राष्ट्र विकास में ऊर्जा की भूमिका

देश में १५ वें प्रधान मंत्री के रूप में नरेन्द्रमोदी के शपथ ग्रहण करने के बाद से ही लोगों में उम्मीद की किरण जागी है। मोदी के प्रयासों से लोगों को महसूस होने लगा कि देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिर चमकेगा। मेक इन इंडिया, स्वच्छता अभियान, जन धन योजना, जीवन ज्योति बीमा योजना प्रारंभ कर भाजपा की सरकार ने लोगों में जोश भर दिया है। भारत के प्रधान मंत्री विदेश दौरा कर विदेशों से अपने संबंध बेहतर बनाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं, जिसमें उन्हें सफलता भी मिल रही है। इतना ही नहीं विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के लोगोंको प्रेरित कर मेक इन इंडिया में स्वास्थ्य, परिवहन, िशक्षा के साथ ही ऊर्जाउत्पादन में निवेश के अवसर प्रदान कर रहे हैं।

ऊर्जाउत्पादन के िलए भारत के पास प्रचुर सम्पदा हैलेिकन इन संसाधनों का उिचत दोहन नहीं हो पा रहा है। प्रधान मंत्री मोदी चाहते हैंकि भारत ऊर्जा के क्षेत्र में काफी आगे ब़ढे क्योंकि किसी भी राष्ट्र के विकास में ऊर्जाका महत्वपूर्णयोगदान होता है। २००४ में जब देश में यूपीए ने शासन की बागडोर संभाली तब उन्होंने ऊर्जाके क्षेत्रमें ब़डी घोषणाएंकी थीं। इतना ही नहीं कईपरियोजनाओं की बात भी सरकारने की थी लेकिन जमीनी स्तर पर कोईभी योजना साकार नहीं हो सकी। ऊर्जाके बेहतर प्रबंधन से विकास को किस तरह पंख लगते हैंइसका उदाहरण मध्यप्रदेश, छत्तीसग़ढ से बेहतर कहीं और देखने को नहीं िमलेगा। २००३ तक बीमारू राज्य के रूप में पहचाने जाने वाले ये दोनों ही राज्य अब देश में विकसित राज्यों में िगने जाते हैं। ऊर्जाउत्पादन से एक तरफ जहांप्रदेश की कृिष जोत का रकबा ब़ढा हैवहीं उद्योगों की स्थापना के लिए बेहतर माहौल स्थािपत हुआ है। अंबानी, अडानी जैसे लोगों की पहली पसंद आज मध्यप्रदेश बनता जा रहा है। ऊर्जाउत्पादन के क्षेत्रमें भी ब़डे-ब़डे औद्योगिक घराने मध्यप्रदेश में कार्यकर रहे हैं।

ऊर्जाराष्ट्र की प्रगति, विकास और खुशहाली की प्रतीक है। आजादी के ६८ वर्षों बाद आज भी हमारा राष्ट्र संपूर्णदेश में २४ घंटे बिजली देने की स्िथति में नहीं है। ऊर्जाउत्पादन के अभाव में देश के कईप्रदेशों की गिनती बीमारू राज्यों में होती है। ऊर्जाकी अनुपलब्धता की वजह से देश में आज भी करो़डों एक़ड भूिमका रकबा असिंिचत है। आज भी इन स्थानों पर किसान परंपरागत खेती कर कोदो-कुटकी जैसी फसल के उत्पादन के लिए मजबूर है। देश के विकास में ऊर्जाका कितना महत्वपूर्णयोगदान हैहमइस बात से ही अंदाजा लगा सकते हैंकि जब हमारे घरों में एक घंटे से अधिक समय तक बिजली गोल रहती है तब घर के सारे कार्यअवरूद्धहो जाते हैं। बिजली हमारे जीवन की अिनवार्यता हो गईहै। वर्तमान में हमेंजो ऊर्जाप्राप्तहो रही है वह ६० प्रितशत विद्युत गृहों से है। इन विद्युत परियोजनाओं को चलाने में मुख्य रूप से कोयले की आवश्यकता होती है। केन्द्रसरकार देश में कईनईिवद्युत उत्पादन इकाइयांप्रारंभ कर रही है। यही वजह हैकि हमारे देशवासियों को पहले से बेहतर ऊर्जा उपलब्ध हो पा रही है।

पिछले सात वर्षों में, ऊर्जाक्षेत्रमें करीब ७०,००० करो़ड रुपये मूल्य की लगभग ७५ परियोजनाओं, जिनसे ३०,८०९ मेगावाट ऊर्जाउत्पन्नहो सकती थी, को बंद किया गया है। बिजली मंत्रालय के आंक़डों के अनुसार िसतंबर २०१५ तक मांग अौर आपूिर्तके बीच की खाई२.४ फीसदी (१५,९८१ मिलयन यूिनट) है। इसलिए यिद ये परियोजनाएंचल रही होतीं तो भारत में पर्याप्तऊर्जाहोती। वििभन्नकारणों से इन परियोजनाओं को बंद किया गया है। भूिमऔर वित्त्ा से लेकर लाभप्रदता और स्थानीय मुद्दे मुख्य कारण रहेहैं। सरकारी परियोजनाएं निर्धारित समय से पीछे चलना एवंनौकरशाही में मतभेद के कारण भारी लागत, अन्य कारण प्रतीत होते हैं। रद्दपरियोजनाओं में से करीब ४४ फीसदी मध्य प्रदेश, छत्तीसग़ढ और आंध्रप्रदेश में थीं।

२००५ की योजना
संयुक्त प्रगितशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने अपने २००५ राष्ट्रीय विद्युत नीति में वर्ष२०१० तक देश के सभी गांवों में बिजली पहुंचाने का वादा किया था एवं२०१२ तक प्रित व्यिक्त १,००० किलोवाट प्रित घंटे बिजली देना सुनििश्चत किया था। इन दोनों वादों को पूरा करने में सरकार विफल रही। प्रित व्यिक्त १,००० किलोवाट प्रित घंटे का लक्ष्य, केवल २०१४-१५ में प्राप्तिकया जा सकता हैऔर १६,००० से अिधक गांव अभी भी अंधेरे में रह रहे हैं। २०११ की जनगणना रिपोर्टके अनुसार, कमसे कम५५.८ फीसदी घरों में बिजली नहीं।

ग्रामीण विद्युतीकरण और मांग में वृद्धि

केन्द्रीय विद्युत अनुसंधान संस्थान, बंगलौर, के इंजीिनयरिंग अिधकारी आनंद एस के अनुसार ऊर्जापरियोजनाओं के बंद होने से आपूिर्तमें कमी हुईहै, जबकि मांग में वृद्धिजारी है। आनंद कहते हैं कि कईबार ये परियोजनाएंकेवल कागजों तक ही सीिमत होती हैंऔर प्रकाश से कोसोंदूर होती हैं। इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्टमें बताया हैकि किस प्रकार विद्युतीकरण का मतलब बिजली नहीं है। मिट की रिपोर्टके अनुसार चीन एवंअमेरिका के बाद, भारत तीसरा सबसे ब़डा उपभोक्ता हैलेकिन २०१४-१५ में १,००० किलोवाट प्रितघंटा प्रित व्यिक्त लक्ष्य प्राप्तकरने के बावजूद यह दुनिया में सबसे कमहै। चीन में ऊर्जाकी खपत चार गुना अिधक हैएवंविकिसत राष्ट्रों का औसत १५ गुना अिधक है। ऊर्जानीति विश्र्लेषक कहते हैंकि, पिछली नीितयांहमारी ब़ढती जनसंख्या के लिए िटकाऊ नहीं हैं। स्पष्टताकी कमी, स्िथर नीितयों और व्यावसाियकता और राजनीितक हस्तक्षेप मुख्य बाधाएंहैं। पिछले ४० वर्षों में सरकार द्वारा शुरू की गई१,२०० बिजली परियोजनाओं में से, ६१,६९४ करो़ड रुपये की लागत के साथ निर्धारित समय से पीछे चल रही १११ परियोजनाओं सहित, ५९४ निमर्ाणाधीन हैं। प्रित परियोजना औसत लागत में वृद्धि५५० करो़ड रुपए है। बिजली मंत्रालय के आंक़डों के अनुसार, भूिमका अिधग्रहण, लोगों की बेदखली, जनशिक्त की कमी, अनुिचत बंधन और कच्चे माल की आपूिर्तदेरी के लिए मुख्य कारण हैं। विशेषज्ञों का कहना हैिक जब बात प्रमुख बिजली परियोजनाओं को िक्रयाविन्त करने की आती हैतो सरकार और लोगों के बीच एक प्रमुख संवादहीनता है। शमर्ाकहते हैंकि, सभी महत्वपूर्णिनर्णय लेने की प्रिक्रया में, समाज के वििभन्नवर्गों से सिक्रय भागीदारी महत्वपूर्णहै। राज्य और केंद्रसरकारों के बीच समन्वय की कमी भी देरी के लिए ि़जम्मेदार है। कमसे कम४७ लंिबत परियोजनाएंबहुराज्य परियोजनाएंहैं।

ऊर्जाउत्पादन में हमारे अग्रसर होने से एक तरफ जहां विद्युत के अभाव में दमतोड़ने वाले भारी उद्योग पुन: अपनी रफ्तार से कामकरना प्रारंभ कर देंगे जिसमें करो़डों बेरोजगारों को रोजगार के सुअवसर प्राप्तहो सकेंगे। इन ब़डे उद्योगों से उत्पादित सामिग्रयों का ब़डे पैमाने पर निर्यात भी हो सकेगा। ऊर्जाकी उपलब्धता से अनुपयोगी प़डी भूिममें उत्पादन प्रारंभ हो सकेगा। मध्यप्रदेश और छत्तीसग़ढ राज्य महत्वपूर्णउदाहरणहैंजहां  विद्युत उत्पादन बढ़ने से उन्नत कृिष प्रारंभ हो गईहैऔर इन राज्यों ने कृिष के क्षेत्रमें विकिसत राज्य पंजाब और हरियाणा को भी उत्पादन के मामले में पीछे छो़ड दिया है। ऊर्जाहमारे दैिनक जीवन में जितनी जरूरी हैउससे भी कहीं ज्यादा उसकी आवश्यकता राष्ट्र के विकास में है। ऊर्जाके परंपरागत स्त्रोत के साथ अब हमें अत्याधुिनक ऊर्जाकी उत्पादन पद्धित की तरफ ध्यान देना प़डेगा। राष्ट्र में परमाणु बिजली उत्पादन की दिशा में भी प्रयास हो रहे हैं। इसके साथ ही अक्षय ऊर्जा, सौर ऊर्जाका उत्पादन भी तेजी से ब़ढ रहा है। ऊर्जाउत्पादन की दिशा में चल रहे प्रयासों में यदि हमपूर्णसफल होते हैंतो भारत पूर्णविकसित देशों में िगना जाएगा और उपलब्िधयांदिलवाने में ऊर्जाकी महत्वपूर्णभूिमका रहेगी।

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