शिक्षा का केन्द्र बिन्दु शिक्षक

भारत में शिक्षा की मौलिक अवधारणा है कि शिक्षा मानव की अन्तर्निहित शक्तियों का प्रकटीकरण है, न कि केवल छात्र के मस्तिष्क में कुछ जानकारियों को ठूँसा जाना। हमारी मान्यता है कि हमारे अन्दर जो परम चैतन्य विद्यमान है, उसी परमसत्य की अनुभूति और अभिव्यक्ति शिक्षा प्रणाली का मूल उद्देश्य है।

हमारे ऋषि-मनीषियों-सन्तों और तपस्वियों ने इस उद्देश्य की प्राप्ति की प्रक्रिया के सम्बन्ध में जो दिशा निर्देश किए हैं, उन्हें बालक के जीवन में क्रियान्वित करने में शिक्षक की प्रमुख भूमिका है। शिक्षक का प्रथम कार्य यम व नियम के दस सिद्धान्तों को विद्यार्थियों के मन में बैठाना है। अधिकांश युवक नहीं जानते कि जीवन के विविध आयामों के उत्कृष्ट ज्ञान से समृद्ध हमारा कोई प्राचीन इतिहास भी है, क्योंकि उनके छात्र जीवन में उनके शिक्षकों और माता-पिता ने उन्हें इस बारे में बताया ही नहीं।

आज की अध्ययन प्रणाली में सीखने की इच्छा तथा प्रयास का अभाव है। स्तरीय लेखकों की पुस्तकों को विदाई दे कर गाइडों-कुंजियों का प्रचलन हो गया है। ट्यूशन को सफलता का सरल उपाय मान लिया गया है। वस्तुतः अच्छे शिक्षकों को इसे अपनी सामर्थ्य तथा कर्तव्यनिष्ठा का अपमान समझना चाहिए। इन शार्टकट्स का दुष्प्रभाव है कि विद्यार्थियों में समझने की क्षमता, पहल करने का स्वभाव तथा इच्छाशक्ति में ह्रास हो रहा है। ‘संक्षिप्त मार्गों’ के असफल होने पर विद्यार्थी फिर ‘अनैतिक मार्गों’ से भी सफलता पाने के लिए प्रवृत्त होता है।

(विचार नवनीत, पृ. २४१)

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