ठाणे शहर के विकास में सिंधी समाज का योगदान

१  ९४७ में भारत के विभाजन के बाद सिंधी, पंजाबी, बंगाली हिंदुस्तान में आए। सिंधी समाज भी सिंध (अब पाकिस्तान में) से हिंदुस्तान में आया और अलग-अलग प्रांतों में बस गया। जो सिंधी समाज मुंबई में आया उनमें से कुछ लोग माटुंगा, मुलुंड, ठाणे और उल्हासनगर में रहने लगे। ठाणे के कोलशेत क्षेत्र में मिलिटरी की चालें थीं, वहां कुछ लोगों को भेजा गया। उसे अकबर कैम्प के नाम से जाना जाता था। लगभग हजार परिवारों को वहां रखा गया था। सन १९५३ में केंद्र सरकार द्वारा ठाणे की कोपरी कॉलोनी में २५ इमारतें बनाई गईं। इनमें कुल ९०० फ्लैट थे। अकबर कैम्प में जब महामारी फैली तो वहां से सभी लोगों को तुरंत कोपरी कॉलोनी में स्थानांतरित किया गया। सिंधी भाषा के स्कूल नहीं होने के कारण विद्यार्थियों को घाटकोपर, दादर, वडाला में प़ढने के लिए जाना प़डता था। कुछ लोग सरकारी नौकरी करने लगे थे और कुछ लोगों ने अपना व्यापार शुरू कर दिया था।

लक्ष्मण दास पंजवानी, जीजाबाई थोरात और ठाकुर दास कुर्सीजा ने मिठाई का व्यापार शुरू किया। वह व्यापार इतना ब़ढ गया कि वहां से माल बनकर पूरे ठाणे में और महाराष्ट्र के अलग-अलग जगहों पर जाने लगा। चंदूमल टिकमानी नामक एक साधारण व्यक्ति ने पटाखा बेचने का धंधा शुरू किया था। अब वह पटाखे के होल सेलर हैं। यहां से पटाखे पूरे महाराष्ट्र में जाते हैं। चंदूमल टिकमानी के सुपुत्र लक्ष्मण टिकमानी ने उस धंधे को काफी आगे ब़ढाया।

को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसयटी की योजना सबसे पहले ठाणे में शुरू हुई। डोडेजा नामक एक आर्किटेक्ट थे, उन्होंने कुछ सहयोगियों के साथ काम शुरू किया। इससे हजारों मध्यम वर्गीय लोगों को सस्ते मकान मिले। सिर्फ ठाणे में ही नहीं, पूरे महाराष्ट्र में यह स्कीम फैल गई। ठाणे के कोपरी विभाग में प्रेम नगर, दौलत नगर, गुरु नानक आदि सोसायटियां स्थित हैं। यह स्कीम १९६४ में शुरू हुई थी।

आर्टिफिशियल ज्वैलरी का काम ठाणे में बलीराम कटपाल ने शुरू किया। यह व्यापार अब पूरे ठाणे शहर में जोर-शोर से चलता है। मनोरंजन के क्षेत्र में भी सिंधी पीछे नहीं रहे। ठाणे के सिनेमा थिएटर जैसे आनंद सिनेमा, वंदना, प्रताप टॉकीज, आराधना भी सिंधी समाज की देन है। लाडिक राम तहलियानी ने कुछ अपने साथियों के साथ मिलकर ठाणे में एक संस्था बनाई जिसे सर्व सेवा समिति के नाम से जाना जाता है। सरकार से ५ रुपए वार के हिसाब से प्लॉट लिया और ब़डा भवन बनाया। उसी में कम्युनिटी हॉल, पुस्तकालय, धर्मशाला, मेडिकल सेंटर जैसे कार्य आज भी होते हैं। काफी कम किराए में कम्युनिटी हॉल कार्यक्रमों के लिए दिया जाता है। इसका आज भी हजारों लोग लाभ ले रहे हैं। न सिर्फ ठाणे के बल्कि आसपास के शहरों के लोग भी उसका लाभ लेते हैं।

टैक्सन कंपनी के मालिक दुलवानी, बुश रेडिओ के मालिक मूलचंदानी, गोल्डन डाईज के मालिक इसरानी ने ठाणे में फैक्टरी लगाकरहजारों लोगों को रोजगार दिया। हीरानंदानी, रहेजा जैसे बिल्डरों ने ठाणे में ब़डे-ब़डे संकुल बनाकर ठाणे का नक्शा ही बदल दिया। ठाणे पूर्व में कॉलेज नहीं था। स्वरूपा ठक्कर ने भारत इंग्लिश हाईस्कूल, जूनियर कॉलेज, डिग्री कॉलेज खोला, जहां आज भी हजारों विद्यार्थी शिक्षा ले रहे हैं।

राजनीति में भी ठाणे महानगर पालिका के विकास में सिंधियों का योगदान रहा है। दौलतराम असरानी, लीलाराम भटिजा, गुलाब गुलराजानी, श्रीमती वीणा भाटिया, गिरिधर भटिजा, थदाराम तोलानी, लक्ष्मण टिकमानी, भारती कोटवानी आदि समय-समय पर चुनकर महानगर पालिका में गए। श्रीमती वीणा भाटिया १९७४ से २००७ तक पांच बार महानगरपालिका के लिए चुनी गईं और अलग-अलग पदों पर रहीं। ठाणे महानगर पालिका का जो भी विकास हुआ है उसमें उनका महत्वपूर्ण योगदान है।

ठाणे का एक बड़ा वर्ग झोप़डपट्टी में रहता है। झोप़डपट्टी में अच्छी तरह के टॉयलेट हों, उसकी अच्छी देखभाल हो, वहां के लोगों में जागृति लाना, वहां के लोगों को ट्रेंनिग देना इत्यादि कामों में प्रथा सामाजिक संस्था काफी सक्रिय रही है। संस्था के महासचिव अनिल भाटिया हैं जिन्होंने वर्ल्ड बैंक के अंतर्गत निर्मल अभियान की स्कीम को ठाणे में लाई। उनके अथक परिश्रम से ठाणे की सभी झोप़डपट्टियों के अंदर टॉयलेट ब्लॉक का काम पूरा हो गया है। वहां के स्थानीय लोग उसकी देखभाल मिलजुलकर करते हैं। प्रथा सामाजिक संस्था को उस काम के लिए विश्वकर्मा अवॉर्ड मिला है।

२००१ में के. डी. लाला ठाणे महानगर पालिका में नगर अभियंता के पद पर आए। पिछले बारह, तेरह साल में ठाणे शहर का जो नक्शा बदल गया है उसमें उनका काफी योगदान है। ठाणे शहर में २००१ में पानी की बहुत कमी थी। उन्होंने ठाणे शहर के लिए जल आपूर्ति की योजना शुरू की जिसकी वजह से कहा जाता है कि ठाणें में २०२० तक पानी की कोई भी समस्या नहीं रहेगी। ठाणे में सीमेंट और कंक्रीट की स़डकों का निर्माण कर यातायात पर भी विशेष कार्य किया गया। ठाणे रेलवे स्टेशन के आसपास ट्रैफिक जाम न हो, इसके लिए सैटिस प्रोजेक्ट लाए। सैटिस प्रोजेक्ट को ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से अवॉर्ड मिला। जवाहर लाल नेहरू योजना के अंतर्गत घर बनाना, नाले बनाना आदि में के. डी. लाला का काफी योगदान रहा है। सिंधी समाज को इस पर गर्व है। ठाणे शहर के विकास के लिए जो भी सिंधी समाज ने काम किया, वह हमारा कर्तव्य है। यही हमारी कर्मभूमि है। हमारे बच्चों की मातृभूमि है।

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