भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. आंबेडकर

भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महू (म.प्र.) में हुआ था। उनके पिता श्री रामजी सकपाल तथा माता भीमाबाई धर्मप्रेमी दम्पति थे। उनका जन्म महार जाति में हुआ था, जो उस समय अस्पृश्य मानी जाती थी। इस कारण भीमराव को कदम-कदम पर असमानता और अपमान सहना पड़ा। इससे उनके मन का संकल्प क्रमशः दृढ़ होता गया कि उन्हें इस बीमारी को भारत से दूर करना है।

विद्यालय मे उन्हें सबसे अलग बैठना पड़ता था। प्यास लगने पर अलग रखे घड़े से पानी पीना पड़ता था। एक बार वे बैलगाड़ी में बैठ गये, तो उन्हें धक्का देकर उतार दिया गया। वह संस्कृत पढ़ना चाहते थे, पर कोई पढ़ाने को तैयार नहीं हुआ। एक बार वर्षा में वह एक घर की दीवार से लगकर बौछार से स्वयं को बचाने लगे, तो मकान मालकिन ने उन्हें कीचड़ में धकेल दिया।

उस दौर में छुआछूत जैसी समस्याएं व्याप्त होने के कारण उनकी शुरुआती शिक्षा में काफी परेशानी आई। लेकिन उन्होंने जात पात की जंजीरों को तोड़ अपनी पढ़ाई पूरी की। मुंबई के एल्फिंस्टन रोड पर स्थित सरकारी स्कूल में वह पहले अछूत छात्र थे। बाद में 1913 में अंबेडकर ने अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी से आगे की शिक्षा ली। यह एक बड़ी उपलब्धि थी कि साल 1916 में बाबा साहेब को शोध के लिए सम्मानित किया गया था। 1923 में वे लन्दन से बैरिस्टर की उपाधि लेकर भारत वापस आये और वकालत करने लगे। इसी साल वे मुम्बई विधानसभा के लिए भी निर्वाचित हुए; पर छुआछूत की बीमारी ने यहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ा।

1924 में भीमराव ने निर्धन और निर्बलों के उत्थान हेतु ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ बनायी और संघर्ष का रास्ता अपनाया। 1926 में महाड़ के चावदार तालाब से यह संघर्ष प्रारम्भ हुआ। जिस तालाब से पशु भी पानी पी सकते थे, उससे पानी लेने की अछूत वर्गाें को मनाही थी। डॉ. आंबेडकर ने इसके लिए संघर्ष किया और उन्हें सफलता मिली। उन्होंने अनेक पुस्तकें  लिखीं तथा ‘मूकनायक’ नामक पाक्षिक पत्र भी निकाला।

अछूत वर्गों के अधिकारों के लिए उन्होंने कई बार कांग्रेस तथा ब्रिटिश शासन से संघर्ष किया।  भारत के स्वतन्त्र होने पर उन्हें केन्द्रीय मन्त्रिमंडल में विधि-मन्त्री की जिम्मेदारी दी गयी। भारत का नया संविधान बनाने के लिए गठित समिति के वे अध्यक्ष थे। राजनीतिक जीवन की बात करें तो उन्होंने लेबर पार्टी का गठन किया था। संविधान समिति के अध्यक्ष रहे। आजादी के बाद कानून मंत्री नियुक्त किया गया। बाद में बाॅम्बे नॉर्थ सीट से देश का पहला आम चुनाव लड़ा लेकिन हार का सामना करना पड़ा। बाबा साहेब राज्यसभा से दो बार सांसद चुने गए।

संविधान में छुआछूत को दंडनीय अपराध बनाने के बाद भी वह समाज में बहुत गहराई से जमी थी। इससे वे बहुत दुखी रहते थे। अन्ततः उन्होंने हिन्दू धर्म छोड़ने का निश्चय किया। यह जानकारी होते ही ईसाई और मुसलमान नेता उनके पास तरह-तरह के प्रलोभन लेकर पहुँच गये; पर डॉ. आंबेडकर जानते थे कि इन विदेशी मजहबों में जाने का अर्थ देश से द्रोह है। अतः विजयादशमी (14 अक्तूबर, 1956) को नागपुर में अपनी पत्नी तथा लाखों अनुयायियों के साथ उन्होंने भारत में जन्मे बौद्ध मत को अंगीकार किया।

6 दिसंबर 1956 को डॉ. भीमराव अंबेडकर का निधन हो गया। उनके निधन के बाद साल 1990 में बाबा साहेब को भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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