वैश्विक पारम्परिक औषधि केंद्र की भारत में स्थापना गेम चेंजर साबित होगी 

हम सभी भारतवासियों के लिए बहुत हर्ष एवं गर्व का विषय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में वैश्विक पारम्परिक औषधि केंद्र यानी ग्लोबल सेंटर फोर ट्रेडिशनल मेडिसिन की स्थापना के लिए भारत सरकार के साथ समझौता किया है। आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकि के जरिये, पारम्परिक औषधि में निहित सम्भावनाओं को साकार करने के उद्देश्य से उक्त वैश्विक केन्द्र भारत के जामनगर में स्थापित होने जा रहा है, जिसकी आधारशिला भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी ने 19 अप्रेल 2022 को रखी है। ऐसा माना जा रहा है कि यह केंद्र देश के आयुष उद्योग के लिए गेम चेंजर साबित होगा। दरअसल कोरोना महामारी के खंडकाल में भारतीय पारम्परिक चिकित्सा पद्धति ने नागरिकों में रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने के क्षेत्र में अपने आप को वैश्विक स्तर पर सिद्ध किया है। बीमारी होने पर इलाज करना तो बाद की बात होती है परंतु बीमारी होने ही नहीं देना भी अपने आप में बीमारी का सबसे बड़ा इलाज माना जाता है। यह चिकित्सकीय कार्य भारतीय पारम्परिक चिकित्सा पद्धति के माध्यम से सहज रूप से सम्भव बनाया जा सकता है। और, वैसे भी प्राचीन भारत का “चिकित्सा विज्ञान” बहुत उन्नत था। कुष्ठ रोग का पहिला उल्लेख भारतीय चिकित्सा ग्रंथ सुश्रुत संहिता, 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व, में वर्णित है। हालांकि, द ऑक्सफोर्ड इलस्ट्रेटेड कम्पेनियन टू मेडिसिन में कहा गया है कि कुष्ठ रोग का उल्लेख, साथ ही इसका उपचार, अथर्व-वेद (1500-1200 ईसा पूर्व) में वर्णित किया गया था, जो सुश्रुत संहिता से भी पहिले लिखा गया था। सुश्रुत ने मोतियाबिंद के आपरेशन और प्लास्टिक सर्जरी की पद्धति को सदियों पहिले विकसित कर लिया था। रॉयल आस्ट्रेलिया कॉलेज आफ सर्जन्स में लगी सुश्रुत की प्रतिमा शल्य चिकित्सा में उनके योगदान का प्रमाण है।

अब विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वैश्विक पारम्परिक औषधि केंद्र की स्थापना भारत के सहयोग से भारत में किया जाना (इस औषधि केन्द्र की स्थापना के लिये भारत 25 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगा) अपने आप में आभास दिलाता है कि पूरा विश्व ही अब भारतीय पारम्परिक चिकित्सा प्रणाली पर एक तरह से भरोसा जता रहा है और भारत को यह जिम्मेदारी दिए जाने का प्रयास किया जा रहा है कि भारतीय पारम्परिक चिकित्सा प्रणाली को विश्व के नागरिकों तक पहुंचाने के उद्देश्य से इसे वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ाया जाय। भारत पूरे विश्व के लिए फार्मेसी हब तो पहिले से ही बन चुका है।

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया में दी गई जानकारी के अनुसार पारम्परिक चिकित्सा या लोक चिकित्सा कई मानव पीढ़ियों द्वारा विकसित वे ज्ञान प्रणालियां होती हैं जिनके प्रयोग से आधुनिक चिकित्सा प्रणाली से भिन्न तरीके से शारीरिक व मानसिक रोगों की पहचान, रोकथाम, निवारण और इलाज किया जाता है। कई एशियाई और अफ्रीकी देशों में 80 प्रतिशत तक जनसंख्या प्राथमिक स्वास्थ्य उपचार में स्थानीय पारम्परिक चिकित्सा पर निर्भर है।अब समय आ गया है कि भारतीय पारम्परिक चिकित्सा प्रणाली को अपनी गृहभूमि से बाहर निकालकर वैश्विक पहचान दिलाई जाय। इसमें आगे आने वाले समय में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भारत के सहयोग से स्थापित किए जा रहे वैश्विक पारम्परिक औषधि केंद्र की विशेष भूमिका रहने वाली है।

विश्व की प्रमुख पारम्परिक चिकित्सा शैलियों में आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, पारम्परिक भारतीय एक्युप्रेशर चिकित्सा,  सिद्ध चिकित्सा, यूनानी चिकित्सा, प्राचीन ईरानी चिकित्सा, पारम्परिक चीनी चिकित्सा, पारम्परिक कोरियाई चिकित्सा, एक्यूपंक्चर, मुटी (दक्षिणी अफ्रीकी पारम्परिक चिकित्सा), इफा (पश्चिमी अफ्रीकी पारम्परिक चिकित्सा) और अन्य पारम्परिक अफ्रीकी चिकित्सा शैलियां शामिल हैं। साथ ही, पारम्परिक चिकित्सा के भिन्न क्षेत्रों में जड़ी-बूटी चिकित्सा, नृजाति चिकित्सा विज्ञान (ऍथ्नोमेडिसिन), लोक वानस्पतिकी (ऍथ्नोबोटेनी) और चिकित्सक मानवशास्त्र भी शामिल हैं।

वैश्विक पारम्परिक औषधि केंद्र की आधारशिला रखे जाते समय भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि एक ऐसे काल में जब पारम्परिक औषधि की लोकप्रियता बढ़ रही है, इस केन्द्र के जरिये पारम्परिक व आधुनिक चिकित्सा को जोड़ने और एक स्वस्थ पृथ्वी की दिशा में आगे बढ़ने के प्रयासों में मदद मिलेगी। भारत, अत्याधुनिक डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन के भारत में स्थापना को लेकर बहुत सम्मानित महसूस कर रहा है।

इस अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक श्री टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा कि यह वास्तव में एक वैश्विक परियोजना है और पारम्परिक औषधि के लिये वैश्विक केन्द्र की स्थापना के जरिये, पारम्परिक चिकित्सा के लिये तथ्यात्मक आधार को मजबूत करने में मदद मिलेगी और सर्वजन के लिये सुरक्षित व कारगर उपचार सुनिश्चित किया जा सकेगा। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस समय 107 सदस्य देशों में पारम्परिक एवं पूरक औषधि के लिए राष्ट्रीय सरकारी कार्यालय कार्यरत हैं परंतु वैश्विक पारम्परिक औषधि केंद्र वैश्विक स्तर पर प्रथम केंद्र के रूप में भारत में स्थापित किया जा रहा है। इस नए वैश्विक केन्द्र के माध्यम से विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुख्यालय, क्षेत्रीय व देशीय कार्यालयों एवं अन्य देशों (भारत आदि) में विभिन्न स्तरों पर किए जा रहे पारम्परिक औषधि सबंधित कार्यों में सामंजस्यता स्थापित की जाएगी। इसी क्रम में, विभिन्न देशों की इस सम्बंध में राष्ट्रीय नीतियों को समर्थन देने और स्वास्थ्य-कल्याण के लिये पारम्परिक औषधि के इस्तेमाल को बढ़ाने के इरादे से तथ्य, डेटा, सततता और नवाचार पर इस केंद्र के माध्यम से ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।

वैश्विक स्तर पर एलोपेथी नामक अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति पर पहिले से ही बहुत दबाव है और यह चिकित्सा प्रणाली कई देशों के दूर दराज इलाकों में आज भी उपलब्ध ही नहीं कराई जा सकी है और फिर इस चिकित्सा प्रणाली के नकारात्मक साइड इफेक्ट्स भी बहुत गहरे दिखाई देने लगे हैं। अतः एक प्रकार से तो इस चिकित्सा पद्धति पर लोगों का विश्वास ही कम होता जा रहा है। इसलिए अब पूरे विश्व का भारतीय पारम्परिक चिकित्सा पद्धति की ओर ध्यान जा रहा है ताकि एलोपेथी नामक अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति पर लगातार बढ़ रहे दबाव को कम किया जा सके। भारत पारम्परिक चिकत्सा पद्धति (आयुष) का वैश्विक स्तर पर अन्य चिकित्सा पद्धतियों के साथ एकीकरण एवं अंतरराष्ट्रीयकरण भी होना चाहिए। उक्त नए केंद्र के भारत में खुल जाने से भारत के आयुष उद्योग को उक्त कार्य करने में आसानी होगी।

आज आधुनिक विज्ञान जगत में पारम्परिक औषधि की अहमियत लगातार बढ़ती जा रही है एवं इस्तेमाल में लाई जा रही स्वीकृति प्राप्त औषधि उत्पादों के लगभग 40 प्रतिशत भाग में प्राकृतिक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। जिसमें जैवविविधता संरक्षण व सततता का महत्व भी रेखांकित होता है।  पारम्परिक औषधि को आधुनिक दवाओं में बदले जाने के कई उदाहरण विश्व भर में मिलते हैं। जैसे भारत में तुलसी, गिलोय, हल्दी, नीम, जामुन और हरबल जैसे उत्पादों को आधुनिक दवाओं के रूप में वैश्विक स्तर पर इस्तेमाल किया जाने लगा है। भारत में तो केन्द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद् (सीसीआरएएस) एवं आयुष मंत्रालय (आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, एवं होम्योपैथी), भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्तशासी निकाय के रूप में बहुत लम्बे समय से कार्य कर रहे हैं। यह भारत में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में वैज्ञानिक विधि से शोध कार्य प्रतिपादित करने, उसमें समन्वय स्थापित करने, उसका विकास करने एवं उसे समुन्नत करने हेतु एक शीर्ष राष्ट्रीय निकाय के रूप में कार्य कर रहा है और अब वैश्विक पारम्परिक औषधि केंद्र के भारत में ही खुल जाने से भारत के उक्त संस्थानों को अपने कार्य को गति देने में सहायता प्राप्त होगी।

भारत का आयुष मंत्रालय आयुर्वेद, योग और अन्य भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति (आयुष) के क्षेत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ पहले ही विभिन्न प्रकार की बातचीत कर चुका है और ये भारतीय प्रणालियां दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों, अफ्रीकी देशों, यूरोपीय देशों, लैटिन अमेरिका आदि में औषधीय प्रणाली के रूप में अधिक लोकप्रिय और स्वीकृत हो रही हैं इसलिए भारत के आयुष मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन मिलकर संबंधित देशों में पारंपरिक प्रणालियों को नियमित करने, एकीकृत करने और आगे बढ़ाने के लिए सदस्य देशों के सामने उत्पन्न विभिन्न चुनौतियों की पहचान करने के लिए काम प्रारम्भ करेंगे। उक्त के अलावा भारत का आयुष मंत्रालय एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन सदस्य देशों के लिए उपयुक्त नीतियां बनाने, नियमन ढांचा विकसित करने में भी मदद करेंगे।

भारत का आयुष उद्योग 2020-21 में 1820 करोड़ अमेरिकी डॉलर का उद्योग माना गया है जो वर्ष 2014 में केवल 300 करोड़ अमेरिकी डॉलर का था। पिछले 7 वर्षों के दौरान आयुष उद्योग 6 गुना आगे बढ़ा है तथा आगे आने वाले वर्षों में और भी तेज गति से आगे बढ़ेगा। भारतीय आयुष उद्योग का भविष्य  न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी बहुत उज्जवल दिखाई दे रहा है। अब तो वैश्विक पारम्परिक औषधि केंद्र के भारत में ही खुल जाने से भारत का पारम्परिक औषधि केंद्र अब वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान स्थापित करेगा। वैश्विक स्तर के औषधि केंद्र की भारत में स्थापना अपने आप में भारत के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जानी चाहिए।

 

प्रहलाद सबनानी

 

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