महाराष्ट्र स्थित पुणे शहर के सदाशिव पेठ निवासी चंद्रकान्त पाठकजी एवं उनके पुत्र केदार ने ऊर्जा निर्मिति के क्षेत्र में
अनोखे प्रयोग किए और उन्हें सफल बनाकर नए-नए यंत्र निर्माण किए। केवल बैलगाड़ी के पहिए को घुमाकर बिजली निर्मिति उनका अनोखा प्रयोग है। इसी तरह सीढ़ियों पर चढ़ते-उतरते समय नीचे का पानी ऊपर की टंकी पर पहुंचाना भी उनकी आश्चर्यजनक मिसाल है। इसके लिए चंद्रकान्तजी को मरणोपरांत पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
अनोखे अन्वेषणों का यह कार्य उनके पुत्र केदारजी जारी रखे हुए हैं।
सन १९६२ में चीन ने भारत का विश्वासघात किया। अचानक भारत को इस पराजय का सामना करना पड़ा। युद्ध में हुई हार के कारण आम आदमी तथा युवकों के दिल को गहरी चोंट लगी। सारे भारत में देशभक्ति की लहर दौड़ गई। युवाओं की सोच जागने लगी कि देश के लिए जरूर कुछ करना चाहिए, मेरे इस देश को इस प्रकार कभी मुंह की न खानी पड़े। हरेक युवक सोचने लगा कि मैं स्वयं देश के लिए क्या कर सकता हूं?
चंद्रकांत विनायक पाठक नामक युवा इंजीनियरिंग की शिक्षा समाप्त कर रोजी – रोटी या कामधंधे की तलाश में था। नौकरी में व्यक्तिगत प्रगति होगी, पर वह काफी नहीं। ज्यादातर लोगों को उपयोगी हो, ऐसा कुछ करने की उसकी इच्छा थी। वह अपना स्वयं का कारोबार खोजने की कोशिश कर रहा था। इसी सोच से १९६४ में ‘मॉडर्न टेक्निकल इन्स्टिट्यूट का उदय हुआ।
शिक्षा की सुविधा पर्याप्त मात्रा में नहीं थी। पुणे के आसपास अनेक कारोबार, कारखाने शुरू हो रहे थे। उन्हें पढ़ेलिखे तथा प्रशिक्षित युवकों की जरूरत थी। व्यवसाय से संबंधित तथा कारखाने में नौकरी करते समय जिनका उपयोग हो सकता है ऐसे कोर्सेस का प्रशिक्षण देना चंद्रकान्त पाठक जी ने शुरू किया। उन्होंने कुछ प्रशिक्षित लोगों को बुलाकर छात्रों को सिखाने हेतु विविध कोर्सेस, निम्न आर्थिक स्तर के अर्धशिक्षित, दिशाहीन छात्रों का मार्गदर्शन किया। छात्र नौकरी प्राप्त कर रहे थे। छोटे-छोटे व्यवसायी चंद्रकान्त पाठकजी को प्रोत्साहित कर रहे थे। बच्चों को अपने पैरों पर खड़े होते देख कर माता -पिता भी कृतज्ञता व्यक्त कर रहे थे।
दूसरी ओर कारखानों की जरूरत के मशीन के पाटर्स, सीधे-सादे तरीकों से मुश्किल काम भी कैसे आसान किए जाते हैं, जैसे उपक्रम भी उन्होंने शुरू किए।
कारोबार में एक ही प्रकार से काम करना यह पाठक जी के स्वभाव में नहीं था। सीमेंट पाइप का व्यवसाय भी कुछ समय के लिए किया। दूसरे उद्योग भी किए। जरूरतमंदों की मदद करना या किसी की मशीन ठीक करना जैसे अनुभवों से वे कुछ सीखते भी होंगे।
गांव के किसान, मजदूर तथा आर्थिक स्तर पर दुर्बल घटक को खास कर बिजली की तंगी थी। शायद बिजली की सुविधा मिलती भी नहीं होगी। उनकी जिंदगी पर, जीवन स्तर पर उसका असर दिखाई पड़ता था। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए रोशनी नहीं, पानी ले जाने की सुविधा नहीं, खेती सींचने के लिए अलग- अलग पंपों की जरूरत। पंप चलाने के बिजली चाहिए, पर वह है कहां? पाठक जी ने देखा कि घर की लक्ष्मी की सारी ताकत पानी भरने और चक्की पीसने में ही खत्म हो जाती है।
ऊर्जा का अभाव यह बहुत बड़ी बाधा थी- यह चंद्रकान्त जी के ध्यान में आया। उनकी खोज प्रवृत्ति को नई दिशा मिली। बिजली और ईंधन ये दो ही अपने देश के ऊर्जा स्रोत हैं, जिनकी उपलब्धता मर्यादित है और इस्तेमाल पर रोक। प्राकृतिक स्रोत रोशनी, हवा, समुद्र इन पर काबू पाने के लिए मानव प्रयत्नशील है। इसके लिए निवेश की जरूरत है। गरीब देश के गरीब आदमी को मेहनत करने की आदत थी, पर यह आदत उसको दरिद्रता से मुक्ति नहीं दिला सकती थी। उनके प्रयत्नों से दिशा मिलेगी तो उनका जीवन सुधारा जा सकता है। उसे दूसरों पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा; यह बात पाठक जी की समझ में आई। १९९२ से उन्होंने स्वयं पूर्ण रूप से उसके लिए काम करना शुरू किया। वैकल्पिक उर्जा, संशोधन, विकास, संसाधनों का ज्यादातर इस्तेमाल।
उन्होंने निश्चय किया- गरीब की झोपड़ी में उसे रोशनी, पानी, अन्न जैसी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर न रखने का निश्चय।
फिर इऱ्जाद हुई बैलगाड़ी के पहिये घूमने से निर्माण हुई बिजली और उसे बैटरी में जमा कर रात को घर में इस्तेमाल करने की उपलब्धि।
बैलगाड़ी के पहियों पर चक्र, पहिये के अंदरूनी क्रेंद्र-बिंदु पर दॉलेदार चक्र और पट्टों का उपयोग कर एक पंप पानी की फुहार हो सकेगी इतनी ऊर्जा निर्मिति।
सायकल के पहिये को जोड़ कर इससे आटा पीसने की चक्की, फलों का रस निकालने वाले यंत्र भी चलाए जा सकते हैं। कुएं से पानी भी खींचा जा सकता है। पानी इमारत को टंकी में भी चढ़ाया जा सकता है- जैसी सुविधाएं उपलब्ध की जा सकती हैं। झूला झूलने की हलचल से या गति से पानी नीचे से खींचा जा सकता है और ऊपर चढ़ाया भी जा सकता है, यह पाठक जी ने सिध्द कर दिखाया।
सीढ़ी के पायदान पर एक कदम रखा। चढ़ते-उतरते समय नीचे की टंकी का पानी ऊपर की टंकी में चढ़ाने जैसी सुविधा भी पाठक जी ने बार-बार कर दिखाई। यंत्र के लिए बहुत निवेश न करना पड़े, मरम्मत न करनी पड़े, सुलभ रीति से इस्तेमाल कर सके तथा मनुष्य की शारीरिक ताकत से अलग ऊर्जा न लगे इत्यादि महत्वपूर्ण बातों पर पाठकजी ने सदैव जोर दिया। उनके सारे अनुसंधान की दिशा ऐसे ही उपकरणों के लिए, साधनों के लिए थी।
सन २००२ से पाठक जी के बेटे केदार भी पिता के साथ कारोबार में शामिल हुए। तब तक वे बिक्री और व्यवसाय वृध्दि क्षेत्र में कार्यरत थे। अपना तजुर्बा और इंजीनियरिंग क्षेत्र में प्राप्त अनुभवों का उपयोग उन्होंने अपना कारोबार बढ़ाने में किया। शासनकर्ताओं का भी यही दृष्टिकोण रहा है कि वैकल्पिक ऊर्जा का उपयोग बढ़ाकर बिजली और ईंधन तेल पर ज्यादातर निर्भर न रहना पड़े इसलिये ऐसे साधनों की निर्मिति के लिए प्रोत्साहित करना, उस पर ध्यान देना।
नये – नये अनुसंधान को प्रोत्साहित करने का कार्य करने के लिए चंद्रकान्त पाठकजी का दो बार सम्मान किया गया। २००३ में जीवनभर एक ही ध्येयपूति की खातिर परिश्रम करते रहे। इन परिश्रमों के लिए उन्हे २०१५ में मरणोपरांत फिर से सम्मानित किया गया।
श्री केदार पाठक सन २००२ से संशोधन और उत्पाद इन दोनों बातों को सँभाले हुए हैं। बैलों की शाक्ति का उपयोग कर उन्होंने बिजली की निर्मिति बढाई है। बीजों को सहेजना तथा उनको बोना, उन पर कीटकनाशक फुहारना, बीजों पर कीटनाशक समान रूप से फैले इनके लिए नए यंत्र बनाए जा रहे हैं। यंत्र की रचना उस प्रकार है कि जो हैंडल से और मोटर सायकल की गति पर भी चलाया जा सकता है। इससे किसानों की मेहनत तथा सहेज कर रखने की समस्या पर किसी हद तक काबू है।
प्रधान मंत्री के स्वच्छता अभियान को बल देने के लिए बिजली पर (इरींींशीू जशिीरींशव) रिक्षा पर उसी यूनिट का उपयोग कर कम से कम पानी का इस्तेमाल कर शौचालय, मूत्रालय साफ हो सके इसलिए एक ही आदमी यह रिक्षा ले जा सकता है और साफ भी कर सकता है। ऐसा ही एक नया वाहन बाजार में आया है। कम मात्रा में माननीय संसाधन, प्रदूषण विरहित, पानी में कटौती करना तथा विविध उपयोग भी इसका उद्देश्य है।
दूसरे क्षेत्रों में भी उनका संशोधन जारी रहता है। मोबाइल फोन की बैटरी बिजली का इस्तेमाल न करते हुए कैसे चार्ज की जा सकती है? इस दिशा में भी उनकी कोशिश जारी है।
केदार के पिता का कार्य प्रगति पथ पर ले जाने के काम की ओर छरींळेपरश्र खपर्पेींरींर्ळींश र्ऋेीपवरींळेप ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया। राष्ट्रपति के हाथों उनका सम्मान भी हुआ।
वैयक्तिक ऊर्जा, विशेषत: मनुष्य और प्रााणी की मेहनत पर, आधारित संशोधन की ओर इस पिता पुत्र ने ध्यान केंद्रित किया। कार्बन उत्सर्जन में कमी,ऊर्जा निर्मिति की नई दिशा और उसकी तंगी पर मात करने का मार्ग, खेती उत्पाद में बढोत्तरी जैसे अनेक कामों की जिम्मेदारी उठाई है।