रूस, यूक्रेन, अमेरिका, भारत… और भारतीय मीडिया

जेलेन्स्की और पुतिन प्रकरण में भारत हर बार यूएन वोटिंग से ले कर सार्वजनिक आधिकारिक कथनों में रूस के साथ खड़ा दिखता है। पश्चिमी राष्ट्रों और अमेरिकी सांसदों से ले कर प्रभावशाली राष्ट्राध्यक्षों ने भारत को अपराध बोध में लपेटने के प्रयास किए। भारत ने रूस को नहीं त्यागा और अमेरिकी विचारों के साथ खड़ा नहीं हुआ।

इस बात से अमेरिका परेशान अवश्य हुआ, यूरोप के अन्य गोरे राष्ट्रों को ठेस अवश्य पहुँची कि उनका एक समय का गुलाम राष्ट्र उनकी बात नहीं सुन रहा। ऐसे समयों में हमेशा दूसरी और तीसरी योजनाएँ होती हैं। सरकार अगर मैनेज नहीं होती तो आप भाँप जाते हैं और नई योजना पर कार्य करते हैं।

अमेरिका ने अपनी सिनेट में भारत पर आरोप लगाना जारी रखा और पीछे से भारतीय मीडिया में ‘यूक्रेन महान, रूस परेशान’ का नैरेटिव डालना आरंभ किया। पुतिन को ले कर भारत में एक उत्तम प्रशासक की छवि है, यहाँ की जनता उसे अत्यधिक पसंद करती है। रूस को ले कर भी भारत में एक सकारात्मक छवि ही रही है।

इसलिए, मीडिया में रूस को तीसरे विश्वयुद्ध का कारण बताने से ले कर, उसकी हार आदि का नैरेटिव खूब चल रहा है। रूस यूक्रेन से हार जाएगा, यह सोचना मूर्खता है। रूस, जो अमेरिका से पंगे लेता रहता है, वह यूक्रेन से हार जाएगा, यह सोचना भी अजीब ही है। हाँ, यह अवश्य है कि पुतिन ने इतनी लम्बी लड़ाई का आकलन नहीं किया होगा।

जब मीडिया इस तरह से मैनेज हो तो आपको हर दिन हजार रूसी सैनिकों के मरने, उनके सैन्य दस्तों को छापामार यूक्रेनी सेना द्वारा तबाह करने आदि के समाचार मिलते रहेंगे। आप यह मानने लगेंगे कि रूस हार रहा है और यूक्रेन की जनता पर अत्याचार हो रहे हैं।

ये दोनों कथन विरोधाभासी हैं। यदि रूस हार रहा है तो फिर यूक्रेन हर दिन दूसरे राष्ट्रों के सामने गुहार क्यों लगा रहा है? यदि वहाँ की जनता पर बमबारी हो रही है तो यूक्रेन जीत कैसे रहा है? एक तरफ आप सैकड़ों अट्टालिकाओं के ध्वस्तीकरण की भी खबर सुन रहे हैं, और उसी समय आपको यह भी कहा जा रहा है कि ध्वस्त करने वाले की स्थिति बहुत खराब है! आपको विचित्र नहीं लगता?

जेलेन्स्की या यूक्रेन से इतना ही प्रेम है यूरोप को तो अपनी सेनाएँ क्यों नहीं भेज रहे? रूस से तेल क्यों खरीदा जा रहा है यूरोप द्वारा? सौ-दौ सौ मिलियन डॉलर की भीख से रूस से यूक्रेन सामना कर लेगा? उस रूस से जिसके चक्कर में अमेरिका का रक्षा बजट ट्रिलियन डॉलर में जाता है?

यूक्रेन युद्ध को खींच रहा है क्योंकि इससे अमेरिकी हित सधते हैं। अमेरिका के लिए विश्व में युद्ध की स्थिति बनी रहे या युद्ध कहीं होता रहे, वह एक व्यापार का माध्यम है। वह आज भी भारत को कह रहा है कि रूस से दोस्ती तोड़ो, हथियार हमसे ले लो। उसका मूल लक्ष्य हथियार विक्रय है, सहयोग नहीं।

इसके लिए, जब राजनयिक चेष्टाएँ विफल हो गई हैं तो मीडिया के माध्यम से भारतीय जनता को बरगलाया जा रहा है कि तुम्हारी सरकार गरीब और पीड़ित यूक्रेनियों के साथ नहीं है, वो आततायी पुतिन के साथ है, तुम्हें रात में नींद कैसे आती है!

बड़े टीवी चैनलों को ब्रिटेन के माध्यम से पैसे पहुँचाए जा रहे हैं कि इस प्रलाप को सतत चलायमान रखा जाए कि विश्वयुद्ध होने वाला है और भारत उसको रोकने की जगह रूस की मदद किए जा रहा है। तथ्य यह है कि रूस को अभी भी यूरोप के एक-एक देश से तेल के लिए इतने पैसे आ रहे हैं जो कि भारत के साल भर की खरीद से भी अधिक है।

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