आज के ही दिन १८२६ में पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कोलकाता(तत्कालीन कलकत्ता) में उदन्त मार्तण्ड के माध्यम से हिंदी पत्रकारिता की नींव रखी थी. शुरुआत से ही लोगों के भरोसे की हकदार बनी रही पत्रकारिता बढ़ते आर्थिक दबाव से लेकर पीत पत्रकारिता तक जैसी चुनातियों के कारण आज संक्रमण के दौर से गुजर रही है. ऐसे में यह जानना आवश्यक हो जाता है कि क्या पत्रकारिता पर अब भी लोगों का भरोसा कायम है? अपनी बेबाक राय दें.
मुकेश गुप्ता
22 अक्टूबर 2018लेख बेहद सराहनीय व काबिलेतारीफ है।बिकाऊ भ्रष्ट दोगली मीडिया से पत्रकारिता कलंकित हो रही है।देश विरोधी ( गद्दार ) मीडिया से लोकतंत्र व देश को खतरा उत्पन्न हो गया है।
profsragarwal
11 जून 2018काफी लम्बे समय से दलदली राजनीति जन्य व्यवसायिकता ने यदि जन जीवन के किसी क्षेत्र को सर्वाधिक प्रदूषित किया है तो वह है पत्रकारिता ।
कामता प्रसाद मिश्र
30 मई 2018कुछ स्वार्थी तत्वों ने पत्रकारिता का व्यापारीकरण कर दिया है। लेकिन सत्य कभी पराजित नहीं होता। निर्भीक पत्रकारिता अभी भी कायम है, हमें भरोसेमन्द समाचार एजेंसी पर ही भरोसा करना चाहिए।
Dinesh Shashi
30 मई 2018हिन्दी विवेक ने एक महत्वपूर्ण विषय को उठाया है । साधुवाद।
आज पत्रकारिता का स्वरूप पहले से काफी बदल गया है। पहले वाली ईमानदारी वह कर्मनिष्ठता का भी अभाव देखने को मिलता है। आज समाचार पत्रों में बड़ी-बड़ी संस्थाओं व उद्योगों के समाचार तो प्रतिदिन देखने को मिल जाते हैं लेकिन आम जनता के दुःख दर्द के समाचार बहुत कम मिल पाते हैं। इतना ही नहीं,पहले संवाददाता किसी भी कार्य क्रम में स्वयं पहुंच कर पूरी रिपोर्टिंग करते थे। आज या तो वे साइट पर जाते ही नहीं, यदि जाते भी हैं तो जल्दी से खाना पूर्ति करके भाग लेते हैं।
आज की रिपोर्टिंग राजनीति के सापेक्ष अधिक होने लगी है। ये इसका दुखद पहलू है।
alok sharma
30 मई 2018पहले पत्रकार समाज की भलाई के लिए लक्ष्य लेकर कार्य करता था, आज मिडिया संस्थान निजी स्वार्थ के चलते समाज हित लक्ष्यों को भूलकर सत्ताधीशों या धनबल से मजबूत लोगो के सामने गिड़गिड़ाते दिखाई देते हैं, कभी मीडिया समाज और देश का नेतृत्व कर रहे लोगों के दिशा सूचक की तरह कार्य करती थी। और सरकारें भी अपने सही गलत के फैसले का आंकलन कर सुधार की दिशा में कार्य करती थीं। वर्तमान संदर्भ में देखें तो मुख्य मीडिया की भूमिका संदेह से घिरी दिखाई देती है। प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रानिक दोनों ही बदलते परिवेश में नजर आते हैं।
धीरज की प्रतिभा
30 मई 2018डर भी तो यही है कि आज भी पत्रकारिता पर लोगों का भरोसा कायम है…डरने का कारण यह है कि सच का रक्षक और समाज का आईना कही जाने वाली पत्रकारिता का स्तर कुछ संस्थाओं और पत्रकारों ने इतना गिरा दिया कि ये सच कम और चाटुकारिता ज्यादा लगती है…. इस बीच उन पत्रकारों को मन से नमन है जिनके कारण आज भी लोगों का पत्रकारिता पर भरोसा कायम है. किन्तु इस भरोसे को कायम रखना एक बड़ी चुनौती लग रही है…. (ये मेरा निजी विचार है)
गंगाराम विश्वकर्मा
30 मई 2018भरोसा कम हुआ है।
Chandan Anand
30 मई 2018नि: संदेह पत्रकारिता के उद्योगिकरन से विश्वसनीयता पहले जैसी नहीं रही, पर विभिन्न विकल्पों और माध्यमों के चलते एक भरोसेमंद स्थिति आज भी क़ायम है।
Girish Upadhyay
30 मई 2018तमाम उतार चढ़ाव के बावजूद भरोसा आज भी कायम है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस से इस धारणा को और बल मिला।
Neerja Bodhankar
30 मई 2018संक्रमण तो सहज प्रक्रिया है।आवश्यकता है सकारात्मक ,सार्थक और ईमानदार पत्रकारिता की।