चीन पर ‘मानवाधिकार’ रक्षकों का दोहरा मापदंड

यूं तो संसार में ढेरों आश्चर्य है। इसी में से एक चीन से संबंधित है, जहां के शिनजियांग प्रांत में सवा करोड़ उइगर मुसलमानों के खिलाफ मजहब के नाम पर राजकीय दमन चरम पर है और इस्लाम के ठेकेदार देश इस पर न केवल चुप है, अपितु चीन के सहयोगी भी बने हुए है। इसमें चीन का सबसे विश्वासी मित्र या यूं कहे कि दुमछल्ला देश— पाकिस्तान भी शामिल है, जिसका अस्तित्व ही पिछले 75 वर्षों से इस्लामी अवधारणा पर टिका हुआ है। यह वाकई किसी चमत्कार से कम नहीं कि जिस प्रकार भारत में नूपुर शर्मा के कुछ सेकंड की वीडियो से वैश्विक मुस्लिम समाज की भावना एकाएक आहत हो गई थी, वे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की हालिया चीन संबंधित मुस्लिम विरोधी रिपोर्ट पर न तो आंदोलित है और न ही चीन के खिलाफ भारतीय उपमहाद्वीप की सड़कों पर ‘सर तन से जुदा’ जैसे विषाक्त नारों का उद्घोष हो रहा है।
संयुक्त राष्ट्र को शिनजियांग में चीन की मुस्लिम-विरोधी कार्रवाइयों का आकलन करने में तीन वर्ष का समय लगा। यह रिपोर्ट दिसंबर में तैयार हो गई थी, जिसे चीनी दबाव के कारण इसे टाला जा रहा था। किंतु अपने चार वर्ष के कार्यकाल खत्म करने के कुछ मिनट पहले संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की आयुक्त मिशेल बैचलेट ने बहुप्रतिक्षित रिपोर्ट 31 अगस्त को जारी कर दिया। आखिर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में ऐसा क्या है, जिसपर चीन बौखला रहा है?
रिपोर्ट में चीन पर ‘मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन’ का आरोप लगाया गया है। इसमें विश्वसनीय साक्ष्य मिलने की बात की गई है, जिससे सिद्ध होता है कि शिनजियांग में ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ हो रहा है, जिसमें यौन शोषण और नसबंदी जैसी बातें भी शामिल हैं। इसमें कहा गया है कि चीन ने शिनजियांग में रहने वाले उइगर मुस्लिम के खिलाफ हर स्‍तर पर मानवाधिकारों का उल्‍लंघन करते हुए क्रूरता की हदों को पार कर दिया है। मुस्लिमों को बंदीगृह/नजरबंदी केंद्रों में तरह-तरह की प्रताड़नाएं दी जाती हैं। जबरन नसबंदी के कारण वर्ष 2017 से 2019 के बीच जन्म दर में 48.7% की गिरावट आई है।
चीन किस प्रकार विशुद्ध इस्लाम-विरोधी कार्रवाइयों में लिप्त है, उसका आकलन इसी से लगाया जा सकता है कि इस्लामी मान्यताओं और अभिव्यक्तियों पर प्रतिबंध के साथ शिनजियांग में आतंकवाद-अलगाववाद रोधी “स्ट्राइक-हार्ड” अभियान के अंतर्गत मस्जिदों और कब्रिस्तानों तक को जमींदोज किया जा रहा है। चीन में कुल मस्जिदों की संख्या 35,000 है, जिसमें अकेले 20,000 शिनजियांग में स्थित हैं। वर्ष 2015 से वहां नमाज़ पढ़ने, कुरान रखने, महिलाओं को बुर्का पहनने आदि पर सख्त पाबंदी हैं। यही नहीं, नजरबंद-केंद्रों में सुरक्षाकर्मियों द्वारा मुस्लिम महिलाओं के यौन हिंसा से शिकार होने और पूछताछ के नाम पर उन्हें जबरन नग्न किए जाने की बात भी सामने आई है। अन्य रिपोर्ट के अनुसार, शिनजियांग में मुसलमानों को सुअर का मांस खिलाने और गैर-मुस्लिम से विवाह करने के लिए भी बाध्य किया जा रहा है।
इसी वर्ष 12-15 जुलाई को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, जिनके कार्यकाल में चीन में इस्लाम विरोधी गतिविधियां बढ़ी है— उन्होंने शिनजियांग का दौरा किया था। तब शी ने स्थानीय मुसलमानों को धमकाते हुए बता दिया था कि चीन में इस्लाम का स्वरूप कैसा होना चाहिए। चीनी राष्ट्रपति के अनुसार, “…चीन में इस्लाम को चीनी होना चाहिए…।”  इसका वक्तव्य का सत्व यह है कि यदि चीन में मुस्लिमों को रहना है, तो उन्हें चीनी परंपरा और मार्क्सवादी व्यवस्था के अधीन ही रहना होगा।
वास्तव में, शिनजियांग में चीन का मुस्लिम विरोधी आचरण उसके अपने राजनीतिक-वैचारिक अधिष्ठान के अनुरूप ही है, क्योंकि वामपंथी विचारधारा के केंद्र में ही हिंसा, अनिश्वरवाद और मानवाधिकारों का दमन है। तिब्बत में बौद्ध भिक्षुओं का सांस्कृतिक संहार— इसका अन्य प्रमाण है।
यह विडंबना की पराकाष्ठा है कि जहां चीन में वामपंथी अपने देश को एकजुट रखने हेतु आतंकवाद-अलगाववाद विरोधी अभियान के नाम पर इस्लाम का संहार कर रहे है, वही भारत में वामपंथियों ने जिहादियों और ब्रितानियों के साथ मिलकर मजहबी आधार पर देश का विभाजन करा दिया। यही कारण है कि भारत में उनकी जिहादियों और अलगाववादियों से सहानुभूति आज भी मुखर है।
चीन की तुलना में भारत में सभी अल्पसंख्यकों (मुस्लिम सहित) को समान अधिकार, तो कई मामलों में बहुसंख्यकों से अधिक सुविधा प्राप्त है। फिर भी यहां मुस्लिम समाज में ‘असुरक्षा की भावना’ का राग अलापा जाता है। गत दिनों असम में राज्य सरकार ने उन मदरसों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें से ढहाया दिया और तीन दर्जन लोगों (मौलवी सहित) की गिरफ्तारियां की, जो नौनिहालों को जिहाद का पाठ पढ़ाने में लिप्त थे। वही उत्तरप्रदेश स्थित मदरसों में शिक्षा की बेहतर व्यवस्था करने हेतु सर्वेक्षण कराया जा रहा है। अब इन दोनों घटनाओं को देश में स्वघोषित सेकुलवादी, वामपंथी और स्वयंभू मुस्लिम जनप्रतिनिधियों का कुनबा ‘इस्लामोफोबिया’ और ‘मुस्लिम-विरोधी’ बता रहे है। यदि यह सभी विषय वाकई ‘इस्लामोफोबिया’, ‘पैगंबर साहब-कुरान के अपमान’ का है, तो चीन के शिनजियांग में मुस्लिम-इस्लाम विरोधी हरकतों पर इनकी ‘उम्माह’ भावना क्यों आहत नहीं होती? इस वर्ष 22-23 मार्च को जब पाकिस्तान में ‘इस्लामिक सहयोग संगठन’ (ओआईसी) की बैठक हुई, जिसमें अक्सर कश्मीर-फिलीस्तीन पर अवांछनीय-अनावश्यक प्रस्तावों को पारित किया जाता है— तब उसमें चीनी विदेश मंत्री वांग यी को विशेष आमंत्रित किया गया था।
यह विरोधाभास केवल यही तक सीमित नहीं। इस्लाम में सऊदी अरब का विशेष स्थान है। वहां बदलती दुनिया के बीच आधुनिक जीवनमूल्यों के साथ इस्लाम को अनुकूल बनाने और तालमेल बैठाने के लिए बीते पांच वर्षों से उदारवादी परिवर्तन किए जा रहे है। इसका वैश्विक मुस्लिम समाज के एक वर्ग द्वारा विरोध भी किया जा रहा है— इसमें पाकिस्तान और भारत में मुस्लिम समाज का एक वर्ग भी है। यह चमत्कार ही है कि वह समूह भी चीन के खिलाफ चुप है। आखिर इस दोहरे मापदंड का कारण क्या है?
     -बलबीर पुंज

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