मानवीय ऊर्जा


मानवीय ऊर्जा सामुदायिक रूप से जब सकारात्मक दिशा में जाती है तो समाज में सृजनात्मक परिवर्तन होते हैं। और वही ऊर्जा जब नकारात्मक दिशा की ओर मुड़ती है तो समाज विनाश की ओर अग्रसर होता है।

ऊर्जा! सृष्टि के हर कण को जागृत अवस्था में रखने वाली शक्ति; जिसका न आदि है और न ही अंत। जो केवल अपना रूप परिवर्तित करके सारे संसार को गति प्रदान करती है। हम अपने चारों ओर ऊर्जा के विभिन्न रूप देखते हैं, जिनका मानवीय जीवन के विकास में निरंतर योगदान रहता है। चाहे फिर वह कोयले या पानी से उत्पन्न होने वाली बिजली हो, पेट्रोलियम पदार्थों से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा हो या अब वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में सामने आने वाली पवन ऊर्जा या सौर ऊर्जा हो।
मानवीय जीवन स्तर की जैसे-जैसे प्रगति हो रही है वैसे-वैसे ऊर्जा के विभिन्न साधनों की भी खोज हो रही है। इस क्षेत्र में नवीनतम ऊर्जा स्रोत अणु ऊर्जा है। इसके दुष्परिणामों से लोग अभी तक अनजान हैं; इसलिए यह सभी के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। ऊर्जा के अधिकतम स्रोत प्रकृति प्रदत्त हैं। मानव को तो इसका केवल उपयोग करना है। परंतु वास्तविकता यह है कि ‘मुफ्त के माल’ की किसी को कद्र नहीं होती। कोयला और पेट्रोलियम पदार्थों के समाप्त होने की भनक लगते ही सारा विश्व वैकल्पिक ऊर्जा की ओर मुड़ गया। सभी जानते हैं कि सृष्टि के विनाश तक न तो सूर्य रोशनी देना बंद करेगा और न ही हवा रुकेगी। अत: सौर उर्जा और पवन ऊर्जा की ओर सभी का ध्यान आकर्षित होना स्वाभाविक ही था। चलो! देर आए दुरुस्त आए। इसे मानव मस्तिष्क की ऊर्जा का सकारात्मक दिशा में जाना कहा जा सकता है; जिसके कारण मानव उपभोग से दोहन की ओर मुड़ रहा है।

सच बात तो यह है मानवीय ऊर्जा के सकारात्मक या नकारात्मक दिशा में जाने पर ही सृजन या विनाश निर्भर है। इसे एक छोटे से उदाहरण से समझते हैं। दो बच्चों को दो कागज दिए जाते हैं। जिस बच्चे की ऊर्जा सकारात्मक दिशा में जाने वाली होगी वह उस कागज को विभिन्न तरीकों से मोड़ कर देखेगा, उससे नाव, जहाज जैसी कलात्मक वस्तुएं बनाने का प्रयत्न करेगा। वहीं दूसरे बच्चे की ऊर्जा अगर नकारात्मक दिशा में जाएगी तो वह उस कागज के टुकड़े कर देगा। ठीक इसी तरह के कई उदाहरण हम अपने चारों ओर फैले देखते हैं।

दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने न केवल अपनी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ा बल्कि सारे समाज को भी प्रवृत्त किया। भगवान श्रीराम से लेकर हमारे क्रांतिकारियों तक सभी ने तत्कालीन समाज में ऊर्जा का संचार किया। हमने सुना है कि पत्थर की अहिल्या भागवान श्रीराम का चरण स्पर्श होते ही मानव रूप में वापिस आ गई। किसी इंसान का पत्थर में बदलना और किसी का स्पर्श होते ही पुन: इंसान में परिवर्तित होना तार्किक रूप से सही नहीं लगता। परंतु इसे अगर कुछ इस प्रकार समझा जाए कि पतिव्रता अहिल्या समाज तथा पति के द्वारा लगाए गए लांछनों के कारण जडवत हो गई थी। भगवान श्रीराम ने उसके मन की व्यथा समझ कर उसके अंदर ऊर्जा का संचार किया और अहिल्या पुन: अपने मूल रूप में आ गई। अहिल्या के अंदर ऊर्जा का संचार करने के साथ-साथ भगवान श्रीराम ने उसके चारों ओर फैले समाज में भी जागृति लाने का प्रयत्न किया। इसे अपने अंदर की सकारात्मक ऊर्जा को दूसरे में प्रवाहित करना कहा जा सकता है।

आजकल हमारी पौराणिक कथाओं को न मानने का फैशन सा हो चला है। जिन लोगों का भगवान श्रीराम की कथा पर विश्वास नहीं वे भी इस बात से तो इंकार नहीं करेंगे कि आज तक विश्व में जितने भी लोकनायक, जननायक हुए उन्होंने भी अपने अंदर की सकारात्मक ऊर्जा को समाज में प्रवाहित करने का ही कार्य किया। छत्रपति शिवाजी महाराज ने मावलों (शिवाजी के सैनिक) को इकट्ठा कर उनमें हिंदू साम्राज्य की स्थापना करने का स्वप्न जगाया। उनमें पुन: चेतना जगाई। वर्षों से गुलामी की मार सह कर सुप्त अवस्था में जा चुके समाज को ऊर्जावान बनाया और हिंदू पदपादशाही की स्थापना की।

झांसी की रानी ने उस काल में महिलाओं की सेना बना कर झांसी को बचाने का प्रयास किया जिस काल में सामान्यत: महिलाएं घर की चारदीवारी तक ही सीमित हुआ करती थीं, रानी ने उन्हें इतना प्रेरित किया कि वे घुड़सवारी से लेकर शस्त्र-संचालन तक उन सभी विद्याओं में पारंगत हो गईं जिन पर पुरुषों का एकाधिकार हुआ करता था।

महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में उन अश्वेतों को साथ लेकर संघर्ष किया जिन्हें गोरी चमड़ी वाले अपने पांव की जूती समझते थे। अश्वेतों को उनके अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया, अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाना सिखाया। जब वे भारत लौटे तो उन्हें यहां की परिस्थिति भी दक्षिण अफ्रीका की तरह ही दिखाई दी। यहां भी अंग्रेज भारतीयों पर वैसे ही अत्याचार कर रहे थे और भारतीय समाज निष्क्रिय प्रतीत हो रहा था। महात्मा गांधी के अहिंसा आंदोलन ने समाज में ऊर्जा का संचार किया तथा बिना किसी शस्त्र के अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े होने का सामर्थ्य जगाया।

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने भी दलित समाज में ऊर्जा का संचार का संचार किया। अमेरिका में अध्ययन के दौरान वे जब पुस्तकालय में देर रात तक किताब पढ़ रहे थे तो वहां के कर्मचारी ने उनसे पूछा कि वे इतनी रात तक पढ़ाई क्यों कर रहे हैं? उस कर्मचारी को अपेक्षा थी कि डॉ. बाबासाहब आंबेडकर किसी परीक्षा में उत्तीर्ण होने या किसी पद तक पहुंचने का कारण बताएंगे। परंतु वह कर्मचारी डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का उत्तर सुनकर स्तब्ध रह गया। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने उसे बताया कि वे अपने दलित बांधवों के लिए पढ़ रहे हैं ताकि वे अपनी विद्या का उपयोग उनके उत्थान में कर सकें। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के विचारों की इसी ऊर्जा के कारण वे दलित बांधवों का जीवन स्तर सुधारने तथा उन्हें समाज में उनका हक दिलाने में सफल रहे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार भी ऊर्जावान व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने संघ के रूप में जो बीज बोया था आज वह वटवृक्ष का रूप ले चुका है। यह एक ऐसी संस्था है जिसके कार्यकर्ता बिना किसी वेतन की अपेक्षा के निरंतर देशहित के कार्यों में अपना योगदान देते हैं। स्वतंत्रता के पूर्व स्थापित हुई यह संस्था मात्र तात्कालिक आंदोलन बनकर समाप्त नहीं हुई। यह आज तक कार्यरत है और अब तो इसके संलग्न संगठन भी समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं।

सन २०१४ के लोकसभा चुनाव ने भाजपा ने अप्रत्याशित जीत हासिल कर केंद्र में सत्ता हासिल की। सभी इसका श्रेय नरेंद्र मोदी को देते हैं। उन्होंने जिस रफ्तार से रैलियां की, चुनाव प्रचार किया, उपवास रखकर, नींबू-पानी पीकर १४-१६ घंटों तक काम किया, यह निश्चित रूप से उनकी आंतरिक ऊर्जा का ही कमाल है। इसी ऊर्जा को उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं तथा देशवासियों में भी प्रवाहित किया और चुनावों के परिणाम अपनी ओर मोड़ लिए।

आंदोलन हमेशा से ही समाज में ऊर्जा का संचार करने के वाहक रहे हैं। जयप्रकाश नारायण द्वारा आपातकाल के विरोध में किया गया आंदोलन आज तक लोगों को लोकतंत्र की महत्ता की याद दिलाता है। अण्णा हजारे के आंदोलन ने आज की राजनैतिक व्यवस्था, जो कि भ्रष्टाचार में पूरी तरह लिप्त है, के विरोध में आवाज उठाने के लिए समाज में जागृति फैलाई। उनके विचारों की ऊर्जा इतनी प्रबल थी कि उनकी उम्र से लेकर युवाओं तक सभी इस आंदोलन में सहभागी हो गए।
मानवीय ऊर्जा सामुदायिक रूप से जब सकारात्मक दिशा में जाती है तो समाज में सृजनात्मक परिवर्तन होते हैं। और वही ऊर्जा जब नकारात्मक दिशा की ओर मुड़ती है तो समाज विनाश की ओर अग्रसर होता है। इसका सर्वोत्तम उदाहरण है इसिस जैसे आतंकवादी संगठन। इनके पास उच्च विचार शक्ति वाले नेता हैं। उस नेता की हर बात को अपनी जान गंवाकर पूरा करने वाले अनुयायी हैं। किसी देश की सेना की तरह ही आधुनिक शस्त्रास्त्र हैं परंतु फिर भी ये समाज को विनाश की ओर ले जा रहे हैं। क्यों? इसलिए कि इनकी वैचारिक, बौद्धिक और शारीरिक ऊर्जा नकारात्मकता की ओर अग्रसर हैं। धर्म की आड़ लेकर अपना वर्चस्व स्थापित करने की होड़ में ये लोग दुनिया को तबाह कर रहे हैं।

उपरोक्त सभी उदाहरण मानवीय ऊर्जा की सकारात्मकता और नकारात्मकता के मानव समाज पर होने वाले प्रभावों के हैं। यही प्रभाव प्रकृति पर भी पड़ता है। कई बार हम ऊर्जा संसाधनों का उपयोग करते समय यह सोचते ही नहीं कि परिणाम क्या होगा। इसे नकारात्मकता तो नहीं कहा जा सकता परंतु परिणाम भयावह ही होते हैं। विद्युत का अनावश्यक उपयोग, निजी वाहनों के अत्यधिक प्रयोग के कारण अधिक खर्च होने वाला पेट्रोल, प्रदूषण के कारण कम होता जल स्तर आदि के कारण ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों में कमी हो रही है। अब आवश्यकता है कि मानव समाज अपनी ही उन्नति के लिए अपनी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में ले जाए और प्रकृति प्रदत्त ऊर्जा का भी सकारात्मक दोहन करें।

Leave a Reply