तनिक मुस्कुराइए

इंसानों को जानवरों से अलग करने वाली बातों में मुस्कान का क्रमांक पहला कहा जाना चाहिए। बच्चे की पहली किलकारी सुनकर मां के चेहरे पर आई मुस्कान हो या पांच फुट दूर खड़े किसी व्यक्ति को पहचानते हुए आई मुस्कान… सभी का मन से सीधा नाता होता है।

कबीरा जब हम पैदा हुए जग हंसे हम रोए।

ऐसी करनी कर चलो हम हंसे जग रोए॥

अब भैया संत कबीर तो यह कह कर निकल लिए कि जब हम पैदा होते हैं तो हम रोते हैं और दुनिया हंसती है, इसलिए ऐसे काम करो कि आपको दुनिया याद रखे और जब आप दुनिया से जाओ तो आप हंसों और दुनिया रोए(अब आपके जाने के दुख में रोए या आप जो करम करके गए हैं, उसके कारण रोए, यह कबीर जी ने नहीं बताया)। बहरहाल, आपका हंसते हुए दुनिया से विदा लेना आवश्यक है।

पहले ही स्पष्ट कर दूं कि हंसते हुए दुनिया से जाने से कबीर जी का मतलब सुखी-समाधानी होकर जाने से है, वरना लकीर के फकीर लोग मृत शरीरों पर पुष्प अर्पित करते हुए यह देखने लगेंगे कि बंदा हंस रहा है या नहीं और जब उनको मृत शरीर निर्विकार लगेगा तो कहेंगे कबीर जी कुछ भी कहते रहते थे, क्योंकि हिंदू मान्यताओं को अतार्किक और अवैज्ञानिक मानने का तो चलन ही है, भले ही उनके सही अर्थ समझें न समझें।

खैर, छोडिए! हम बात कर रहे थे हंसी की। एक हंसी, एक मुस्कान दुनिया का बडे से बडा काम भी आसानी से करवा सकती है। आप हंसकर-मुस्कुराकर किसी से कुछ मांगिए या सहायता के लिए पूछिए, बदले में आपको सकारात्मक उत्तर ही मिलेगा। सदैव खुशमिजाज रहने वाले व्यक्ति समाज में लोकप्रिय होते हैं। ईश्वर द्वारा मनुष्य को दिया गया अनुपम उपहार है, हंसी।

वैसे हंसना कोई मुश्किल काम नहीं है, हां कैसे हंसा जाए यह सीखना मुश्किल जरूर है। अब आप पूछेंगे कि ये भी कोई सीखने की चीज है कि ‘कैसे हंसा जाए’? तो भैया! आज के जमाने में ये सीखना बहुत ही जरूरी है कि कैसे हंसा जाए, क्योंकि अगर आपकी हंसी अच्छी नहीं है तो न तो आपकी सेल्फी अच्छी आएगी, न ही आप किसी ‘ग्रुप फोटो’ के अहम किरदार बन पाएंगे और न ही आपके फोटो ‘ट्रेंड’ हो पाएंगे। आजकल तो किस एंगल के फोटो के लिए कैसे हंसा जाए, कौन से शब्द बोले जाएं कि आपकी हंसी ‘फोटजेनिक’ दिखे, इसके लिए सोशल मीडिया पर बकायदा वीडियो बनाकर सिखाया जा रहा है क्योंकि ‘से चीज’, ‘से पनीर’ जैसे शब्द भी अब लोगों को मुस्कुराना सिखाते-सिखाते बुढा गए हैं। अब वह जमाना नहीं रहा जब फोटोग्राफर कहता था ‘तनिक मुस्कुराइए’ और पूरा परिवार अपनी बत्तीसी दिखाते हुए दंत मंजन का विज्ञापन करने लगता था। इसलिए हंसने के पहले इस बात का ध्यान रखिए कि आप कैसे हंस रहे हैं, या मेरी बात मान कर हंसना सीखने के ऑनलाइन क्लास जॉइन कर लीजिए।

पाठ्यक्रम का दूसरा अध्याय यह सिखाता है कि कहां कितना हंसा जाए। हमारी पूरी जिंदगी में हंसने के कई मौके आते हैं। परंतु अगर इस बात का ध्यान न रखा जाए कि कहां कितना हंसना है तो हंसने वालों का हश्र कांग्रेसी नेता रेणुका चौधरी जैसा हो जाता है और आस-पास बैठे लोगों को अनायास ही शूर्पणखा की याद आ जाती है। ऐसे लोग दूसरों की हंसी उडाने के चक्कर में खुद ही हंसी के पात्र बन जाते हैं।

अगर आप अपने दोस्तों-यारों, सखियों-सहेलियों के साथ बैठे हैं और ठहाके नहीं लगा रहे हैं तो आप पर प्रश्नों की बौछार होना तय है। क्या बात है? मूड खराब है क्या? घर पर सब ठीक है या नहीं? ब्रेकअप हुआ क्या? भाभीजी से झगडा हुआ क्या? सास के साथ अनबन हुई क्या? जाने दे बंदा बेकार में भाव खा रहा है… आदि-आदि। प्रश्नों की संख्या और पूछने का ढंग दोस्ती की गहराई पर निर्भर करते हैं। अब या तो उनके साथ ठहाके लगा दीजिए या मन की कडवाहट साझा कर लीजिए। दोनों ही स्थितियों में मन हल्का हो जाना तय है।

ऐसा ठहाका ‘कॉर्पोरेट कल्चर’ में नहीं चलेगा। वहां आपको केवल अपने होंठों को एक से डेढ़ इंच तक फैलाना होता है। बॉस के सामने, अपने टीम लीडर के सामने ये एक-डेढ़ इंच की मुस्कान ही काफी होती है यह जताने के लिए हमने वह सब कुछ सुन लिया है जो आप बताना चाह रहे हैं। (इसके पीछे का छिपा भाव यह होता है कि हम करेंगे वही जो हमें करना है।) बॉस भी यह समझता है और पलटवार करते हुए एक अंगूठा दिखाकर और डेढ़ इंच मुस्कान फेंक कर कहता है ‘गुडलक’।(जिसका मतलब है मैं भी तुम लोगों से वह सब करवाकर रहूंगा, जो मुझे चाहिए।)

मॉडलिंग की दुनिया की हंसी तो और भी मुश्किल है। रैम्प वॉक करती हुई मॉडल्स को यहां केवल आंखों से हंसना होता है और उन्हें इस प्रकार हंसने के लिए बहुत तैयारी करनी पडती है। जाने दीजिए वो सबके बस की बात नहीं।

पहचान दिखाने या जान-पहचान करने का सबसे अच्छा माध्यम भी मुस्कान ही है। बस, ट्रेन, रास्ता, सिग्नल कहीं पर एक दूसरे से दूर खडे लोग भी केवल एक मुस्कान से पहचानने का संदेश दे देते हैं। और जो अपरिचित हैं उनसे भी एक झटके में पहचान हो जाती है। यात्रा के दौरान आपने ऐसा करते कई लोगों को देखा होगा। बगल वाली सीट पर बैठकर वे जितनी बार आपको देखेंगे उतनी बार मुस्कुराएंगे और यात्रा की अंतिम पडाव तक आते-आते आपकी पूरी जनम कुंडली पता कर चुके होंगे और अपनी भी बता चुके होंगे। इतनी महत्ता है मुस्कान की।

हालांकि जीवन में कभी-कभी हमें न चाहते हुए भी झूठी हंसी हंसनी पडती है जिससे सामने वाले को बुरा न लगे। कई बार दूसरों का मन रखने के लिए आप लोगों की लंबी-लंबी कहानियां सुनते रहते हैं, जिनका आपसे दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं होता। आपका मन जोर-जोर से कह रहा होता है, ‘इसे बोलो चुप हो जाए!’ परंतु, सामने वाला चुप होने का नाम ही नहीं लेता। तब आपके चेहरे की झूठी हंसी आपको बचा लेती है।

इन ‘फेक मुस्कानों’ को घर के बाहर छोडकर जब आप घर आते हैं और घर के सदस्यों की, अपने बच्चों की मुस्कान देखते हैं, तो मन अपने आप ही प्रसन्न हो जाता है क्योंकि इन मुस्कानों का सीधा रिश्ता आपसे जुडा होता है। आपके परिवार के लोग जो शाम से आपके लौटने की राह तकते हैं, आपको देखकर आई उनके चेहरे की मुस्कुराहट आपकी भी थकान दूर कर देती है। तो जब आप घर जाएं दुनिया के झमेलों को बाहर की खूंटीं पर टांग कर हंसते-मुस्कुराते घर के अंदर जाएं। वैसे अगर हंसी या मुस्कान न होती तो सबसे ज्यादा दुख किसे होता पता है? कवियों और शायरों को!! उनका सबसे प्रिय विषय जो छूट जाता। आज तक शायद ही श्रृंगार रस का कोई ऐसा कवि या शायर होगा, जिसने अपनी प्रेमिका की मुस्कान पर कविता या शायरी न लिखी हो। शायर कहता है-

तुम्हारी मुस्कान से सुधर जाती है तबीयत मेरी,

बताओ न तुम प्यार करते हो या इलाज

अब हो सकता है कि शायर की इस शायरी पर डॉक्टरों को गुस्सा आ जाए और वे ये सोचने लगें कि अगर मुस्कान से तबीयत ठीक हो रही है, तो हम किसलिए हैं? पर एक बात तो सच है कि चौबीस में से एक घंटा भी अगर कोई व्यक्ति हंस ले तो उसका मन, बुद्धि और शरीर सब कुछ स्वस्थ रहेगा। अत: हंसते रहिए, मुस्कुराते रहिए।

 

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