पर्वत प्रेमी सर एडमंड हिलेरी

देवातात्मा हिमालय अध्यात्म प्रेमियों की तरह खतरों के खिलाडि़यों को भी अपनी ओर आकृष्ट करता है। 8,848 मीटर ऊंचे, विश्व के सर्वोच्च पर्वत शिखर सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) पर नेपाली शेरपा तेनजिंग के साथ सर्वप्रथम चढ़ने वाले सर एडमंड हिलेरी ऐसे ही एक साहसी पर्वतारोही थे। 

हिलेरी का जन्म न्यूजीलैंड के आकलैंड में 20 जुलाई, 1919 को एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने मधुमक्खी पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाया; पर खतरों से खेलने का स्वभाव होने के कारण न्यूजीलैंड के पर्वत उन्हें सदा आकर्षित करते थे। 1939 में उन्होंने आल्पस पर्वत पर चढ़ाई की और उसके बाद न्यूजीलैंड के सब पहाड़ों को जीता। उन्होंने एक वायुसैनिक के नाते द्वितीय विश्व युद्ध में अपने देश की ओर से भाग भी लिया।

हिलेरी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन 29 मई, 1953 था, जब उन्होंने सर्वप्रथम सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) के शिखर पर झंडा फहराया। इसके बाद तो साहसिक अभियानों पर जाने का उन्हें चस्का ही लग गया। सागरमाथा के बाद उन्होंने हिमालय सहित विश्व की दस और प्रमुख चोटियों पर झंडा फहराया। 

ट्रेक्टर से दक्षिणी धु्रव पर जाने वाले दल का नेतृत्व करते हुए वे चार जून, 1958 को वहां जा पहुंचे। 1985 में वे एक छोटे विमान से उत्तरी धु्रव पर गये। उनके साथ चंद्रमा पर सर्वप्रथम पैर रखने वाले अमरीकी यात्री नील आर्मस्ट्रांग भी थे। इस प्रकार विश्व के सर्वोच्च शिखर तथा पृथ्वी के दोनों धु्रवों पर जाने वाले वे विश्व के एकमात्र व्यक्ति बन गये।

1977 में उन्होंने एक और दुःसाहसी योजना ‘सागर से आकाश’ बनाई। इसमें तीन जेट नौकाओं द्वारा कोलकाता से बदरीनाथ तक प्रवाह के विरुद्ध जाना था। अभियान के 18 सदस्यों में उनका 22 वर्षीय पुत्र पीटर भी था। बाधाओं के बावजूद अभियान चलता रहा; पर बदरीनाथ से पहले नन्दप्रयाग में नदी के  बीचोबीच एक चट्टान रास्ता रोके खड़ी थी। हिलेरी ने आसपास से निकलने का बहुत प्रयास किया; पर अंततः उन्हें प्रकृति के सम्मुख झुकना पड़ा।

1953 में सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) विजय के बाद उन्हें नेपाल के निर्धन शेरपाओं से प्रेम हो गया। उन्होंने धन एकत्र कर ‘हिमालय न्यास’ की स्थापना की तथा इसके माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य, वनीकरण, जलापूर्ति, हवाई अड्डे एवं पुलों का निर्माण आदि काम किये। शेरपा भी उन्हें एक देवता के समान आदर देते थे। उनके देहांत पर नेपाल के सैकड़ों शेरपा परिवारों में चूल्हा नहीं जला। नेपाल की ही तरह भारत के प्रति भी उनके मन में बहुत आदर था।

1975 में एक हवाई दुर्घटना में पत्नी तथा छोटी बेटी के देहांत से हिलेरी कुछ उदास हो गये। तब तक उनका शरीर भी वृद्ध हो चला था। अतः अब वे सामाजिक व राजनयिक क्षेत्र में सक्रिय हो गये। 1985 से 1989 तक वे भारत में न्यूजीलैंड के राजदूत रहे। 1992 में न्यूजीलैंड शासन ने उनके जीवित होते हुए भी अपने नोटों पर उनका चित्र प्रकाशित किया।

11 जून, 2008 को पर्वतपुत्र सर हिलेरी का हृदयाघात से देहांत हुआ। सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) पर अब तक लगभग 5,000 सफल अभियान हो चुके हैं; फिर भी उस पहले अभियान की गरिमा कम नहीं हुई है। शिखर पर पहुंचने वाला हर पर्वतारोही हिमालय के साथ ही सर हिलेरी को भी श्रद्धा से सिर झुकाता है।

संकलन – विजय कुमार 

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