सौर ऊर्जाभारत के लिए ईश्‍वरीय वरदान


भारत सौभाग्यशाली है कि, यहां सौर ऊर्जा प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं। नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय का अनुमान है कि यह ७५० गीगावॉट के लगभग है। पिछले ६० वर्षों से हम इसका बहुत ही अल्प मात्रा में उपयोग कर पा रहे हैं। २०१५ में भारत के पास ३३०० मेगावाट की स्थापित सौर क्षमता थी और इनमें से ३४% अर्थात ११४२ मेगावाट की क्षमता २०१४-१५ के एक वर्ष में स्थापित की गई। लगभग ७,२५,००० वर्ग मीटर के सौर ऊर्जा पैनलों से यह क्षमता उपलब्ध हुई है। देश के तीन राज्यों- गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में सर्वाधिक सौर उर्जा क्षमता की स्थापना हुई है।

सौर ऊर्जा को सशक्त बनाया एनडीए ने पिछली सरकारों द्वारा सौर ऊर्जा के प्रति पर्याप्त ध्यान न दिए जाने से यह शोचनीय स्थिति दिखाई देती है। इस प्रचुर ऊर्जा स्रोत के कम उपयोग के कारण ही केंद्र की नई सरकार ने वर्ष २०२२ तक कम से कम १,७५,००० मेगावाट की अक्षय ऊर्जा स्थापित क्षमता कायम करने का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम बनाया है। जिसमें से १००,००० मेगावाट सिर्फ सौर ऊर्जा होगी। नई सरकार ने अपने पहले वर्ष में ही ११४२ अतिरिक्त सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित की है, जो कि पिछले ६० वर्षों में स्थापित कुल सौर ऊर्जा क्षमता का ३४ फीसदी है। सौर ऊर्जा के प्रति सोच बहुआयामी है। इससे जुड़ी नई पहल और व्यापक है- अमल के लिए सही नीतियों, प्रौद्योगिकी, अनुसंधान एवं विकास से लेकर वित्तीय योजनाओं तक, कर्मचारियों के प्रशिक्षण से लेकर प्रशुल्क समानता तक, उपलब्धता में कमी से लेकर आसान उपलब्धता आदि तक सभी बातों के प्रति ध्यान दिया गया है। नई सरकार ने इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु कई नई रूपरेखाएं और परियोजनाएं तैयार की हैं। इन परियोजनाओं का भौगोलिक क्षेत्र, बजट के जरिए वित्तीय प्रावधान, और लक्षित जनसंख्या भिन्न है, लेकिन अंत में इसका लाभ सामूहिक रूप से देश की ऊर्जा सुरक्षा के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने में होता है। पिछली सरकारों ने बिजली संस्थानों पर चढ़े कर्ज को कम करने और बिजली दरों में बार-बार अभिवृद्धि करने पर ही अधिक ध्यान दिया था, जबकि नई नीतियों के तहत परिचालन क्षमता को बढ़ाने, वित्तीय अनुशासन बनाए रखने और बैंकों से प्रणालीगत बैंकिंग ॠण पर बल दिया गया है। इसके अलावा निम्न नए दिशानिर्देश जारी किए गए हैं-

१. हानि पर कुशलतापूर्वक नज़र रखना।
२. निजी-सार्वजनिक भागीदारी को सही रूप में स्थापित करना, जहां दोनों पक्ष अपने अधिकारों और जिम्म्ेदारियों का ठीक से वहन कर सके।
३. अतिरिक्त प्रबंधन की व्यवस्था करना।
४. संवहन क्षमता में वृद्घि करना।
५. डिस्कॉम के ॠण की पुनर्रचना करना।

ये बातें हालांकि सम्पूर्ण ऊर्जा क्षेत्र पर लागू होती हैं, लेकिन देश में सौर ऊर्जा के महत्व को देखते हुए सौर ऊर्जा के लिए यह अधिक महत्वपूर्ण है। देश में सौर ऊर्जा को बढ़ाने के लिए निम्न नीतियों/ योजनाओं/ परियोजनाओं पर विशेष बल दिया गया है-

१. स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के वित्तीय पोषण के लिए कोयला उपकर प्रति टन ५० रु. से बढ़ाकर २०० रु. कर दिया गया है।
२. सन २०१८-१९ तक कम से कम २०,००० मेगावाट सौर ऊर्जा प्राप्त करने के लिए २५ सौर उद्यान स्थापित किए जाएंगे।
३. दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना के अंतर्गत ७५,८९३ करोड़ रु. की परियोजना का क्रियान्वयन, जिसमें सौर ऊर्जा का महत्वपूर्ण हिस्सा होगा।
४. ६५,४२४ करोड़ रु. की लागत से समन्वित बिजली विकास योजना, जिसमें सौर ऊर्जा का उल्लेखनीय हिस्सा होगा।

सौर उद्यानों की स्थापना

विशाल पैमाने पर सौर ऊर्जा उद्यानों की स्थापना से ही बड़े पैमाने सौर बिजली प्राप्त हो सकेगी। ये विशाल सौर पीवी पैनल होते हैं, जो आम तौर पर ऐसी बंजर भूमि पर स्थापित किए जाते हैं, जहां पहले से ही बिजली के संकलन की व्यवस्था है अथवा नए सिरे से ऐसी व्यवस्था स्थापित की गई है। राष्ट्रीय सौर मिशन (पूर्व नाम जेएनएन सौर ऊर्जा मिशन) के अंतर्गत वर्ष २०२२ तक १००,००० सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दिसम्बर २०१४ में सरकार ने सौर उद्यानों और अत्याधुनिक सौर ऊर्जा उद्यानों की योजना घोषित की है। इस योजना के अंतर्गत प्रत्येकी ५०० मेगावाट के २५ सौर ऊर्जा उद्यान स्थापित किए जाएंगे, ताकि २०१८-१९ तक २०,००० मेगावाट की सौर बिजली प्राप्त हो सके। इस योजना के अंतर्गत केंद्र से कुल ४०५० करोड़ रु. की वित्तीय सहायता प्राप्त होगी। प्रस्तावित सौर ऊर्जा उद्यान प्रौद्योगिक रूप से स्वतंत्र होंगे और अधिकतर राज्यों की पहल पर निर्भर होंगे। इन उद्यानों में निर्मित बिजली, बिजली खरीदी समझौते के अंतर्गत वितरित होगी। सौर ऊर्जा उद्यान का स्वामी केद्र, राज्य अथवा तीसरे पक्ष से बिजली खरीदी समझौता कर सकेगा। निम्न तालिका में राज्य एवं प्रस्तावित सौर उद्यान के आकार को स्पष्ट किया गया है-

इन प्रयासों के अलावा भारतीय सौर ऊर्जा निगम (एसईसीआई), निजी उद्यमी स्वतंत्र रूप से राज्य सरकारों के साथ समझौते कर रहे हैं। अदानी समूह ने राजस्थान सरकार से ऐसा एक विकास समझौता किया है, जिसके तहत २०२२ तक १०,००० मेगावाट की बिजली का उत्पादन तो होगा ही, साथ में सौर बिजली के वृहद उत्पादन के लिए जरूरी सौर मॉड्यूलों तथा अन्य जरूरी यंत्रों का भी उत्पादन करने वाला कारखाना स्थापित किया जाएगा।

कुछ राज्य सरकारों ने अपनी स्वतंत्र सौर ऊर्जा नीतियों की घोषणा की है। उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश सरकार ने फरवरी २०१५ में सौर बिजली नीति की घोषणा की है, जिसमें केंद्रीय नीति की बहुत सारी बातों को ले लिया गया है। इसके अलावा इस नीति के तहत सौर यंत्रों के उत्पादन की सुविधा स्थापित करने का भी प्रावधान है।

नहरों के तटों तथा मुहानों की योजना

कई राज्यों में, विशेष रूप से उत्तरी क्षेत्र में, नहरों और उपनहरों के जरिए सिंचाई का विशाल संजाल फैला हुआ है। इस जमीन का उत्पादकता की दृष्टि से उपयोग करने के इरादे से भारत सरकार ने दिसम्बर २०१४ में इन जमीनों पर सौर पीवी ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना की योजना घोषित की है। इस योजना के अंतर्गत १०० मेगावाट बिजली के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। यह योजना १२वीं योजना का अंग है और इसकी कुल लागत ९७५ करोड़ रु. होगी। सरकार २२८ करोड़ रु. की सहायता देगी। इस योजना के तहत अब तक आठ राज्यों को नहरों के मुहाने ५० मेगावाट एवं नहरों के किनारे ५० मेगावाट सौर बिजली उत्पादन का लक्ष्य दिया गया है।

सौर शहर

भारत में बहुत तेज़ी से शहरीकरण हो रहा है। वर्तमान रुझान को ध्यान में रखें तो सन २०५० तक ५०% से भी ज़्यादा लोग शहरों में रह रहे होंगे। इस तेज़ी से बढ़ती हुई जनसंख्या के फलस्वरूप बिजली की मांग बढ़ेगी और इससे प्रदूषण में भी तेज़ी से इज़ाफ़ा होगा। इस बड़ी समस्या का समाधान करने के लिए के नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों- विशेष रूप से सौर ऊर्जा की अत्यंत आवश्यकता होगी। अतः ११हवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत सौर उर्जा को बढ़ाने के लिए सौर शहरों की योजना घोषित की गई थी। इस योजना के अंतर्गत शहरों में ‘हरित और स्वच्छ ऊर्जा’ को बढ़ावा दिया जाता है। इसके साथ ही शहरों में विभिन्न स्रोतों से बिजली प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है। इस योजना के अंतर्गत ‘हरित भवन’ संरचना एवं निर्माण प्रौद्योगिकियों को भी प्रोत्साहन दिया गया है। इस योजना में सौर शहरों को इस प्रकार से परिभाषित किया गया है -‘‘…यह ऐसे शहर होंगे जो पांच वर्ष में (११हवीं योजना के अंतिम वर्ष) शहर में अक्षय ऊर्जा को बढ़ाकर और सक्षम ऊर्जा उपायों के जरिए परम्परागत बिजली की खपत में १०% की कमी लाएंगे।’’ ऐसे शहर पात्र बनने के लिए शहर में मजबूत स्थानीय निकाय होना और शहर की जनसंख्या ५० लाख तक होना जरूरी है। ११हवीं योजना के अंत तक लगभग ऐसे ६० शहर विकसित करने का लक्ष्य था। हालांकि इस अवधि के लिए अब तक ४८ शहरों की पहचान की गई है और ३१ को सैद्धांतिक मंजूरी मिल चुकी थी। योजना की वर्तमान स्थिति (सितम्बर २०१५) यह है कि ५० शहरों को मंजूरी दी जा चुकी है और ५० शहरों ने इस लागू करने के लिए रूपरेखा बनाई है।

सौर ऊर्जा के लिए प्रोद्यौगिकी

सौर ऊर्जा क्षेत्र स्थिर प्रोद्यौगिकी और ऊंची कीमतों के चलते कई वर्षों से उपेक्षित रहा है। यह परिदृश्य उस समय तक था, जब तेल और कोयले की कीमतें और उपलब्धता बहुत बड़ा मुद्दा नहीं था। तेल उत्पादक राष्ट्रों के संगठन ओपेक ने तेल की आपूर्ति नियंत्रित करना जारी रखा। आपूर्ति की इस दिक्कत के कारण कई विकासशील देश उच्च लागत अर्थव्यवस्था के घेरे में आ गए। १९७० के दशक के आरंभिक वर्षों में सौर प्रोद्यौगिकियों का विकास सीमित रहा, क्योंकि इसके कुछ ही उत्पादक थे और सौर पीवी की लागत प्रति वैट ६ अमेरिकी डॉलर जितनी महंगी थी। चूंकि तेल और कोयला उचित मूल्य में उपलब्ध था और कोयला आधारित बिजली केंद्रों पर भारी पूंजीगत निवेश हुआ था, अतः सौर ऊर्जा के क्षेत्र का तेजी से विकास नहीं हुआ। सौर पीवी पैनलों एवं सेलों के उत्पादन में चीन के प्रवेश के बाद सौर बिजली क्षेत्र में क्रांति हो गई। इससे मूल्य प्रति पीवी मॉड्यूल ०.५ अमेरिकी डॉलर तक उतर गया। निम्न ग्राफ से १९७० के बाद पीवी मूल्यों में घटती कीमतों का पता चलता है। सौर पैनलों की क्षमता भी औसतन १४% से बढ़कर २२% हो गई। इससे विकासशील देशों को भारी लाभ हुआ, विेशेष रूप से उन देशों को जो अंतरराष्ट्रीय सौर संगठन के सदस्य हैं।

प्रोद्यौगिकी से सम्बंधित दूसरा मुद्दा यह है कि सौर ऊर्जा उत्पादन के विभिन्न तरीके अब उपलब्ध हैं। छत पर पैनलों की स्थापना का तरीका आसान और तेज है, लेकिन विकेंद्रित अवस्था के कारण उसकी लागत ऊंची और क्षमता कम है। बड़े पैमाने पर स्थापित किए जाने वाले सौर उद्यानों की सभी समस्याएं वही हैं, जो केंद्रीकृत उत्पादन की होती है जैसे कि भूमि की उपलब्धता, बिजली संकलन, परिचालन लागत तथा संवहन एवं वितरण के दौरान हानि। विभिन्न तरीकों से बिजली उत्पादन की लागत भिन्न-भिन्न प्रकार की है। विभिन्न तरीकों की वित्त व्यवस्था एवं आर्थिक व्यवस्था के स्पष्ट विश्लेषण से भविष्य के निवेशकों का मार्गदर्शन होगा।

सौर प्रणाली की सक्षमता

साधारण तौर पर सौर प्रणाली की सक्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि किसी निश्चित स्वरूप में इससे बिजली का कितना उत्पादन होता है। यह सक्षमता कई बातों से प्रभावित होती हैं जैसे स्थान, सौर पैनलों का मुख, वातावरण जिसमें प्रणाली के ऊपर हवा किस तरह है, शामिल है। इसमें कोई संशय नहीं है कि सौर उर्जा पैनल की किस्म और गुणवत्ता तथा उत्पादन में प्रयुक्त प्रोद्यौगिकी का विभिन्न प्रणालियों की क्षमता पर असर पड़ता है। हालांकि सौर थर्मल, सौर पीवी-स्टैण्ड अलोन, एवं सौर पीवी-ग्रिड संलग्न जैसे विभिन्न तरीकों से बिजली उत्पादन के तुलनात्मक आंकडें उपलब्ध नहीं हैं और इसका कारण है इस सम्बंध में लगातार बदलती लागत के कारण सूचनाओं का पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होना।

अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन

सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने के लिए सामूहिक एवं समन्वित प्रयासों के लिए विभिन्न देशों को संगठित करने में भारत सफल हुआ है। भारत के सम्माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की कल्पना को प्रस्तुत किया है।
इस समझौते के प्रति उनका निम्न दृष्टिकोण हैः ‘‘ऐसे कई देश हैं, जो अच्छे सौर प्रकाश से सम्पन्न हैं। हम प्रयास कर रहे हैं कि अनुसंधान एवं प्रोद्यौगिकी विकास के जरिए सौर ऊर्जा के बेहतरीन उपयोग के लिए इन देशों को एक मंच पर लाया जाए। इन देशों के पास सौर ऊर्जा के माध्यम से अपनी बिजली की आवश्यकताओं को पूरा करने की शक्ति और क्षमता है।’’ – मा. श्री नरेंद्र मोदी इस समझौते के तहत सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं के लिए आगे आने और समन्वित प्रयास करने के लिए लगभग १२१ देशों को एक मंच उपलब्ध हुआ है। इस गठबंधन को फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलांद एवं इरेना के महानिदेशक अदनान ए. अमीन का पूरा समर्थन प्राप्त हुआ है। समझौते की महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं:

१. सौर ऊर्जा प्रोद्यौगिकियों अधिक से अधिक उपयोग करना
२. प्रत्येक सम्मिलित देश की ऊर्जा की आवश्यकताओं को सुरक्षा प्रदान करना
३. टिकाऊ विकास
४. सभी को ऊर्जा प्राप्त करने का आसान एवं समान अधिकार- विशेष रूप से भागीदारी देशों की ग्रामीण जनता को।

अमल के लिए मार्गनिर्देशक तत्व एवं नीति
केंद्र मे हमारी नई सरकार ने सौर ऊर्जा क्षमता के महत्तम उपयोग की दिशा में कई महत्वपूर्ण और सही कदम उठाए हैं, जिनका यहां उल्लेख किया जा रहा है और जिन पर निरंतर और सुधारात्मक प्रयास की आवश्यकता हैः
१. सार्वजनिक सूचना एवं डाटा बैंक की स्थापना करना। इस क्षेत्र में सहभागी पक्षों के लिए निरंतर और उपयुक्त संवाद के लिए इसकी अत्यंत आवश्यकता है। इससे नए उद्यमियों को सौर ऊर्जा की पर्यावरणीय-प्रणाली के बारे में विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध होगी। यद्यपि सरकार ने अमेरिकी सरकार के ऊर्जा विभाग के सहयोग से परियोजना आरंभ की है, लेकिन इसमें उपलब्ध सूचनाएं अमेरिकी क्षेत्र की होने से इस पर कार्रवाई करना मुश्किल होता है।
२. छत पर सौर ऊर्जा की ग्रिड से संलग्नता इन और आउट मीटरिंग के बारे में स्पष्ट नीतिगत रूपरेखा होना जरूरी है। ऐसी रूपरेखा जहां तक हो सम्पूर्ण देश के लिए उपयोगी होनी चाहिए, ताकि एक राज्य में कामकाज का दूसरे राज्यों में उपयोग हो सके।
३. सौर ऊर्जा के ऑफ-ग्रिड विकास के लिए प्रोत्साहन एवं शुल्क के बारे में संतुलित नीति होना जरूरी है। मुंबई जैसे बड़े शहरों में, हाउसिंग सोसायटियों के लिए यह अनिवार्य बनाया जा सकता है कि वे अपनी बिजली की आवश्यकताओं का ५०% हिस्सा सौर ऊर्जा से प्राप्त करें। इसी तरह हाउसिंग सोसायटी कानून में संशोधन कर यह प्रावधान किया जा सकता है कि अब केवल ‘हरित भवन’ ही बनाए जा सकेंगे।
४. इस मामले में मानव संसाधन अत्यंत महत्वपूर्ण है। बिजली क्षेत्र में और विशेष रूप से सौर ऊर्जा के क्षेत्र के विभिन्न कामों के लिए कर्मचारियों का भारी अभाव है। सरकार की ‘कौशल भारत’ पहल के अंतर्गत बिजली क्षेत्र में मानव संसाधनों के विकास पर अधिक बल दिया जाना चाहिए। पिछले कई वर्षों से बिजली क्षेत्र सरकार और सरकार द्वारा संचालित बिजली बोर्डों के मातहत रहा है। इससे आवश्यक कौशल का निर्माण नहीं हो सका। इन बोर्डों के एकाधिकार को खत्म कर एवं नए उद्यमियों के प्रवेश के लिए कुशल श्रमशक्ति की अत्यंत आवश्यकता है।
५. सरकार को ग्रिड से संलग्न सभी बिजली स्रोतों के लिए अनुकूल दीर्घावधि की प्रशुल्क नीतियां बनानी चाहिए। आरंभिक तौर पर वायु प्रदूषण पर कम प्रभाव एवं सीमित स्रोतों का इस्तेमाल करने के लिए सौर बिजली जैसे क्षेत्र को सीधे सब्सिडी दी जा सकती है।
इस आलेख को मा. प्रधानमंत्री के नवीन और अक्षय ऊर्जा स्रोत मंत्रालय द्वारा आयोजित ‘रीइन्वेस्ट २०१५’ में कहे गए वचन से समाप्त करना बेहतर होगाः ‘‘अक्षय ऊर्जा के उत्पादन के क्षेत्र में भारत अब मेगावाट से गीगावाट तक विकास कर चुका है।’’

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