धर्म के प्रति समर्पित धर्मवीर संभाजी महाराज

धर्म और संस्कृति के लिये अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले संभाजी महाराज की जयंती पर शत-शत नमन।
संभाजी महाराज ने अपने कम समय के शासन काल में 210 युद्ध किये और इसमे एक प्रमुख बात ये थी कि उनकी सेना एक भी युद्ध में पराभूत नहीं हुई। शंभाजी राजे मराठा समुदाय से आते हैं जो की एक तरह का क्षत्रिय जनसमुदाय है, उनके पराक्रम की वजह से परेशान हो कर औरंगजेब ने कसम खायी थी के जब तक छत्रपती संभाजी पकड़े नहीं जायेंगे, वो अपना किमोंश सर पर नहीं चढ़ाएगा।
छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 1657 में 14 मई को पुरंदर किले में हुआ था। लेकिन संभाजी के 2 वर्ष के होने तक सईबाई का देहांत हो गया था, इसलिए संभाजी का पालन-पोषण छत्रपति शिवाजी की माँ जीजाबाई ने किया था। संभाजी महाराज को छावा कहकर भी बुलाया जाता था, जिसका मराठी में मतलब होता हैं शावक अर्थात शेर का बच्चा। संभाजी महाराज संस्कृत और 8 अन्य भाषाओ के ज्ञाता थे, छत्रपति संभाजीराजे नौ वर्ष की अवस्था में छत्रपती शिवाजी महाराज की प्रसिद्ध आगरा यात्रा में उनके साथ गये थे। उन्होंने अपने उम्र के केवल 14 साल में बुधभूषण, नखशिख, नायिकाभेद तथा सातशातक यह संस्कृत ग्रंथ लिखे थे।
1683 में उन्होंने पुर्तगालियों को पराजित किया। इसी समय वह किसी राजकीय कारण से संगमेश्वर में रहे थे। जिस दिन वो रायगड के लिए प्रस्थान करने वाले थे उसी दिन कुछ ग्रामस्थो ने अपनी समस्या उन्हें अर्जित करनी चाही। जिसके चलते छत्रपति संभाजी महाराज ने अपने साथ केवल 200 सैनिक रख के बाकी सेना को रायगड भेज दिया। उसी वक्त उनके एक फितूर गणोजी शिर्के जो कि उनकी पत्नी येसूबाई के भाई थे जिनको उन्होंने वतनदारी देने से इन्कार किया था, मुग़ल सरदार मुकरब खान के साथ गुप्त रास्ते से 5000 के फ़ौज के साथ वहां पहुंचे।
यह वह रास्ता था जो सिर्फ मराठों को पता था। इसलिए संभाजी महाराज को कभी नहीं लगा था के शत्रु इस और से आ सकेगा। उन्होंने लड़ने का प्रयास किया किन्तु इतनी बड़ी फ़ौज के सामने 200 सैनिकों का प्रतिकार काम कर न पाया और अपने मित्र तथा एकमात्र सलाहकार कविकलश के साथ वह बंदी बना लिए गए (1 फरवरी, 1689)। औरंगजेब ने दोनों की जुबान कटवा दी, आँखें निकाल दी। 11 मार्च 1689 हिन्दू नववर्ष दिन को दोनों के शरीर के टुकडे कर के हत्या कर दी। कहते हैं कि हत्या पूर्व औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज से कहा के मेरे 4 पुत्रों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता तो सारा हिन्दुस्थान कब का मुगल सल्तनत में समाया होता।
जब छत्रपति संभाजी महाराज के टुकडे तुलापुर की नदी में फेंके गए तो उस किनारे रहने वाले लोगों ने वो इकठ्ठा कर के सिला के जोड़ दिया जिस के उपरांत उनका विधिपूर्वक अंत्यसंस्कार किया। औरंगजेब ने सोचा था की मराठी साम्राज्य छत्रपति संभाजी महाराज के मृत्यु पश्चात खत्म हो जाएगा। छत्रपति संभाजी महाराज के हत्या की वजह से सारे मराठा एक साथ आकर लड़ने लगे। अत: औरंगजेब को दक्खन में ही प्राण त्याग करना पड़ा। उसका दकन जीतने का सपना इसी भूमि में दफन हो गया।
रोंगटे खड़े हो जाते है, रक्त उबलने लगता है,
केवल धर्म परिवर्तन न करने पर
पहले दिन नाखून उखाड़े
दुसरे दिन दांत तोड़े
तीसरे दिन उंगलियां काटी
चौथे दिन कान काटे
पांचवे दिन आँख फोड़ी
39वे दिन गर्दन कटवा ली
पर डिगा नहीं वह वीर
कैसी वीरता रही होगी?
धर्म के लिए बलिदान हो गए
देश धरम पर मिटनेवाला शेर शिवा का छावा था,  महापराक्रमी परम प्रतापी एक ही शंभू राजा था।।
छत्रपति संभाजी महाराज का ये बलिदान और उनको पीडा देने का काम मुगलों ने औरंगजेब के कहने पर एक महिने तक चालू रखा और उनको महिनाभर तड़पाते रहे और आखिर में उनके शरीर के पैरों से लेकर गर्दन तक तुकडे तुकडे करके मार डाला| कहते हैं, इससे पहले औरंगजेब ने उन्हें अपना हिन्दू धर्म त्याग कर मुगलों का धर्म अपनाने की मांग रखी थी लेकिन युगप्रवर्तक राजा छत्रपती शिवाजीराजे का बेटा और अपने धर्मपर पुरी निष्ठा और श्रध्दा रखने वाले संभाजीराजे ने ये मांग फटकार दी और इस्लाम का स्वीकार कतई न करने का निश्चय औरंग को बता दिया था|

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