सिंधी भाषा और लिपि

सिंधी, संस्कृत-प्राकृत की व्राचड़ अपभ्रंंश से उत्पन्न हुई, एक अभिजात एवं समृद्ध भाषा है। इसकी मूल लिपि देवनागरी है। व्राचड़ तो ८ वीं से ११ वीं शताब्दी तक सिंध प्रदेश की प्राचीन भाषा मानी गयी है। सिंधी संस्कृतनिष्ठ भाषा है। इस में ७०% से भी अधिक शब्द संस्कृत-प्राकृत के हैं। सिंधी ७१२ ई. से १८४३ ई. तक मुसलमानों के शासनाधीन रहने के कारण इस में अरबी-फ़ारसी के शब्द भी काफ़ी मात्रा में पाये जाते हैं। इस पर द्राविड़ जैसे पुरातन प्रभावों के लक्षण भी मिलते हैं। सिंधी भाषा का मराठी, गुजराती, पंजाबी, हिंदी आदि अन्य भाषाओं से घनिष्ठ संबंध है। सिंधी का शब्द-भंडार बहुत विपुल है।

विद्वानों के मत

ज्ञातव्य है कि सिंधी भाषा का प्रथम व्याकरण तथा शब्दकोश देवनागरी में है। ये कैप्टन जॉर्ज स्टैक एवं डॉ. अर्नेस्ट ट्रम्प नामक दो अंग्रेज विद्वानों ने रचे हैं। कैप्टन जॉर्ज स्टैक ने अपनी ‘अंग्रेजी-सिंधी डिक्शनरी’ (१८४९) और ‘सिंधी-अंग्रेजी डिक्शनरी’ (१८५५) में भी देवनागरी लिपि का इस्तेमाल किया है। आगे चल कर डॉ. अर्नेस्ट ट्रम्प ने अपने विशालकाय ग्रंथ ‘सिंधी अल्फाबेट एण्ड ग्रामर’ (१८७२) में सिंधी भाषा का गहन अध्ययन प्रस्तुत किया। सिंधी भाषा के संदर्भ में उनका यह मत आज भी सही माना जाता है, ‘सिंधी नितांत संस्कृत मूल की भाषा है। यह उत्तर भारत की अन्य प्रांतीय भाषाओं की अपेक्षा, विदेशी तत्वों से अधिक मुक्त है।’

सिंधी भाषा के भेद (सिंधी की उपभाषाएं अथवा बोलियां) :
अपने भू-प्रदेश के कारण सिंधी भाषा के ६ भेद माने गये हैं। यहां उनका केवल नामोल्लेख किया जाता है।

१. सिराइकी/सिरेली                      २. विचोली                       ३. लाड़ी
४. थड़ेली                                       ५. कच्छी                          ६. लासी

सिंधी भाषा की लिपि

अंग्रेजों ने १८४३ ई. में जब सिंध पर विजय प्राप्त की, उस समय सिंध में किसी एक सर्वमान्य लिपि का प्रचलन नहीं था। अरबों के शासनकाल में सामान्य सिंधी जनता अपनी मातृभाषा के लिए ‘देवनागरी’ और उससे मिलती-जुलती ‘सैन्धवी’ लिपि का प्रयोग करती थी। सैन्धवी को ‘महाजनी’ लिपि भी कहा जाता था। इसका विकास ब्राह्मी लिपि से माना जाता है। इसमें वर्णों या अक्षरों पर शिरोरेखा नहीं लगायी जाती। मराठी भाषा की एक लिपि ‘मोड़ी’ की तरह दिखाई देनेवाली इस लिपि को अल्बेरूनी ने ‘सैंदव’ कहा है, जो ‘सैन्धव’ या सिंध की लिपि का ही नाम है।

देवनागरी अक्षरों को सिंध में ‘शास्त्री अक्षर’ भी कहा जाता था क्योंकि हिंदुओं के शास्त्र इसी लिपि में लिखे हुए होते थे। तत्कालीन सिंधी समाज में नानक पंथ का बहुत प्रचार हुआ था। फलस्वरूप नागरी लिपि से ही नि:सृत ‘गुरुमुखी’ लिपि सिंधी समाज के धार्मिक ग्रंथों में महत्वपूर्ण स्थान रखती थी। सिंधी महाकवि ‘सामी’ (१७४३-१८५० ई.) ने वेदों की व्याख्या के लिए अपने लगभग ४००० श्लोक गुरुमुखी लिपि में ही लिखे थे। सिंधी समाज में आज भी इस लिपि का प्रचलन है। ‘कच्छी’ तो सिंधी भाषा की उपभाषा मानी जाती है। सिंधी काव्य के पितामह समझे जानेवाले सूफी कवि काजी कादन (१४६३-१५५१ ई.) की कविता भी देवनागरी लिपि में लिखी हुई मिलती है।

अरबी लिपि

अंग्रेजों ने यह लिपि संस्कृत-प्राकृत की धरोहर सिंधी पर लाद कर सिंधी भाषा और समाज के साथ बड़ा अन्याय किया है। वस्तुत: अरबी लिपि सिंधी भाषा के स्वभाव से मेल नहीं खातीं। सिंधी के लिए यह अवैज्ञानिक लिपि है। अरबी लिपि की कुछ त्रुटियां द्रष्टव्य हैं:

१) सिंधी भाषा के लिए प्रयुक्त अरबी लिपि का वर्ण-क्रम सभी स्थानों पर समान या एक जैसा नहीं मिलता। इसके अक्षरों के क्रम में भिन्नता पायी जाती है। फलस्वरूप अरबी लिपि में रचे गये सिंधी शब्दकोशों में कोई शब्द और अर्थ ढूढंने में काफ़ी परेशानी होती है।

२) सिंधी के लिए प्रयुक्त अरबी लिपि के कतिपय अक्षर लिखने और उच्चारण करने में उलझन पैदा करने वाले हैं। सिंधी की दृष्टि से इनका कोई लाभ भी नहीं है।

३) सिंधी भाषा अरबी लिपि में लिखते समय उर्द की तरह सामान्यत: मात्रा- चिह्नों का (ज़ेर, ज़बर, पेश /, /, ु / ि, ु ) प्रयोग नहीं किया जाता। इससे किसी शब्द का सही उच्चारण कर पाने में तथा उसका अर्थ समझने में कठिनाई निर्माण हो जाती है।

४) अरबी-सिंधी लिखावट में सामान्यतया र्हस्व स्वर और द्वित्व, संयुक्त व्यंजन आदि के लिए विशिष्ट चिह्नों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। लोग अपने अभ्यास और जानकारी के आधार पर ही यह लिपि पढ़ लेते हैं। इसी कारण असंख्य शब्दों के अलग-अलग और अशुद्ध उच्चारण सुनाई देते हैं।

वर्तमान में सिंधी भाषा और अस्तित्व का संकट

विभाजन के बाद लाखों हिंदू सिंधी अपनी जन्मभूमि सिंध छोड़ कर भारत में बस गए। यहां आने पर देवनागरी बनाम अरबी लिपि का विवाद फिर से खड़ा हो गया। सरकार ने पहले तो देवनागरी लिपि को मान्यता दी। पर बाद में मामला न्यायालय में जाने पर भारत सरकार ने ९ मार्च, १९५० में दोनों लिपियों को मान्यता दी। १० अप्रैल, १९६७ के दिन सिंधी भाषा को संविधान में स्वीकृत किया गया। यह दिन ‘सिंधी भाषा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

आज के सिंधी साहित्य, भाषा और लिपि के संबंध में एक दूसरा पक्ष भी सामने रखना आवश्यक समझता हूं। अर्थात मेरे यह निजी विचार हैं, जो मात्र भारतीय साहित्य और सिंधी भाषा के संबंध में हैं।

    १. देवनागरी लिपि सिंधी भाषा की प्राचीन एवं मूल लिपि है। मैं देवनागरी का समर्थक हूं परन्तु अरबी या अन्य किसी भी लिपि के प्रति मेरे मन में विरोध की भावना कदापि नहीं है।

     २. भारत में सिंधी भाषा भूमिहीन है। सिंधी भाषी सारे भारत में फैले हुए हैं। वे एक दूसरे से कटे हुए हैं। वे अनेक हिंदू-धार्मिक-पंथों में बंटे हुए हैं। सिंधी लोगों के लिए शिक्षा आदि के लिए देवनागरी ही समुचित लिपि है।

     ३. भविष्य में सिंधी भाषा के दो रूप व्यवहार में आने की संभावना है- (अ) भारत में संस्कृत-हिंदी शब्दों की बहुलता वाली सिंधी भाषा, जिसकी लिपि देवनागरी ही होगी। (आ) सिंध प्रांत में उर्दू-फ़ारसी-अरबी शब्दों के बाहुल्य वाली सिंधी भाषा, जिसकी लिपि अरबी ही होगी।

स्वाधीनता के पश्चात भारत में आकर बसने वाले सिंधी समाज के लिए भारत सरकार ने देवनागरी और अरबी, दोनों लिपियों को मान्यता दी है। अर्थात् शिक्षा एवं साहित्य आदि के क्षेत्र में दोनों लिपियां मान्यता प्राप्त हैं। परन्तु अरबी सिंधी लिपि में शिक्षा प्राप्त किया हुआ और अरबी लिपि में ही साहित्य-सृजन करनेवाला एक बहुत बड़ा गुट सिंधी भाषा के लिए मात्र अरबी लिपि को ही महत्व देता आया है। उनको मानो देवनागरी लिपि की ‘एलर्जी’ है और वे अरबी लिपि पर ‘सिंधी’ लिपि का लेबल लगा कर आम आदमी को गुमराह भी कर रहे हैं। पैसा, पद और प्रतिष्ठा पाने की लालसा लिये हुए इस गुट की कुछ घातक गतिविधियां देखिए-

      (अ) इस गुट के साहित्यकार, शिक्षाविद् और व्यवसायी लोग सरकारी एवं गैरसरकारी संस्थाओं के पदों पर विराजमान हैं। इन में से ही कुछ लोग किसी न किसी संस्था/संस्थान में अध्यक्ष, निदेशक और सचिव हैं तो कहीं पर संयोजक तथा सदस्य बने हुए हैं।

     (आ) मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ‘राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद’ का वार्षिक बजट लगभग तीन करोड़ का कहा जाता है। सिंधी भाषा का समुचित और सर्वांगीण विकास करने के बजाय यहां पर व्यक्तिगत विकास हो रहा है।

      (इ) भारत सरकार की ‘साहित्य अकादमी’ ने भी अब स्पष्ट रूप से यह कह दिया है कि ‘सिंधी भाषा के लिए साहित्य अकादेमी की मान्यता-प्राप्त लिपि अरबी है।’

      (ई) यही अरबी-समर्थक ‘लॉबी’ सरकार के पाठ्य-पुस्तक मंडलों एवं शिक्षा संस्थानों में भी कार्यरत है। ‘महाराष्ट्र राज्य पाठ्य-पुस्तक निर्मिति व अभ्यासक्रम संशोधन मंडल’ द्वारा प्रारंभ से ही १ ली कक्षा से १२ वीं कक्षा तक की सभी पाठ्य-पुस्तकें अरबी और देवनागरी सिंधी लिपि में छपती आयी हैं। इधर कुछ वर्षों से कक्षा १ ली से ५ वीं/ ८ वीं तक की सिंधी पुस्तकें केवल अरबी लिपि में ही छापी जा रही हैं।

      उ) सिंधी भाषा की शिक्षा देने वाली २५-३० पुस्तकें भारत में उपलब्ध हैं। उनमें ‘राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद’ की भी एक पुस्तक है, जो दोनों लिपियों में है तथा निजी क्लासेस में इस्तेमाल होती है। दो चार पुस्तकें देवनागरी में और शेष अरबी लिपि में हैं। अंग्रेजी द्वारा सिंधी भाषा की शिक्षा देनेवाली कुछ पुस्तकें भी उपलब्ध है। परंतु ये सभी पुस्तकें अरबी सिंधी लिपि सिखाने वाली हैं।

      ऊ) मुंबई विद्यापीठ में सिंधी भाषा और साहित्य की शिक्षा (एम. ए. स्तर पर) अरबी में ही दी जाती है। वहां पर फ़ारसी और अंग्रेजी/ पाश्चात्य काव्यशास्त्र पढ़ाया जाता है; रस, ध्वनि, अलंकार आदि सिद्धातों वाला भारतीय काव्यशास्त्र बहिष्कृत है।

       ए) भारत में सिंधी भाषा की ‘प्रिंट मीडिया’ पर अरबी लॉबी का वर्चस्व है। कुछ पत्रिकाएं देवनागरी में अवश्य प्रकाशित होती हैं परंतु मुंबई, अहमदाबाद और अजमेर से प्रमुख दैनिक, साप्ताहिक और त्रैमासिक अरबी लिपि में ही प्रकाशित होते हैं।

इस प्रकार सिंधी भाषा के साथ एक लंबे समय से छल-कपट का व्यवहार किया जा रहा है। सिंधी के साथ न्याय करने वाला कोई नहीं है। बुद्धिजीवी खामोश हैं। नयी पीढ़ी अंग्रेजी के पीछे पड़ कर मातृभाषा सिंधी से दूर जा रही है।

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