हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
के. जी. बालकृष्ण आयोग : विचारों का क्रियान्वयन

के. जी. बालकृष्ण आयोग : विचारों का क्रियान्वयन

by प्रवीण गुगनानी
in अप्रैल २०२३, राजनीति, विशेष, सामाजिक
0

बाबासाहेब ने हिंदू दलितों के उत्थान और उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए आरक्षण का प्रावधान दिया लेकिन उसका लाभ उसके मूल वर्ग को मिलने की बजाय उन्हें मिल रहा है जो अन्य धर्मों में मतांतरण कर चुके हैं। के. जी. बालकृष्ण आयोग उन्हें उनका खोया अधिकार दिलाने में सहायक सिद्ध होगा। 

एक गोंडी मुहावरा है – बुच्च-बुच्च आयाना कव्वीते पालकी रेंगिना, अर्थात आगे-आगे होना किंतु कुछ भी ध्यान न देना। दलित समाज के हितों की सुरक्षा के लिए गठित रंगनाथ मिश्र आयोग के संदर्भ में यह गोंडी कहावत सटीक लगती है। रंगनाथ मिश्र आयोग के बाद मोदी सरकार द्वारा के. जी. बालकृष्ण आयोग का गठन आरक्षण के दुरुपयोग को जांचने, मापने और थामने का एक संवेदनशील प्रयास है।

अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े और समाज के कमजोर व निर्धन वर्ग के लिए बाबासाहेब आम्बेडकर के विचारों के अनुरूप नरेंद्र मोदी सरकार ने कई युगांतरकारी नीतियां बनाई हैं। देश की पिछली सरकारों के विपरीत मोदी सरकार ने देश के दलित वर्ग हेतु हवाई योजनाएं नहीं बनाई और विशुद्ध धरातल पर किया। इस दिशा में मोदी सरकार का एक मील के पत्थर जैसा कार्य है, के. जी. बालकृष्ण आयोग का गठन। आरक्षण की व्यवस्था का लाभ उसके मूल हितग्राही तक नहीं पहुंचने से क्या स्थितियां बन रही है? आरक्षण का अधिकतम लाभ केवल समाज के छद्म दलित, अवसरवादी दलित और अपने ही दलित समाज को उपेक्षा और हास्य की दृष्टि से देखने वाले तथाकथित दलितों को मिलने से दलित व जनजातीय समाज पर कितना विषाक्त प्रभाव पड़ रहा है? यद्दपि इन दुष्प्रभावों को हमारा समाज अपनी करोड़ों आंखों से देख रहा है तथापि एक उच्च आयोग द्वारा इन सबका अध्ययन करने के बाद इन बातों को एक लोकतांत्रिक, न्यायिक व वैधानिक पहचान मिल जाती है। इस आयोग के अध्ययन से आरक्षण का लाभ किसे मिले, किसे न मिले यह स्पष्ट निर्धारित करने में सहयोग मिलेगा।

वस्तुतः आम्बेडकर के कार्यों को, स्वप्नों को, सोच को यदि हम यथार्थ के धरातल पर उतारना चाहते हैं तो हमें उनके सम्पूर्ण विचार, लेखन और रचना संसार के मूल तत्व और सत्व को समझना होगा। आंबेडकर केवल आरक्षण नहीं अपितु आरक्षण के वैज्ञानिकीकरण, युक्तियुक्त करण और आरक्षण के सामयिकी करण के घोर पक्षधर थे। वह आरक्षण ही क्या जिसका लाभ प्राथमिक या यूं कहें कि सर्वाधिक दीन-हीन हितग्राही को मिल न पाए और उसमें लीकेजेस इतने हो जाएं कि मूल विचार और लक्ष्य ही धराशायी हो जाए। कितनी बड़ी विडम्बना है कि आज आरक्षण की अस्सी प्रतिशत सुविधाओं का लाभ ऐसे 20 प्रतिशत नकली अनुसूचित और अनु. जनजातीय उठा रहे हैं जो लोभ-लालच में इस देश से बाहर के धर्म में कन्वर्ट हो गए हैं। ये कथित 20 प्रतिशत इसाई और मुस्लिम धर्म में कन्वर्ट  लोग दलित समाज को मिलने वाले आरक्षण का बेतरह शोषण, दोहन कर रहे हैं। ये लोग अपने समाज के अन्य लोगों से रोटी बेटी का व्यवहार भी नहीं रखते। ये मतांतरित अनुसूचित जाति और जनजातीय के लोग अपने ही लोगों के प्रति घृणा, निकृष्टता और हास्य व्यंग्य का भाव रखते हैं। विशेष किंतु निंदनीय बात यह है कि ये 20 प्रतिशत कन्वर्टेड ईसाई और मुस्लिम अपने विमर्श से, चतुराई से, धन-बल से व अपनी राजनीतिक शक्ति से आरक्षण की सुविधाओं को अपने कुनबे और कन्वर्टेड लोगों तक सीमित किए रहते हैं। आज यदि बाबासाहेब जीवित होते तो विदेशी धर्म को अपनाने वाले इन लोगों की आरक्षण सुविधाएं तत्काल समाप्त कर देते।

आज देश के नीति निर्धारकों को सोचना होगा कि मुस्लिम समाज को ओबीसी आरक्षण दिया जाना कैसे उचित है? वस्तुतः ओबीसी आरक्षण का ताना बाना ही पिछड़ी हिंदू जातियों के उन्नयन के लिए बुना गया था। ज्वलंत प्रश्न यह भी है कि इस्लाम की ओर से सदैव कहा जाता है कि उनके धर्म में जाति व्यवस्था नहीं है। यह भी कहा जाता है कि इस्लाम में हर मुसलमान बराबर है। जब उनमें जाति व्यवस्था ही नहीं है, सब बराबर हैं तो पिछड़ी जातियों को मिलने वाला आरक्षण उन्हें क्यों मिलना चाहिए? इस्लाम के अनुसार हर मुसलमान बराबर है। जाति व्यवस्था मुक्त होने का दम्भ ईसाई धर्म भी भरता है। जब जाति ही नहीं है, उपेक्षा और भेदभाव ही नहीं है तो जातिगत आरक्षण का लाभ क्यों? वस्तुतः यह बीमारी तुष्टीकरण की देन है। कितनी बड़ी विसंगति है कि अभी हाल ही वर्षों तक भारत में हिंदुओं पर 800 वर्षों तक शासन करने वाले, उस शासन में विशेष नागरिक का दर्जा प्राप्त करने वाले, हमारा दमन करने वाले मुसलमानों की नब्बे प्रतिशत जनसंख्या ओबीसी में सम्मिलित होकर आरक्षण का अवैध लाभ उठा रही है! स्मरण रहे कि शेख, सैय्यद, मुगल, पठान को छोड़कर बाकि सभी मुस्लिम जातियां ओबीसी में आती हैं। इस मुस्लिम समाज को आठ सौ वर्षों तक हिंदुओं के मुकाबले कम टैक्स देना पड़ता था, इन्हें बहुत सी अतिरिक्त सुविधायें मिलती थी तो वो पिछड़े कैसे हो गए?! क्या शासक वर्ग कभी पिछड़ा हो सकता है?

देश में तुष्टीकरण की जनक कांग्रेस ने 2007-08 में एक विशेष विधेयक पास कर सुनिश्चित किया कि हिंदू धर्म से कन्वर्जन कर गए ईसाई और ओबीसी ईसाई को भी आरक्षण का लाभ मिलेगा। अदिवासी ईसाई को ये सुविधा पहले से ही प्राप्त है। इस प्रकार जनसंख्या असंतुलन के माध्यम से गृहयुद्ध की खतरनाक स्थिति बनाने की ओर बढ़ रहे हमारे राष्ट्र में आरक्षण का अनीतियुक्त वितरण हमारे समाज को रोगयुक्त समाज बना रहा है। आरक्षण कानून का अंतर्तत्व यह है कि केवल बौद्ध, जैन या सिख धर्म में गए अनुसूचित जाति और जनजातीय के लोगों को आरक्षण का लाभ पूर्ववत मिलता रहना चाहिए। वर्तमान में इस कानून की धज्जियां उड़ रही हैं।

वस्तुतः के. जी. बालकृष्ण आयोग बाबासाहेब की आंखें बनकर इस समूची स्थिति की जांच करेगा। इस आयोग को यह भी देखना है कि इन लोगों के अन्य धर्मों में परिवर्तित होने के बाद, रीति-रिवाजों, परम्पराओं और सामाजिक भेदभाव और अभाव की स्थिति में कैसा बदलाव आया। असमानता व भेदभाव झेलते आ रहे दलितों को अन्य धर्मों में मतांतरण के बाद संविधान के अनुच्छेद-341 के तहत अनुसूचित जाति का लाभ कैसे मिल सकता है? यह प्रश्न अब राष्ट्र के समक्ष बाबासाहेब आम्बेडकर की सम्पूर्ण भावनाओं को लागू करने या खारिज करने का प्रश्न है। यदि बाबासाहेब की भावनाओं व कानूनों की रक्षा करनी है तो समाज में पनप रही इस स्थिति को तत्काल प्रभाव से परिवर्तित करना होगा।

वर्तमान में न्यायालयों में ऐसे कई विवाद चल रहे हैं। संविधान के अनुच्छेद-25 में हिंदू धर्म में सिख, जैन और बौद्धों को शामिल किया गया है। मतांतरित एससी को आरक्षण के लाभ के इस विवाद से अल्पसंख्यकों की परिभाषा और लाभ पर भी राष्ट्र में एक नया विमर्श उपज रहा है। भारत में धर्म के आधार पर अलग सिविल कानून हैं। मुस्लिम धर्म के लिए पर्सनल लॉ हैं और समान नागरिक संहिता पर कतई सहमति नहीं है तो फिर जातिगत आधार पर आरक्षण के दायरे में मुस्लिम और ईसाई धर्म के लोगों को बाहर रखना कैसे गलत माना जा सकता है? पचास प्रतिशत प्रतिबंध के बावजूद आरक्षण के दायरे में नए लोगों को शामिल करने से मूल वंचित वर्ग को वांछित लाभ नहीं मिलना और मुस्लिम और ईसाई को आरक्षण का अनुचित लाभ मिलने और हिंदू धर्म के दलितों को सुविधाओं में हानि होने से देश में विवाद व असमानता निरंतर बढ़ रही है। कई राज्य धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून बना भी रहे हैं। धर्मांतरण के बाद आरक्षण का लाभ मिलने की अनुमति मिली, तो धर्म परिवर्तन के सामाजिक अपराध को तीव्र गति मिलेगी। धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय है, लेकिन इस बारे में कानून में स्पष्टता नहीं है। देश, समाज और कानून को धोखा देने के लिए धर्म परिवर्तन के बाद भी लोग अपना नाम नहीं बदलते और आरक्षण का लाभ लेते रहते हैं। यह समाज की आंखो में मिर्च झोकने जैसा है। वर्तमान में ऐसे मामलों के लिए साफ कानूनी प्रावधान नहीं हैं। आयोग की रिपोर्ट के बाद ऐसी अनेक कानूनी विसंगतियों पर सरकार, संसद और सुप्रीम कोर्ट में नए सिरे से बहस शुरू होगी।

निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि बाबासाहेब की आरक्षण सम्बंधित मूल भावना और मंतव्य पर प्रश्न खड़े हो गए हैं। आरक्षण की सुविधा में नए नए लीकेजेस आ गए हैं। इस संदर्भ में वैज्ञानिक जांच, अध्ययन और समस्या का निदान एक मात्र मार्ग है। के. जी. बालकृष्ण आयोग इस मार्ग का शिल्पी सिद्ध होगा, यही देश को विश्वास है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: dalit politicsdr b r ambedkark g balkrushn aayog

प्रवीण गुगनानी

[email protected]

Next Post
इतिहास की पुनरावृत्ति और सबक

इतिहास की पुनरावृत्ति और सबक

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0