी आक्रामकता प्रतिस्पर्धी टीम के खिलाड़ियों को परेशानी में डाल देेती थी। पश्चिम जर्मनी के खिलाफ गोल दागकरउन्होंने १९८४ के ओलंपिक में भारत को सेमीफाइनल तक पहुंचाया था। इस महान कार्य को देखते हुए इकबाल को अर्जुन पुरस्कार और उसके बाद २०१२ में पद्म पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

मैदानी खेलों में बिहार की महिला खिलाड़ी भी कम नहीं हैं। पॉली नाम से प्रसिद्ध कविता रॉय, भारतीय महिला क्रिकेट टीम की एक प्रसिद्ध खिलाड़ी रह चुकी हैं। कविता ने फिलहाल क्रिकेट से संन्यास ले लिया है। एक दिवसीय क्रिकेट में उन्होंने टीम के लिए अच्छा काम किया है। इंडियन प्रीमियर लीग (आयपीएल) में बिहार का एक उभरता सितारा सब का ध्यान आकर्षित कर रहा है। बिहार केएक बड़े राजनेता का बेटा होने के बावजूद उसने अपने बलबूते आयपीएल टीम में अपनी जगह बनाई है। जी हां, उसका नाम है, तेजस्वी यादव। तेजस्वी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का बेटा है। २००८ में आयपीएल केदिल्ली डेअरडेविल्स ने उसे अपनी टीम में स्थान दिया। फिलहाल तेजस्वी झारखंड के लिए खेलते हैं। भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बनाने के लिए तेजस्वी ने अपना प्रयास जारी रखा है।

खिलाड़ियों को बढावा देनेे केलिए बिहार का युवा कल्याण एवं खेल निदेशालय भी कड़ी मेहनत कर रहा है। बिहार के युवाओं के लिए बुनियादी सुविधाएं और प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम वह कर रहा है।

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